RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
मै और दीदी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मै और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे. लेकिन असल मे मै दीदी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था. थोड़ी देर मां ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा. मै रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चुनची को मसल पाता था. लेकिन असल मे मै दीदी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था. लेकिन बालकोनी मे खड़े हो कर यह मुमकिन नही था. मै दो दिन तक इसके बारे मे सोचता रहा.
एक दिन शाम को मै हाल मे बैठ कर टी वी देख रहा था. मां और दीदी किचन मे डिनर की तैयारी कर रही थी. कुछ देर के बाद दीदी काम ख़तम करके हाल मे आ कर बिस्तर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी. दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी. मेरा पैर दीदी को छू रहा था. मैने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था. मै दीदी की पीठ को देख रहा था. दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था. मै धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा. जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया. दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नही हो गये मां अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी", दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली. "मा कैसे देख लेगी?" मैने दीदी से कहा. "क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछी. "मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर मां हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी." मैने दीदी से धीरे से कहा. "तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी. मै भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मै अपना हाथ दीदी की दाहिने चुनची पर रख दिया. जैसे ही मै अपना हाथ दीदी के दाहिने चुनची पर रखा दीदी कांप गयी मै भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चुनची अपने हाथ से मसलने लगा. थॉरी देर दाहिना चुनची मसलने के बाद मै अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चुनची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा. दीदी कुछ नही बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही. मै दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा. दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नही उठ रही थी. मै ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नही हुआ. दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया. दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया. अब मै फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया. वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का. मै धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया. अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया. जैसे ही मैने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी. फिर मै धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया. फिर मै दीदी की दोनो चुचियों को अपने हाथ मे पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने मे मज़ा आ रहा था. मै तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपले खिचने लगा.
मा अभी भी किचन मे खाना पका रही थी. हम लोगों को मां साफ़ साफ़ किचन मे काम करते दिखलाई दे रही थी. मै यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मां घर मे मौजूद हैं। मै तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा. दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नही खुल रहा था. लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मै उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया. दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मां किचन मे से हाल मे आ गयी मै जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया. मां हल मे आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी. दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मां से बाते कर रही थी. मां को हमारे कारनामो का पता नही चला और फिर से किचन मे चली गयी
जब मां चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा "क्या? मै यह हूक नही लगा पाउंगा," मै दीदी से बोला. "क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नही सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोली. "नही, यह बात नही है दीदी. तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !" मै फिर दीदी से कहा. दीदी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नही पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे." दीदी नाराज़ होती बोली. "लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?" मै दीदी से पूछा. " बुधू, मै नही लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और मां देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था की मै क्या करूँ. मै अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा. जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैने हूक लगाने की कोशिश करने लगा. लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नही लग रहा था. मै बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मां की तरफ़ देख रहा था. मां ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी. दीदी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़. अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा." मै बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.मै पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था. ब्रा इतनी टाईट थी की दीदी को भी हूक लगाने मे दिक्कत हो रही थी. आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया. जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मां कमरे मे फिर से आ गयी मां बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगी. मै उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था.
दूसरे दिन जब मै और दीदी बालकोनी पर खड़े थे तो दीदी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे. मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मै कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ. तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नही लगा" मैने दीदी से कहा. दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने मे बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैने दीदी से धीरे से पूछा. दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मै दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद मे अपने आप समझ जाएगा.
फिर मैने दीदी से धीरे से कहा, मै तुमसे एक बात कहूं? हाँ -दीदी तपाक से बोली.
"दीदी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नही पहनती, मैने दीदी से पूछा. दीदी तब मुस्कुरा कर बोली, सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी है। मै तपाक से दीदी से कहा, कोइ बात नही. तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मै तुम्हे पैसे दे दूंगा । मेरे बातों को सुनकर दीदी मुस्कुराते हुए बोली, तेरे पास इतने सारे पैसे हैं चल मुझे एक 100 का नोट दे। मै भी अपना पर्स निकाल कर दीदी से बोला, तुम मुझसे 100 का नोट ले लो दीदी मेरे हाथ मे 100 का नोट देख कर बोली, नही, मुझे रुपया नही चाहिए. मै तो यूँही ही मज़ाक कर रही "लेकिन मै मज़ाक नही कर रहा हूँ. दीदी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले और मै ज़बरदस्ती दीदी के हाथ मे वो 100 का नोट थमा दिया. दीदी कुछ देर तक सोचती रही और वो नोट ले लिया और बोली, मै तुम्हे उदास नही देख सकती और मै यह रुपया ले रही हूँ. लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ. मै भी दीदी से बोला, सिर्फ़ काले रंग की ब्रा ख़रीदना. मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना, काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पैँटी भी ख़रीदना दीदी। दीदी शर्मा गयी और मुझे मारने के लिए दौड़ी लेकिन मै अंदर भाग गया.
अगले दिन शाम को मै दीदी को अपने किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना. मै सुना की दीदी अपने सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही है। मै दीदी को अकेला पा कर बोला, मै भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ. क्या मै तुम्हारे साथ जा सकता हूं दीदी कुछ सोचती रही और फिर बोली, सोनू, मै अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रही है और फिर मैने मां से भी अभी नही कही है की मै शोपिन्ग के लिए जा रही हूं। मै दीदी से कहा, तुम जा कर मां से बोलो की तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना मां तुम्हे जाने देंगी. फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोने कर देंगे की मार्केटिंग का प्रोग्राम कँसेल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नही है ठीक है ना, "हाँ, यह बात मुझे भी ठीक लगती है मै जा कर मां से बात करती हूं और यह कह कर दीदी मां से बात करने अंदर चली गयी मां ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कहा दी.
उस दिन कपड़े की मार्केट मे बहुत भीड़ थी और मै ठीक दीदी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और दीदी के चुतड़ मेरे जांघों से टकरा रहा था. मै दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे. हम जब भी कोई फूटपाथ के दुकान मे खड़े हो कर कपड़े देखते तो दी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होती और उनकी चुनची और जांघे मुझसे छू रहा होता. अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखती तो मै भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपेर से उनके चुतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मै उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता. हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट मे भीड़ का था. मुझे लगा की मेरे इन सब हरकतों दीदी कुछ समझ नही पा रही थी क्योंकी मार्केट मे बहुत भीड़ थी.
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