RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
जिसे सारा ने भी महसूस कर लिया और वो जल्दी से बोली-“साईं आप नाराज ना हो। मैंने तो यह सब इस उम्मीद में कहा कि शायद आपने अपना खयाल बदल लिया हो, और आपके खून ने जोश मारा हो। आख़िर इस हवेली में रहने वालों और आपका खून एक ही तो है। वो सब आपके अपने सगे हैं। मुझे नहीं पता की आपके जेहन में क्या है। लेकिन वहाँ अंदर रहने वाले सब लोग आपसे बहुत मुहब्बत करते हैं। वो तड़प रहे हैं आपसे मिलने के लिए। उनका बस चले तो वो सब रिवाजों की जंजीरें तोड़कर आपके पास यहाँ मर्दानखाने में आ जाएँ और आपको अपने साथ ले जाएँ। लेकिन यह उनके बस में नहीं…” यह सब कहते हुए सारा की आँखों से अब आँसू बहने लगे थे, और उसकी आवाज भी रुंध गई थी। जिसको सारा बड़ी मुश्किल से कंट्रोल करने की कोशिस कर रही थी। वो बार-बार अपनी आँखों में आने वाले आँसू सॉफ कर रही थी।
मैं हैरत का बुत बना उसे देखा रहा था। फ़िर मैंने सारा को देखकर कहा-“सारा तुम कितना पढ़ी हो?”
मेरी बात सुनकर उसने हैरत से मुझे देखा-“साईं, मैं कहाँ पढ़ी लिखी हूँ, मैंने तो कभी किसी किताब को हाथ भी नहीं लगाया…”
मैं-तो फ़िर तुम इतनी बड़ी- बड़ी बातें कैसे कर लेती हो?”
मेरी बात सुनकर सारा ने एक सर्द ‘आह’ भरी और मुश्कुराते हुए कहने लगी। उसकी मुश्कुराहट में दर्द सा छुपा हुआ था-“साईं, यह जो वक्त हैं ना यह बहुत बड़ा उस्ताद है। यह इंसान को सब सिखा देता है। और साईं, मैं सबसे ज़्यादा इस वक्त की मारी हूँ…”
मैं हैरत से उसकी बातें सुन रहा था। अपनी बातों से तो सारा कहीं से भी अनपढ़ नहीं लगती थी। मैं उसकी कहीं हुई बातों को सोचने लगा। क्या जो सारा कह रही है सब सच है? क्या जनानखाने के रहने वाले सब लोग मुझसे बहुत मुहब्बत करते हैं? मुझसे मिलने के लिए तड़प रहे हैं? फ़िर उसकी एक बात अचानक से मेरे जेहन में आई और मैंने जल्दी से कुछ सोचते हुए सारा से पूछा-“सारा, क्या जनानखाने की औरतों को मर्दानखाने में आने की इजाजत नहीं है?”
सारा-“नहीं साईं, जनानखाने की बीबीयों यानी आपके खानदान में से किसी भी औरत को मर्दानखाने में आने की इजाजत नहीं है। बाकी वहाँ पर काम करने वाली, जैसे की मैं, वो मर्दानखाने में आ जा सकती हैं…”
सारा की बात सुनकर मैं सोचने लगा की फ़िर तो शायद जो औरत रात के अंधेरे में यहाँ आई थी वो कोई काम करने वाली ही होगी। अगर वो काम करने वाली नहीं थी, तो वो कौन थी जिसने हवेली के उसूलों और रिवाजों से जंग करने का बीड़ा उठाया है? यह सोचकर मेरी बेचैनी और बढ़ गई।
मैंने फ़िर एक सवाल किया सारा से-“अच्छा यह बताओ कि आजकल हवेली में रात के वक्त कौन-कौन रुका हुआ है?”
मेरा सवाल सुनकर सारा के चेहरे पर हैरत के भाव थे। वो मेरा सवाल सुनकर थोड़ा सा उलझ गई थी। मैंने उसके चेहरे पर उलझन के भाव देखकर कहा-“मेरा मतलब है कि क्या खानदान की दूसरी औरतें जो मेरा मतलब है कि पीर जमाल शाह के घर की औरतें या जो हमारे दूसरे रिश्तेदार हैं उनकी औरतें भी तो आई हुई होंगी ना? क्या वो हवेली में ही रहती हैं?”
मेरी बात सुनकर वो जल्दी से बोली-“जी साईं, आजकल खानदान की तमाम औरतें जो दूसरी जगह से आई हुई हैं, वो भी जनानखाने में मेहमान हैं, और वही रुकी हुई हैं…”
उसकी बात सुनकर मैंने एक अंदाज़ा लगाया कि शायद उनमें से ही कोई हो। अब सिर्फ़ यह पता लगाना था कि उस रूम में कौन था? मैंने पूछा-“सारा, तुम सिर्फ़ मेरी खिदमत के लिए यहाँ आई हो या तमाम मर्दानखाने में तुम ही नाश्ता पानी वगैरह देती हो?”
सारा-“साईं, वैसे तो हम तीन लड़कियाँ हैं जो मर्दानखाने का खयाल रखती हैं और सब रुम्स में जाती हैं। मगर जब से आप आए हो तो मुझे सिर्फ़ आपका खयाल रखने का कहा गया है…” उसने मुश्कुराकर जवाब दिया।
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