RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
निशा की आप बीती –
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरी सहेली मालती… उसकी शादी एक साल पहले ठाकुर सुर्य प्रताप के बेटे भानु प्रताप से हुई थी.. अब ये क्यों हुई कैसे हुई.. इस बारे में हमें ज़्यादा कुछ मालूम नही पड़ा..
हां ! इतना पता है कि भानु के पिता खुद मालती के दादा के पास आकर उसका हाथ माँगने आए थे…
शादी बड़ी धूम धाम से हुई, मालती के दादा के पास भी ज़्यादा तो नही पर अच्छी-ख़ासी ज़मीन जयदाद है.. सो उन्होने अपनी पोती की शादी में कोई कसर नही रखी…
भानु कभी –2 मालती के साथ हमारे गाँव आता था, जैसे और वाकी के रिस्तेदार भी आते हैं…
6 महीने पहले.. एक दिन मालती हमारे घर आई.. और मुझे अपने साथ अपने घर ले गयी… उसके साथ घर पर उसका पति भी मौजूद था…
उसके दादा – दादी कहीं बाहर किसी रिस्तेदार के यहाँ गये हुए थे.. घर पर वो दोनो ही थे…
मालती ने मुझे चाय बना कर दी… उस चाय के पीने के कुछ देर बाद ही मेरा सर चकराने लगा… मेने मालती को ये बात बताई तो उसने कहा – वैसे ही सर चकरा रहा होगा.. तू बैठ मे अभी आती हूँ..
मे उसके रूम में बैठी थी… मेरी आँखें बार-2 बंद खुल रही थी… तो मे कुछ देर बाद उसी पलंग के सिरहाने से टेक लेकर बैठ गयी…
मेरी आँखें बंद थी… कि तभी किसी के हाथों का स्पर्श मेने अपने शरीर पर किया… मेने जैसे तैसे कर के अपनी आँखें खोली – देखा तो मालती का पति मेरे बदन को सहला रहा था..
मे झट से उठ खड़ी हुई… और मेने उससे कहा – जीजा जी ये आप क्या कर रहे हैं..? मालती कहाँ है…?
वो मक्कारी भरी हसी के साथ बोला – वो तो किसी पड़ोसी के यहाँ गयी है… और मेरा हाथ पकड़ कर बोला – मे अपनी साली साहिबा को प्यार कर रहा हूँ…
आओ रानी मेरे पास आओ.. और ये कह कर उसने मुझे अपनी बाहों में भरना चाहा…
मे किसी तरह उससे छूट कर वहाँ से बाहर जाने के लिए भागी.. लेकिन देखा तो गेट अंदर से बंद था…
इससे पहले कि मे दरवाजे को खोल पाती, कि उसने मुझे फिरसे पकड़ लिया.. और मेरे साथ ज़ोर जबर्जस्ती करने लगा… छीना झपटी में मेरे कपड़े भी फट गये..
जिन्हें वो और तार-तार करने लगा…
मे बेबस और लाचार, नशे से बोझिल हो रही आँखों को किसी तरह खोले हुए रखकर उसके बंधन से छूटने की जी तोड़ कोशिश करती रही…
निशा अपनी आप-बीती सुनाते हुए सुबक्ती जा रही थी…. वो हिचकी सी लेकर फिर आगे बोली –
उसी दिन मेरे निकलते ही भैया घर आए थे, उन्हें ऑफीस में बहुत अच्छा प्रमोशन मिला था, वो बड़े खुश थे और सबके लिए कुछ ना कुछ गिफ्ट लेकर आए थे…
घर आकर जब उन्होने मेरे बारे में पूछा तो माँ बाबूजी ने बताया कि मे मालती के यहाँ गयी हूँ…
जब काफ़ी देर हो गयी.. और मे घर नही लौटी.. अंधेरा घिरने लगा था,.. तो घर पर सब लोग चिंता करने लगे…
कुछ देर और इंतेज़ार करने के बाद भैया मुझे लेने उसके घर पहुँच गये…
घर में सन्नाटा पसरा हुआ था… वो उसके चौक में जाकर आवाज़ लगाने लगे…
उनकी आवाज़ सुन कर मे अपनी पूरी ताक़त जुटाकर चिल्लाते हुए मेने भैया को मदद के लिए पुकारा..
भानु ने मेरे गाल पर एक जोरदार चान्टा जड़ दिया… और गाली देते हुए बोला.. साली चिल्लाकर अपने भाई को बुलाना चाहती है… और फिर उसने मेरा मुँह दबा दिया…
भैया ने मेरी आवाज़ सुन ली थी… वो गेट खटखटने लगे… और साथ ही साथ मुझे आवाज़ भी देते जा रहे थे…
भानु का थोड़ा ध्यान गेट की तरफ भटका… मेने मौके का फ़ायदा उठा कर उसके हाथ को बुरी तरह काट लिया… वो चीखते हुए दर्द के मारे ज़मीन पर बैठ गया…
इतने में मेने भाग कर गेट खोल दिया… और मे भैया से लिपट कर रोने लगी…
मेरे कपड़े फट चुके थे.. होंठों से खून रिस रहा था..मेरी हालत देख कर भैया की आँखें गुस्से से लाल हो उठी..
उन्होने मेरी पीठ सहलाते हुए.. मुझे अपने पीछे खड़ा किया और गुर्राते हुए भानु तरफ बढ़े….
तूने ये अच्छा नही किया हरम्जादे…, मेरी बहन की इज़्ज़त पर हाथ डालकर अपनी आफ़त मोल ले ली है तूने…
इससे पहले की वो उस तक पहुँच पाते… भानु के हाथों में ना जाने कहाँ से एक लंबा सा चाकू लहराने लगा…
उसने चाकू का बार भैया के ऊपर करना चाहा…,लेकिन उन्होने अपने आप को बचाते हुए उसकी चाकू वाले हाथ की कलाई थाम ली…
अब वो दोनो एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था हो चुके थे… कभी लगता की चाकू भैया की तरफ मूड गया, तो कुछ देर बाद उसका रुख़ भानु की ओर हो जाता…
मे खड़ी – 2 डर से थर-थर काँप रही थी…, मे किकरतव्यविमूढ़ सी कभी उसकी तरफ देखती, तो कभी भैया की तरफ…
उन दोनो में बहुत देर तक जद्दो जहद चलती रही, भानु की कोशिश थी कि वो चाकू का वार भैया पर कर सके, लेकिन उनकी मजबूत पकड़ उसकी कलाई पर बनी हुई थी…
फिर कुछ ऐसा हुआ कि चाकू वाला हाथ दोनो के बीच आ गया… और एक भयंकर चीख कमरे में गूँज उठी..
भानु का चाकू उसकी अंतड़ियाँ फाड़ते हुए उसकी पसलियों में जा घुसा था…
वो धडाम से फर्श पर गिर पड़ा.. चाकू उसके पेट में घुसा पड़ा था… भैया के कपड़े उसके खून से सन गये थे…
|