RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
इधर कॉलेज में एक और क्लास बढ़ गयी थी… और कॉलेज की फर्स्ट एअर की पर्फॉर्मेन्स देखते हुए फाइनल तक की स्पेशल पर्मिशन ग्रांट हो गयी..
कुछ कोशिशों के बाद बड़े भैया प्रमोशन के साथ हमारे कॉलेज में ही आ गये, और वो अब वहाँ वाइज़ प्रिन्सिपल थे.
उधर मनझले भैया ने भी अपने शहर में ही ट्रान्स्फर ले लिया था…. सब कुछ एक दम सही से सेट हो चुका था… हमारी फॅमिली एक हॅपी वाली फॅमिली कहीं जा सकती थी…
मौका देख कर मे पंडितानी की बहू से भी मुलाकात कर लेता था.. जो अब कुछ महीनों में ही एक बच्चे को जन्म देने वाली थी…
निशा से फोन पर ही बातें हो पाती थी… वैसे उसके ग्रॅजुयेशन तक कोई प्राब्लम नही थी फिर भी भाभी ने अपने माँ और पिताजी के कानों में ये बात डाल दी थी..
कि उनके बिना पुच्छे वो निशा की शादी ना करदें..
रूचि अब बड़ी हो रही थी.. और वो अब गाँव के स्कूल में पढ़ने जाने लगी थी…
छोटी चाची – चाचा अपने बच्चे के साथ खुशी – 2 जीवन जी रहे थे…मेरे पास अब ज़्यादा ऑप्षन नही बचे थे अपने लंड को शांत करने के…
बस चाची और कभी -2 भाभी के साथ मौका मिल जाता था…या फिर अपनी वर्षा रानी…अरे वहीी…पंडिताइन…
समय अपनी मन्थर गति से गुज़रता रहा, देखते – 2 दो साल और निकल गये, धीरे – 2 हमारे फाइनल के एग्ज़ॅम का समय नज़दीक आ रहा था, की तभी एक दिन हम सभी फाइनल एअर स्टूडेंट्स एक साथ कॉलेज ग्राउंड में बैठे बातें कर रहे थे, तभी मेरे एक दोस्त रवि ने कहा…
रवि – दोस्तो ! हम सब लोग पिच्छले 3 सालों से एक साथ रहे हैं, हम लोग एक तरह से इस कॉलेज की नींव कहे जा सकते हैं…
कुछ दिनो बाद हम सभी एक दूसरे से बिछड़ने वाले हैं, फिर पता नही कॉन कब, कहाँ क्या करेगा.. फिरसे हम एक दूसरे से मिल भी पाएँगे या नही…
मे – हां यार ! सही कह रहे हो तुम, भले ही हम लोगों के बीच पिच्छले लगभग 3 सालों में कुछ भी हुआ हो, कैसे भी हालत पैदा हुए हों, लेकिन हम रहे तो एक साथ ही हैं…!
तो क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए, जिससे एक दूसरे से बिछड़ने के बाद भी आने वाले कुछ दिनों तक हम एक दूसरे को याद रख सकें…!
आशु – आइडिया अच्छा है यार, लेकिन ऐसा क्या करें जिसकी यादें ताज़ा बनी रहें ?
मे – क्यों ना कुछ सांगीतीक कार्यक्रम रखा जाए कॉलेज में, सभी मिलकर धमाल करेंगे एक रात…
करण – क्या यार नचनियों वाले आइडिया देता रहता है, कुछ ऐसा करो जिसमें 2-4 दिन तक हम सब एक साथ ही रहें… सब कुछ मिल-जुलकर जो जी में आए वो एक साथ ही करें…!
तभी रागिनी बोल पड़ी – अगर पसंद हो तो एक आइडिया है मेरे पास…?
रवि – बिल्कुल दो ! यहाँ सभी के आइडिया से ही डिसाइड होगा, की हमें क्या करना चाहिए…
रागिनी – क्यों ना हम सब किसी लंबे पिक्निक तौर पर चलें, जहाँ कुछ एतिहासिक चीज़ें भी देखने को मिलें और जहाँ थोड़े बहुत जंगल भी देखने को हों…
4-6 दिन तक सब कुछ अपना हो, अपने तरीक़े का हो, और अपनी तरह से रहें…
उसकी बात सुनकर लगभग आधे से भी ज़्यादा लोग एक साथ बोल पड़े… सही आइडिया है, मज़ा आएगा… यही करते हैं…
मे – आइडिया बुरा नही है, लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें कॉलेज प्रशासन की मंज़ूरी लेनी होगी, उसके अलावा खर्चा बहुत होने वाला है, जो शायद हम में से कुछ लोग उसे अफोर्ड भी ना कर पाएँ…
कॉलेज अगर कुछ हेल्प करे तो संभव हो सकता है…!
रागिनी – उसमें क्या बड़ी बात है, कॉलेज हमारी बात क्यों नही मानेगा, और रही बात फंड की, तो वो एस्टिमेट कर के देखते हैं…
मे – ठीक है, तो चलो पहले प्रिन्सिपल साब से बात करते हैं, उसके बाद ही कुछ फ़ैसला लेना होगा…
फिर हम 8-10 स्टूडेंट्स मिलकर प्रिन्सिपल से मिलने चल दिए, उनके ऑफीस में राम भैया भी मौजूद थे…
इतने सारे स्टूडेंट्स को एक साथ देख कर वो दोनो चोंक पड़े, और हमसे पूछा –
क्या बात है बच्चो, यूँ एक साथ..? कोई समस्या है क्या…?
भैया को देखकर मे थोड़ा पीछे की तरफ जाकर खड़ा हो गया, उनके सवाल करने पर सभी मेरी ओर देखने लगे…,
जब कुछ देर मेने कुछ नही कहा तो करण आगे आकर बोला…
सर ! हम सभी फाइनल एअर स्टूडेंट्स चाहते हैं, कि एग्ज़ॅम से पहले कुछ ऐसा करें जिससे, वो हम सब के लिए एक यादगार मोमेंट हो…
तो हम सबने ये तय किया है, कि कहीं ऐसी जगह का पिक्निक टूर बनाएँ जहाँ हिस्टॉरिकल मॉन्युमेंट भी हों, और जंगल सफ़ारी भी हो जाए…
उसकी बात सुनकर प्रिन्सिपल साब ने भैया की तरफ देखा और बोले – बात तो सही कह रहे हैं ये बच्चे, आप क्या कहते हो राम मोहन बाबू…!
भैया – मे भी आपसे सहमत हूँ सर, क्योंकि ये वो बच्चे हैं, जिन्होने इस कॉलेज की नींव रखने में अपना सहयोग दिया है, तो हमें भी इनकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए…
लेकिन मेरा सुझाव ये है, कि इनको जंगलों में जाने की इज़ाज़त नही होनी चाहिए, इन सबका ये फाइनल साल है, किसी के साथ कुछ ऐसा वैसा हुआ, तो उसके भविष्य के लिए ठीक नही होगा…और कॉलेज का भी नाम खराब होगा…!
प्रिन्सिपल – आपकी बात सही है, फिर वो हम लोगों की तरफ मुखातिब होकर बोले – वैसे आप लोगों ने कुछ तो सोचा होगा, कहाँ जाना चाहते हो…?
रागिनी तपाक से बोल पड़ी – सर एंपी भ्रमण कैसा रहेगा, वहाँ हिस्टॉरिकल प्लेसस भी हैं, और नॅचुरल ब्यूटी भी देखने को मिलेगी…
प्रिन्सिपल – देखो बच्चो… अब आप लोगों के फाइनल्स में ज़्यादा समय भी नही है, और ज़्यादा लंबे टूर के लिए कॉलेज फंड भी मुहैया नही कर पाएगा,
तो उस हिसाब से आप लोग प्लान कर के हमें बता दो, फिर देखते हैं कि आगे का क्या कर सकते हैं..
हम सब उनकी बात सुनकर बाहर चले आए, और एक बार फिर ग्राउंड में बैठकर डिस्कशन करने लगे…
रागिनी की इच्छा थी खजुराहो घूमने की, साथ ही साथ उसके आस-पास के हिस्टॉरिकल प्लेसस और छोटे-2 जंगलों में सफ़ारी भी की जाए…
इसमें और भी स्टूडेंट्स सहमत थे, लेकिन क्या कॉलेज इतना लंबा टूर करने के लिए सहमत होगा…
फिर बात आई एस्टिमेशन की… सब कुछ मिलाकर 6 दिन के टूर के लिए सबसे पहले एक टूरिस्ट बस की ज़रूरत होगी…
कुल मिलकर हम 45-50 स्टूडेंट्स तो थे जो टूर पर जाना चाहते थे.., एक टूरिस्ट बस की बात चली तो रागिनी ने उसकी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, और कहा-
वो अपने पापा से कहकर अपनी खुद की बस ले जाएगी…
ये तो सबसे बड़ा काम हो गया, फिर तो बचना ही क्या था, खाना-पीना और रहना..
फिर डिसाइड हुआ कि रहने के लिए वो सब खुले मैदान में टेंट लगाएँगे, लेकिन इतना सारा समान जाएगा कैसे… तो उसके लिए भी उसने एक टेंपो अपने ट्रॅवेल्ज़ का ले जाने के लिए बोला..
वाकी का खर्चा कॉलेज ने अपने सर ले लिया.. और हमने दो दिन बाद का टूर डिसाइड कर लिया..
हमारे साथ दो जेंट्स टीचर और एक लेडी टीचर जाने वाले थे… इधर कॉलेज में एक और क्लास बढ़ गयी थी… और कॉलेज की फर्स्ट एअर की पर्फॉर्मेन्स देखते हुए फाइनल तक की स्पेशल पर्मिशन ग्रांट हो गयी..
कुछ कोशिशों के बाद बड़े भैया प्रमोशन के साथ हमारे कॉलेज में ही आ गये, और वो अब वहाँ वाइज़ प्रिन्सिपल थे.
उधर मनझले भैया ने भी अपने शहर में ही ट्रान्स्फर ले लिया था…. सब कुछ एक दम सही से सेट हो चुका था… हमारी फॅमिली एक हॅपी वाली फॅमिली कहीं जा सकती थी…
मौका देख कर मे पंडितानी की बहू से भी मुलाकात कर लेता था.. जो अब कुछ महीनों में ही एक बच्चे को जन्म देने वाली थी…
निशा से फोन पर ही बातें हो पाती थी… वैसे उसके ग्रॅजुयेशन तक कोई प्राब्लम नही थी फिर भी भाभी ने अपने माँ और पिताजी के कानों में ये बात डाल दी थी..
कि उनके बिना पुच्छे वो निशा की शादी ना करदें..
रूचि अब बड़ी हो रही थी.. और वो अब गाँव के स्कूल में पढ़ने जाने लगी थी…
छोटी चाची – चाचा अपने बच्चे के साथ खुशी – 2 जीवन जी रहे थे…मेरे पास अब ज़्यादा ऑप्षन नही बचे थे अपने लंड को शांत करने के…
बस चाची और कभी -2 भाभी के साथ मौका मिल जाता था…या फिर अपनी वर्षा रानी…अरे वहीी…पंडिताइन…
समय अपनी मन्थर गति से गुज़रता रहा, देखते – 2 दो साल और निकल गये, धीरे – 2 हमारे फाइनल के एग्ज़ॅम का समय नज़दीक आ रहा था, की तभी एक दिन हम सभी फाइनल एअर स्टूडेंट्स एक साथ कॉलेज ग्राउंड में बैठे बातें कर रहे थे, तभी मेरे एक दोस्त रवि ने कहा…
रवि – दोस्तो ! हम सब लोग पिच्छले 3 सालों से एक साथ रहे हैं, हम लोग एक तरह से इस कॉलेज की नींव कहे जा सकते हैं…
कुछ दिनो बाद हम सभी एक दूसरे से बिछड़ने वाले हैं, फिर पता नही कॉन कब, कहाँ क्या करेगा.. फिरसे हम एक दूसरे से मिल भी पाएँगे या नही…
मे – हां यार ! सही कह रहे हो तुम, भले ही हम लोगों के बीच पिच्छले लगभग 3 सालों में कुछ भी हुआ हो, कैसे भी हालत पैदा हुए हों, लेकिन हम रहे तो एक साथ ही हैं…!
तो क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए, जिससे एक दूसरे से बिछड़ने के बाद भी आने वाले कुछ दिनों तक हम एक दूसरे को याद रख सकें…!
आशु – आइडिया अच्छा है यार, लेकिन ऐसा क्या करें जिसकी यादें ताज़ा बनी रहें ?
मे – क्यों ना कुछ सांगीतीक कार्यक्रम रखा जाए कॉलेज में, सभी मिलकर धमाल करेंगे एक रात…
करण – क्या यार नचनियों वाले आइडिया देता रहता है, कुछ ऐसा करो जिसमें 2-4 दिन तक हम सब एक साथ ही रहें… सब कुछ मिल-जुलकर जो जी में आए वो एक साथ ही करें…!
तभी रागिनी बोल पड़ी – अगर पसंद हो तो एक आइडिया है मेरे पास…?
रवि – बिल्कुल दो ! यहाँ सभी के आइडिया से ही डिसाइड होगा, की हमें क्या करना चाहिए…
रागिनी – क्यों ना हम सब किसी लंबे पिक्निक तौर पर चलें, जहाँ कुछ एतिहासिक चीज़ें भी देखने को मिलें और जहाँ थोड़े बहुत जंगल भी देखने को हों…
4-6 दिन तक सब कुछ अपना हो, अपने तरीक़े का हो, और अपनी तरह से रहें…
उसकी बात सुनकर लगभग आधे से भी ज़्यादा लोग एक साथ बोल पड़े… सही आइडिया है, मज़ा आएगा… यही करते हैं…
मे – आइडिया बुरा नही है, लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें कॉलेज प्रशासन की मंज़ूरी लेनी होगी, उसके अलावा खर्चा बहुत होने वाला है, जो शायद हम में से कुछ लोग उसे अफोर्ड भी ना कर पाएँ…
कॉलेज अगर कुछ हेल्प करे तो संभव हो सकता है…!
रागिनी – उसमें क्या बड़ी बात है, कॉलेज हमारी बात क्यों नही मानेगा, और रही बात फंड की, तो वो एस्टिमेट कर के देखते हैं…
मे – ठीक है, तो चलो पहले प्रिन्सिपल साब से बात करते हैं, उसके बाद ही कुछ फ़ैसला लेना होगा…
फिर हम 8-10 स्टूडेंट्स मिलकर प्रिन्सिपल से मिलने चल दिए, उनके ऑफीस में राम भैया भी मौजूद थे…
इतने सारे स्टूडेंट्स को एक साथ देख कर वो दोनो चोंक पड़े, और हमसे पूछा –
क्या बात है बच्चो, यूँ एक साथ..? कोई समस्या है क्या…?
भैया को देखकर मे थोड़ा पीछे की तरफ जाकर खड़ा हो गया, उनके सवाल करने पर सभी मेरी ओर देखने लगे…,
जब कुछ देर मेने कुछ नही कहा तो करण आगे आकर बोला…
सर ! हम सभी फाइनल एअर स्टूडेंट्स चाहते हैं, कि एग्ज़ॅम से पहले कुछ ऐसा करें जिससे, वो हम सब के लिए एक यादगार मोमेंट हो…
तो हम सबने ये तय किया है, कि कहीं ऐसी जगह का पिक्निक टूर बनाएँ जहाँ हिस्टॉरिकल मॉन्युमेंट भी हों, और जंगल सफ़ारी भी हो जाए…
उसकी बात सुनकर प्रिन्सिपल साब ने भैया की तरफ देखा और बोले – बात तो सही कह रहे हैं ये बच्चे, आप क्या कहते हो राम मोहन बाबू…!
भैया – मे भी आपसे सहमत हूँ सर, क्योंकि ये वो बच्चे हैं, जिन्होने इस कॉलेज की नींव रखने में अपना सहयोग दिया है, तो हमें भी इनकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए…
लेकिन मेरा सुझाव ये है, कि इनको जंगलों में जाने की इज़ाज़त नही होनी चाहिए, इन सबका ये फाइनल साल है, किसी के साथ कुछ ऐसा वैसा हुआ, तो उसके भविष्य के लिए ठीक नही होगा…और कॉलेज का भी नाम खराब होगा…!
प्रिन्सिपल – आपकी बात सही है, फिर वो हम लोगों की तरफ मुखातिब होकर बोले – वैसे आप लोगों ने कुछ तो सोचा होगा, कहाँ जाना चाहते हो…?
रागिनी तपाक से बोल पड़ी – सर एंपी भ्रमण कैसा रहेगा, वहाँ हिस्टॉरिकल प्लेसस भी हैं, और नॅचुरल ब्यूटी भी देखने को मिलेगी…
प्रिन्सिपल – देखो बच्चो… अब आप लोगों के फाइनल्स में ज़्यादा समय भी नही है, और ज़्यादा लंबे टूर के लिए कॉलेज फंड भी मुहैया नही कर पाएगा,
तो उस हिसाब से आप लोग प्लान कर के हमें बता दो, फिर देखते हैं कि आगे का क्या कर सकते हैं..
हम सब उनकी बात सुनकर बाहर चले आए, और एक बार फिर ग्राउंड में बैठकर डिस्कशन करने लगे…
रागिनी की इच्छा थी खजुराहो घूमने की, साथ ही साथ उसके आस-पास के हिस्टॉरिकल प्लेसस और छोटे-2 जंगलों में सफ़ारी भी की जाए…
इसमें और भी स्टूडेंट्स सहमत थे, लेकिन क्या कॉलेज इतना लंबा टूर करने के लिए सहमत होगा…
फिर बात आई एस्टिमेशन की… सब कुछ मिलाकर 6 दिन के टूर के लिए सबसे पहले एक टूरिस्ट बस की ज़रूरत होगी…
कुल मिलकर हम 45-50 स्टूडेंट्स तो थे जो टूर पर जाना चाहते थे.., एक टूरिस्ट बस की बात चली तो रागिनी ने उसकी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, और कहा-
वो अपने पापा से कहकर अपनी खुद की बस ले जाएगी…
ये तो सबसे बड़ा काम हो गया, फिर तो बचना ही क्या था, खाना-पीना और रहना..
फिर डिसाइड हुआ कि रहने के लिए वो सब खुले मैदान में टेंट लगाएँगे, लेकिन इतना सारा समान जाएगा कैसे… तो उसके लिए भी उसने एक टेंपो अपने ट्रॅवेल्ज़ का ले जाने के लिए बोला..
वाकी का खर्चा कॉलेज ने अपने सर ले लिया.. और हमने दो दिन बाद का टूर डिसाइड कर लिया..
हमारे साथ दो जेंट्स टीचर और एक लेडी टीचर जाने वाले थे…
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