RE: non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ
जितनी देर तक नजीबा निर्वस्त्र हो रही थी, वो नशे में ऊंची हील के सैंडल पहने खड़ीखड़ी आगे पीछे गिरती हुई डगमगा रही थी। नजीबा ने झुक कर अपनी चूत निहारी और उसे ताज्जुब हुआ कि वो कितनी उत्तेजित और गरम थी। उसे ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी में वो पहले कभी इतनी उत्तेजित नहीं हुई थी। उसकी चूत की गुलाबी फाँकें ऐसे खुली हुई थी जैसे कि मोतियों जैसी ओस की बूंदों से भीगी हुई किसी गुलाब की कली की आ पंखुड़ियाँ खिल रही हों। उसकी चूत की दरार फैल कर अण्डाकार हो गयी थी और चूत की भीतरी परतें चूत रस के झाग से भीगी हुई दिख रही थीं। उसकी तनी हुई गुलाबी क्लिट भी बहर को खड़ी थी। चूत-रस की कईं धारें चू कर नजीबा की भीतरी जाँघों से। नीचे बह रही थीं।
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नजीबा ने अपनी अंगुलियों को अपनी चूत पे फिराया तो उसे अपनी सख्त क्लिट थिरकती हुई महसूस हुई। उसने धीरे से सहलाते हुए अपनी अंगुलियाँ चूत के अंदर खिसका दीं। ॥ उसकी चूत में लहरें उठने लगीं और उसके हाथ में और अधिक चूत-रस बह निकला। वो दोनों हाथों से अपनी चूत रगड़ने लगी। वो वहीं फॉयर-प्लेस के पास खड़ी-खड़ी ही अपनी चूत की गर्मी शाँत कर लेना चाहती थी। परंतु उसकी टाँगें बुरी तरह काँप रही थीं और नशे में उन हाई हील सैंडलों में वो टिक कर खड़ी नहीं हो पा रही थी। नजीबा को लगा कि कहीं वो गिर ना पड़े।
नजीबा लड़खड़ाती हुई पास ही रखी चमड़े की कुर्सी पर जा का इस तरह बैठ गयी कि उसकी ठोस गाँड सीट के किनारे पर टिकी थी और उसकी लंबी टाँगें फैली हुई थीं। उसी क्षण उसका काम-रस चूत में से बह कर नजीबा की गाँड के नीचे लैदर की सीट पर फैल गया। एक क्षण के लिए अपनी चूत को बगैर छुए नजीबा ने सारस की भांति अपनी सुराहीदार गर्दन आगे को निकाल कर अपना सिर झुकाया। नजीबा झड़ने के लिए तड़प रही थी किंतु फिर भी वो विलंब कर रही थी। उसे आभास था कि आज उसका कामोन्माद बहुत ही विस्फोटक होगा और वो चूदासी औरत इसी उम्मीद में उत्तेजना से उन्मादित हो रही थी।
थोड़ा और नीचे झुक कर नजीबा ने अपनी टाँगों के बीच में फेंक मारी। उसकी क्लिट धधकने लगी और चूत जलती हुई प्रतीत हुई जैसे कि उसने सुलगती हुई लकड़ी में अपनी साँस फेंक कर उसमें आग भड़का दी हो। अपनी चूत की प्रचंड गर्मी का झोंका उसे अपने चेहरे पर महसूस हो रहा था। अपनी ही चूत की तीक्ष्ण खशबू से उसकी नाक फड़क उठी। सुगंध लेते हुए वो सोचने लगी कि इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं थी कि वो गधा इतना उत्तेजित हो गया था।
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नजीबा अपनी गोद में आगे झुकी। उसकी जीभ उसके निचले होंठ पर आगे-पीछे फिसलने लगी। उसके मुँह में उसके झगदार थूक के बुलबुले उठने लगे। नजीबा सोच रही थी कि काश वो इतनी लचीली होती कि स्वयं अपनी चूत चाट सकती। उसे अपनी चूत । इतनी स्वादिष्ट और मनोहर लग रही थी कि उसे अपनी जीभ भी अपनी क्लिट जितनी ही उत्तेजित महसूस हो रही थी। कितना अद्भुत होता अगर वो अपनी चूत खा सकती और अपनी फड़फड़ाती जीभ पर झड़ सकती। कितना कामुक रोमांचक होता अगर वो अपनी ही चूत का गरमागरम रस अपने ही मुँह में बहा सकती। झड़ते हुए अपनी ही चूत से काम-रस पीने का दोहरा आनंद कितना निराला होता। ये विचार उसे और उत्तेजित कर रहे थे और साथ ही तड़पा भी रहे थे क्योंकि वो जानती थी कि ये उसके बस की बात नहीं है। उसने पहले भी कई बार कोशिश की थी।
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