Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
05-18-2019, 01:32 PM,
RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
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१५२
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नसीम आपा और अब्बू ९ 
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मैंने अब्बू के फड़कते हर लन्ड को चूस चूम कर उसकी हर इंच को बिलकुल साफ़ कर दिया। अब उनका लन्ड मेरे थूक से 

लिस कर चमक रहा था। 

अब्बू ने थोड़े बेसबरेपन से मुझे चित्त लिटा कर मेरी भारी जांघों को पूरे मेरे कन्धों की ओर मोड़ कर मेरी गांड बिस्तर से ऊपर 

उठा दी। फिर बिना देर किये मेरी अभी भी खुली गांड के छेद में अपने लन्ड का मोटा सुपाड़ा जल्दी से फंसा दिया। मैं जब 

तक कुछ समझ सकती अब्बू ने एक बार फिर प्यार भरी बेदर्दी से अपना सारा का सारा हाथी का लन्ड मेरी गांड में दो तीन 

धक्को से ठूंस दिया। 

मैं अब उतने दर्द से नहीं चीखी जैसे पहली बार चीखी थी। अब्बू ने मेरी जांघों को अपनी बाँहों पे डाल कर अपने हाथों से मेरे 

पसीने से लतपथ उरोज़ों को कस कर अपने बड़े मज़बूत हाथों से मसलते हुए मेरी गांड की तौबा बुलवाने लगे। उनका लन्ड 

एक बार फिर से मेरी गांड के रस लिस कर चिकना हो गया। मेरी गांड के मक्खन की चिकनाहट से अब्बू का लन्ड अब फिर 

से सटासट मेरी गांड में इंजन के पिस्टन की राफ्टर और ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था। मैं अब वासना से सुबक रही 

थी दर्द न जाने कहाँ चला गया। 

अब्बू जब गांड -चुदाई की ताल तोड़ दांत किसकिसा कर कई बार एक ही धक्के से मेरी गांड में अपना पूरा लन्ड उतार देते 

तो मेरी सिसकारियां कमरे में गूँज उठती। 

"अब्बू ऊ ……. ऊ …….. ऊ ……… ऊ ………..ऊ ………..ऊवनन्ननन …………. उंन्नन्नन्न ," मैं सिसकते हुए बुदबुदाई। 

मेरे झड़ने की लड़ी एक बार फिर से लंबी पहाड़ी जैसी ऊंची हो चली। 

मैं अब अब्बू के महालण्ड से अपनी गांड के लतमर्दन के आगे घुटने टिक कर बस अपनी मज़े में लोट पोट होने लगी। 

अब्बू का लन्ड अब फचक फचक की आवाज़ें निकलता मेरी गांड को कूट रहा था। 

अब्बू के गले से कभी कभी 'उन्ह उन्ह ' की आवाज़ें उबाल पड़तीं। अब्बू अब और भी कोशिश कर रहे थे अपने धक्कों में और 

भी ताकत लगाने की। मेरी गांड की तो पहले से ही शामत आ चुकी थी। 

पर उस शामत मेरी गांड और चूत में वासना का तूफ़ान उठ रहा था। मेरी चूत कसमसा कर बार बार झड़ रही थी। मैं अब 

सिसकने के सिवाय कुछ भी बोलने ने नाकामयाब थी। मेरी मस्ती अब्बू के लन्ड से उपजी वासना की आग से और भी परवान 

चढ़ रही थी। 

अब्बू ने उसी ताकत और रफ़्तार से मेरी गांड की चुदाई ज़ारी रक्खी जब तक मैं इतनी बार झाड़ चुचोद की थी की मेरे होश 

हवास उड़ गए। 

अब्बू ने मेरी हालात पर तरस खा कर अपनी चुदाई की रफ़्तार बड़ाई। इस बार अब्बू सिर्फ अपने मज़े के लिए मेरी गांड रहे 

थे। 

जब अब्बू का लन्ड मेरी गांड की गहराइयों में अपने गरम उपजाऊ वीर्य की बारिश करने लगा तो मैं एक बार इतनी ज़ोर से 

झड़ गयी कि पूरी तरह गाफिल हो चली। 

जब मैं थोड़े होशोहवास में वापस आयी तो अब्बू प्यार से मुझे चूम रहे थे। मैंने भी अपनी बाँहों को अब्बू के गले का हार बना 

दिया और उनके खुले मुँह में अपनी जीभ घुस कर उनके मीठे थूक का स्वाद चखने लगी। 

"अब्बू मेरी गांड का हलवा आपने पूरा मैथ दिया है। मुझे अब बाथरूम जाना है ,"मैं बेशर्मी से अब्बू को चिड़ा रही थी। 

"बेटा बाथरूम तो मुझे भी जाना है ," अब्बू मुझे गुड़िया की बाँहों में उठा कर खड़े हो गए। उनका लन्ड अभी भी मेरी गांड में 

ठुसा हुआ था। 

बाथरूम में जाते ही अब्बू ने कहा ,"नूसी बेटा अपनी गांड कस लो। पहली गांड की चुदाई का मीठा रस तो मैं नहीं छोड़ने 

वाला। " अब्बू की चाहत से मुझे और भी मस्ती चढ़ गयी। अब्बू मेरी गांड की कुटाई के बाद अपना वीर्य मेरी गांड से पीना 

चाह रहे थे। 

"अब्बू पता नहीं और क्या क्या निकल जाये मेरी गांड में से ," मैंने हिचकते हुए कहा। 

"नूसी बेटा आपकी गांड में से जो निकले वो मेरे लिए नैमत जैसे होगा ,"अब्बू ने अपना लन्ड निकल और मैंने गांड कस ली। 

मैंने अपनी गांड के छेद को धीरे धीरे खोल और मेरी गांड जो अब्बू के वीर्य से लबालब भरी थी ढीली होने लगी। 

अब्बू ने बिना हिचक सब कुछ सटक गए। 

फिर अब्बू ने मेरा सुनहरी शरबत पिया। अब मेरी बारी थी अब्बू के लन्ड को चूस चाट कर साफ़ करने की। 

जब मैंने अपनी गांड के रस और अब्बू के वीर्य से लिसे उनके लन्ड को बिलकुल साफ़ कर दिया तो मैंने उनके खारे सुनहरी 

शरबत की सौगात मांगी। 

बिना एक बून्द जाय किया मैंने अब्बू सारा शरबत गटागट पी गयी। 

"अब्बू मेरी गांड का रस मुझे भी बुरा नहीं लगा ,"मैंने अब्बू के मूँह को चूमते हुए कहा। 

"बुरा! नूसी बेटा मुझे तो किसिस मिठाई से भी ज़्यादा मीठा लगा इसीसलिए मुझे और भी चाहिए ,"अब्बू ने प्यार से मुझे 

चूमा । 

"तो फिर अब्बू आपको मेरी गांड फिर से मारनी पड़ेगी ," मैंने बेटी के प्यार से इठलाते हुए कहा। 

अब्बू ने जवाब में मुझसे जो माँगा तो मैं हैरत से भौचक्की रह गयी। पर अब्बू की आवाज़ में इतनी चाहत थी की मैं भी उनकी 

विकृत वासना की आग में जल उठी। 

अब्बू और मैंने जो किया वो मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा। उस से मैं और अब्बू और भी करीब आ गए एक मर्द और औरत की 

तरह ही नहीं पर अब्बू और बेटी की तरह भी। 

कमरे में वापस आ कर अब्बू ने रात देर तक मेरी चूत और गांड को इतनी बार चोदा की मैं तो गिनती ही भूल गयी। जब मैं 

एक बार फिर से बेहोश हो गयी तभी अब्बू ने मुझे छोड़ा। 
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RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार - by sexstories - 05-18-2019, 01:32 PM

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