Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
05-16-2019, 12:01 PM,
#27
RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
ब्लॅकमेल पार्ट--1 


"लाइट्स, कॅमरा और आक्षन" पहले आदमी ने कहा "चलो अब जल्दी से शुरू हो जा मेरी जान" 

"फुल बॉडी लिया है ना?" दूसरा आदमी बोला. 

"हां फुल बॉडी है" पहला आदमी फिर से हॅंडीकॅम के डिसप्ले पर देखता हुआ बोला 

"बस अब तो जानमन के कपड़े उतरने का इंतेज़ार है" 

वो चारों शहर के बाहर किसी पुराने खंडहर मकान में थे. रात के 2 बज रहे थे और अजय जानता था के वो यहाँ चाहे जितना चिल्लाए, कोई उसकी मदद के लिए नही आएगा. 

दोनो आदमियों ने अपने चेहरे पर रुमाल बाँध रखा था जिससे उनकी शकल देखना नामुमकिन था, सिर्फ़ आँखें दिखाई दे रही थी. दोनो लंबे चौड़े, हत्ते कत्ते थे जिनपर अजय चाहकर भी अकेला काबू नही पा सकता था. और उसपर उनके पास गन थी जो उस वक़्त अजय के सर पर लगी हुई थी. 

"चल अब धीरे धीरे कपड़े उतारना शुरू कर. एक एक करके" दूसरे आदमी ने शिखा से कहा. 

अजय ने एक नज़र शिखा पर डाली. रो रोकर उसकी आँखें लाल हो चुकी थी और डरी सहमी सी वो ऐसे खड़ी थी जैसे भेड़ियों के बीच किसी बकरी को बाँध दिया गया हो. 

"चल चल ज़्यादा वक़्त नही है हमारे पास" दूसरे आदमी ने फिर शिखा को इशारा किया पर वो फिर भी वैसे ही अपने हाथ अपने सीने पर बाँधे खड़ी रोती रही. 

"ये ऐसे नही मानेगी" दूसरा आदमी पहले से बोला "मार साले लौंदे को गोली" 

अजय को अपने सर पर तनी पिस्टल की नाल और भी शिद्दत से महसूस होने लगी. वो अपने घुटनो पर बैठा था और उसके पिछे पहला आदमी उसके सर पर रेवोल्वेर लगाए खड़ा था. 

"एक... दो...." गिनती शुरू हुई और अजय को जैसे अपनी पूरी ज़िंदगी अपनी आँखों के सामने घूमती नज़र आने लगी. 

वो एक अमीर बाप की औलाद था, बेशुमार पैसा, गाड़ियाँ, अययाशी, ये उसकी ज़िंदगी थी. फिर उसको एक पार्टी में शिखा मिली. पहली मुलाक़ात के बाद दूसरी, फिर तीसरी और ये सिलसिला धीरे धीरे प्यार में तब्दील हो गया. शिखा एक बहुत ग़रीब घर की लड़की थी इसलिए दोनो जानते थे के अजय का बाप कभी इस शादी के लिए राज़ी नही होगा इसलिए उन्होने आसान रास्ता अपनाया और भाग कर अपने घरों से बहुत दूर एक अजनबी शहर में पहुँच गये. 

यहाँ पहले ही दिन उनके साथ जो हुआ इसका उन्होने कभी सपने में भी गुमान नही किया था. देर रात को उनकी ट्रेन स्टेशन पर पहुँची थी जहाँ से उन्होने किसी होटेल के लिए टॅक्सी की पर टॅक्सी वाला एक बंदूक की नोक पर उन्हें यहाँ शहर से बाहर इस खंडहर में ले आया जहाँ अब वो पिस्टल अजय के सर पर लगी हुई थी. 

"रूको मैं कपड़े उतारती हूँ" अचानक शिखा की आवाज़ आई "प्लीज़ उसको कुच्छ मत करना" 

अजय की समझ में नही आया के क्या करे. एक तरफ तो उसके सामने वो लड़की खड़ी थी जिससे वो शादी करना चाहता था और जो कि इस वक़्त दो अजनबी आदमियों के सामने उसकी जान बचाने के लिए नंगी हो रही थी पर दूसरी तरफ वो ये भी जानता था के इस वक़्त कुछ बोला तो उसका भेजा नीचे ज़मीन पर बिखर जाएगा. 

और बहुत मुमकिन था के इसके बाद वो शिखा का भी काम तमाम कर देंगे. 

उसने स्टॅंड पर लगे हुए हॅंडीकॅम को देखा जो शिखा की नंगी फिल्म बना रहा था और चुप रहा. 

काँपते हुए हाथों से शिखा ने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए. 

"वाउ" पहला आदमी बोला "अब हुआ खेल शुरू. धीरे धीरे खोल ज़रा. पूरा मज़ा देते हुए" 

शिखा ने अपनी शर्ट का पहला बटन खोला, फिर दूसरा, फिर तीसरा और एक एक करके सारे बटन खुल गये. वो एक पल के लिए रुकी और अपनी शर्ट को सामने से पकड़ कर रोने लगी. 

"प्लीज़ ऐसा मत करो" रोते हुए उसने कहा 

"प्लीज़ तुम्हें जो चाहिए ले लो पर हमें जाने दो" अजय ने आगे से कहा 

"जो हमें चाहिए हम वही ले रहे हैं साले" दूसरा आदमी हंसते हुए बोला "चल अब ये शर्ट उतार" 

शिखा भी दिल ही दिल में जानती थी के उसके पास कोई चारा नही था. उसने अगर ज़रा भी ना नुकुर की तो अजय की जान जा सकती थी इसलिए मजबूर होकर उसके अपनी शर्ट धीरे से उतार कर नीचे ज़मीन पर गिरा दी. अब वो सिर्फ़ एक काले रंग के ब्रा और नीली रंग की जीन्स में खड़ी थी. 

"वाउ" एक आदमी उसके सीने की तरफ देखते हुए बोला "हाथ हटा सामने से" 

उसने अपनी चूचिया अपने दोनो हाथों से ढक रखी थी. उस आदमी के कहने पर वो एक पल के लिए झिझकी और फिर अपने हाथ साइड में गिरा दिए. 

"मेरी जान" एक आदमी सीटी मारकर बोला "क्या बड़े बड़े मम्मे हैं तेरे. ब्रा में फिट ही नही हो रहे" 

"क्यूँ बे साले" दूसरा आदमी अजय के सर पर थप्पड़ मारते हुए बोला "बड़ी मेहनत की है लगता है तूने. सूखे दबाता है या तेल लगाके मालिश करता है?" 

शिखा ने फिर अपने हाथों से सीना ढकने की कोशिश की पर एक आदमी के घूर कर देखने पर फिर सीधी खड़ी हो गयी. 

"चल अब जीन्स उतार" 

"नही प्लीज़" वो रोते हुए बोली 

"मारु गोली तेरे आशिक़ को?" 

"नही" वो फ़ौरन चिल्लाई और जीन्स के बटन खोलने शुरू कर दिए. 

"शाबाश" पहले आदमी ने फिर से हॅंडीकॅम को चेक किया के रेकॉर्डिंग सही हो रही है के नही. 

जीन्स के बटन एक एक करके खुले और फिर वो 2 पल के लिए रुकी. 

"चल उतार जल्दी से अब" पहला आदमी बोला "चूत के दर्शन करा दे जल्दी से" 
उसकी मुँह से ऐसी बात सुनकर झिझक रही शिखा सहम कर खड़ी हो गयी. 

"मार दे गोली" दूसरे ने पहले से कहा ही था के शिखा ने फ़ौरन अपनी जीन्स नीचे खिसकियाई और उतार कर एक तरफ उछाल दी. 

नीचे पॅंटी उसने पहेन नही रखी थी. जिस्म पर एक काले रंग का ब्रा पहने, आँखों में आँसू लिए वो खड़ी सूबक रही थी. 

"क्या मस्त चूत है. एक भी बाल नही" दूरा गौर से उसकी टाँगो के बीच देखता हुआ बोला 

"मुझे तो झांतो वाली ज़्यादा पसंद है" पीछे से पहले की आवाज़ आई 

"गांद भी क्या मस्त है रे बाबा" दूसरा शिखा के चारो तरफ गोल गोल चक्कर सा लगा रहा था "मस्त उठी हुई है. क्या बे साले, गांद भी मरता है क्या इसकी?" उसने अजय की तरफ इशारा करते हुए कहा 

"चल जानेमन अब जल्दी से तेरे मम्मे भी दिखा दे" वो शिखा की तरफ घूमता हुआ बोला 

अजय की नज़र भी शिखा की तरफ घूमी. वो अब रो नही रही थी. आँसू चेहरे पर सूख चुके थे. नज़र झुकाए वो किसी लाश की तरह खड़ी थी. 

"चल खोल ना" दूसरा जो उसके नज़दीक ही खड़ा था, एक हाथ उसकी गांद पर फेरता हुआ बोला 

"हाथ मत लगाना उसे" अजय फ़ौरन चिल्लाया 

"बैठा रह शांति से वरना गोली भेजे के पार कर दूँगा" उसके पिछे खड़े आदमी ने उसके बाल पकड़े और बंदूक की नाल उसके मुँह में घुसा दी. 

"नही" शिखा फ़ौरन चिल्लाई और ब्रा अपने जिस्म से अलग करके एक तरफ उछाल दी. 

"आअए हाए क्या मम्मे हैं यार. मज़ा आएगा आज तो" शिखा के करीब ही खड़ा हुआ आदमी पेंट के उपेर से अपना लंड रगड़ता हुआ बोला 

"कम से कम 36 होंगे ... है ना साली?" वो शिखा से ही पुच्छ रहे थे 

"अब नही रुका जाता. आजा जल्दी से" शिखा के करीब खड़े हुए आदमी ने उसका हाथ पकड़कर उसको ज़मीन की तरफ गिराया. 

अजय जानता था के आगे क्या होने वाला है. शिखा के साथ बलात्कार. जिस लड़की से वो प्यार करता था, जिससे शादी करना चाहता था, उस लड़की के साथ बलात्कार. 

एक अजीब से ताक़त के साथ वो पलटा और अपने पिछे खड़े आदमी के शरीर से टकराया. 

"बहन्चोद" दर्द से वो आदमी चिल्लाया और लड़खड़ा कर नीचे जा गिरा. उसके हाथ में पकड़ी गन हाथ से छुट्टी और ज़मीन पर गिरी. अजय गन की तरफ भागा. 

"जहाँ हो वहीं रुक जाओ" अजय गन उपेर उठाता हुआ बोला. उसने गन का रुख़ उस आदमी की तरफ कर रखा था जो शिखा को नीचे गिरा कर उसपर चढ़ने की कोशिश कर रहा था. 

"तेरे मा की .... "पहला आदमी जिसके हाथ से अजय ने गन छीनी थी ज़मीन से उठता हुआ बोला 

"वहीं पड़ा रह" अजय ने इशारा किया 

"ना ना ना ना" आवाज़ आई तो अजय ने घूम कर शिखा की तरफ देखा "दूसरा आदमी उसके पिछे खड़ा था और शिखा को आगे कर रखा था. अब अगर गोली चलती, तो शिखा को पहले लगती. 
"हमें यहाँ से जाने दो. हम किसे से कुच्छ नही कहेंगे" अजय ने एक आखरी कोशिश की. 
क्रमशः........ 
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