RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
सारा-“साईं, वैसे तो हम तीन लड़कियाँ हैं जो मर्दानखाने का खयाल रखती हैं और सब रुम्स में जाती हैं। मगर जब से आप आए हो तो मुझे सिर्फ़ आपका खयाल रखने का कहा गया है…” उसने मुश्कुराकर जवाब दिया।
और में उसकी बात सुनकर चौंक गया-“किसने मेरा खयाल रखने को कहा है?” मैंने हैरत से पूछा।
सारा-“वो बड़ी बीबी साईं ने। मेरा मतलब है आपकी दादी हुजूर ने…”
उसकी बात सुनकर मैं चौंक गया-“उनको मेरे यहाँ आने का पता है?”
मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर मुश्कुराहट आ गई-“जी साईं। उनको पता है…”
मैंने सारा की बात सुनकर गर्दन हिलाई-“अच्छा सारा, यह मेरे बराबर वाला जो कमरा है। इसमें कौन रुका हुआ है?”
मेरी बात सुनकर सारा के चेहरे पर परेशानी सी फैल गई। लेकिन फ़िर जल्दी से बोली-“यह कमरा तो साईं जमाल शाह का है। यह कमरा मुस्तकिल उनके लिए ही रिजर्व है। वो जब भी यहाँ आते हैं तो, इसी कमरे में रुकते हैं…”
मैं सारा की बात सुनकर चौंक गया। पीर जमाल शाह, यानी के बाबा के बाबा का कजिन और उनकी दूसरी बीवी की बहन का शौहार था जो रात को अय्याशी कर रहा था। यानी कि पीर जमाल शाह ही था वो शख्स जिसको बाबा के जाने का कोई दुख नहीं था। लेकिन उसके साथ औरत कौन थी? क्या उसकी बीवी वो जनानखाने से आई थी उससे मिलने? या फ़िर कोई और? अगर बीवी थी तो उसे ऐसी क्या आग लगी हुई थी कि उसने यहाँ मर्दानखाने में आने का खतरा उठा लिया? और पीर जमाल शाह ने उसे मर्दानखाने में आने पर कुछ नहीं कहा। उस वक्त वो रस्मो रिवाज कहाँ गए? मगर नहीं, वो उसकी बीवी नहीं हो सकती। अगर वो जमाल शाह की बीवी और जमील शाह की माँ होती तो यक़ीनन उमर में बड़ी होती। वो तो अपनी हरकतों से कोई जवान औरत थी। उसकी वो फुर्ती, मैं अभी तक नहीं भूल पाया था। किस तेजी से वो मेरे हाथों से निकल गई थी।
मुझे कुछ सोचता देखकर सारा बोली-“साईं, आप नाराज ना हो तो मैं एक बात पूछूँ?”
मैंने सारा की तरफ सवालिया नजरों से देखा।
तभी सारा बोली-“साईं, मुझे लगता है कि कोई ख़ास बात है जिसकी वजह से ही आप यह सब कुछ पूछ रहे हैं? अगर कोई ऐसी बात है तो, मुझे बतायें। हो सकता है कि मैं आपकी कोई मदद कर दूँ…”
मैं उसकी बात सुनकर चौंक गया। फ़िर एक लम्हे के लिए खयाल आया कि मैं सारा को सब बता दूँ। लेकिन फ़िर खामोश हो गया कि अभी वक्त मुनासिब नहीं। मगर इस दौरान मैंने अपने दिमाग़ में कुछ अहम फ़ैसले कर लिए थे।
अभी मैं यह सोच ही रहा था कि सलामू चाचा आ गये, और मुझे देखते हुए मुश्कुराकर बोला-“नाश्ता कर लिया छोटे साईं?”
मैंने मुश्कुराकर सलामू चाचा को देखा और जल्दी से सोफा से उठते हुए कहा-“जी चाचा। मैंने नाश्ता कर लिया…”
इसी दौरान सारा भी जल्दी से उठ गई थी और उसने बर्तन समेटने शुरू कर दिए थे।
सलामू ने मुझे सारा को देखते हुए कहा-“छोरी, यह बर्तन उठाकर छोटे साईं का कमरा सेट कर दो और बिस्तर की चादर वगैरा भी बदल देना…”
सलामू की बात सुनकर सारा ने जल्दी से गर्दन हिलाई, और फ़िर सलामू ने मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया। मैं सलामू के साथ रूम से बाहर निकल आया। फ़िर कुछ ही देर में हम लोग मर्दानखाने के अंदरूनी गेट के पास मौजूद थे। बाहर पोर्च में एक जीप खड़ी थी, और उसके साथ ही दो नौजवान गार्ड हाथों में हथियार लिए मौजूद थे। दोनों ही बड़े तगड़े और लगभग 6 फीट की हाइट के जवान थे। मैं उन्हें और जीप को देखकर रुक गया और चाचा से पूछा-“यह सब क्या है। हमने औतक तक ही तो जाना है ना?”
सलामू ने जल्दी से कहा-“नहीं साईं, हम पहले बाबा की कब्र पर जायेंगे दुआ पढ़ने। हमारे यहाँ रिवाज है के सोयम तक हमने रोजाना सुबह को कब्र पर जाना होता है…”
मैंने सलामू की बात सुनकर हल्के से सिर हिलाया और जीप की तरफ बढ़ गया। दोनों गार्ड आगे बढ़कर मेरे पैर छुये। सिंध में पीरों के मुरीद उनको सम्मान देने के लिए उनके पैर छूते हैं, चाहे वो बड़ा हो या फ़िर छोटा। मैंने उनको ऐसा करने से कुछ नहीं कहा।
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