RE: non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ
औरंगजेब लगातार अपना लंड नजीबा की गाँड में चोद रहा था पर गाँठ के फैंसे होने के कारण उसके लंड की गति बहुत तेज़ नहीं थी पर नजीबा को काफी मज़ा आ रहा था। नजीबा ने जल्दी ही महसूस किया कि इस धीरे पर ठंसाठस चुदाइ का एक फायदा यह था कि इससे चुदाई इतने अधिक समय तक बरकरार थी जो कभी भी किसी आदमी के साथ चुदाई में संभव नहीं था।
पंद्रह मिनट बीत चुके थे जबसे औरंगजेब ने उसकी गाँड मे अपना लंड हँसा था और उतना ही वक्त टीपू के लंड की गाँठ को ढीली हो कर नजीबा की चूत में से निकलने में लगा था। औरंगजेब के लंड की ताकत कम होने का अभी भी कोई संकेत नज़र नहीं आ रहा था। नजीबा की चूत बार-बार झड़ रही थी। नजीबा पहले कभी एक साथ इतनी बार नहीं झड़ी थी... कई मर्दो से चुदाई के दौरान वो दो या कभी तीन बार झड़ी थी पर औरंगजेब अब तक पिछले पंद्रह मिनट में कम से कम सात बार नजीबा का पानी छुड़ा चुका था और उसके रुकने के आसार नज़र नहीं आ रहे थे। शाम से अब तक दोनों कुत्तों के साथ चुदाई में कम से कम बीस बार झड़ कर चरम कामोन्माद का अनुभव ले चुकी थी।
उसे अपनी क्षमता पर आश्चर्य हो रहा था। उसके अंदर जैसे निंफोमानियक औरत की तरह चुदाई की आग भड़क उठी थी जो बुझने का नाम ही नहीं ले रही थी। हालाँकि जैसा कुत्तों की चुदाई में होता है, औरंगजेब के लंड से लगातार पतला सा चिपचिपा द्रव्य नजीबा की गाँड में एनिमा की तरह छलक रहा था पर उस द्रव्य का छिड़काव उसकी आग ठंडी करने की बजाय घी बनकर उसकी वासना की आग और अधिक भड़का रहा था।
कराहते हुए नजीबा उस कुत्ते से विनती सी करने लगी, “प्लीज... ओह गॉड, हाँ.. ओह। गॉड... ओह गॉड... फक मी... ओह चोद मुझे... ओह मॉय गॉड... ओहहहहह गॉडडडड.. चोद मुझे... हाँ... चोद अपनी कुत्तिया को... मुझे अपनी कुत्तिया बना ले... फक मी हार्ड.. प्लीज... धज्जियाँ उड़ा दे मेरी गाँड की... प्लीज..." इसी तरह कराहती और रिरियाती हुई नजीबा अपनी गाँड गोल-गोल हिला रही थी। उसे और किसी बात का होश नहीं था।
इस समय वो विकृत चुदाई ही उसके अस्तित्व का एकमात्र आधार थी। वो कुत्ते के उस अद्भुत लंड को ज्यदा से ज्यादा अपनी गाँड में ले लेना चाहती थी। वो चाहती थी कि औरंगजेब । कयामत तक उसे चोदता रहे। उसे और किसी बात की परवाह नहीं थी। सृष्टि में जो कुछ भी होगा वो सिर्फ इसलिए कि वो कुत्ता सदा उसकी गाँड में लंड पेल कर उसे चोद सके।
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