RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
ससुर बहू की पेलमपेली
मैं आपको एक बहुत ही रोचक घटना बताने जा रहा हूँ। मैंने कैसे अपनी नई नवेली बहू की चुदाई कर डाली। मेरा नाम मस्ताना सिंह है और मेरी उम्र 48 साल है। मेरी पत्नी का देहांत करीब 5 साल पहले हो गया था। फिटनेस फ्रीक होने की वजह से मैं अभी तक बहुत फिट रहता हूँ। पत्नी के जाने के बाद मेरे कई औरतों और कम उम्र की लड़कियों से शारीरिक सम्बन्ध रहे हैं।
मेरा एक ही बेटा है और कोई औलाद नहीं। घर में हम दो लोग ही थे। पर अभी दो महीने पहले मैंने मेरे बेटे रमेश की शादी करवा दी। मेरी बहू रीटा बहुत सुन्दर, आकर्षक और अच्छे स्वाभाव की लड़की है। अब चूंकि रमेश अपने काम में इतना व्यस्त है कि रीटा पूरे दिन में कई घंटे मेरे साथ ही बिताती है।
रीटा-रमेश की शादी को दो महीने ही हुए थे, एक दिन रीटा ने मुझसे पूछा भी कि क्या वह मेरे साथ मेरे जिम में, टेनिस, तैराकी में साथ आ सकती है?
तो मुझे उसे अपने साथ रखने में कुछ ज्यादा ही खुशी का अनुभव हुआ। हम अक्सर साथ-साथ शापिंग के लिए भी जाते। तो एक बार क्या हुआ कि हमलोग, मतलब रीटा और मैं एक माल में स्विम-सूट देख रहे थे।
थोड़ा मुश्कुराते हुए, थोड़ा शरमाते हुए रीटा ने मुझे एक छोटी सी टू-पीस बिकिनी दिखाई और पूछा- “यह कैसी है पापा?” और जिस तरह से यह पूछते हुए उसने मेरी ओर देखा।
तो दोस्तों, मेरे जीवन में शायद इससे उत्तेजक अदा किसी लड़की या औरत ने नहीं दिखाई थी। उसके चेहरे पर मुश्कान थी, आँखों में शरारत भरा प्रश्न था, उसकी यह कामुक अदा मुझे मेरे अन्दर तक हिला गई। मैंने बिना एक भी पल गंवाए उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ रखे और दबाते हुए कहा- “हाँ, इसमें तुम लाजवाब लगोगी, तुम्हारी फिगर है ही इसे पहनने के लिए एकदम उपयुक्त…”
वो खिलखिलाई- “मैं तो बस मजाक कर रही थी पापा। मैं इसे आम स्विमिंगपूल में कैसे पहन सकती हूँ?”
“लेकिन जान, मैं मजाक नहीं कर रहा…” फिर मैंने अपना एक हाथ उसकी कमर के पीछे लेजाकर, दूसरा हाथ उसके कूल्हे पर रखकर उसे अपनी तरफ दबाते हुए कहा- “हमारा क्लब एक विशिष्ट क्लब है और यहाँ पर काफी लड़कियां और महिलाएं ऐसे कपड़े पहनती हैं। और सप्ताहांत को छोड़कर अंधेरा होने के बाद तो शायद ही कोई क्लब में होता हो। तुम इसे उस वक्त तो पहन ही सकती हो…” अब तक मेरा ऊपर वाला हाथ भी नीचे फिसलकर उसके चूतड़ों पर आ टिका था। फिर मैंने सेलगर्ल की ओर घूमते हुए वो बिकिनी भी पैक करने को कह दिया।
अगली सुबह रीटा मेरे साथ जिम में थी, उसकी छरहरी-सुडौल काया से मेरी नजर तो हट ही नहीं रही थी। उसने भी शायद मेरी घूरती नजरों को पहचान लिया था, तभी तो उसके गुलाबी गाल और लाल-लाल से हो गए थे, और ज्यादा प्यारे हो गए थे।
वो मेरे पास आकर मेरे गले में एक बाजू डालते हुए बोली- “जब आप मेरी तरफ इस तरह से देखते हैं ना पापा, तो मुझे बहुत शर्म आती है पर अच्छा भी बहुत लगता है…” कहकर उसने अपना चेहरा मेरी छाती में छिपा लिया।
मैं उसकी पीठ थपथपाते हुए उससे जिम में रखी मशीनों के बारे में बात करने लगा कि उन्हें कैसे इश्तेमाल करना है? और उनसे क्या नहीं करना है?
उसे मेरी बातें तुरन्त समझ आ जाती थी और अपनी बात भी मुझसे कह देती थी।
हमने जिम में थोड़ी वर्जिश करने के बाद आराम किया, फिर नाश्ता करके टेनिस के लिये क्लब आ गये। उसे टेनिस बिल्कुल नहीं आता था तो मैंने उसे रैकेट पकड़ना आदि बताकर शुरू में अलीशार पर कुछ शाट मारकर कुछ सीखने को कहा। गयारह बजे तक हम वापिस घर आ गए और आते ही वो तो बगीचे में ही कुर्सी पर ढेर हो गई।
मैं उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया और पूछा- क्या मैंने तुझे ज्यादा ही थका दिया?
उसने कहा- “नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं…” पर उसके चेहरे के हाव-भाव से साफ नजर आ रहा था कि वो थक चुकी है।
मैं उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा हुआ और उसके कंधे और ऊपरी बाजुओं को सहलाते हुए बोला- “टेनिस की प्रैक्टिस कुछ ज्यादा हो गई…”
वो बोली- पापा, कई महीनों से मैंने कसरत आदि नहीं की थी ना, शायद इसलिए।
मैंने कुछ देर उसकी बाजू, कन्धे और पीठ सहलाई तो वो कुर्सी छोड़कर खड़े होते हुए बोली- “पापा, आप कितने अच्छे हैं…” और यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया।
मैंने भी उसके बदन को अपनी बाहों के घेरे में ले लिया और कहा- “मेरी रीटा भी तो कितनी प्यारी है…” कहते हुए मैंने उसके माथे का चुम्बन लिया और जानबूझकर अपनी जीभ से मुख का थोड़ा गीलापन उसके माथे पर छोड़ दिया।
“पापा, मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो मैं आपकी बहू बनकर इस घर में आई… आप यहीं बैठकर आराम कीजिए, मैं चाय बनाकर लाती हूँ…” कहते हुए रीटा मुड़ी।
मैं कुर्सी पर बैठकर सोचने लगा कि मैं भी कितना खुश हूँ रीटा जैसी बहू पाकर। आज कितना अच्छा लगा रीटा के साथ। तभी मन में यह विचार भी आया कि उसके वक्ष कैसे मेरी छाती में गड़े जा रहे थे जब वो मेरी बाहों में थी। ओह्ह… जब रीटा चाय बनाने के लिए जाने लगी तो मेरी नजर उसके चूतड़ों पर पड़ी, उसका टाप थोड़ा ऊपर सरक गया था और शायद टेनिस खेलने से उसकी सफेद निक्कर थोड़ी नीचे होकर मुझे उसके चूतड़ों की घाटी का दीदार करा रही थी। अब या तो उसने पैंटी पहनी ही नहीं था या फिर पैन्टी निक्कर के साथ नीचे खिसक गई थी। अब तो यह देखते ही छलांगें मारने लगी।
मैं भूल गया कि यह मेरी पुत्र वधू है। मैं उठकर उसके पीछे रसोई में गया, उसके पीछे खड़े होकर उसे चाय बनाते देखने लगा। मेरी निक्कर का उभार उसके कूल्हों के मध्य में छू रहा था।
उसने पीछे मुड़कर अपने कन्धे के ऊपर से मेरी आँखों में झांका और बोली- “पापा, मैं तो चाय लेकर बाहर ही आने वाली थी…” और उसने मेरे लिंग के पड़ रहे दबाव से मुक्त होने के लिए अपने चूतड़ थोड़े अन्दर दबा लिए।
और मैं उसकी टाप और निक्कर के बीच चमक रही नंगी कमर पर अपनी दोनों हथेलियां रखकर बोला- मैं कुछ मदद करूँ?
मेरे इस स्पर्श से उसे एक झटका सा लगा और वो मेरी ओर देखने के लिए मुड़ी कि उसके चूतड़ मेरे लिंग पर दब गए। मेरा उत्थित लिंग उसके पृष्ठ उभारों के बिल्कुल बीच में जैसे घुस सा गया। उसे मेरी उत्तेजना का आभास हो चुका था पर कोई प्रतिक्रिया दिखाए बिना वो बोली- “चलिए पापा, चाय तैयार है…” कहकर वो मेरे आगे-आगे चलने लगी।
मैं भी उसके पीछे-पीछे उसकी नंगी कमर और ऊपर-नीचे होते कूल्हों पर नजर गड़ाए चलने लगा। बाहर पहुँचते-पहुँचते मैं अपने को रोक नहीं पाया और जैसे ही रीटा चाय स्टूल पर रखने के लिए झुकी, मैं अपनी दोनों हथेलियां उसके कूल्हों पर टिकाते हुए बोला- “नाइस बम्स…” और इसी के साथ मैंने अपनी दोनों कन्नी उंगलियां कूल्हों की दरार में दबा दी।
रीटा- “ओह पापा, आप भी ना… अभी चाय छलक जाती…” चाय रखने के बाद वो मेरी तरफ घूमते हुए बोली।
और मेरे हाथ फिर से उसकी कमर पर आ गये- “तुम्हारे कूल्हे बहुत लाजवाब हैं रीटा। मुझे बहुत पसंद हैं…” पता नहीं मैं कैसे बोल गया और इसी के साथ मेरी आठों उंगलियां उसकी निक्कर की इलास्टिक को खींचते हुए उसके चूतड़ों के नंगे मांस में गड़ गईं।
रीटा के बदन में जैसी बिजली सी दौड़ गई और थोड़ी लज्जा मिश्रित मुश्कान के साथ बोली- सच में पापा?
मैं- “हाँ रीटा, तुम्हारे चूतड़ एकदम परफेक्ट हैं। इससे बढ़िया चूतड़ मैंने शायद किसी के नहीं देखे…” कहले हुए मैंने अपनी हथेलियां कुछ इस तरह नीचे फिसलाई कि सफेद निक्कर उसकी जांघों में लटक गई।
रीटा अपनी जगह से हिली नहीं और अब मैं उसके नंगे चूतड़ों को अपने हाथों में मसल रहा था। मैंने फुसफुसाते हुए उससे कहा- “रीटा, मैंने बहुत सारे चूतड़ इस तरह नंगे देखे हैं, सहलाए हैं, चाटे भी हैं पर…” कहते-कहते मैंने अपनी उंगलियों के पोर उन दोनों कूल्हों के बीच की दरार में घुसा दिए।
रीटा- “हाँ पापा, मैंने सुना है कि आपने खूब…” कहते हुए वो कामुक मुश्कान के साथ शरमा गई।
मैं- “तुम्हें किसने बताया?”
उसने कनखियों से मेरी तरफ देखा और अर्थपूर्ण मुश्कुराहट के साथ बोली- “काम्या ने। वो मेरे साथ कालेज में पढ़ती थी, वो मेरी सहेली थी और चटखारे ले-लेकर आपकी रसीली कहानियां मुझे सुनाया करती थी…” इसी के साथ वो खिलखिलाकर हँस पड़ी।
अब यह मेरे लिए परेशानी वाली बात थी, मैंने पूछा- “काम्या ने तुम्हें क्या-क्या बताया?” अब मेरे हाथ खुल्लमखुल्ला रीटा के चूतड़ों से खेल रहे थे।
वो फिर खिलखिलाई- “ये लड़कियों की आपस की बातें हैं, मैं आपको नहीं बताऊँगी…”
मैं- “लेकिन ना कभी काम्या ने, ना कभी तुमने बताया कि तुम सहेलियां थी?”
रीटा- “रमेश से मेरी शादी करवाने में काम्या का ही तो हाथ है। दो साल पहले जब एक बार आप लन्दन गये हुए थे तो काम्या मुझे यहाँ इस घर में लेकर आई थी। उस समय सुमन मौसी भी यहीं थी। तो काम्या ने ही मौसी को बीच में डालकर रमेश की शादी मुझसे करवाई…”
मैं- “ओह्ह… तो सुमन भी तुम्हारे साथ मिली हुई है?”
रीटा- “तो क्या पापा? सुमन मौसी तो आपके साथ भी… है ना?
मैं- “ह्म्म…”
रीटा- “सुमन मौसी ने ही तो बताया था कि…”
मैं- “क्या बताया था उसने? बोलो…”
रीटा- “उन्होंने बताया था कि आप किसी भी लड़की को अपने चुम्बन से पागल कर सकते हो…”
मैं- “सुमन से भी ना… चुप नहीं रहा जाता… तो अब तुम भी पागल… उंह्ह…” मैंने उसके टाप के अन्दर उसकी पीठ पर एक हाथ फिराते हुए कहा।
रीटा- “हाँ पापा, मुझे भी अपने होंठों का जादू दिखाईए ना…” रीटा ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर अपने होंठों को गोल करते हुए कहा।
मैं अपना हाथ उसकी पीठ से सरका कर गर्दन तक ले आया और उसके सिर को पीछे से जकड़ते हुए अपने होंठ उसके रसीले होंठों पर रख दिये। मेरे हाथ के उसके सिर पर जाने से हुआ यह कि उसका टाप भी मेरे हाथ के साथ रीटा के कन्धों में आकर रुका। मेरा दूसरा हाथ जो अभी तक उसके चूतड़ों पर था, वो फिसल कर उसकी जांघों तक चला गया और उसकी जांघ को उठाकर मैंने अपनी बाजू पर ले लिया।
रीटा ने अपने को मुझसे छुड़ाते हुए कहा- “पापा, अन्दर चलते हैं…”
मैंने उसे छोड़ते हुए कहा- “चलो, ड्राइंग रूम में चलो…”
जैसे ही वो सीधी खड़ी हुई, उसकी निक्कर उसके पैरों में ढेर हो गई।
मैंने निक्कर को पकड़कर उसके पैरों से निकालकर कहा- “चलो, मैं इसे सम्भालता हूँ…”
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