RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
तो माँ बोलीं- एक काम किया कर.. आज से रात को और जल्दी सो जाया कर..’
यह कह कर वो हँसते हुए रसोई में चली गईं।
जब मैंने देखा कि माँ कल रात के बारे में कुछ भी नहीं बोलीं.. तो मैं खुश हो गया।
उस दिन पूरे दिन मैंने कुछ भी नहीं किया.. मैंने सोच रखा था कि अब मैं रात को ही सब कुछ करूँगा.. जब तक या तो माँ मुझसे चुदाई के लिए तैयार ना हो या मुझे डांट नहीं देती।
रात को मैं खाना खाकर जल्दी से कमरे में आकर सोने का नाटक करने लगा।
थोड़ी देर में माँ भी दीदी के साथ आ गईं, उस दिन माँ बहुत जल्दी काम ख़त्म करके आ गई थीं।
खैर.. मैं माँ के सोने का इंतजार करने लगा।
थोड़ी ही देर में दीदी के जाने के बाद माँ धीरे से पलंग पर आकर लेट गईं। करीब एक घंटे तक लेटे रहने के बाद मैंने धीरे से आँखें खोलीं और माँ की तरफ सरक गया।
थोड़ी देर में जब मैंने बरामदे की हल्की रोशनी में माँ को देखा तो चौंक पड़ा.. माँ ने आज साड़ी की जगह नाईटी पहन रखी थी और उन्होंने अपना एक पैर थोड़ा आगे की तरफ कर रखा था।
फिर मैंने सोचा कि अगर यह किस्मत से हुआ तो अच्छा है और अगर माँ जानबूझ कर यह कर रही हैं तो माँ जल्दी ही चुद जाएगी।
उस रात मेरी हिम्मत थोड़ी बढ़ी हुई थी.. थोड़ी देर नाईटी के ऊपर से माँ का चूतड़ सहलाने के बाद मैंने धीरे से माँ की नाईटी का सामने का बटन खोल दिया और उसे कमर तक पूरा हटा दिया और धीरे से माँ के चूतड़ों को सहलाने लगा।
मैं जाँघों को भी सहला रहा था.. माँ के चूतड़ और जाँघें इतनी मुलायम थे कि मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था।
फिर मैंने अपना हाथ उनकी जाँघों के बीच डाला तो मैं हैरान रह गया।
आज माँ की बुर एकदम चिकनी थी.. उनके बुर पर बाल का नामोनिशान नहीं था.. उनकी बुर बहुत फूली हुई थी और बुर के दोनों होंठ फैले हुए थे। शायद एक जाँघ आगे करने के कारण, उनकी बुर से निकला हुआ चमड़ा लटक रहा था।
मेरे कई दोस्तों ने गपशप के दौरान इसके बारे में बताया था कि उनके घर की औरतों की बुर से भी ये निकलता है और उन्हें इस पर बड़ा नाज़ होता है। मैं तो उत्तेजना की वज़ह से पागल हो रहा था.. मैंने लेटे-लेटे ही अपना शॉर्ट्स निकाल दिया और माँ की तरफ थोड़ा और सरक गया.. जिससे मेरा लंड माँ के चूतड़ों से टच करने लगा।
थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद जब मैंने देखा कि माँ कोई हरकत नहीं कर रही हैं.. तो मेरी हिम्मत और बढ़ी।
अब मैं लेटे-लेटे ही माँ की बुर को सहलाने का पूरा मज़ा लेने लगा। थोड़ी ही देर मे मुझे लगा कि माँ की बुर से कुछ चिकना-चिकना पानी निकल रहा है।
ओह्ह.. क्या खुश्बू थी उसकी…
मेरा लंड फूल कर फटने की स्थिति में हो गया.. मैं अपना लंड माँ की गाण्ड के छेद.. उनकी जाँघों पर धीमे-धीमे रगड़ने लगा।
तभी मुझे एक आइडिया आया कि क्यों ना आज थोड़ा और बढ़ कर माँ की बुर से अपना लंड टच कराऊँ।
जब मैंने अपनी कमर को आगे खिसका कर माँ की जाँघों से सटाया तो लगा जैसे करेंट फैल गया हो.. मुझे झड़ने का जबरदस्त मन कर रहा था, पर मैंने सोचा कि एक बार माँ की बुर में लंड डाल कर उनकी बुर के पानी से चिकना कर लूँगा और फिर बाहर निकाल मुठ मार लूँगा।
यह सोच कर मैंने अपनी कमर थोड़ा ऊपर उठाया और अपना लंड माँ की बुर से लटके चमड़े को ऊँगलियों से फैलाते हुए उनके छेद पर रखा.. तो माँ की बुर से निकलता हुआ चिकना पानी मेरे सुपारे पर लिपट गया और थोड़ा कोशिश करने पर मेरा सुपारा माँ की बुर के छेद में घुस गया।
जैसे ही सुपारा अन्दर गया.. उफ़फ्फ़ माँ की बुर की गर्मी मुझे महसूस हुई और जब तक मैं अपना लंड बाहर निकालता मेरे लंड से वीर्य का फुहारा माँ की बुर में पिचकारी की तरह निकलने लगा।
मैं घबरा तो गया.. पर ज्यादा हिलने से डर भी रहा था कि कहीं माँ जाग ना जाएँ।
जब तक मैं धीरे से अपना लंड माँ की बुर से निकालता.. तब तक मेरे लंड का पानी माँ की बुर में पूरा खाली हो चुका था और लंड निकालते वक़्त वीर्य की गाढ़ी धार माँ के गाण्ड के छेद पर बहने लगी।
मुझे लगा अब तो मैं माँ से पक्का पिटूंगा। मैं डर के मारे जल्दी से शॉर्ट्स पहन कर सो गया.. मुझे नींद नहीं आ रही थी.. पर मैं कब सो गया, पता ही नहीं चला।
अगले दिन उठा तो देखा कि हमेशा की तरह माँ सफाई कर रही थीं.. पर दीदी स्टेडियम नहीं गई थी।
मुझे देखते ही माँ ने दीदी से कहा- वीना.. जा चाय गरम करके भाई को दे दे और मुझे प्यार से वहीं बैठने के लिए कहा।
मैंने चोरी से माँ की ओर देखा तो माँ मुझे देख कर पूछने लगीं- आज नींद कैसी आई?
मैंने कहा- अच्छी..
तो माँ हँसने लगीं और मेरी पैंट की ओर देख कर बोलीं- अब तू रात में सोते समय थोड़े ढीले कपड़े पहना कर। हाफ-पैन्ट पहन कर नहीं सोते हैं।
अब तू बड़ा हो रहा है.. देख मैं और वीनू भी ढीले कपड़े पहन कर सोते हैं। मैं यह सुन कर बड़ा खुश हुआ कि माँ ने मुझे डांटा नहीं।
उस दिन मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि अब माँ मुझे रात में पूरे मज़े लेने से मना नहीं करेगीं.. भले ही दिन में चुदाई के बारे में खुल कर कोई बात ना करें।
अब तो मैं बस रात का ही इंतजार करता था।
खैर.. उस रात फिर जब मैं सोने के लिए कमरे में गया तो मुझे माँ की ढीले कपड़े पहनने वाली बाद याद आई.. पर मेरे पास कोई बड़ी शॉर्ट्स नहीं थी।
मैंने अल्मारी में से एक पुरानी लुँगी निकाली और अंडरवियर उतार कर पहन लिया और सोने का नाटक करने लगा।
तभी मेरे मन में माँ की सुबह वाली बात चैक करने का विचार आया और मैंने अपनी लुँगी का सामने वाला हिस्सा थोड़ा खोल दिया.. जिससे मेरा लंड खड़ा होकर बाहर निकल गया और अपने हाथों को अपनी आँखों पर इस तरह रखा कि मुझे माँ दिखाई दे।
थोड़ी ही देर में माँ कमरे में आईं और नाईटी पहन कर पलंग पर आने लगीं और लाइट ऑफ करने के लिए जैसे ही मुड़ीं.. एकदम से वे मेरे लंड को देखते ही रुक गईं.. थोड़ी देर वैसे ही मेरे लंड को जो की पूरे 6′ लम्बा और 1.5′ व्यास बराबर मोटा था.. को देखती रहीं।
फिर पता नहीं क्यों उन्होंने लाइट बंद करके नाईट-बल्ब जला दिया और पलंग पर लेट गईं।
वो मेरे लंड को बड़े प्यार से देख रही थीं.. पर मेरे लंड को उन्होंने छुआ नहीं.. फिर दूसरी तरफ करवट बदल कर एक पैर को कल की तरह आगे फैला कर लेट गईं।
मुझे पक्का विश्वास था कि आज माँ ने जानबूझ कर नाईट-बल्ब ऑन किया है ताकि मैं कुछ और हरकत करूँ।
आधे-एक घन्टे के बाद जब मैं माँ की ओर सरका.. तो लुँगी की गाँठ रगड़ से अपने आप ही खुल गई और मैं नंगे ही अपने खड़े लंड को लेकर माँ की तरफ सरक गया और नाईटी खोल कर कमर तक हटा दिया।
उस रात मैंने पहली बार माँ के चूतड़.. गाण्ड और बुर को देख रहा था.. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।
मैं झुक कर माँ की जाँघों और चूतड़ के पास अपना चेहरा ले जाकर बुर को देखने की कोशिश करने लगा। मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई चीज इतनी मुलायम, चिकनी और सुन्दर हो सकती है। माँ की बुर से बहुत अच्छी से भीनी-भीनी खुश्बू आ रही थी.. मैं एकदम मदहोश होता जा रहा था।
पता नहीं कैसे.. मैं अपने आप ही माँ की बुर को नाक से सटा कर सूंघने लगा.. उफ…बुर से निकले हुए चमड़े के दोनों पत्ते.. किसी गुलाब की पंखुड़ी से लग रहे थे।
माँ की बुर का छेद थोड़ा लाल था और गाण्ड का छेद काफ़ी टाइट दिख रहा था.. पर सब मिला कर उनके पूरे चूतड़ और जाँघें बहुत मुलायम थे।
मैंने उसी तरह कुछ देर सूंघने के बाद माँ की बुर के दोनों पत्तों को मुँह में भर लिया और चूसने लगा। उनकी बुर से बेहद चिकना लेकिन नमकीन पानी निकलने लगा.. मैं भी आज चुदाई के मज़े लेना चाहता था।
फिर मैंने माँ की बुर से निकलते हुए पानी को अपने कड़े सुपारे पर लपेटा और धीरे से माँ की बुर में डालने की कोशिश करने लगा… पर पता नहीं कैसे आज मेरा लंड बड़ी आसानी से माँ की बुर के छेद में घुस गया।
मैं वैसे ही थोड़ी देर रुका रहा.. फिर मैंने लंड को अन्दर डालना शुरू किया, दो-तीन प्रयासों में मेरा लंड माँ की बुर में घुस गया।
ओह.. क्या मज़ा रहा था.. माँ की बुर काफ़ी गरम थी और मेरे लंड को चारों ओर से जकड़े हुए थी।
थोड़ी देर उसी तरह रहने के बाद मैंने लंड को अन्दर-बाहर करना शुरू किया। ओह.. जन्नत का मज़ा मिल रहा था..
4-5 मिनट अन्दर-बाहर करते ही मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ.. तो मैंने अपनी रफ़्तार और तेज़ कर दी और अपना गाढ़ा गाढ़ा वीर्य माँ की बुर में उड़ेल दिया और थोड़ी देर तक उसी तरह माँ से चिपका हुआ लेटा रहा कि अभी आराम से सो जाऊँगा।
पर पता नहीं कैसे आँख लग गई और मैं वैसे ही सो गया।
सुबह जब उठा तो देखा.. मेरी लुँगी की गाँठ लगी हुई है और एक पतली चादर मेरी कमर तक उढ़ाई गई है.. मैं समझ गया कि यह काम माँ ने किया है.. पर कब और कैसे..?
खैर.. जब मैं बाहर निकला तो दीदी स्टेडियम जा चुकी थीं और माँ रसोई में थीं।
मुझे देखते ही वो मेरी और अपनी चाय लेकर मेरे पास आईं और देते हुए बोलीं- आजकल तू बड़ी गहरी नींद में सोता है और अपने कपड़ों का ध्यान भी नहीं रखता है.. सुबह तेरी लुँगी जाने कैसे खुल गई थी और तू वैसे ही मुझ से चिपक कर सो रहा था..
और वे हँसने लगीं।
तो मैंने कहा- तो ठीक है ना माँ.. इसी बहाने तुम मेरा ध्यान रख लेती हो..
पर इसके आगे की कोई बात माँ ने नहीं की.. तो मैंने भी कुछ नहीं कहा। मैंने सोचा जब रात में सब कुछ ठीक हो रहा है.. तो मज़े लो.. बाकी बाद में देखेंगे और मैं उठ कर फ्रेश होने चला गया।
माँ भी काम करने चली गईं।
इसी तरह 8-10 दिन बीत गए और मैं माँ की चुदाई के मज़े लेता रहा और माँ भी कुछ खुलने लगी थीं।
मैं भी रात को माँ की नाईटी ऊपर से नीचे तक पूरा खोल कर उसे पूरा नंगा कर देता.. फिर थोड़ी देर उसकी गाण्ड और चूत चाटने के बाद उसकी चूचियों को और पेट के नीचे वाले हिस्से को पकड़ कर पूरा ज़ोर लगा कर लंड अन्दर डाल कर चुदाई करता और झड़ने के बाद माँ की बुर से लंड बिना बाहर निकाले हुए उसकी चूचियों को पकड़ कर सो जाता था।
माँ भी सुबह कमरे से बाहर जाते समय मुझे नंगा ही छोड़ देतीं और दरवाज़ा चिपका देतीं.. ताकि दीदी अन्दर ना आ जाए।
अब वे दीदी के जाने के बाद नहाते वक़्त बाथरूम का दरवाजा नहीं बंद करतीं और हमेशा दिन में भी नाईटी पहने रहतीं.. जिसमें से उनका पूरा जिस्म लगभग दिखाई पड़ता था.. पर मैं कुछ ज्यादा ही करना चाहता था।
लगभग 10-12 दिन बाद रात को जब मैं पलंग पर गया तो मेरे दिमाग में यही सब बातें घूम रही थीं कि कैसे माँ को दिन में चुदाई के लिए तैयार किया जाए।
खैर.. मैं अपना लंड लुँगी से बाहर निकाल कर लेट गया.. थोड़ी देर में माँ कमरे में आईं और थोड़ा सामान ठीक करने के बाद नाइट-बल्ब ऑन करके लेट गईं.. लेटने से पहले उन्होंने मेरे माथे पर चुम्बन किया और मुस्कुरा कर सो गईं।
अब तक मैं ये जान चुका था कि माँ को सब पता है और वो जागी रहती हैं पर चूँकि वो कुछ नहीं कहतीं और चुपचाप मज़े लेती थीं.. तो मैं भी मस्त हो कर मज़े लेता।
अब तो मैं माँ के लेटने के 4-5 मिनट बाद ही शुरू हो जाता और नाईटी खोल कर हटा देता था।
आज भी केवल 5 मिनट के बाद मैंने फिर अपनी लुँगी हटा कर माँ की नाईटी को पूरा उतार दिया, थोड़ी देर तक माँ की गाण्ड और बुर को चाटने और खेलने के बाद जब मैंने लंड को माँ के चूतड़ों से रगड़ना शुरू किया चूँकि माँ आज थोड़ा सा पेट के बल लेटी हुई थीं.. तो मेरे मन में एक आइडिया आया कि क्यों ना आज माँ की गाण्ड में लंड डाला जाए।
ये सोचते ही मैं उत्तेजना से और भर गया और मैं माँ के चूतड़ों को हाथों से थोड़ा खोलते हुए उनकी गाण्ड के छेद को चाटने लगा।
मुझे महसूस हुआ कि माँ की बुर और गाण्ड का छेद खुल और बंद हो रहा था और बुर से पानी निकल रहा था। थोड़ी देर चाटने के बाद मैं ऊँगली से गाण्ड के छेद को खोलने लगा.. फिर सुपारे पर माँ की बुर का पानी लगाया फिर थोड़ा सा पानी उनकी गाण्ड के छेद पर भी लगाया और छेद पर सुपारा रख कर उसकी कमर को पकड़ कर अन्दर डालने की कोशिश करने लगा.. पर उनकी गाण्ड का छेद बुर के छेद से काफ़ी तंग था।
थोड़ी कोशिश करने पर सुपारा तो अन्दर घुस गया पर मैं लंड पूरा अन्दर नहीं डाल पा रहा था.. तो मैंने थोड़ा रुक कर उसके चूतड़ों को हाथों से फैलाते हुए फिर से लंड अन्दर डालना शुरू किया।
पर पता नहीं क्यों मेरे लंड में जलन सी होने लगी.. मैंने लंड बाहर निकाल लिया और नाइट-बल्ब की रोशनी में देखा तो मेरे सुपारे के पास से जो चमड़ा सटा था.. वो एक तरफ से फट गया था और वहीं से जलन हो रही थी।
मेरे दोस्तों ने बताया तो था कि चुदाई के बाद लंड का टांका टूट जाता है और सुपारा पूरा बाहर निकल जाता है।
अब जलन के मारे मैं चुदाई नहीं कर पा रहा था और मारे उत्तेजना के मैं बिना झड़े रह भी नहीं सकता था।
मैं उत्तेजना के मारे लंड को हाथ में पकड़ कर माँ के जिस्म पर रगड़ने लगा।
मेरे दिमाग़ में कुछ भी नहीं सूझ रहा था। मैं तो बस झड़ना चाहता था.. तभी मेरे मन में माँ के मुँह में लंड डालने का विचार आया और मैं अपना लंड माँ के चेहरे से रगड़ने के लिए पलंग से नीचे उतर कर.. माँ के चेहरे के पास खड़ा हो गया।
अपना लंड हाथ में पकड़ कर सुपारा माँ के गालों और होंठों से धीमे-धीमे रगड़ने लगा.. मैं बस उत्तेजना की वज़ह से पागल हो रहा था।
अगर उस वक़्त माँ उठ भी जाती तो भी मैं नहीं रुक पाता।
फिर मैं माँ के होंठों से सुपारे को सटाते हुए मुठ मारने लगा.. पर उनके मुँह पर झड़ने की हिम्मत नहीं हुई और मैं वहाँ से हट कर उनकी गाण्ड और बुर के छेद पर लंड रख कर मुठ मारने लगा।
मैं तेज़ी से मुठ मार रहा था और थोड़ी देर में माँ की गाण्ड के और बुर के छेद पर ऊपर से ही पूरा वीर्य पिचकारी की तरह छोड़ने लगा। माँ की पूरी बुर.. चूतड़ और गाण्ड मेरे वीर्य से भर गई थी और पूरा गाढ़ा पानी उनकी जाँघों पर भी बहने लगा।
जब मेरी उत्तेजना शांत हुई तो मैंने लंड में एक तेज़ जलन महसूस की.. मैंने देखा कि मेरा लंड पूरा छिल गया था और चमड़े पर सूजन आ गई थी।
मैं ये देख कर परेशान हो गया और माँ को उसी तरह छोड़ कर चुपचाप सो गया।
जब सुबह उठा तो मैंने देखा कि मेरे लंड का चमड़ा काफ़ी सूज गया था और छिला हुआ था।
मैं बाहर निकला तो माँ रसोई से निकल रही थीं और मुझे देखते ही वापस चाय लेकर चली आईं.. पर मेरा मुँह उतरा हुआ था।
माँ मुझे देख कर मुस्कुराईं.. पर मैं कुछ नहीं बोला।
माँ थोड़ी देर बैठने के बाद काम करने चली गईं और मैं नहाने चला गया। नहाते वक़्त मैं सोच रहा था की अब तो बस चुदाई बंद ही करनी पड़ेगी। लंड को देख कर मुझे रोना आ रहा था।
तभी मुझे एक आइडिया आया कि क्यों ना माँ को ही लंड दिखा कर उनसे इलाज़ पूछा जाए और हो सकता है इसी बहाने माँ मुझे दिन में भी खुल जाएं।
मैं तौलिया लपेटे बाहर निकला और कमरे में जा कर माँ को आवाज़ दी.. तो माँ कमरे में आईं और पूछा- क्या हुआ बेटा?
मैंने कहा- माँ मेरे पेशाब वाली जगह में दर्द हो रहा है.. सूज भी गया है।
तो माँ ने मुझे ऐसे देखा जैसे कह रही हों.. ये तो एक दिन होना ही था और बोलीं- बेटा तौलिया खोलो.. मैं देखूँ?
और वे बाहर बरामदे में दिन की रोशनी में आ गईं।
मैं भी बाहर आ गया और उनके पास खड़ा होकर तौलिया खोल दिया.. मेरा लंड वाकयी में सूज कर मोटा हो गया था।
जब माँ ने लंड को देखा तो धीमे से मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा- इसके साथ क्या कर रहा था?
मैंने बड़े भोलेपन से कहा- कुछ नहीं, इसमें से खून भी निकल रहा है..
तो माँ मेरे लंड को हाथ में लेकर चमड़ा पीछे करने लगीं.. तो मुझे दर्द होने लगा।
तो माँ ने कहा- ओह ये तो छिल गया है.. लग रहा है रगड़ लगी है..
और वे चमड़ा पीछे कर के सुपारा देखने लगीं, फिर बोलीं- अच्छा मैं इस पर बोरोलीन लगा देती हूँ.. पर तू इसे खुला ही रहने दे और अभी कुछ पहनने की ज़रूरत नहीं है.. बस मैं ही तो हूँ.. तू ऐसे ही रह ले।
यह कह कर माँ कमरे से बोरोलीन लेने चली गईं।
मैं उनके चूतड़ों को हिलते हुए देख रहा था.. तभी वो बोरोलीन लेकर आ गईं और मेरे लंड को हाथ में लेकर सुपारे पर लगाने लगीं। जिसकी वज़ह से मेरा लंड खड़ा होने लगा और करीब 6 लम्बा हो गया.. सूजन की वज़ह से वो और मोटा लग रहा था.. यह देख कर माँ
मेरे चूतड़ पर थप्पड़ मारते हुए बोलीं- यह क्या कर रहा है?
मैं बोला- माँ, यह अपने आप हो गया है.. मैंने नहीं किया है।
तो माँ बोलीं- अच्छा ये भी अपने आप हो गया है और रगड़ भी अपने आप ही लग गई है.. सच बता ये रगड़ कैसे लगी?
मैं हँसने लगा तो माँ खुद ही बोलीं- बेटा ये एक बहुत नाज़ुक अंग होता है.. इसकी देखभाल बड़ी संभाल कर करनी पड़ती है.. जब तू शादी के लायक बड़ा हो जाएगा.. तब तुझे इसकी अहमियत पता चलेगी।
माँ बोलती जा रही थीं और सुपारे और लंड पर बोरोलीन लगाती जा रही थीं।
मेरा हाथ माँ के कंधे पर था और खड़े होने की वजह से मुझे नाईटी के खुले भाग से माँ की बड़ी-बड़ी चूचियाँ आधे से ज़्यादा दिखाई पड़ रही थीं।
मैं अपने हाथों को माँ की चूचियाँ की तरफ बढ़ाते हुए बोला- क्यों माँ शादी के बाद ऐसा क्या होता है कि इसकी इतनी ज़रूरत पड़ती है?
ये सुन कर माँ ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा और बोलीं- ये तो शादी के बाद ही पता चलेगा..
तो मैं थोड़ा और मज़े लेते हुए माँ से पूछा- माँ क्या तुम औरतों की भी ये इंपॉर्टेंट होती है?
‘ये क्या?’ माँ ने पूछा।
तो मैं हँसते हुए बोला- अरे यही जो तुमने मेरा हाथ में पकड़ा हुआ है।
माँ मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोलीं- मेरा ऐसा नहीं है..
तो मैंने धीरे से उनकी नाईटी का ऊपर वाला बटन खोल दिया.. जिससे उनकी चूचियाँ बाहर दिखने लगी और धीमे से लंड को उससे सटाते हुए पूछा- तो फिर कैसा है?
पर माँ कुछ नहीं बोलीं.. मेरा लंड उत्तेजना में और टाइट हुआ जा रहा था और खिंचाव के कारण सुपारे के टांके वाली जगह पर दर्द होने लगा।
मैं बोला- उह.. माँ ये तो बहुत दर्द कर रहा है।
तो माँ बोलीं- बेटा रगड़ की वजह से तेरे सुपारे का टांका खुल गया है और ऊपर से तूने ही तो इसे फुला रखा है.. चल मैंने क्रीम लगा दी है.. 7-8 दिन में ठीक हो जाएगा और ये कह कर माँ सुपारे को सहलाने लगीं।
मैंने ध्यान से देखा तो माँ का भी चेहरा उत्तेजना की वजह से लाल हो गया था और उसकी चूचियाँ और निप्पल एकदम खड़े हो गए थे।
मैंने सोचा कि यह मौका अच्छा है माँ को और गरम कर देता हूँ.. तो माँ शायद खुल जाएँ।
यह सोच कर मैं बोला- माँ यह टांका क्या होता है और मेरा कैसे खुल गया?
माँ भी थोड़ा खुलने लगीं और बोलीं- बेटा ये जो चमड़ा है ना.. ये सुपारे के पीछे वाले हिस्से से चिपका रहता है.. तूने ज़रूर इसे तेज़ रगड़ दिया होगा। तो मैं माँ के निप्पल छूते हुए बोला- पहले ये बताओ कि इसे नीचे कैसे करूँ.. बहुत दर्द हो रहा है।
तो माँ मेरे चूतड़ों पर चिकोटी काटते हुए पूछने लगीं- पहले कैसे करता था?
तो मैं हँसने लगा और माँ की चूचियों पर हाथ से दबाव बढ़ाते हुए कहा- वो तो बस ऐसे ही।
;इसलिए आजकल कुछ ज़्यादा ही रगड़ रहा है.. तेरी वज़ह से मुझे भी परेशानी होने लगी है।’
माँ ने चूचियों पर बिना ध्यान देते हुए कहा।
‘तो तुम बताओ ना कि क्या करूँ..?” मैंने कहा और अपनी कमर थोड़ा और आगे बढ़ा दी.. जिससे मेरा लंड माँ की दोनों चूचियों के बीच में घुस गया और अपनी ऊँगलियों के बीच में निप्पल को फँसा लिया।’
तो माँ बोलीं- ये क्या कर रहा है?
मैं शरारात से हँसते हुए बोला- माँ तुम्हारी चूचियाँ बड़ी मुलायम हैं।
पर माँ हँसते हुए उठने लगीं.. जिससे मेरा लंड उनकी चूचियों में दब गया और मेरे सुपारे पर लगा क्रीम उनकी चूचियों पर भी लग गया।
तो माँ अपनी चूचियों को हाथों से फैलाते हुए मुझे दिखा कर बोलीं- ये देख तेरी क्रीम मेरी चूचियों में लग रही है.. चल अभी खाना बनाना है.. देर हो रही है.. बाद में बताऊँगी।
माँ रसोई में से सामान ला कर वहीं बरामदे में चौकी पर बैठ कर काम करने लगीं।
उसकी चूचियाँ वैसे ही खुली हुई थीं। पर मेरे दिमाग में तो माँ को दीदी के आने से पहले नंगा करने का प्लान चल रहा था।
यह सोच कर मैं भी माँ के बगल में ही उसकी तरफ मुँह करके चौकी पर बैठ गया।
मैंने अपना एक पैर मोड़ कर माँ की जाँघों पर रख दिया.. मेरा लंड उस समय एकदम टाइट था।
माँ ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा और सब्जी काटने लगीं।
मैं माँ के सामने ही अपने लंड को हाथ में लेकर सहलाने लगा.. जिससे सुपारा और फूल गया था।
माँ बोलीं- ये क्या कर रहा है?
तो मैंने कहा- माँ बहुत खुजली हो रही है।
फिर माँ कुछ नहीं बोलीं और अपना काम करने लगीं।
मैं जानबूझ कर लंड माँ के सामने करके सहला रहा था। मैंने देखा माँ का ध्यान भी मेरे सुपारे पर ही था और वो बार-बार अपनी जाँघों को फैला रही थीं.. चूँकि नाईटी का आगे का भाग खुला हुआ था.. जिससे मुझे कई बार उसकी बुर दिखाई दी.. मैं समझ गया कि माँ एकदम गरम हो गई है.. मैं उसे और उत्तेजित करने के लिए हिम्मत बढ़ाते हुए एकदम खुल कर बात करने लगा।
मैं बोला- माँ तुम कह रही हो कि मेरा लंड ठीक होने में 7-8 दिन लगेंगे और तब तक मुझे ऐसे ही लंड खुला रखना पड़ेगा।
तो माँ बोलीं- हाँ.. खुला रखेगा तो घाव जल्दी सूखेगा और आराम भी मिलेगा।
‘लेकिन माँ खुला होने की वजह से मेरा लंड पूरा तना जा रहा है.. जिससे चमड़ा खिंचने के कारण दर्द हो रहा है और खुजली भी बहुत हो रही है।’
मैंने लंड माँ को दिखाते हुए बोला.. तो माँ ने कहा- बेटा लंड खड़ा रहेगा तो खुजली होगी ही..
तो मैं बोला- माँ क्या तुम्हारे उधर भी खुजली होती है?
‘हाँ.. होती है..’ माँ बोलीं।
‘क्यों.. क्या तुम्हारे भी टांका टूटता है?’
मैंने पूछा.. तो माँ हँसने लगीं और बोलीं- नहीं हमारे में टांका-वांका नहीं होता है.. बस छेद होता है।
माँ अब काफ़ी खुल कर बातें करने लगी थीं, तो मैंने जानबूझ कर अंजान बनते हुए माँ की जांघों के ऊपर से नाईटी का बटन खोल कर हटा दिया जिससे उनके कमर के नीचे का हिस्सा नंगा हो गया और उनकी बुर को हाथों से छूते हुए कहा- अरे हाँ.. तुम्हारे तो लंड है ही नहीं.. लेकिन छेद कहाँ है.. यहाँ तो बस फूला-फूला सा दिखाई दे रहा है और इसमें से कुछ बाहर निकल कर लटका भी है।
तो माँ ने तुरंत मेरा हाथ अपनी बुर से हटा कर उसे ढकते हुए बोलीं- छेद उसके अन्दर होता है।
‘तो तुम खुजलाती कैसे हो?’ मैंने कहा।
तो वो बोलीं- उसे रगड़ कर और कैसे।
मैं बोला- लेकिन मैंने तो तुम्हें कभी अपनी नंगी बुर खोल कर सहलाते हुए नहीं देखा है।
माँ खूब तेज हँसते हुए बोलीं- बुर.. बुर.. ये तूने कहाँ से सुना।
‘मेरे दोस्त कहते हैं उनमें से कई तो अपने घर में नंगे ही रहते हैं और सब औरतों की बुर देख चुके हैं।’
यह सुन कर माँ बोलीं- अच्छा तो ये बात है.. तभी मैं कहूँ कि तू आज कल क्यूँ ये हरकतें कर रहा है?
मैंने हँसते हुए कहा- कौन सी हरकत? तो माँ मेरे लंड को हाथों से पकड़ कर हल्के से हिलाते हुए बोलीं- रात वाली और कौन सी.. जिसके कारण यह हुआ है.. खुद तो जैसे-तैसे करके सो जाता है और मुझे हर तरफ से गीला कर देता है।
तो मैं हँसने लगा और कहा- तुम भी तो मज़े ले रही थीं।
तब तक शायद माँ की बुर काफ़ी गीली हो चुकी थी और खुजलाने भी लगी थी.. क्योंकि वो अपने एक हाथ से नाईटी का थोड़ा सा हिस्सा जो केवल उसकी बुर ही ढके हुए था।
क्योंकि बाकी का हिस्सा तो मैं पहले ही नंगा कर चुका था। उन्होंने नाईटी को हल्का सा हटा कर बुर से निकले हुए चमड़े के पत्ते को मसलने लगीं।
माँ धीमे-धीमे हँस रही थीं.. पर कुछ बोली नहीं।
‘माँ कितना अच्छा लगता है ना.. रात वाली हरकत दिन में भी करें.. देखो ना मेरा लंड कितना फूल गया है और तुम्हारी बुर भी खुज़ला रही है.. प्लीज़ मुझे दिन में अपनी बुर देखने दो ना और वैसे भी मैं अभी तो लंड तुम्हारे छेद में डाल नहीं पाऊँगा।’
मैंने एक हाथ से अपने लंड को सहलाते हुए कहा और दूसरे हाथ से उसकी नंगी जाँघ को सहलाते हुए उसकी बुर के होठों को ऊँगलियों से खोलने लगा।
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