Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
05-16-2019, 12:05 PM,
#55
RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
माँ ने दीदी को चुदवाया-3


माँ भी शायद बहुत गर्म हो गई थीं और चुदना चाहती थीं.. क्योंकि उसने मेरा हाथ इस बार नहीं हटाया, पर शायद शर्मा रही थीं और अचानक बात को पलटते हुए बोलीं- अरे कितनी देर हो गई.. खाना बनाना है।
और वैसे ही नाईटी बिना बंद किए हुए उठ कर रसोई में चली गईं।
मैं भी तुरंत माँ के पीछे-पीछे रसोई में चला गया और मैंने देखा कि उन्होंने नाईटी के सिर्फ़ एक-दो बटन ही बंद किए थे.. बाकी सारा खुला हुआ था जिसके कारण उनकी चूचियाँ बाहर निकली हुई थीं और नाभि से नीचे का पूरा हिस्सा पैरों तक एकदम नंगा दिख रहा था।
मैं उनसे पीछे से पकड़ कर चिपक गया जिससे मेरा लंड माँ के चूतड़ों के बीच में घुस गया और बोला- माँ तुम बहुत अच्छी हो.. मेरे दोनों हाथ माँ के नंगे पेट पर थे।
माँ बोलीं- अच्छा मुझे मस्का लगा रहा है।
तो मैं हँसने लगा और धीरे-धीरे अपना हाथ माँ के पेट सहलाते हुए निचले हिस्से की ओर ले जाने लगा।
माँ की साँसें तेज़ चल रही थीं पर वे कुछ बोली नहीं.. तो मेरी हिम्मत और बढ़ी और मैंने अपना हाथ माँ की बुर के ऊपर हल्के से रख दिया और ऊँगलियों से उनकी बुर हल्के-हल्के दबाने लगा।
पर माँ फिर भी कुछ नहीं बोलीं।
मेरा लंड उत्तेजना की वज़ह से पूरा तना हुआ था और माँ की गाण्ड में घुसने की कोशिश कर रहा था। माँ की बुर की चिकनाई मुझे महसूस हो रही थी और चिकना पानी उसकी बुर से निकल कर जांघों पर बह रहा था।
मैं ऊँगलियों को और नीचे की तरफ करता जा रहा था.. तभी मेरी ऊँगलियां माँ की बुर की पुत्तियों को टच करने लगीं।
माँ बोलीं- तू बहुत बदमाशी कर रहा है।
पर मैं बिना कुछ बोले लगा रहा और फिर एक हाथ से धीरे-धीरे उसकी बुर के लटकते हुए चमड़े को सहलाने और फैलाने लगा।
जब मैंने देखा कि माँ मना नहीं कर रही हैं तो मैं धीरे से दूसरे हाथ से माँ की नाईटी को माँ की कमर के पीछे कर दिया दिया.. जिससे माँ पेट के नीचे से एकदम नंगी हो गईं।
मैं उत्तेजना के मारे पागल हो रहा था। मेरे लंड का सुपारा माँ की नंगे चूतड़ों की फांकों में धँस गया.. फिर मैं उनकी बुर से निकले लंबे चमड़े को फैला कर बुर के छेद में ऊँगली डालने की कोशिश करने लगा।
माँ ने काम करना बंद कर दिया..
उनकी बुर से चिकने पानी की बूंदें टपकने लगी थीं।
माँ भी अब मेरा साथ दे रही थीं और नाईटी के बाकी बटनों को खोल दिया.. जिससे नाईटी नीचे गिर गई।
अब माँ और मैं पूरी तरह नंगे हो गए थे।
मैं पीछे से हट कर माँ के सामने आ गया और मूढ़े पर बैठ कर माँ की बुर को फैलाते हुए उनकी बुर से बाहर लटकते हुए चमड़े को मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
माँ ने मेरा सर पकड़ कर अपनी बुर से और सटा दिया.. उनके मुँह से ‘ओह्ह.. आह’ की आवाजें निकल रही थीं।
मैंने अपनी जीभ माँ की बुर में डाल दी और उन्हें तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगा। उनकी बुर का सारा नमकीन पानी मेरे मुँह में भर गया.. माँ ने भी मस्त हो कर अपनी जांघों को और फैला दिया और कमर हिला-हिला कर बुर चटवाने लगीं।
कुछ ही देर में माँ मेरे मुँह को जाँघों से दबाते हुए झड़ गईं.. पर मेरा लंड और ज्यादा तन गया था।
तभी माँ मुझे खड़ा करते हुए खुद मूढ़े पर बैठ गईं और नीचे गिरी हुई नाईटी से मेरे सुपारे को पौंछ कर मेरा सुपारा अपने मुँह में भर लिया और मेरे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों से दबाते हुए चूसने लग गईं और एक ऊँगली मेरी गाण्ड के छेद में डालने लगीं।
मैं तो जैसे सपनों की दुनिया में पहुँच गया था।
माँ ज़ोर-ज़ोर से मेरा लंड चूस रही थीं और मैं भी लंड को उसके मुँह में अन्दर-बाहर कर रहा था।
तभी मैंने अपना कंट्रोल खो दिया और तेज ‘आह..’ करते हुए माँ के मुँह में ही झड़ने लगा।
माँ मेरे सुपारे को तब तक अपने मुँह में लिए रहीं.. जब तक मेरा वीर्य निकलना बंद नहीं हो गया।
हम दोनों कुछ देर तक वैसे ही बैठे रहे, फिर माँ मुझ से प्यार करते हुए बोलीं- तूने आख़िर अपनी मनमानी कर ही ली..
तो मैं बोला- तुम्हें अच्छा लगा ना?
तो माँ हँसने लगीं और चाय बनाने लगीं।
चाय पीकर मैं रसोई से बाहर आ गया और माँ नंगी ही खाना बनाने लगीं। फिर उसके बाद कुछ नहीं हुआ..
दोपहर में खाना खाते समय माँ मेरे लंड को देखते हुए बोलीं- अभी वीनू के आने का टाइम हो गया है.. अब तू लुँगी लपेट ले.. वरना वीनू को अटपटा लगेगा.. रात में सोते वक़्त पलंग पर फिर से लुँगी उतार कर नंगे सो जाना..
हम दोनों उस समय तक नंगे ही बैठे थे।
मैंने माँ से कहा- माँ कपड़े पहनने का मन नहीं कर रहा है.. अब तो घर में नंगा ही रहूँगा.. अब तो दीदी को भी नंगे ही रहने के लिए कहो..
‘लेकिन कैसे?’ माँ बोलीं।
तो मैं बोला- मुझे नहीं पता.. पर अब मैं नंगा ही रहूँगा और तुम भी नंगी रहो।
माँ बोलीं- ठीक है.. पर अभी तो कुछ पहन लो।
फिर मैं लुँगी लपेट कर टीवी देखने लगा और माँ भी नाईटी पहन कर काम करने लगीं।
जब दोपहर में वीनू आई तो मुझे लुँगी में बैठे देख कर माँ से धीमी आवाज़ में बातें करने लगी और मैं मन ही मन उन दोनों को एक ही बिस्तर पर चोदने का प्लान बना रहा था।
रात को मैं पूरा प्लान बना कर लुँगी उतार कर मा का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद माँ कमरे में आईं और दरवाजा बंद कर दिया।
फिर काम खत्म करने के बाद बिना लाइट ऑफ किए ही नंगी हो कर पलंग पर लेट गईं और मेरी तरफ करवट करके मुझसे पूछा- अब कैसा है?
‘क्या?’
‘वही…’
मैं तो पहले से ही तैयार था.. तुरंत बात को पकड़ते हुए पूछा- क्या वही?
माँ बोलीं- हाँ..
मैंने कहा- वही.. क्या इसका कोई नाम नहीं है.. क्या?
‘अच्छा.. बड़ा चतुर हो गया है.. तुझे नहीं पता क्या?’ और हँसने लगीं।
मैं बोला- मुझे तो दोस्तों ने बताया है.. पर तुम सही नाम बताओ ना?
‘अच्छा पहले सुनूं तो.. तेरे दोस्तों ने क्या बताया है?’
मैंने कहा- लंड..
यह सुनते ही माँ की जोर से हँसी छूट गई।
मैं माँ की जाँघों को फैलाते हुए उनकी बुर की पुत्तियों को सहलाने लगा और पूछा- अच्छा ये बताओ.. यह जो तुम्हारी बुर से बाहर चमड़ा निकला है.. इसका क्या कहते हैं?
तो माँ बोलीं- तेरे दोस्त क्या कहते हैं?
मैंने कहा- छोड़ो ना दोस्तों को.. तुम बताओ इसे क्या कहते हैं।
तो माँ ने कहा- कुछ भी कह ले.. पत्ती.. पंखुड़ी.. तुझे जो भी अच्छा लगता हो।
मैंने कहा- हाँ.. अच्छा ये बताओ जब मैं तुम्हारी गाण्ड मे लंड डाल रहा था.. तो दर्द होते ही तुमने मुझे मना क्यों नहीं किया?
तो माँ ने कहा- मुझे भी गाण्ड मरवाने का मन कर रहा था।
मैंने आश्चर्य से पूछा- क्या?
तो माँ ने कहा- हाँ.. मेरे गाँव में मेरे पड़ोस की चाची और उनकी लड़की जो एक दूर की रिश्तेदारी में मेरी चाची और चचेरी बहन लगती थीं..
उसने बताया कि शादी के बाद उन्हें चुदाई के बारे में ज़्यादा नहीं मालूम था और उसका पति उसकी गाण्ड में ही अपना लंड पेलता था..
बाद में मेरी चाची यानि उसकी माँ जो खुद भी बहुत चुदक्कड़ थी… उसने अपनी बेटी और दामाद को चुदाई के बारे में बताया।
अब अक्सर वो सब साथ में चूत चुदाई और गाण्ड मरवाने का मज़ा लेते हैं।
उसी ने मुझे गाण्ड में लंड लेने का तरीका और मज़े के बारे में बताया था।
उसकी दो लड़कियाँ हैं जब तू बड़ा होगा.. तो मैं तेरी शादी उसी की बड़ी वाली लड़की से कराऊँगी.. फिर हम सब भी साथ में मज़े लेंगे..
अच्छा अब ये बता कि वीनू को कैसे पटाया जाए? अब तो मैं भी एक भी दिन बिना तेरे लंड के नहीं रह सकती हूँ। अब तो जब तक मेरी गाण्ड में तेरा लंड ना जाए.. मज़ा नहीं आएगा.. एक बार वीनू भी पट जाए तो फिर तो मैं दिन भर गाण्ड मरवाती और चुदवाती रहूँगी.. उसके बाद तू चाहे तो वीनू को भी चोद ले.. फिर उसे भी अपनी बुर हाथ से नहीं रगड़नी पड़ेगी।
मैं बोला- मैं जैसा कहता हूँ.. वैसा ही करती रहना.. वो अपने आप खुल जाएगी.. वैसे भी वो तुमसे खुल कर बात करती ही है ना.. चुदने भी लग जाएगी..
तो माँ ने कहा- हाँ.. हम ओपन तो हैं.. पर कभी चुदाई की बातें नहीं की हैं।
मैंने कहा- अच्छा कितना ओपन हो?
माँ मेरे लंड को सहलाते हुए बोलीं- पहले तो सिर्फ़ एमसी के समय पैड लगाने तक.. पर अब तो हम दोनों एक-दूसरे के सामने नंगे ही कपड़े बदल लेते हैं..
कभी-कभी मैं उससे बाल साफ़ करने वाली मशीन भी माँग लेती हूँ.. झांटों को साफ़ करने के लिए मैं बाथरूम में बुर पर मशीन नहीं लगा पाती हूँ और कमरे में लगाती हूँ.. तो वो मुझे ऐसा करते हुए कई बार देख चुकी है..
हम दोनों का एक-दूसरे की बुर देखना नॉर्मल है.. कई बार जब वो खेल कर आती है और थकी होती है.. तो मैं उसकी मालिश कर देती हूँ.. वो भी उसे नंगी करके..
उसकी जाँघों और चूतड़ों पर भी उस समय मेरे हाथ उसकी बुर और गाण्ड के छेद को भी छूते और मसलते हैं और वो भी कभी-कभी मुझे नंगी करके मेरी मालिश करती है..
हाँ.. कभी-कभी जब मालिश के समय मेरी बुर खुजलाती है तो उसी के सामने मैं बुर में ऊँगली करती थी.. तो उस समय उसने मुझे देखा है और मुझे ये भी पता है कि वो भी अपनी बुर में ऊँगली डाल कर झड़ती है..
पर इतना होने पर भी ना तो उसने कभी मुझे झाड़ा है और ना ही मैंने उसको.. बस हम दोनों को ये जानते हैं कि हम दोनों बुर में ऊँगली करते हैं पर चाची और बहन की तरह बुर या गाण्ड चटवाना या चुदाई की बातें नहीं की हैं।
तो मैंने कहा- इतना काफ़ी है।
और मैंने अपना सारा प्लान माँ को बता दिया।
अगले दिन सुबह प्लान के मुताबिक मैं लुँगी पहन कर बाहर गया तो देखा माँ और दीदी बातें कर रही थीं।
मुझे देख कर माँ ने दीदी से कहा- जा भाई के लिए चाय ले आ।
तो दीदी रसोई में चली गईं.. मैं माँ के सामने अपनी लुँगी थोड़ा फैला कर ऐसे बैठा कि दीदी को पता चल जाए कि मैं माँ को अपना लंड दिखा रहा हूँ.. पर दीदी को मेरा लंड ना दिखाई दे।
जैसे ही दीदी आईं तो मैंने माँ को इशारा करते हुए अपनी जाँघों को बंद कर लिया।
दीदी कभी मुझे और कभी माँ को देखतीं.. पर वो समझ गई थी कि माँ मेरा लंड देख रही थीं।
चाय पीने के बाद मैंने जानबूझ कर अपना लंड हाथ से पकड़ कर.. जिससे दीदी की जिज्ञासा बढ़ जाए.. माँ से कहा- मैं फ्रेश होने जा रहा हूँ..।
तो माँ दीदी की तरफ देख कर बोलीं- हाँ.. चल मुझे भी पेशाब लगी है और बाथरूम में आकर मैं देख भी लूँगी..
फिर उसके बाद कुछ नहीं हुआ.. इस तरह 2-3 दिन बीत गए और हम लोग इसी तरह दीदी को उत्तेजित करते रहे।
एक दिन दोपहर में खाना खाने के बाद प्लान के मुताबिक मैं कमरे में आकर लुँगी से अपना लंड बाहर निकाल कर सोने का नाटक करने लगा।
थोड़ी देर में माँ भी आ गईं और अलमारी खोल कर वहीं ज़मीन पर बैठ गईं और कपड़े सही करने लगीं। थोड़ी देर में दीदी कमरे में आईं और माँ के पास ही बैठ गईं और बातें करने लगीं।
तभी दीदी की नज़र मेरे खड़े लंड पर पड़ी तो वो चौंक कर माँ से बोली- माँ देखो.. भाई कैसे सो रहा है और उसके सूसू पे क्या हुआ है?
तो माँ ने मेरी तरफ देखते हुए कहा- हाँ.. उसकी सूसू में रगड़ लगने की वजह से छिल गया है.. मैंने ही क्रीम लगा कर खुला रखने को कहा है।
दीदी बोली- वहाँ पर कैसे रगड़ लग गई.. जो इतना छिल गया?
तो माँ हँसते हुए बोलीं- मुझे क्या पता?
दीदी भी हँसते हुए बोली- अच्छा तो.. इसने ज़रूर वो ही किया होगा।
माँ बोलीं- अच्छा.. तुझे कैसे पता.. तू भी वही करती है क्या?
तभी प्लान के मुताबिक माँ ने अपनी नाईटी हल्का सा खींच कर अपनी बुर खुजलाने लगीं और ऐसे बैठ गईं कि दीदी को उनकी बुर दिखाई दे।
माँ की बुर पर नज़र पड़ते ही दीदी बोलीं- माँ तुमने मेरी बाल साफ़ करने वाली क्रीम लगाई है क्या?
तो माँ बोलीं- तुझे कैसे पता?
दीदी ने कहा- तुम्हारी चिकनी बुर दिखाई दे रही है।
तो माँ झुक कर अपनी बुर देखने का बहाना करते हुए बोलीं- हाँ.. लगाई है.. उसमें ज़रा सी तो बची थी।
दीदी माँ की बुर की ओर इशारा करके हँसते हुए बोली- वो ज़रा सी थी? मेरी पूरी क्रीम एक बार में खत्म कर दी.. अपनी बुर का साइज़ तो देखो.. इतनी बड़ी बुर है कि पूरी की पूरी एक बार में ही खत्म हो जाए और ऊपर से शीशे में देख कर फैला-फैला कर लगाती हो।
तो माँ भी हँसते हुए बोलीं- अच्छा तो सिर्फ़ मेरी ही बड़ी है.. तेरी तो इसी उम्र में इतनी फैल गई है.. जितनी मेरी तेरे पैदा होने के बाद फैली थी और तू तो रोज लगाती है.. तो खत्म नहीं होगी।
दीदी की चड्डी की ओर जो स्कर्ट से दिखाई पर रही थी.. इशारा करते हुए बोलीं।
तो दीदी ने कहा- नहीं.. मैंने नहीं लगाई है.. मैं ढूँढ रही थी.. पर मिली नहीं।
माँ ने कहा- मैं मान ही नहीं सकती।
अब दीदी भी मस्ती में भर कर अपनी चड्डी को साइड से हल्का सा खींच कर अपनी बुर माँ को दिखाते हुए बोली- नहीं लगाई.. ये देखो अभी मेरी बुर तुम्हारे जितनी चिकनी नहीं है.. 10-12 दिन हो गए है.. बाल साफ़ किए हुए।
ये सारी बातें सुन कर मेरा लंड पूरा 6-7 इंच का होकर तन गया और झटके लेने लगा।
तभी मुझे दीदी की आवाज़ सुनाई पड़ी- वो देखो भाई का लंड कैसा हो गया है.. लग रहा है कि सपने में कुछ कर रहा है।
तो माँ हँसने लगीं और कपड़े लेकर पलंग पर बैठ गईं तो दीदी भी साथ में पलंग पर आ गईं।
मैंने हाथ को अपने चेहरे पर इस तरह रखा था कि वो दोनों मुझे दिखाई दे रहे थे.. पर उन्हें मैं सोता हुआ लग रहा था।
मैंने देखा कि दीदी की निगाहें मेरे लंड पर टिकी हुई थीं.. तो मैं अपने लंड को और झटके देने की कोशिश करने लगा।
तभी माँ दीदी से बोलीं- ज़रा तौलिया देना.. और कहते हुए अपनी नाईटी को कमर तक उठाते हुए अपनी बुर खोल दी।
माँ दीदी को पूरी तरह गरम करना चाहती थीं और यही हमारा प्लान था।
माँ खुद भी गरम हो गई थीं और उनकी बुर से पानी निकलने लगा था।
शायद यही हाल दीदी का भी था.. तौलिया लेते ही माँ दीदी को दिखाते हुए अपनी बुर की पुत्तियों को हाथों से फैला कर पौंछने लगीं.. उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं।
तभी दीदी ने माँ से कहा- माँ मुझे भी देना..
तो माँ ने पूछा- क्यों तेरी बुर भी पानी छोड़ रही है क्या?
दीदी ने कहा- हाँ.. मेरी भी चड्डी गीली हो गई है।
माँ अपनी बुर पौंछने के बाद दीदी को तौलिया देते हुए बोलीं- तूने तो फालतू में ही चड्डी पहन रखी है.. उतार क्यों नहीं देती.. देख पूरी गीली हो गई है.. कोई बाहरी थोड़े ही है यहाँ पर.. और फिर तू तो मेरे सामने कई बार नंगी हो चुकी है।
तो दीदी मेरी ओर इशारा करने लगी।
माँ बोलीं- ये बेचारा तो वैसे ही परेशान है और ये भी तो नंगा ही है और तुझसे छोटा ही है.. इससे कैसी शरम.. चल उतार दे.. गीली चड्डी नहीं पहनते।
यह कह कर माँ अपनी नाईटी उतारने लगीं।
यह देख कर दीदी भी जो अब तक मेरी वजह से शर्मा रही थी.. माँ का इशारा पाकर तुरंत अपनी टी-शर्ट.. स्कर्ट और चड्डी उतार कर नंगी हो गई।
दीदी की चूचियाँ माँ जितनी बड़ी तो नहीं थीं.. पर काफ़ी सुडौल थीं। उसकी बुर पर छोटे-छोटे बाल थे और बुर भी फूली हुई थी.. पर उसकी पुत्तियाँ माँ जितनी बड़ी नहीं थीं.. वहाँ पर हम तीनों ही नंगे थे।
पूरे पलंग पर बुर के पानी की खुश्बू फैल गई थी। तभी माँ ने मेरे लंड को हाथों में लेते हुए कहा- ज़रा देखूं तो अभी रगड़ सूखी या नहीं..
वो मेरे सुपारे को घुमा कर चारों तरफ से देखने लगीं।
दीदी भी मेरी तरफ खिसक आई थी और उसकी भी साँसें माँ की तरह तेज़ चल रही थीं।
माँ ने जानबूझ कर दीदी की तरफ अपनी कमर करके जाँघों को पूरा खोल दिया.. जिससे उनकी बुर पूरी तरह खुल गई और उसकी पुत्तियाँ बाहर निकल कर लटक गईं।
माँ धीरे-धीरे मेरे सुपारे को सहला रही थीं..
दीदी मेरे सुपारे को बड़े ध्यान से देख रही थी और गरम हो गई थी, अब वो माँ के सामने ही अपनी बुर रगड़ने लगी।
यह देख कर माँ दीदी को चुदाई के लिए तैयार करने के लिए हँसते हुए बोलीं- क्या हुआ.. लग रहा है लंड देख कर तेरी बुर ज्यादा पानी छोड़ रही है.. अभी तेरी बुर का छेद छोटा है.. इतना मोटा सुपारा उसमे फँस जाएगा और तेरी बुर फट जाएगी.. कोई बात नहीं.. तू ऊँगली करके पानी निकाल दे।
यह सुन कर दीदी और गर्म हो गई और एकदम खुल कर माँ से बोली- अच्छा.. तो क्या सिर्फ़ तुम्हारी बुर का छेद ही इसके साइज़ का है.. लंड दिख गया.. तो तुम्हारी बुर फड़कने लगी नहीं.. तो हमेशा ऊँगली करती रहती थीं और मेरी चूत का छेद इतना भी छोटा नहीं है.. ये देखो..
और ये कह कर अपनी बुर को हाथों से फैला कर माँ को अपना लाल-लाल छेद दिखाने लगी और वो दोनों हँसने लगे।
हम सब इतने उत्तेजित थे कि किसी को कुछ भी होश नहीं था।
सिर्फ़ लंड और बुर दिखाई दे रहा था। तभी मैंने सही समय सोच कर उठने का नाटक करते हुए अपनी आँखें खोल दीं और उठने का नाटक करते हुए बैठ गया।
मेरे उठते ही माँ ने पूछा- अरे उठ गया बेटा.. अब दर्द तो नहीं हो रहा है।
मैंने कहा- नहीं.. पर मुझे पेशाब लगी है।
और यह कह कर बिना दीदी की तरफ देखे.. बाथरूम जाने लगा।
तो माँ बोलीं- मुझे भी पेशाब लगी है.. रुक मैं भी चलती हूँ।
वो मेरे साथ आ गईं.. बाथरूम पहुँच कर हम दोनों साथ-साथ मूतने लगे।
माँ की बुर से तेज़ सीटियों जैसी आवाज़ निकल रही थी।
हम अभी शुरू ही हुए थे कि दीदी भी आ गईं।
उसे देख कर माँ ने पूछा- क्या हुआ?
तो दीदी ने कहा- मुझे भी पेशाब लगी है।
तो माँ ने हँसते हुए कहा- अच्छा बैठ जा.. लगता है तेरी बुर लंड के लिए ज्यादा खुजली मचा रही है।
वो हम दोनों के सामने ही बैठ गई.. बैठने पर उसकी जाँघें फैल गईं.. जिससे उसकी बुर की फाँकें पूरा फैल गईं और बुर के लाल-लाल छेद से निकलते हुए पेशाब की धार को देख कर मेरा लंड और तन गया।
दीदी भी मेरे लंड से पेशाब की धार निकलते हुए बड़े ध्यान से देख रही थी।
तो माँ ने मौका देख कर मुझसे पूछा- अब सुपारे पर पेशाब लगने से कल की तरह जलन तो नहीं हो रही है?
तो मैंने कहा- नहीं..
तब तक माँ पेशाब कर चुकी थीं और मैं भी और दीदी के मूतने का इन्तजार करने लगे।
जब दीदी मूत कर खड़ी हुईं तो हम सब कमरे में आ गए।
मेरा लंड अभी भी एकदम खड़ा था।
माँ पलंग पर टेक लगा कर बैठ गईं और मुझे अपने पास बैठा लिया।
दीदी भी हम दोनों के सामने बैठ गई।
फिर माँ मेरे सुपारे को हाथ में लेकर बोलीं- ठीक है.. अब कुछ दिन तक रगड़ना-वगड़ना नहीं.. लंड खड़ा होता है तो कोई बात नहीं… थोड़ी देर लंड को सहलाएगा तो ठीक हो जाएगा..
‘लेकिन माँ ज्यादा तनने के कारण मेरे लंड में अब बहुत खुजली हो रही है।’ मैंने लंड माँ की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
तो माँ बोलीं- ठीक है.. मैं इसका पानी झाड़ देती हूँ.. फिर ये थोड़ा नरम हो जाएगा.. नहीं तो चमड़ा खिंचने से और दर्द होगा।
मैंने कहा- क्या.. अभी तो माँ मेरे चूतड़ पर हाथ रख कर अपनी तरफ करते हुए लंड को दूसरे हाथ में लेकर बोलीं- तो क्या हुआ.. मेरे सामने कैसी शरम और अब तो दीदी के सामने भी शरमाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
यह बात माँ ने उत्तेजित होकर मुझे दीदी की बुर दिखाते हुए कहा- यह देख वीनू की बुर का छेद तो लंड लेने के लिए खुद ही खुला हुआ है..
फिर मैं पलंग पर लेट गया.. माँ मेरे कमर के पास बैठी थीं और मेरा सर दीदी की जांघों के पास था.. जिससे दीदी की बुर की फैली हुई फांकें अब मुझे एकदम नज़दीक से दिखाई दे रही थीं।
माँ दीदी से बोलीं- ज़रा गरी का तेल देना।
दीदी ने तेल दिया।
माँ ने तेल हाथ में लगा कर मेरे सुपारे पर लगाया और मेरे लवड़े की मुठ मारने लगीं और मैं अपने एक हाथ से माँ की बुर के छेद में धीरे-धीरे ऊँगली करने लगा।
माँ और दीदी बहुत ज़्यादा उत्तेजित थीं जिससे उनकी बुर और गाण्ड का छेद खुल और बंद हो रहा था।
तभी दीदी अपनी बुर में अपनी ऊँगलियाँ डालते हुए माँ से बोली- माँ हाथ से ऐसे पकड़ कर करोगी तो लंड में फिर घाव हो जाएगा।
माँ भी सर हिलाते हुए बोलीं- हाँ.. तू सही कह रही है.. पर क्या करूँ इसको झाड़ना तो पड़ेगा ना..
तो दीदी जो एकदम गरम हो गई थी.. अपनी बुर दिखाते हुए माँ को इशारा करके बोली- ऐसे करो ना..
तो माँ अपनी बुर को फैलाते हुए बोलीं- हाँ.. तू सही कह रही.. मैं इसके लंड पर बैठ कर इसका लंड अपनी बुर में डाल लेती हूँ और ऊपर-नीचे करती हूँ.. मेरी बुर में लंड जाते ही झड़ जाएगा.. पर चुदाई में मेरी इन बड़ी-बड़ी पुत्तियों से रगड़ कर कहीं फिर से छिल ना जाए? एक काम करती हूँ.. इसका सुपारा मुँह में लेकर हल्के-हल्के से चूस कर झाड़ देती हूँ।
यह कह कर तुरंत अपने चूतड़ दीदी की तरफ उठाते हुए मेरे लंड पर झुक गईं और लंड चूसने लगीं।
लेकिन मैंने अपनी ऊँगली माँ की बुर से नहीं निकाली और दूसरे हाथ से बुर की पुत्तियों को फैलाते हुए और तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगा।
तभी ये देख कर दीदी ने भी अपना कंट्रोल शायद खो दिया और झुक कर माँ के चूतड़ों को अपने हाथों से फैला कर माँ की चूतड़.. गाण्ड और बुर का छेद चाटने लगी।
जैसे ही दीदी ने माँ की 4 इंच लंबी और 2 इंच चौड़ी पुत्तियों को अपने मुँह ले लिया, माँ ने भी अपनी जाँघों को और फैला दिया और उसके मुँह पर अपनी बुर को दबाते हुए मेरे लौड़े को चूसने लगीं।
मैं भी इसी इंतजार में था और अपनी ऊँगलियाँ माँ की बुर से निकाल कर दीदी के चूतड़ जो मेरी तरफ थे, अपने हाथ से फैला कर उसकी गाण्ड और बुर में ऊँगली डाल कर चोदने लगा।
दीदी भी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर अपनी बुर में ऊँगली डलवा रही थी कि मेरे दिमाग़ में एक आइडिया आया और मैंने माँ से कहा- माँ एक काम करो.. तुम थोड़ा सा आगे बढ़ जाओ.. जिससे दीदी मेरे और तुम्हारे बीच में आ जाएगी.. फिर तुम मेरे लंड को चूसना.. दीदी तुम्हारी बुर चाटेगी और मैं दीदी की बुर चाटूंगा।
तो माँ और दीदी तुरंत उसी तरह लेट गईं और फिर हम तीनों एक-दूसरे की बुर और गाण्ड चाटने लगे।
मैंने अपनी एक ऊँगली दीदी की गाण्ड में थूक लगा कर डाल दीं और उसकी बुर को मुँह में भर लिया।

कुछ ही देर में मैं अपना लंड माँ के मुँह में और अन्दर घुसाते हुए दीदी की बुर को पूरा मुँह भर कर चाटते हुए झड़ गया।
माँ दीदी को दिखाते हुए मेरे पूरे वीर्य को जीभ से चाट कर पीने लगीं।
जब उसने मेरा लंड पूरा सुखा दिया.. तो सीधी होकर आराम से लेट गईं और दीदी से अपनी बुर चटवाने लगीं और फिर झड़ कर शांत हो गईं।
इधर मैंने भी दीदी की बुर चाट कर उसे झाड़ दिया था।
थोड़ी देर लेटे रहने के बाद हम तीनों उठ कर बैठ गए।
मेरा लंड उस समय सिकुड़ा हुआ था तो दीदी माँ को मेरा लंड दिखाते हुए बोली- अरे वाहह.. माँ तुम्हारा ये चूसने वाला तरीका तो ज्यादा बढ़िया था.. भाई को झाड़ भी दिया और लंड पर भी कुछ नहीं हुआ।
माँ बोलीं- हाँ.. पर तूने तो आज कमाल कर दिया.. ओह क्या बुर चाटी है..
तो दीदी बोली- हाँ.. माँ मुझे भी अच्छा लगा।
माँ बोलीं- चल अच्छा है.. अब जब इसका लंड थोड़ा ठीक हो जाए.. तो तुझे भी इसे अपनी बुर में लेने में मज़ा आएगा.. तब तक अपना छेद फैला ले।
ये कह कर माँ ने मुझे आँख मारी.. तो हम तीनों हँसने लगे और हम लोग इसी तरह थोड़ी देर तक आपस में हँसी-मज़ाक करते रहे और चाय पी.. पर दीदी की बुर देख-देख कर मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया और झटके लेने लगा.. तो मैं अपना लंड हाथ में लेकर दीदी और माँ को दिखाते हुए धीमे-धीमे मुठ मारने लगा।
यह देख कर दीदी माँ से बोली- माँ देखो भाई का लंड फिर से फूल गया है.. लगता है इसका फिर से झड़ने का मान कर रहा है।
तो माँ बोलीं- मैं तो अब थक गई.. हाँ.. तुम दोनों को जो करना है.. करो मैं सिर्फ़ लेट कर देखूँगी।
यह कह कर माँ लेट गईं.. उसकी कमर मेरी तरफ थी और जाँघें फैली हुई थीं जिससे उसकी मेरी दोनों हथेलियों जितनी बड़ी और चिकनी बुर एकदम खुल गई थी और उसकी लंबी और चौड़ी पुत्तियाँ बाहर निकल कर लटकी हुई थीं।
ये देख कर मैं अपने एक हाथ से उन्हें मसलने लगा… ये देख कर दीदी जो बड़ी ललचाई नज़रों से मेरे लंड को देख रही थीं.. झुक कर मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया।
ओह क्या मस्त लग रहा था.. दीदी गपागप मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसे जा रही थी.. और मैं भी अपनी ऊँगलियां माँ की बुर में तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगा।
माँ भी धीरे-धीरे अपनी कमर ऊपर उछाल कर चुदवा रही थीं और खूब ज़ोर से हिलते हुए झड़ गईं।
तभी मैं अपना लंड दीदी के मुँह में अन्दर तक घुसड़ेते हुए झड़ गया।
दीदी भी मेरे लंड का पानी पूरा चाट गई.. फिर हम सब थक कर सो गए।
अब ये हमारे घर का नियम बन गया था और हम तीनों जन हर काम साथ-साथ करते.. बाथरूम साथ जाते.. कोई लेट्रीन करता.. कोई मंजन करता.. कोई नहाता.. कभी-कभी हम सब एक-दूसरे को अपने हाथों से ये काम करवाते। मंजन करते और नहलाते और जब मौका मिलता अपनी बुर और लंड एक-दूसरे में घुसाए रहते।
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RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ - by sexstories - 05-16-2019, 12:05 PM

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