RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
अपनी बेहन रेखा के बलात्कार से लेकर उन चारों को मौत देने तक, यहाँ तक कि उनके ऑर्गनाइज़ेशन को नेस्तोनाबूत करने तक की सारी घटना पर उसने गौर किया…!
उसे कोई क्लू नही पकड़ में आया, तो उसने फिरसे गौर किया…! फिर जैसे ही उसके दिमाग़ में गुंजन का नाम आया जिसे वो भूली हुई थी,
जब उसने उसपर गौर किया कि कैसे उसे उसे मेने किया था..
उसने एकदम से चुटकी बजाकर कहा – मिल गया….. हाआँ ! बिल्कुल ! वोही हो सकती है…!
उसकी ये बातें भाभी के कानों में पड़ी, और बोली – क्या बड़बड़ा रही हो
प्राची..? क्या मिल गया..?
प्राची मुस्कुराती हुई उनके पास आई और बोली – दीदी ! अपने लाड़ले देवर के लिए क्या कर सकती हैं आप ?
भाभी – ये भी कोई पुच्छने की बात है, वो मेरे सब कुछ हैं, उनके लिए मे अपनी जान भी दे दूं तो वो भी कम होगी…!
प्राची – और किसी की जान भी लेनी पड़े तो…?
भाभी – तुम क्या समझती तो अपनो के लिए जान लेना सिर्फ़ तुम्ही जानती हो, अरे उस लाड़ले के लिए इंसान तो क्या, शैतान से भी भिड़ जाउन्गि मे…!
भाभी का ऐसा दुर्गा रूप देख कर प्राची बोली – तो फिर चलिए मेरे साथ, अब लगता है, मेरा फिरसे हथियार उठाने का वक़्त आ गया है…!
निशा – दीदी, मे भी चलूंगी आप लोगों के साथ…!
भाभी ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया और बोली – तू सिर्फ़ मेरे देवर की निशानी की हिफ़ाज़त कर और अपनी बेहन पर भरोसा रख, अपनी जान देकर भी मे अपनी बेहन के सुहाग को ले आउन्गि…
और फिर मेरे साथ तो ये शेरनी भी है, तो फिर मुझे किसका डर… ये कहकर वो अपने नवजात शिशु जो अभी कुछ महीनों का ही था और घर की ज़िम्मेदारी उसे सौंप कर दोनो घर से चल पड़ी…
भैया और बाबूजी पूछ्ते रह गये कि कहाँ जा रही हो, तो भाभी ने सिर्फ़ इतना ही कहा – घर का ख्याल रखना, हम जल्दी ही लौटेंगे…!
प्राची ने बड़े भैया की गाड़ी ली और आँधी तूफान की तरह शहर की ओर दौड़ा दी…!
अपने बंगले पर आकर प्राची ने अपना हुलिया चेंज किया, कुछ ही देर में वो अब एक नव युवक ड्राइवर के भेष में नज़र आ रही थी, ऐसे ही उसने भाभी को भी एक ग्रामीण युवक में बदल दिया…!
उसकी कलाकारी देख कर भाभी दंग रह गयी, इन सब कामों से फारिग होने के बाद उन्होने प्राची से पूछा – आख़िर तुम करना क्या चाहती हो, और हम जा कहाँ रहे हैं…!
अब प्राची को लगा कि ये सही समय है दीदी को सब कुछ बताने और उन्हें समझने का, तभी वो अपना रोल अच्छे से कर पाएँगी… सो बोली..
दीदी ! मेने सभी संभावनाओं पर कई बार गौर किया, मुझे ऐसी कोई वजह नज़र नही आई, जहाँ से भैया पर अटॅक हो सकता है, सिवाय एक के…!
भाभी बस उसे देखती रही, क्योंकि उनके पास और कहने को कुछ था ही नही…
प्राची ने आगे कहा – योगराज की बेटी श्वेता के अलावा और कोई नही बचा है, जिसे हम भूल बैठे थे कि उसे कुछ नही पता होगा…
लेकिन मेरा सेन्स कह रहा है, कि उसे कहीं ना कहीं से भनक लग ही गयी होगी, और उसी ने ये हरकत की हो सकती है…!
भाभी – तुम शायद भानु को भूल रही हो, वो शुरू से ही हमारे परिवार के पीछे पड़ा है, ख़ासकर कोर्ट में मुँह की खाने के बाद…!
प्राची – नही दीदी.., मे भानु को नही भूली हूँ, मेने उस संभावना पर भी गौर किया था, लेकिन उसके ना होने के कयि कारण हैं…!
एक तो उसका मोटिव इतना सीरीयस नही है, दूसरा अगर वो इसके पीछे होता तो उन्हें किडनेप नही करता, या तो बुरी तरह ज़ख्मी कर देता या फिर…., इतना कहकर प्राची ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी…!
भाभी – जब तुम इतनी श्योर हो तो हम देवर जी को क्यों नही बता देते, वो अपने पोलीस फोर्स को लेकर उन्हें बचा सकते हैं ना…!
प्राची – लेकिन हमें कन्फर्म तो नही है ना कि ये उसी का किया धरा है, और मान भी लें कि उसी ने किया है, तो भी बिना किसी सबूत के पोलीस उसपर हाथ नही डाल सकती…!
भाभी – तो फिर अब हम क्या करने वाले हैं..?
प्राची – मेरा हुलिया देख रही हैं आप, उसी के मुतविक, अब हम उसके ड्राइवर को किडनॅप करेंगे, और उसकी जगह मे उसकी ड्राइवर बन जाउन्गि…!
अगर ये काम उसी ने किया है, तो दिन में कम से कम एक बार वो ज़रूर वहाँ जाती होगी जहाँ उसने उन्हें क़ैद किया होगा..!
भाभी – लेकिन इस काम में मेरा क्या रोल रहेगा…?
आप उसकी गाड़ी के आस-पास ही रहना, और जैसे ही मे इशारा करूँ, आप उसकी डिकी में छुप जाना, ये तो आप कर सकती हैं ना,.
भाभी – तुम पहले एक बार डिकी खोलना बंद करना बता दो मुझे, कहीं कुछ गड़बड़ ना हो…!
प्राची ने उन्हें डिकी खोलना सिखा दिया, और ये हिदायत कर दी, कि डिकी में बैठने के बाद उसे बिल्कुल बंद मत करना, वरना वो लॉक हो जाएगी, और आप अंदर से उसे नही खोल पाओगि, इसलिए हल्की सी गॅप बनाकर रखना…!
भाभी ने सब अच्छे से समझ कर अपनी गर्दन हिलाकर हामी भरी, भाभी को उसने एक पुरानी सी जीन्स और अपनी एक टीशर्ट पहनने को दी थी, जिसके उपर से एक ग्रामीण युवक जैसा ढीला-ढाला कुर्ता, और एक स्वाफी (तौलिया) ..
अभी दीदी, आप सिर्फ़ टॉप में ही रहो, और इस बॅग में कुर्ता और स्वाफी रख लो, जब हुलिया चेंज करने की ज़रूरत पड़े, तभी इसके उपर कुर्ता पहन कर अपने बालों को समेट कर स्वाफी लपेट लेना…
और ये लो मूँछे इन्हें भी लगा लेना…! उन्होने वो सब समान एक पोलिबॅग में रख लिया…, साथ ही प्राची ने एक खंजर भी उनके बॅग में डाल दिया, जो कभी भी सेल्फ़ डिफेन्स में काम आ सकता था…
लेकिन उन्होने टॉप और जीन्स पहली बार पहने थे, सो उन्हें बड़ी शाराम सी महसूस हो रही थी, प्राची उनके मन की बात समझ गयी,
उसने उनका संकोच दूर करने के लिहाज से जीन्स के उपर से उनके कूल्हे को दबाकर बोली – ओह्ह्ह दीदी, जस्ट फॉर फन…, इतना भी क्या शरमाना, इन कपड़ों में आप सचमुच हॉट लग रही हो…
उसकी बात से वो और ज़्यादा शरमा गयी,
इतना सब कुछ मोहिनी को सिखा पढ़ा कर वो दोनो वहाँ से निकल ली.. अपने मिशन पर.
समय के मुतविक, श्वेता को इस समय अपने ऑफीस में होना चाहिए था, सो गाड़ी उसने अपने बंगले पर ही छोड़ी, और एक ऑटो लेकर वो दोनो उसके ऑफीस की तरफ चल दी..
श्वेता एक बहुत बड़े एंपाइयर की मालकिन थी, उसकी अपनी खुद की बहुत बड़ी बिल्डिंग थी, ढेरों स्टाफ,
बिल्डिंग के आगे बड़ा सा लॉन, मेन गेट के बाजू में ही ऑफीस की कॅंटीन, जिसमें सभी ड्राइवर वग़ैरह बैठ कर सारे दिन अपने साहब लोगों का इंतेज़ार करते थे…
श्वेता के ड्राइवर का पता लगाना प्राची के बाएँ हाथ का खेल था,
बिल्डिंग के बाहर रिक्सा रुकवा कर उसने एक बार अपना हुलिया चेक किया, और भाभी को एक पेड़ के नीचे इंतेज़ार करने का बोलकर वो मेन गेट की तरफ बढ़ गयी…!
गेट पर ही उसने श्वेता के ड्राइवर की कुंडली पता कर ली, वो इस समय कॅंटीन में था, सो वो सीधी जाकर कॅंटीन में पहुँची…
वहाँ और भी लोग थे, सो उनसे पता करके वो रामसिंघ (ड्राइवर) जो कॅंटीन की एक खाली ब्रेंच पर लेटा हुआ था…
प्राची उसके एक दम पास जाकर ठेत हरियानवी में बोली – रे ताऊ, रामसिंघ थारा ही नाम से के…?
रामसिंघ अपने पास एक नौजवान ड्राइवर को देख कर बैठते हुए बोला – हां भाई मेरा ही नाम रामसीघ से.., के काम से म्हारे ते…?
प्राची – अरे ताऊ, म्हारे को कोई कोई काम ना से थारे से, एक भाबी बाहर रोड उपर खड़ी थारे ने पुच्छ रही थी…
रामसिंघ – भाभी..? कैसी है..?
प्राची – मन्ने तो घनी चोखी लागी, ये ही कोई 30-35 साल की..
रामसिंघ – पर तू कॉन सै भाई…?
प्राची – मे तो बाजू आली कंपनी में ड्राइवर सूं.., वो वहाँ खड़ी थी, तो मन्ने पूछ लिया, इब ज्यदा रिक्वेस्ट करण लागी, तो मे थारे धोरे बोलन आगया…!
रामसिंघ – चल देखूं तो सही कॉन भाभी सै…!
गेट से बाहर आकर प्राची ने दूर से ही उसे बता दिया कि देख वो पेड़ के नीचे खड़ी से, तू मिल ले ताऊ, मे चलता हूँ..!
इतना कहकर वो उसके जबाब का इंतेज़ार किए बिना ही बाजू वाली फॅक्टरी के गेट की तरफ बढ़ गयी, उत्सुकता बस रामसिंघ मोहिनी की तरफ चल दिया…!
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