Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:32 AM,
#39
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
जब आकाश आया तो प्रैक्टिस के कारण वो, इतनी सर्दी में भी पसीने में था! उसका किट बैग, जहाँ हम खडे थे, वहीं रखा था! उसने उसमें से टॉवल निकाली और अपना चेहरा पोछा फ़िर उसी में से अपनी पैंट निकाली और हमसे थोडा साइड होकर अपना लोअर चेंज करने लगा! मैने बस एक दो नज़र ही उस पर डालीं, साले की जाँघ मस्क्युलर और गोल थी... सुडौल चिकनी गोरी! मैने पकडे जाने के डर से उसको ज़्यादा देर नहीं देखा! सब साले हमेशा की तरह नॉर्मल स्ट्रेट बातें करने लगे! 15-20 दिन के बाद कालका में कोई क्रिकेट टूर्नामेंट था, जिसके लिये तैयारी चल रही थी!

अगले दिन मुझे राशिद भैया का नया रूप दिखा! वो मुझे ज़बरदस्ती अपने और काशिफ़ के साथ नॉर्थ कैम्पस के एक हॉस्टल में अपने एक दोस्त से मिलाने ले गये! वहाँ वो और उनके दोस्त के साथ कुछ और लडके भी थे! कुछ देर में सब गन्दी गन्दी बातें करने लगे और मैने पहली बार राशिद भैया को पोर्न बातें करते हुये सुना! वो मेरी और काशिफ़ की मौजूदगी से भी नहीं शरमाये! फ़िर जब उनके एक दोस्त विक्रान्त ने शराब का ज़िक्र किया तो सबका पीने का प्रोग्राम बन गया! उनमें से एक लडका जाकर व्हिस्की की दो बॉटल्स ले आया! उसके पहले मुझे नहीं पता था कि राशिद भैया पीते हैं! मैं और काशिफ़ एक बेड पर पीछे की तरफ़ होकर बैठ गये और वहाँ होने वाले एक्शन का मज़ा लेते रहे! कमरे में सिगरेट का धुआँ था, फ़िर शराब की खुश्बू फ़ैल गयी... उसके बाद नँगी बातें होने लगीं!
"लो, पियोगे क्या?" राशिद भैया ने मुझसे पूछा!
"जी... जी नहीं, मैं नहीं पीता..."
"अबे रहने दे, बच्चों को क्यों खराब कर रहा है?" उनके एक दोस्त ने कहा!
"अरे, हमारा काम इनको सिखाना है ना... वरना बच्चे बडे कैसे होंगे? हा हा हा..." सब हँसे!
काशिफ़ अक्सर मुझे देख रहा था! उसके साथ चिपक के सोने में मुझे बडा मज़ा आया था! साले की गर्मी मुझे करेंट लगाती थी!
"और बेटा, वैवाहिक जीवन कैसा चल रहा है?" विक्रान्त भैया ने राशिद भैया से पूछा!
"आजकल सूखा पडा है..."
"क्यों यार, बीवी ने देना बन्द कर दिया क्या? हा हा..." हेमन्त भैया ने कहा और हँसने लगे!
"अबे उसकी कहाँ मजाल कि ना दे.. असल में आजकल साली लोडेड है..."
"वाह, अच्छा मतलब शेर ने शिकार कर डाला..."
"तीसरा बच्चा है, अब तो जब से शादी हुई है बस शिकार ही कर रहा हूँ..." वो कहकर हँसे!
"और क्या यार, दिल भरके प्रयोग करना चाहिये... सही जा रहे हो... कब से नहीं ली?"
"अब तो दो महीने के ऊपर हो गये..."
"तो कोई आसपास और फ़ँसायी नहीं?"
"कहाँ यार, अब तो मुठ मारने की नौबत आ गयी है..."
काशिफ़ अब शरम से तमतमा रहा था! मैने उसको देखा तो वो मुझे देख के और शरमा सा गया मगर उसको भी बडे लोगों की बातों में मज़ा आ रहा था!
"वैसे बात तो सही है, अगर डेली रात में टाँगें ना फ़ैलाओ तो भी बीवी मानती नहीं है..."
"हाँ यार, मेरी वाली भी डेली चुदना चाहती है" राशिद भैया बोले!
"अरे तेरी तो बीवी है, मेरी तो साली काम वाली को भी मेरे लौडे का चस्का लग गया था... डेली आ जाती थी... हा हा हा हा..."
फ़िर विक्रान्त ने राशिद भैया से पूछा "क्यों, अब भी चाटता है उसकी बुर?"
"हाँ यार, मज़ा आता है... अब तो वो भी चटवाने के लिये उतावली रहती है..."
"ये क्या कहानी है?" एक और लडका बोला!
"अरे इसने सुहागरात में बुर में मुह दे दिया था... साला बडा हरामी है" विक्रान्त बोला!
कुछ देर में उन सभी को काफ़ी चढने लगी! मुझे सिगरेट की तलब लगी तो काशिफ़ भी मेरे साथ हॉस्टल के गेट तक आ गया! ना जाने क्यों मुझे उसकी पैंट में ज़िप के अंदर कुछ हलचल महसूस हो रही थी!

"क्यों, अंदर की बातें कुछ समझ आयीं?" सिगरेट पीते हुये मैने उससे पूछा!
"जी, अब इतना तो समझ आता है..." वो शरमाया और लाल हो गया!
"तब तो बाकी भी सब समझते होगें?"
"हाँ जितना समझना चाहिये, उतना समझ लेता हूँ... वैसे ये सब गन्दी बातें होती हैं भैया..."
"कौन सी बातें?"
"वही जो फ़ूफ़ा कर रहे थे..."
"बात कहाँ कर रहे थे, वो तो वो बता रहे थे जो उन्होने एक्चुअली किया है..."
"जी मतलब वही"
"क्यों अब तो तुम्हारा भी खडा होना शुरु हो गया होगा?" वो मेरे इस सवाल से एकदम सकपका गया!
"आह... हाँ.. ना.. जी..."
"जब खडा होना शुरु हो जाये ना, तो शरमाना बन्द कर देते हैं..."
"जी" वो कामुक सा हो गया था और तमतमा के काफ़ी लाल भी!
"वैसे तुम जैसे खूबसूरत लडकों को ये सब मालूम होना चाहिये..."
"क्यों, ऐसा क्यों?"
"सही रहता है... पहले से प्रैक्टिस हो जाती है, फ़िर राशिद भैया की तरह सुहागरात में तरह तरह के करतब दिखा सकते हो..."
"क्यों, सुहागरात में सब करना ज़रूरी होता है?"
"और क्या..."
"मानो दिल ना करे?"
"दिल तो सबका करने लगता है... जब सामने चूत दिखती है ना, तो बडे से बडा महात्मा लँड निकाल के चुदायी के मूड में आ जाता है बेटा..."
"आपको सब कैसे मालूम है?"
"क्यों, तू मुझे सीधा समझता है क्या?"
"मैं आपको जानता ही कहाँ हूँ..."
"मौका दो तो जान लोगे..."
"कैसा मौका भैया?"
"अकेले में किसी दिन साथ रहो तो समझा दूँगा..."

हम जब वापस लौटे तो रूम का माहौल गर्म हो चुका था! राशिद भैया ने लुँगी बाँध ली थी और विक्रान्त भैया ने निक्‍कर पहन ली थी! सब पैरों पर रज़ाई डाल के बैठे थे!
"भैया, चलना नहीं है क्या?"
"अरे अब ये कहाँ जा पायेगा साला पियक्‍कड" उनका एक दोस्त बोला!
"आज तुम सब यहीं सो जाओ" विक्रान्त बोले!
"जी यहाँ कैसे?"
"अरे डरो मत, यहाँ इस अड्‍डे पर नहीं सुलायेंगे... लो मेरे रूम की चाबी ले लो और ये लो... आधी बची है इस बॉटल में... चुपचाप गटक लो और आज दोनो यहीं सो जाओ..." विक्रान्त ने मुझे एक बॉटल दी और अपने रूम की चाबी भी! मैने काशिफ़ की तरफ़ देखा और उसको देखते ही मेरी ठरक जग गयी!

मैं तेज़ चलती साँसों के साथ अँधेरे कॉरीडोर में विक्रान्त भैया के सैकँड फ़्लोर के रूम की तरफ़ रूम नम्बर चेक करता हुआ, अपना लँड सम्भालते हुये काशिफ़ के साथ बढा! जब रूम की लाइट जलायी तो वहाँ हर तरफ़ गन्दे कपडे थे, बेड पर गन्दा सा बिस्तर, कहीं चड्‍डी पडी थी कहीं मोज़ा, कहीं जूता तो कहीं शॉर्ट्स! बस एक बेड था और एक रज़ाई...
"आओ, आज साथ में सोना पडेगा..."
"इसका क्या करेंगे?" काशिफ़ ने मेरे हाथ की बॉटल की तरफ़ देख के कहा!
"पियूँगा..."
"आप भी पीते हैं क्या?"
"अब उन्होने दी है तो पी लूँगा..."
"वो कुछ और कहते तो?"
"अब कौन सा उन्होने मेरी गाँड मारने के लिये कह दिया... बॉटल ही तो दी है..." कहकर मैने सामने रखे ग्लास में एक बडा सा पेग डाला और उसकी तरफ़ देखा!
"लो पियोगे?"
"मैने कभी नहीं पी... कडवी होती है..."
"जब पी नहीं तो कैसे पता? बेटा काफ़ी चालू चीज़ लगते हो..."
"लो घूँट लगा के देख लो" मैने कहा तो उसने मना नहीं किया मगर एक घूँट पीकर बडा बुरा सा मुह बनाया और उसके बाद दो छोटे छोटे घूँट पी गया!
"क्या पहन के सोते हो?"
"जी पजामा..."
"यहाँ पजामा तो है नहीं और विक्रान्त भैया का कोई भरोसा नहीं अपने पजामे में भी मुठ मार रखी हो..."
"मुठ क्या???"
"अरे यार, जब कुछ पता ही नहीं तो क्या बताऊँ..."
"जी मतलब वो क्यों मारेंगे?"
"क्यों जब उनका खडा होगा..."
"वो तो कह रहे थे कि वो किसी काम वाली की लेते हैं..."
"हाये मेरी जान... सब सुन लिया तूने? आजा लिपट के लेट जा, आज तेरा स्वाद चख लूँ..." मेरे ये कहने पर वो शरमाया!
"क्या बात करते हैं भैया..."
"अरे चल ना लेट तो... फ़िर पता चलेगा..."
"ऐसा कहोगे तो नहीं लेटूँगा..." उसकी आँखों में नशा सा आ गया था! मैने दो पेग और पी लिये!
"आप को चढ जायेगी"
"हाँ यार, जब तेरे जैसा चिकना साथ सोयेगा तो शराब अच्छा काम करेगी!"
हम फ़ाइनली लेटे तो मैने लेटते ही उसकी छाती पर हाथ रख दिया जिसको उसने हटा दिया!
"अरे भैया मैं कोई लडकी थोडी हूँ..."
"बेटा तू तो लडकी से कहीं ज़्यादा मालामाल आइटम है मेरी जान..." मैने कहा!
"आप क्या मेरे ही साथ कुछ करना चाहते हो?"
"और क्या..."
"छी... शरम नहीं आयेगी?"
"एक बार अपनी गाँड में मुह घुसाने दे, तेरी भी शरम खत्म हो जायेगी..."
"गाँड में मुह... मतलब? मुह कैसे??" उसने पूछा!
"बेटा तेरी जैसी चिकनी गाँड का स्वाद सीधा पहले मुह घुसा के चखा जाता है..."
"धत भैया, कितना गन्दा लगेगा..."
"जानेमन चुदायी और प्यार में कुछ गन्दा नहीं होता... तूने सुना नहीं, तेरे फ़ूफ़ा ने भी तो चूत में मुह दिया था..."
"चूत की बात और होती है..."
"मेरे लिये गाँड भी चूत ही होती है..." कहते हुए मैने उसको अपने पास खींचा और उसकी जाँघों पर अपना पैर चढा के उसको पकड लिया!
"आपका खडा है क्या?"
"हाँ तुझे देखते ही खडा हो जाता है यार..." मैने उसकी गर्दन पर मुह लगाया!
"ही..ही.. गुदगुदी मत करिये ना..." मैने उसकी गर्दन की स्किन को अपने दाँतों से पकडा वो बडा चिकना था और वहाँ उसके बदन की खुश्बू थी! मैने कसकर उसको वहाँ चूसा तो लाल निशान पड गया! मैने फ़िर चूसा तो उसने मेरा सर पकड लिया!
"आई... भैया... प्लीज मत करिये ना..."
"क्यों ना करूँ? क्यों तुझे कुछ होता है क्या?" कहकर मैने उसको कसके दोनो हाथों से बाहों में लेकर लिपटा लिया और एक हाथ सीधा उसकी कमर में घुसा दिया और वहाँ ज़ोर से सहलाया!
"उउउह... भैया... आह... नहीं..."
"क्यों तेरा भी खडा हुआ क्या?"
"जी..."
"कब से खडा है?"
"थोडी देर हुई..."
"दिखा..."
"नहीं भैया" मगर तब तक मैने एक हाथ नीचे कर दिया था और उसकी पैंट के ऊपर से जब उसका लँड पकड के रगडा तो मैने पाया कि उसकी एज के हिसाब से उसका लँड अच्छा था! साले में काफ़ी जान थी और उछल रहा था!
"भैया मत पकडो..."
"क्यों?"
"अजीब सी गुदगुदी होती है..."

अब मैं उसको लिपटा के उसका बदन मसल रहा था! मेरा एक हाथ उसकी शर्ट के अंदर उसकी कमर पर था, उसकी पतली कमर चिकनी और गर्म थी! मेरे हाथ उस पर फ़िसल रहे थे! मैने दूसरे हाथ से उसका लँड सहलाना जारी रखा! उसका लँड अब पूरा खडा था! मैने अपना मुह फ़िर उसकी गर्दन में, इस बार उसकी छाती के ऊपर की तरफ़ घुसाया और वहाँ मैं उसको अपनी ज़बान से चाटने लगा और अपने होंठों से उसको चूमने लगा!
"उहूँ... उउउह... भैया... आप क्या... क्या कर रहे... हैं... बिल्कुल फ़ूफ़ा वाली सब बातें..."
"अभी उनकी वाली सब बात कहाँ कर रहा हूँ यार..."
"आप वो सब भी करने के मूड में लगते हैं..."
"हाँ सही पहचाना तुमने..."
कहकर मैने पहली बार उसकी नाज़ुक सी गाँड को उसकी पैंट के ऊपर से पकड के सहलाया और अपने हाथ को उसकी दरार में घुसा के मसला तो मैं खुद भी मस्ती से विभोर हो उठा!
"हाये जानेमन..."
"क्या हुआ भैया?"
"आग लगा दी तूने और क्या हुआ..."
इस बार उसने भी मुझे अपने हाथों से पकडा और हमने अपने अपने लँड एक दूसरे पर दबा दिये!
"तू मेरा सहला के देख ना..." मैने उससे कहा!
"शरम आयेगी"
"अब कैसी शरम... देख, देख ना... कितना बडा है..." जब उसका हाथ मेरे लँड पर आया तो मैने इस बीच उसकी पैंट का हुक और बटन खोल दिये!
"उहूँ... उतारो नहीं ना... शरम आयेगी"
"जब तक उतरेगी नहीं शरम जायेगी कैसे?" मैने कहा और फ़िर उसकी ज़िप खोल कर अपना हाथ उसकी जाँघों पर घुसा दिया! अंदर तो साला बिल्कुल साफ़ चिकना और मलाईदार था! बिल्कुल मक्खन सा चिकना...

मैने उसकी एक एक फ़ाँक को प्यार से फ़ैला फ़ैला के दबोचा और सहलाया! उसकी गाँड का जादू मेरे ऊपर चलने लगा! मैने उसके छेद को अपनी एक उँगली से टटोला!
"यार, जब से तुझे देखा था ना... बस तेरा दिवाना हो गया था..."
"धत... आप तो बिल्कुल ऐसे बोल रहे हो जैसे मैं लडकी हूँ..."
"जी वो फ़ूफ़ा जी मुह... " फ़िर वो खुद बोला!
"हाँ मेरी जान, पहले पूरा नँगा तो हो जा... तेरी गाँड में ऐसा मुह घुसाऊँगा ना... ऐसा मज़ा तुझे कोई नहीं दे पायेगा कभी..." जब मैने उसको नँगा किया तो कुछ कुछ मचला और एक बार उसकी सिसकारी निकल गयी! अब उसका नँगा, पतला सा चिकना फ़नफ़नाता हुआ लँड मेरे हाथ में हुल्लाड मार रहा था मैं उसको भी सहलाता रहा और फ़िर उसको अपनी तरफ़ पीठ करवा के करवट दिलवा दी और फ़िर उसकी पीठ को सहलाते हुये जब उसकी कमर पर मैने मुह रखा और वहाँ चूमा तो वो गुदगुदी की सिरहन से उछलने लगा!
"अआहहह... भैया मत करो..." मगर तभी मैने उसकी गाँड की फ़ाँकें फ़ैला के उसकी दरार में अपनी नाक घुसा दी वहाँ की खुश्बू ने मुझे मतवाला कर दिया! मैने कई बार वहाँ अपनी नाक रगड के सीधा अपनी नाक उसके छेद पर रख दी! उसका छेद टाइट था! मैने तेज़ साँसें लेकर उसकी खुश्बू सूंघी और फ़िर उसके सुराख की चुन्‍नटों पर अपने होंठ रख दिये!
वो कुलबुलाया और उसकी कमर मचली मैने उसका जिस्म सहलाना जारी रखा और फ़िर उसके छेद पर अपनी ज़बान फ़िरायी! इस बार वो पहले भिंचा और फ़िर ढीला हुआ और मैने उसकी पूरी दरार को उसकी कमर से लेकर उसकी जाँघों तक चाटना और चूमना शुरु कर दिया! फ़िर मैने जब उसके छेद पर ज़बान टिकायी तो वो मचला और खुला और फ़िर मैं आराम से उसका छेद चाटने लगा! उसका गुलाबी छेद बडा रसीला था!
"आह... सिउ..ह... भैया..अआहह..." उसने सिसकारी भरी! मैने उसको वैसे ही करवट लेकर लिटाये रखा और उसके दोनो घुटने आगे मुडवा दिये जिससे उसकी गाँड गोल गोल मेरे सामने आ गयी और अब जब मैं उसकी दरार चाटने लगा तो उसकी जाँघें, यानि गाँड के ठीक नीचे की कोमल निर्मल जाँघें भी मुझे चूमने को साफ़ मिलने लगीं!

अब मैने अपना सुपाडा उसके छेद पर रखा और उससे उसका छेद रगडने लगा तो वो बोला!
"आपका बहुत गर्म है भैया..."
"हाँ जानेमन, मर्द का लँड गर्म होता है... वो भी तेरे जैसी चिकने गाँड मिलने पर..." मैं तबियत से उसकी गाँड और कमर पर अपना लँड रगडने लगा! फ़िर मैने उसके पैर अपने कंधे पर रखे और वैसे ही रगडता रहा!
"अंदर लेगा क्या?"
"नहीं... नहीं जायेगा..."
"ट्राई करूँ क्या?"
"कर के देख लो..." उसने कहा मैने जब सुपाडा उसके छेद पर दबाया तो उसका छेद काफ़ी टाइट लगा फ़िर जब उसका छेद थोडा फ़ैलाया तो वो चिहुँक उठा!
"नहीं भैया... नहीं... दर्द होता है..."
"चल आ... तू लेगा क्या 'मेरी'?" मैने सोचा, वहाँ नयी जगह अगर उसकी फ़ट गयी और वो चिल्ला दिया तो प्रॉब्लम हो जायेगी! वो खुशी खुशी मेरी लेने को तैयार हो गया! मैने उसको अपने ऊपर चढाया तो वो खुद ही अपना लँड मेरी गाँड पर रगडने लगा! फ़िर देखते देखते मैने उससे थूक लगवा के खुद ही उसका लँड अपनी गाँड में घुसवा लिया और उसको मज़ा देने लगा! उसने काफ़ी देर मेरी गाँड का मज़ा लिया और जब थक गया तो बोला!
"भैया, अब सोते हैं... फ़िर कभी करेंगे..."
"ठीक है जानेमन..."
मैं काशिफ़ के नँगे बदन को चिपका के लेटा तो, मगर मुझे नींद नहीं आयी! मैं काफ़ी देर अपने लँड को उसकी दरार से रगडता रहा!
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RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ - by sexstories - 05-14-2019, 11:32 AM

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