RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
मेरे बैठते ही वो मेरे सामने आकर ज़मीन पर बैठ गयी, मेने पुछा – तुम्हारी जीजी कहाँ हैं..?
श्यामा – वो बच्चों के स्कूल में गयी हैं, मास्टर जी ने बुलवाया था..,आपके लिए क्या लाउ, चाय.., पानी .., क्या लेंगे..?
श्यामा की पतली सी चुनरी के नीचे उसकी छोटी सी चोली में कसे हुए उसके अनार, जो अभी भी टॅनिस की बॉल के आकार के ही थे साफ-साफ अपनी गोलाई दिखा रहे थे..,
मेने उनपर नज़र डालते हुए कहा – चाय पानी से ही टरकाना चाहती हो..?
श्यामा – हाए पंडितजी.., हुकुम करो, आपके लिए मेरा सब कुछ हाज़िर है.., ये कहकर उसने शर्म से अपनी नज़रें नीचे करली और मंद-मंद मुस्कराने लगी..
मेने अपना हाथ बढ़ाकर उसका बाजू थामा, उसे उठाते हुए बोला – तो फिर इतनी दूर-दूर क्यों बैठी हो, तनिक पास तो आओ..,
वो तो इसी लालसा में बैठी ही थी, सो हाथ का इशरा पाते ही मेरी गोद में आगिरी…!
उसकी गोल-गोल मुलायम गान्ड के बीच की चौड़ी दरार में फँसा मेरा बाबूराव, अपनी मन पसंद जगह पाकर अति-प्रशन्न हो उठा, और अपनी खुशी जाहिर करने का उसे एक ही तरीक़ा आता था..,
वो अंडरवेर को उठाता हुआ, पाजामे के होते हुए भी शयामा की दरार में फिट हो गया.., जिसे अपनी गान्ड के एन छेद पर महसूस करके शयामा की आँखें मूंद गयी..,
मेने उसकी चुनरी को एक तरफ उछाल दिया, चोली में क़ैद उसकी टेनिस की बॉल जैसी कड़क चुचियाँ तन्कर सीधी हो चुकी थी.., जिन्हें मेने अपने हाथों में लेकर मसल दिया…!
आअहह….सस्सिईईई…मालिकक्क…मसलूओ..इन्हें…, उउफ़फ्फ़ …मोरी…माइइ…
मेने उसके अनारों को मसल्ते हुए कहा – यहीं चुदोगि या कोठे में..,?
सस्सिईई…पंडितजीि…, आप जहाँ चाहो.., चोद डालो मुझे.., आप कहोगे तो बीच रास्ते में चुदने को तैयार हो जाउन्गि आपसे.., आअहह…,
मेने उसके पतले-पतले होठों को चूम लिया और किसी बच्ची की तरह उसे अपनी गोद में उठाकर कोठे में ले जाने लगा.., उसने भी अपनी पतली-पतली बाहें मेरे गले में डाल रखी थी..,
नीचे मेरे फुल टाइट लंड उसकी गान्ड से रगड़ खाते हुए उसकी मुनिया तक ठोकरें मारता जा रहा था, जिससे श्यामा की हालत और खराब हो रही थी..,
अंदर जाकर मेने उसे वहाँ बिछि एक चारपाई पर लिटा दिया, और उसकी चोली के बटन खोलते हुए बोला – अभी कोई आएगा तो नही..,
श्यामा पाजामा के उपर से ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भरते हुए बोली – जीजी के अलावा तो और किसी के आने के चान्स नही हैं..,
मेने उसकी चुचियों को नंगा करके उन्हें सहलाते हुए कहा.., आअहह… शयामा रानी, क्या मस्त गोल-गोल कड़क चुचियाँ हैं तेरी.., पर इस बीच वो आगयि तो..?
ये कहकर मेने उसके निपल मरोड़ दिए..,
उयईी..मैयाअ…, ससिईई…आने दो.., आप जल्दी कुछ करो.., कहते हुए उसने मेरा पाजामा नीचे सरका दिया, और मेरे लंड को अंडरवेर से बाहर निकालकर वो किसी भूखी कुतिया की तरह उसपर टूट पड़ी..,
आवेश में आकर उसने मेरे लंड को मूह में लेने की कोशिश की लेकिन 1/3 अंदर जाते ही उसका मूह भर गया, वो उतने को ही चूसने लगी..,
मेने उसका लहंगा निकाल दिया, उसकी गोल-गोल गान्ड को सहलाते हुए उसकी चूत में अपने उंगली डाल दी.., गीली चूत में उंगली गॅप से सरक गयी, जिसे में अंदर बाहर करके चोदने लगा..,
मज़े के मारे शयामा के मूह से गुउन्नग्ग..गुउन्नग्ग.., जैसी आवाज़ें निकलने लगी
श्यामा का मूह जल्दी जबाब दे गया, थूक से लिथड़ा लंड बाहर निकाला, और कामातूर होकर बोली – अब डालो इसे पंडित जी..,
मेने भी देर करना ठीक नही समझा, अपने सुपाडे को उसकी चूत के मूह पर फिट किया और एक हल्का सा धक्का देकर उसे उसकी चूत में सरका दिया..!
मेरे मोटे लंड से शयामा की छोटी सी चूत जो काफ़ी दिनो से मेरे लंड से नही चुद पाई थी, उसकी पतली-पतली फाँकें बुरी तरह से चौड़ गयी, उसके मूह से आहह.. निकल पड़ी..,
हाईए…माल्लीक्कक…ये पहले से ज़्यादा मोटा हो गया है.., थोड़ा धीरे से डालो..,
मेने हाथों से उसके निप्प्लो को रगड़ कर एक धक्का और लगाया.., आधे लंड ने ही उसकी मुनिया का हुलिया बिगाड़ दिया था..,
शयमा ने अपने होठ कसकर भींच लिए.., मेने आधे लंड से ही उसे चोदना शुरू कर दिया.., उसकी कसी हुई चूत में तिल-तिल करके मेरा लंड अंदर सरक रहा था..,
सच में मुझे कुछ ज़्यादा ही मेहनत करनी पड़ रही थी.., शयामा की हालत बिगड़ती जा रही थी, लेकिन मेरे लंड की चाहत में बेचारी मना भी नही कर पा रही थी..,
हालाँकि उसकी चूत कामरस छोड़ रही थी, फिर भी मेरा लंड अपने अंतिम मुकाम तक नही पहुँच पा रहा था, फिर मेने थोड़ा साँस रोक कर एक दमदार धक्का लगा ही दिया..,
लाख रोकने पर शयामा के मूह से चीख निकल ही गयी, कसी हुई चूत के दबाब में मेरे लंड की नसें फटने को होने लगी.., मेरा पूरा लंड किसी खूँटे की तरह उसकी छोटी सी चूत में फिट हो गया..,
एक मरमान्तक चीख के साथ श्यामा अप्रत्याशित रूप से शांत पड़ गयी.., मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी, उसका मूह खुला हुआ था, आँखें फटी की फटी रह गयी थी..,
क्षणमात्र के लिए श्यामा अचेत हो होगयि, मेने उसके गाल थपथपाए..,
डर कर मेने अपने लंड को बाहर खींचा, लंड के खींचने के साथ ही उसके मूह से कराह निकली.., मेने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पुछा – क्या हुआ श्यामा..?
उसने अपने सूखे होठों पर जीभ फेरी, फिर फीकी सी मुस्कराहट लाकर बोली – आपके लंड के आगे मे हार गयी पंडितजी.., बहुत कोशिश की लेकिन नही झेल पाई..,
मेने धीरे-धीरे करके अपने लंड को आधे तक बाहर निकाला, उसे और बाहर करते हुए बोला – रहने दो फिर तुमसे नही लिया जा रहा तो..,
मेरी बात सुनकर शयामा ने फ़ौरन अपने पैरों की केँची मेरी गान्ड पर कस दी, और मेरे सीने से लिपटे हुए बोली – आपको मेरी सौगंध पंडितजी.., आप चोदो अब तो पूरा चला ही गया एक बार..,
मेने उसके होठों को अपने जीभ से तर किया और अपने लंड को फिरसे अंदर करते हुए मुस्कुरा कर कहा – जैसी तुम्हारी मर्ज़ी..,
8-10 बार अंदर बाहर होने तक श्यामा के मूह से कराह निकलती रही, लेकिन फिर जल्दी ही वो ले में आगयि और अपनी गान्ड को उछालने लगी…!
एक बार लंड सेट क्या हुआ, शयामा की चूत रस छोड़ने लगी, और जब लंड अच्छे से ग्रीस्ड हो गया, फिर तो दुबली-पतली सी श्यामा ने हद ही करदी..,
नीचे से किसी लट्टू की तरह अपनी कमर को चलाते हुए चुदाई में लीन हो गयी.., कुछ देर बाद मेने उसे अपने उपर बिठा लिया..,
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