Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:32 AM,
#37
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
6
उसके बाद जब वो (विनोद) गया तो मैं गौरव के रूम में गया और उन दोनो (गौरव और निशिकांत) के साथ खाना खाने चला गया, जहाँ मैं उन दोनो के साथ साथ विशम्भर और असद को भी निहारता रहा! निशिकांत अब मुझे बडी प्यासी नज़रों से देखता था! हम इतने पास होकर भी चुदायी नहीं कर पा रहे थे! और इसी दूरी के कारण, वो साला भी मुझे और भी हसीन और चिकना लगने लगा था!
उस दिन जब मैने 500 का नोट निकाल के ढाबे वाले को दिया तो उसके पास चेंज नहीं था! मैने उससे कहा कि वो चेंज करवा के किसी लडके से भिजवा दे! वहाँ से लौटने में गौरव और निशिकांत मेरे रूम में ही बैठ गये!

"यार किसी दिन चलो, घूमने चलते हैं..." गौरव ने कहा!
"ठीक है यार, चलो, जब दिल हो चलो..." तो मैने भी कहा!
"हाँ, भाई को थोडा घुमा देते हैं... वरना वापस जाकर कहेगा कि सालों ने गाँड मार दी.. हा हा हा हा..."
गौरव के ये कहने पर मैने निशिकांत को देखा, वो हल्का सा शरमा सा गया था! वैसे गौरव हरामी था और निशी चिकना... मुझे फ़िर शक़ सा हुआ कि कहीं उन दोनो के बीच भी कुछ है तो नहीं!
"नहीं शिक़ायत नहीं करूँगा, मगर चलो कहीं चलेंगे..." निशिकांत बोला!

गौरव भी काफ़ी टाइट पैंट पहनता था और बडा रोचक सा लडका था! मैं तो उसके भी सपने देखने लगा था! उनके जाने के बाद मैं रज़ाई में घुस के लेट गया! फ़िर कुछ ही देर बाद अचानक दरवाज़े पर नॉक हुआ! मेरी समझ नहीं आया कि कौन हो सकता था! मुझे लगा कहीं निशिकांत ही तो नहीं है! दरवाज़ा खोला तो देखा, असद खडा था!
"क्या हुआ?" मैने खुश होते हुये पूछा!
"ये आपके पैसे..."
मैं तो भूल ही गया था कि ढाबे वाले से पैसे रूम पर भेजने को कहा था!
"आओ ना, अंदर तो आओ..." मैने असद का हाथ हल्के से सहलाते हुये उससे पैसे लिये और कहा!
"नहीं जाना है... अभी सफ़ाई करनी है!"
"अरे क्या हुआ? थोडी देर तो रुको... चले जाना..." कहकर मैने उसका हाथ पकड के उसको रूम में खींच लिया!
"तुम तो अब भाव ही नहीं देते हो, आओ तो..."
"अरे भैया, काम बहुत रहता है..." एक ही लडके को दूसरी बार सेड्‍यूस करने का अपना ही मज़ा था!
"थोडा बैठो, चले जाना..." वो पलँग पर बैठ गया तो मैने प्यार से उसक बदन देखा! उसका बदन इस बीच और निखर गया था! जाँघें और सुडौल हो गयी थी और चेहरे पर और लाली और चमक आ गयी थी!
"थोडा आराम करोगे क्या?"
"नहीं भैया जी.." मगर ये कहते हुये भी उसने एक बार अपनी ज़िप पर अपनी उँगलियाँ फ़ेरी! शायद उसका लँड कुलबुला रहा था! वो उनमें से था जो ठरक चढने पर चुदायी कर लेते थे और बाद मैं अवॉइड करते थे और फ़िर ठरक चढती तो फ़िर आ जाते थे! इन सब के बीच उन्हें शायद गे सैक्स का गिल्ट भी होता था!

मैं शॉर्ट्स में था! "ठँड है यार" कहते हुए मैने सामने पडी तेल की बॉटल देखी! फ़िर उसके काँपते हुये होंठ और एंग्क्शस सी चितवन! वो रह रह कर कभी अपने हाथों से अपने बाल सही कर रहा था और कभी अपने होंठ अपने दाँतों से काट रहा था और कभी अपने होंठों पर ज़बान फ़ेर रहा था! मैने उसकी जाँघ पर हाथ रखा!
"आज नहीं..." वो बोला!
"क्यों क्या हुआ?"
"आज मूड नहीं है..."
"अरे मूड तो बन जाता है..." कहते हुये मैने उसकी जाँघ पर हाथ फ़ेरा और ऊपर उसकी ज़िप की तरफ़ ले जाना लगा!
"टाइम भी नहीं है, जाना है..."
"चले जाना... थोडा जल्दी जल्दी कर लेना! तुम तो उस दिन के बाद से गायब ही हो गये..."
"ऐसा... नहीं है..."
मैने उसकी ज़िप पर हाथ रखा तो उसका लँड खडा हो चुका था! उसके लँड की कुलबुलाहट मुझे पसंद आयी! मैने उसके लँड को दबा के सहलाना शुरु कर दिया तो उसका मूड बनते टाइम नहीं लगा!
"भैया यार, आदत पड जायेगी..."
"तो क्या हुआ यार? मज़ा ले ना..." कहकर मैने उसकी ज़िप खोल कर उसका लँड बाहर किया और थाम के सहलाने लगा तो वो टाँगें फ़ैला के रिलैक्स्ड हो गया और जब मैने पसीने की खुश्बू से तर उसका लँड चूसना चालू किया तो वो बिल्कुल आराम से हो गया! थोडी देर चूसने के बाद मैं उसके बगल में लेट गया और उसके लँड को अपनी जाँघों पर रगडने लगा और फ़िर उसके सुपाडे को अपनी शॉर्ट्स के नीचे की तरफ़ से अंदर घुसा कर अपने फ़ाँकों पर उसकी गर्मी का मज़ा लेने लगा तो उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा! वो शायद समझ गया था कि मैं गाँड मरवाने के मूड में हूँ! वो भी धक्‍के लगा लगा कर अपने लँड को मेरे शॉर्ट्स के अंदर सरका रहा था और इसमें जब उसका सुपाडा मेरी दरार में घुस के मेरे छेद के आसपास टकराता तो मज़ा आ जाता था!

मैने कुछ देर में अपनी शॉर्ट्स उतार दी तो वो बिना कुछ कहे मेरे ऊपर चढ गया और अपने लँड को मेरे चूतडों के बीच दबा के रगडने लगा! इससे अब उसका सुपाडा सीधा मेरे छेद से दब के टकरा रहा था और बहुत मज़ा दे रहा था! इस कारण मैं अपनी गाँड कभी ऊपर उठाता कभी बीच मे उसके लँड को फ़ाँकों के बीच दबा लेता और कभी अपनी जाँघें फ़ैला लेता! मुझे अपने छेद पर उसका प्रीकम भी महसूस होने लगा था! उसने मेरी गाँड गीली कर दी थी जिस वजह से उसका लँड आराम से फ़िसलने लगा था! प्रीकम के सहारे ही उसने अपना लँड मेरी गाँड में घुसाने की कोशिश की! उसका सुपाडा एक दो बार हल्का सा मेरे छेद में फ़ँसा, एक बार थोडा घुसा भी! फ़िर उसने कस के मेरे कंधे पकड के सिसकारी भरी और उसको और अंदर घुसाने की कोशिश की! लँड में जान तो थी मगर लौंडे को शायद एक्स्पीरिएंस नहीं था!
"रुक, तेल लगा ले..."
"लाओ, तेल कहाँ है?" मैने तेल उठा के बडे प्यार से उसके लँड की मालिश की तो उसने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा!
"अब सही से घुस जायेगा..."
"हाँ बेटा, अब सटासट जायेगा... आजा..." कहकर मैं पलट के लेटा तो वो फ़िर मेरे ऊपर आकर सीधा अपने लँड को मेरे छेद पर दबाने लगा! मैने एक दो धक्‍के के बाद छेद को रिलैक्स्ड कर के ढीला किया और जब उसने साँस रोक के निशाना साध कर ज़ोर लगाया तो मेरी गाँड का सुराख फ़ैलता गया और उसका लँड सीधा अंदर की गहरायी में घुसता चला गया! उस पर वो मस्त हो गया!

"हाँ... अब घुसा अंदर... सीधा अंदर है... पूरा घुस गया..." उसने कहा और मस्ती से अपने गाँड को उठा उठा के मेरी गाँड में अपने लँड के धक्‍के देने लगा! कुछ देर में उसका लँड पूरा का पूरा मेरी गाँड में घुस गया और मैने भींच भींच के उसकी मस्ती बढाना शुरु कर दी! मैं गाँड उठा उठा के उसका लँड अपने अंदर लेने लगा! उसका लँड मेरे छेद पर जो फ़्रिक्शन पैदा कर रहा था उससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! उसके धक्‍कों में नयी जवानी के जोश की जान थी! उसका हर धक्‍का, उसके लँड को काफ़ी ताक़त से मेरी गाँड की गहराईयों में धकेल रहा था! मुझे अपने छेद की रिम पर उसके लँड की सरसराहट का अहसास अच्छा लग रहा था! शाम में विनोद के लँड ने मेरी गाँड खोली थी और अब ये जोशिला नौजवान मेरे ऊपर चढा हुआ था! मेरी गाँड के मस्ती की दिन थे! बडा मज़ा आ रहा था!

फ़िर जब उसकी पकड मज़बूत, धक्‍के तेज़ और साँसें उखडने लगीं तो मैं समझ गया कि लौंडे का माल झडने वाला है! इसलिये मैने उसका मज़ा बढाने के लिये अपनी गाँड खूब उठा उठा के भींचनी शुरु कर दी! उसका लँड अब सटासट अंदर बाहर हो रहा था! फ़िर उसने दो तीन गहरे धक्‍के दिये और दूसरे धक्‍के के बीच में ही उसका लँड मेरी गाँड में फ़ूला और साथ में उसकी सिसकारी निकली!
"हाश... उउउहहह... साला... आहहह..." माल झडते समय वो बडी तेज़ धक्‍के दे रहा था! उसका लँड कई बार मेरी गाँड में फ़ूला और हुल्लाड मारने लगा!
"बहन... चोद... झड गया... साला..आह.. मज़ा.. आ.. आ.. गया यार...." उसने कहा और जब उसका लँड उछलना बंद हो गया तो वो मेरे ऊपर पस्त होकर गिर गया! उसका लँड अभी भी मेरी गाँड में ही था और कभी कभी वो भिंचता तो लँड हिचकोले खा जाता! मैने भी छेद भींच कर उसके लँड को अपनी गाँड से थाम रखा था! कुछ देर बाद वो हिला! पहले उसका आगे का बदन ऊपर उठा और फ़िर उसने धीरे धीरे अपना लँड बाहर खींचा! फ़िर उसका सुपाडा 'छपाक' की आवाज़ के साथ बाहर आ गया!
"कोई कपडा दो..." उसने कहा तो मैने पास पडी मेरी बनियान उठा के दे दी! उसने उससे अपना लँड पोछा और फ़िर मैने उसी से अपनी गाँड पोछ ली! उसका माल हल्का हल्का मेरी गाँड से रिस रहा था! मैने सही से गाँड में उँगली करके उसका माल गाँड से साफ़ किया!
"इसमें ज़्यादा मज़ा आया!" इस बीच वो बोला!
"अच्छा चुसवाने से ज़्यादा चोदने में आया मज़ा तुझे?"
"हाँ"
"तो आ जाया कर ना... मैं तो बुलाता ही रहता हूँ..."
"हाँ आ जाऊँगा..." फ़िर जब वो चला गया तो मैं फ़ाइनली उस दिन बडा खुश खुश सो गया!
जब मैं टैक्सी लेकर राशिद भैया को लेने जा रहा था तो मुझे काफ़ी देर तक आराम से प्रदीप को देखने का टाइम मिल गया! उसने भी मुझे कई बार अपना जिस्म और चेहरा निहारते हुए देख लिया! साला जब एक पैर ब्रेक पर और एक अक्सेलरेटर पे रख के गाडी चला रहा था तो मैं सिर्फ़ उसकी ज़िप और थाईज़ का मूवमेंट देख कर चकरा रहा था! टाइट पैंट में उसका वो एरीआ बडा सुंदर लग रहा था! उसके हाथ स्टीअरिंग पर ऐसे घूम रहे थे जैसे किसी चिकने से कमसिन लौंडे के जिस्म पर!
उस दिन शाम से ही कोहरा हो गया था!
"बहनचोद कोहरे में मा चुद जाती है..." प्रदीप बोला!
"हाँ मुश्किल तो हो जाती है..."
"साला इतना कोहरा है कि ऊपर चढूँ तो चूत का छेद ना दिखायी दे..." मुझे उसकी अब्यूसिव बातें मदहोश करने लगीं थी! उसने एक हाथ में कडा पहन रखा था और एक हाथ में पूजा के धागे थे! गले में लॉकेट था और ऊपर एक मरून जैकेट! लडका गोरा था और स्लिम भी! शायद लम्बाई के कारण उसके मसल्स छुप गये थे क्योंकि उसकी कलायी चौडी थी और कंधे भी काफ़ी चौडे थे!

फ़ाइनली हम स्टेशन पहुँचे तो वहाँ सर्दी के मारे सन्‍नाटा था! कुछ लोग इधर उधर आग जलाये बैठे थे! उसने पार्किंग में गाडी खडी कर दी! 9 बजे थे!
"ट्रेन का टाइम देख कर बताता हूँ कहीं साली लेट ना हो..." मैने कहा!
मगर जब पता किया तो पता चला कि सारी ट्रेन्स कोहरे के कारण लेट हैं और भैया की ट्रेन तो 11 बजे आयेगी!
"लो गाँड मर गयी ना... अब बोलो वापस चलें या यहीं बैठोगे?" जब मैने वापस आकर प्रदीप को बताया तो वो बोला! मुझे वहाँ बैठने में फ़ायदा लगा!

पहले तो कुछ देर मैं पीछे और प्रदीप आगे बैठा! उसने गाने लगा दिये थे! मगर उसके बाद वो भी पीछे आ गया!
"पीछे आराम से बैठता हूँ..." पीछे बैठने में उसने अपने घुटने मोड के सामने के सीट पर टिका लिये! इससे उसकी गाँड थोडा आगे हो गयी और जाँघें टाइट हो गयी और मैं उनको देखता रहा! उसने अपना एक हाथ बगल में रखा जिसपे कई बार मेरा हाथ पडा!
"मौसम बढिया है... क्यों है ना?" फ़िर वो बोला!
"हाँ बढिया है यार..."
"मज़ा लेने वाला मौसम है..."
"कैसा मज़ा?"
"यारों दोस्तों के साथ..."
"हाँ वो तो है..."
"साला क्वॉर्टर लिया था, वो भी स्टैण्ड पर रखा है... सोचा था फ़ौरन लौट जाऊँगा..."
"ये तो बुरा हुआ... अब तो मिलेगा भी नहीं..."
"साली इतनी सर्दी है, रज़ाई भी एक घंटे में गर्म होती है... ऐसे में शादीशुदा बन्दों की मस्ती है..."
"हाँ यार, रज़ाई में चूत का हीटर रहता है ना..." मैने कहा!
"हाँ बस चूत खोलो और गर्मी ले लो..." उसकी बातें बढिया थीं!
"यहाँ हम छडे साले मुठ मारते रह जाते हैं..."
"हा हा... हाँ, मुठ मार कर ही काम चलता है..."
इस बार जब मेरा हाथ उसके हाथ से टच हुआ तो मैने अपनी उँगलियाँ वहीं रहने दीं! इन्फ़ैक्ट अब मैने भी वैसे ही आगे घुटने मोड कर पैर रख लिये थे और हमारी जाँघें भी आपस में कई बार टकरा जा रहीं थी! उसका जिस्म गर्म था और काफ़ी गदराया हुआ लग रहा था! उसकी आँखों में कशिश थी उसने मेरे हाथ के पास से अपने हाथ को हटाने की कोई कोशिश नहीं की! इन्फ़ैक्ट अब वो मेरा हाथ पकड पकड के बातें करने लगा!
"साला जब रात में घूँट्‍टा गर्म होता है ना, तो दिल करता है किसी चूत को ऊपर बिठा के उछाल उछाल के, साली की चोदूँ..." उसने कहा और मेरी जाँघ पर हाथ रख कर कस के दबाया!
"क्यों यार, क्या बोलता है?" उसने पूछा!
"हाँ दिल तो करता है, मगर मिलती कहाँ है?"
"यही तो अफ़सोस है... साली चूत नहीं मिलती... तेरा गुज़ारा कैसे चलता है?" अब हम आराम से चुदायी की बातें कर रहे थे! उसने, जो हाथ मेरी जाँघ पर रखा था, अब तक नहीं हटाया था! मुझे उसकी हथेली की गर्मी मिल रही थी! शायद साला ठरक रहा था मगर अभी तक मेरी कुछ करने की हिम्मत नहीं पडी थी!
11 बजे फ़िर पता चला कि गाडी और एक घंटे बाद आयेगी!

"यार एक नींद मार लेता हूँ..." प्रदीप ने उसी पोजिशन में बैठे बैठे अपनी आँखें बन्द कर लीं! "जब जाना हो तो उठा देना..." उसने मुझसे कहा!
वो कुछ देर वैसे ही बैठा रहा! उसका हाथ मेरे घुटने पर था और कुछ देर में उसने मेरे कंधे पर सर रख लिया तो मेरा लँड तुरन्त खडा हो गया और मज़ा भी आने लगा! मैने एक हाथ पीछे फ़ैला दिया और कार की सीट पर रख दिया और वो वैसे ही बैठ कर सोता रहा! कुछ देर में नींद में उसका हाथ मेरे घुटने से सरक के मेरी जाँघ पर आ गया और वो मेरे ऊपर थोडा और झुक के लेट गया! उसका एक हाथ अपनी टाँगों के बीच था! सर्दी और अँधेरा बहुत था! मुझे बस उसके बदन और उसके साँसों की गर्मी अच्छी लग रही थी! मैने अपना फ़ैला हुआ हाथ उअके कंधे पर रख दिया! वो थोडा और नीचे हो गया और ऑल्मोस्ट मेरी छाती के पास अपना मुह रख कर लेटा रहा! मैं उसका इरादा भाँप नहीं पा रहा था!
एक घंटे के बाद फ़िर पता चला कि गाडी डेढ घंटा और लेट हो गयी!

इस बार उसने कहा कि वो पैर फ़ैला के लेटना चाहता है! मगर जब मैने अपने आगे बैठने का आइडिआ दिया तो उसने मना कर दिया!
"ऐसे ही बैठ जा ना, तेरे ऊपर सर रख के लेट जाता हूँ!" अब वो मेरी गोद में सर रख कर लेट गया और अपने पैर मोड के सीट पर रख लिये! मैने इस बार हिम्मत कर के एक हाथ उसकी कमर पर रख दिया वो कुछ नहीं बोला! उसकी साँसें मेरी जाँघ से टकरा रहीं थी! मेरा लँड अब हुल्लाड भर रहा था और जब वो अड्जस्ट हुआ तो उसका गाल सीधा मेरे लँड पर आ गया! मुझे लगा कि वो लँड को खडा पाकर शायद अपना मुह हटा ले! मगर जब वो मेरे लँड को तकिया बना के लेटा रहा तो मैने अपने हाथ से उसकी कमर सहलाना शुरु कर दी! मुझे तो मज़ा आना शुरु हो चुका था! फ़िर उसने करवट ली और अपना मुह मेरी टाँगों के बीच घुसा के लेट गया! अब उसका मुह मेरे लँड पर था! अब मेरा लँड बिन्दास उछलने लगा था! उसकी साँसों ने 'उसको' गर्म कर दिया था! मैने एक दो बार कमर से होते हुये उसकी गाँड की गदरायी गोल और मुलायम फ़ाँक को भी सहलाया! माहौल पूरा रोमेंटिक था, मगर फ़िर भी मुझे ये पता नहीं था कि वो सच में सोया था या नाटक कर रहा था! मगर जितना हो सकता था, मैं मज़ा लेता रहा!

फ़िर गाडी आने का टाइम हुआ तो मैने उसको उठाया और जब एन्क्वाइअरी पर गया तो पता चला कि एक घंटा और लगेगा! डेढ तो बज ही चुके थे! इस बार प्रदीप ने कहा कि मैं थोडा आराम कर लूँ!
"लेट जा यार, तू भी लेट जा... आजा सर रख ले..." उसकी आवाज़ कामतुर हो चुकी थी! वो मुझे सैक्सी सी नज़रों से देख रहा था! इस बार वो बैठ गया और जब मैने उसकी जाँघों पर सर रखा तो उसकी देसी जवानी की गर्मी और मुलायम मसल्स के स्पर्श से मैं मस्त हो गया! मैं कुछ देर बाद सोने का नाटक करता हुआ उसकी ज़िप की तरफ़ करवट लेकर लेट गया और ऐसा करते ही मुझे भी गालों पर उसके खडे लँड का स्पर्श मिला! उसका लँड बिल्कुल हुल्लाड मार कर शायद बाहर निकलने को तैयार था! साला पत्थर सा सख्त था! मैने उसका खूब मज़ा लिया! प्रदीप टाँगों के बीच दहक रहा था! किसी तंदूर की तरह गर्म था वहाँ! मैने अपने होंठों पर उसके लँड को मचलते हुये महसूस किया तो मैं ठरक गया! उसने अपना एक हाथ मेरे सर पर रख दिया!

अब वो हरकत में आने लगा था! उसका लँड ठनक के मस्त हो चुका था! मेरे कुछ देर लेटने के बाद उसने अपनी एक टाँग आगे सीट पर टिका ली मगर मैं फ़िर भी उसकी फ़ैली जाँघों के बीच मुह उसके लँड पर घुसा कर लेटा रहा! उसने एक बार वैसे ही अपने आँडूए अड्जस्ट किये फ़िर मेरी बाज़ू सहलायी और एक हाथ की उँगलियों से मेरे गालों को सहलाया! उसका लँड अब उफ़न रहा था!
"रुक, थोडा पैंट सरका दूँ..." फ़ाइनली वो अचानक बोला! मतलब उसको मालूम था कि मैं जगा हुआ हूँ! मैं हल्का सा ऊपर उठा तो उसने अपनी पैंट के बटन और ज़िप को खोल के अपनी चड्‍डी समेत उसको अपनी जाँघ पर सरका दिया! मुझे उसके मर्दाने लँड की खुश्बू सूंघने को मिली और मैं मदहोश हो गया!
"अब ठीक रहेगा, अब लेट जा..."
मैने अपने गालों को उसके लँड के बगल रखा और उनसे ही उसके लँड को सहलाते हुये मज़ा लेने लगा! उसका लँड लाल लोहे की तरह खडा और गर्म था! उसका सुपाडा तो भीग चुका था, उसका कुछ वीर्य मेरे गाल पर लग गया! मैने उसकी झाँटों में मुह घुसा के तेज़ तेज़ साँसें लेना शुरु कर दिया! उसने मेरा सर पकड लिया और अपनी जाँघें फ़ैला दीं! मैने एक हाथ की हथेली उसकी जाँघों के बीच उसके आँडूओं के नीचे घुसा के उसके आँडूये पकड के सहलाना शुरु कर दिये और उसकी गाँड और वहाँ के बालों को भी सहलाने लगा! उसकी खुश्बू बढिया थी! फ़िर मैने उसके सुपाडे को अपने होंठों से सहलाया तो उसने सिसकारी भरी!
"आह... शाबाश... आह..." मैने उसके लँड के छेद को ज़बान से सहलाया! उसका सुपाडा फ़ूला हुआ था! मैने उसके सुपाडे के निचले हिस्से को चाटा! वो उसके प्रीकम से नमकीन हो चुका था!

"पूरा मुह खोल ले ना..." उसने कहा तो मैने अपना मुह खोला और फ़िर उसका लँड पूरा अपने मुह में भर लिया! उसका सुपाडा मेरे मुह में टकरा टकरा के घुसने लगा! उसके लँड की गर्मी से मेरा मुह भी गर्म हो गया और होंठ उसके फ़्रिक्शन से फ़टने लगे! मैं उसका लँड चूसने लगा तो वो गाँड उचका उचका के मुझे अपना लँड चुसवाने लगा! साले में बडी जान थी! देसी गदरायी और कसावदार जान!

फ़ाइनली गाडी के आने के दो मिनिट पहले उसने अपने वीर्य की पहली धार मेरे मुह में मार दी!
"वाह... इन्तज़ार का फल मिल गया... क्यों मज़ा आया ना तुझे भी?"
"हाँ बहुत..."
"सर्दी में यही सब हो जाये तो बढिया रहता है... क्यों?"
"हाँ..." मुझे अभी भी उसके वीर्य का टेस्ट मिल रहा था! इस बार फ़ाइनली पता चला कि दस मिनिट बाद गाडी आ जायेगी!
मैं अपने होंठों से प्रदीप के गर्म नमकीन वीर्य का स्वाद चखता हुआ प्लेटफ़ॉर्म की तरफ़ बढ गया!
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