RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
अपने मनोभावों को थोड़ा संयत करके वो बोली – अंकुश बाबू, मेने आपका नाश्ता रेडी करके रख दिया है, आप खा लेना, मुझे थोड़ी देर हो गयी है तो मे निकलती हूँ…,
मे – कोई बात नही आंटी जी आप जाइए मे ले लूँगा….!
वो बाहर जाने के लिए पलटी, कसकर पहनी हुई साड़ी में कसे हुए उनके सुडौल कुल्हों की थिरकन आज मेने पहली बार नज़र भर देखी, जिन्हें देखकर पंत के अंदर मेरा लॉडा अंगड़ाई लेने लगा…!
आंटी भी शायद ये महसूस कर रही थी, कि मे उन्हें ही देख रहा हूँ, सो नर्वानेस्स के कारण उनकी चाल में थोड़ा कंपन जैसा था…!
जब वो चली गयी, तो अनायास ही मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी, मेने अपने लौडे को दबाकर शांत रहने को मनाया…!
नाश्ता करके मे सीधा गुप्ता जी के ऑफीस पहुँचा, तो पता लगा कि वो अपने किसी काम से मुंबई निकल गये…!
असल में एक इंपॉर्टेंट फाइल उन्हें देनी थी, तो सोचा शाम को उनके घर देता हुआ निकल जाउन्गा, ये सोच कर मे कोर्ट की तरफ निकल गया…!
ज्यदा कोई इंपॉर्टेंट केस नही था, सो ऑफीस से जल्दी निकलने की सोच ही रहा था, कि तभी श्वेता का फोन आ गया,
मेने उससे बात की उसने मिलने के लिए कहा, तो मेने उसे एक घंटे बाद मिलने का बोलकर मे ऑफीस से गुप्ता जी के घर की तरफ निकल गया…
सेठानी ने बहुत कहा कि थोड़ा रूको, चाय पानी कर्लो, लेकिन अर्जेंट काम का बोलकर उन्हें फाइल पकड़ा कर मे वहाँ से श्वेता के ऑफीस की तरफ निकल लिया…!
मुझे देखते ही अपने ऑफीस में बैठी श्वेता अपनी सीट से खड़ी हुई, मेरा हाथ पकड़कर अपने ऑफीस में पड़े सोफा पर ले गयी…
हम दोनो एक दूसरे से सॅट कर बैठे बातें करने लगे, उसने कामिनी वाले कांड का जिकर छेड़ते हुए कहा –
बीते दिनो में कितना कुछ घटित हो गया, कामिनी मेरी बेस्ट फ्रेंड थी, शुरू से ही बड़ी घमंडी और आरोगेंट लड़की थी, लेकिन ये नही पता था कि वो इतनी गिरी हुई निकलेगी…
मेने अपने मन ही मन कहा – तेरा खानदान कॉन्सा दूध का धुला है, तेरा बाप-भाई भी तो इनमें शामिल था, लेकिन प्रत्यक्ष में बोला –
छोड़िए श्वेता जी, अब हम उन बातों को बुरा सपना समझकर भूल जाना चाहते हैं, अच्छा हुआ वक़्त रहते ये सब राज सामने आ गये,
श्वेता मेरी जाँघ सहला कर बोली – लेकिन एक काम वो अच्छा कर गयी, वो तुम्हारे बारे में इतनी तारीफ ना करती तो मे कभी तुमसे अटॅच्ड नही हो पाती…!
फिर पॅंट के उपर से ही मेरा लंड सहलाते हुए बोली - सच कह रही हूँ डार्लिंग, जबसे तुम्हारा ये मेरी मुनिया में गया है, तब से एक हफ़्ता काटना मुश्किल होने लगता है…
मेने मुस्कराते हुए उसकी शर्ट के उपर से ही उसके बड़े-बड़े मम्मे मसल्ते हुए कहा – क्यों आपके पति देव नही चढ़ते क्या..?
श्वेता मायूसी वाले स्वर में बोली – अब छोड़ो उनकी बातें, बस अब जल्दी से इसे मेरी चूत में डालकर थोड़ा अच्छे से कुटाई करदो.., जिससे इसकी खुजली थोड़े दिनों के लिए मिट जाए…!
ये कहकर उसने मेरे कपड़े निकालने शुरू कर दिए, और खुद भी नंगी हो गयी…
दो घंटे मेने उसे उलट-पलटकर आगे-पीछे सब तरह से चोदा, अब वो पूरी तरह संतुष्ट नज़र आ रही थी…
चोदते-चोदते मुझे जोरों की पेसाब लगी, सो मे लपक कर उसके ऑफीस के टाय्लेट में भागा…
बाथ रूम में पेसाब करके अच्छे से फ्रेश होने में मुझे 10 मिनिट लग गये, बाहर आकर मेने अपने कपड़े पहने, और उसकी नंगी चूत को मसल कर कहा – अब मे चलूं…
वो लंबी सी सिसकी लेकर बोली – अच्छा ठीक है, लेकिन मेरे ऑफर के बारे में कुछ सोचा तुमने, हमारा काम करोगे..?
मे – अभी तो बहुत मुसीबते चल रही हैं, थोड़ा रिलॅक्स होने दो बताता हूँ… ये कहकर मे उसके ऑफीस से निकल आया…!
श्वेता के ऑफीस से निकलते ही मेरा मोबाइल बजने लगा, देखा तो कृष्णा भैया की कॉल थी, मेने फोन पिक किया…
भैया – कहाँ है तू अंकुश…?
मे – यहीं हूँ, बस अपने फ्लॅट पर जा रहा था…क्यों कोई काम था..?
भैया – गाओं तो नही जा रहा ना आज…!
मे – नही ! आप बोलिए क्या बात है..,
भैया – वो यार मे एक अर्जेंट मीटिंग में फँस गया हूँ, आज प्राची से मेने वादा किया था जल्दी आकर उसे मार्केट ले जाउन्गा.., क्या तू उसे शॉपिंग के लिए ले जा सकता है, कार्ड है उसके पास..,
मे – कोई नही भैया आप अपनी मीटिंग ख़तम करो, मे अभी सीधा वहीं चला जाता हूँ ये कहकर मेने कॉल कट किया और घुमा दी स्टेआरिंग भैया के एसएसपी आवास की तरफ…!
जब मे उनके बंगले पर पहुँचा तो वहाँ प्राची हॉल में बैठी टीवी देख रही थी कोई परिवारिक सीरियल चल रहा था शायद…!
घुसते ही मेने चहकते हुए कहा – और भाभी जी क्या कर रही हो..?
मेरी आवाज़ सुनते ही उसने मेरी तरफ देखा, मेरे उपर नज़र पड़ते ही उसका 100एमएल ब्लड बढ़ गया.., सोफे से सीधी जंप मारकर मेरे गले से लिपट गयी…!
मेने उसके गोल-गोल चुतड़ों को मसलते हुए कहा – अरे..अरे..क्या करती हो भाभी, देवर की जान लोगि क्या…?
उसने नीचे उतरते हुए मेरे सीने पर प्यार से एक धौल जमाई और अपने गाल फूला कर बोली –
आपके मुँह से भाभी सुनना मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता भैया, मेरा नाम ही लिया करो…!
मे – लेकिन हमारा जो रिस्ता है वो तो यही रहने वाला है ना.., और ये क्या..? तुम अभी भी मुझे भैया क्यों कहती हो, देवर्जी कहा करो..!
प्राची – मुझे नही कहना देवर्जी.. अजीब सा लगता है, और वैसे भी अगर देवर उम्र में बड़ा हो तो भैया कहने में भी कोई बुराई तो नही है..!
खैर छोड़िए ये बातें, और बताइए क्या लेंगे, कुछ ठंडा या गरम..,
मे – मुझे कुछ नही लेना, भैया का फोन आया था, आज तुम्हें कुछ शॉपिंग के लिए जाना था, वो तो मीटिंग में बिज़ी हैं,
सो उन्होने मुझे बोला है तुम्हें शॉपिंग कराने के लिए.., चलो जल्दी से रेडी हो जाओ, फिर मुझे घर भी जाना है वरना आंटीजी मेरा वेट करती रहेंगी रात के खाने पर..!
प्राची – बस दो मिनिट बैठिए मे 5 मिनिट में रेडी होकर आती हूँ..,
रास्ते में प्राची ने पुछा – मम्मी और संजू कैसे हैं, मुझे याद करते हैं या नही…!
मे – क्यों नही करते होंगे, वैसे मे भी वहाँ कभी-कभार ही रुक पाता हूँ.., और उनके पास भी कहाँ समय है बात-चीत करने का…!
बेचारी सुबह-सुबह उठकर संजू को स्कूल के लिए तैयार करना, फिर नाश्ता पानी बनाकर काम के लिए निकलना, सच में बहुत मेहनत की है उन्होने घर संभालने में..,
प्राची – आप सही कह रहे हैं, और वो हैं भी बहुत प्रिन्सिपल वाली, जबसे पापा से संबंध तोड़े हैं, पलटकर उनकी तरफ देखा तक नही उन्होने…! वैसे अब तो वो खुश हैं.., है ना…!
मे – हां , अब कुछ- कुछ खुश रहने लगी हैं, मेने तो उन्हें बोला भी है कि आपको काम करने की कोई ज़रूरत नही है, सब कुछ तो है यहाँ…!
लेकिन वो भी पूरी खुद्दार औरत हैं, कहती हैं.., नही-नही.. मे आपका कैसे खा सकती हूँ, और वैसे भी खाली घर में बैठे बैठे भी क्या करूँगी…!
प्राची – करने दो उनको जो करना चाहती हैं, उनकी आदत बैठकर खाने की रही नही है ना.., वैसे आपकी वो बहुत तारीफ़ करती हैं..,
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