RE: Porn Kahani चली थी यार से चुदने अंकल ने ...
मैंने स्कर्ट तो जैसे-तैसे पहन ली.. लेकिन मेरी बड़ी चूचियां बिना ब्रा के टॉप में सैट ही नहीं हो रही थीं.. ऐसा लग रहा था कि चूचियाँ टॉप ना फाड़ दें।
इस पर हाई हिल की सैंडल पहन कर अभी एक कदम चलती कि मेरी गांड और चूची ऊपर नीचे होने लगतीं। फिर भी ना चाहते हुए मैं कमरे से निकल गई।
मेरी सहेली
कमरे से निकलते ही मैं सबकी नजरों से बचते हुए निकलने की कोशिश कर रही थी.. तभी मेरी सहेली आभा मिल गई।
उसने मुझसे पूछा- यार तुम इतनी देर से कहाँ थीं?
मैं कुछ बोलती इससे पहले मेरी चाल और कपड़े देखकर वो समझ गई कि मेरे साथ कुछ गलत हुआ है। वह मुझे अपने साथ कमरे में ले गई। चलते समय मेरी चूचियों की उछाल देखकर समझ गई कि मैं ब्रा नहीं पहने हूँ। रूम में पहुँचते ही उसने मुझसे सीधे-सीधे पूछा- किससे चुदवा कर आई हो रानी।
मैं उसकी बात को काटते हुए बोली- ऐसी बात नहीं है यार!
उसने बिना कुछ देखे मेरे टॉप ऊपर कर दिया। टॉप ऊपर होते ही मेरी चूचियों को मानो आजादी मिल गई हो।
मेरी चूचियों की दशा सारी दास्तान बयान कर रही थी। मेरी चूचियों पर अंकल ने कई जगह अपने दाँत चुभो दिए थे। जिसके निशान अभी बिल्कुल ताजे थे। फिर आभा ने पूछा- सच-सच बता किससे चुदी हो?
आभा मेरी पक्की सहेली थी.. हम दोनों आपस में सब कुछ शेयर करती थीं। इसलिए मैंने उसे सब कुछ बता दिया।
मेरे बताते ही वह जोर-जोर से हँसने लगी और बोली- आज मेरी लाड़ो की फिर से नथ उतर गई.. वह भी एक बूढ़े के लंड से..
यह बोलकर वो फिर से मजे लेते हुए हँसने लगी।
उसने मेरी स्कर्ट खोल कर फटी हुई चूत देखी।
तब मैं बोली- यार ये सब छोड़.. कहीं से ब्रा-पैन्टी की जुगाड़ कर.. नहीं तो आज ये लोग मुझे छोड़ेंगे नहीं।
फिर आभा बोली- रूक.. मैं देखती हूँ।
उसने कहीं से ढूँढ कर मुझे एक ब्रा दी और बोली- सिर्फ यही है।
मैंने यह सोचकर पहन ली कि कम से कम चूचियां तो काबू में आएगी।
कपड़े पहनकर हम दोनों खाना खाने पहुँचे। वहाँ 2-4 लोग ही थे। फिर आभा बोली- तू तब तक खाना खा मैं मैरिज हॉल में हो कर आती हूँ।
मैं बोली- क्यों.. अभी शादी नहीं हुई हैं क्या?
इस पर आभा बोली- नहीं यार.. अभी तो शुरू ही हुई है। तू खाकर वहीं पहुँच जाना।
मैं समझ गई कि अंकल को ब्रा-पैन्टी ना देना पड़े। इसलिए झूठ बोलकर जल्दी से निकाल दिए।
वेटर मेरे चूतड़ और चूची घूरने लगे
क्योंकि रात के 2 बजने वाले थे। मैं जैसे ही खाना खाने पहुँची.. तो सारे वेटर मुझे ही घूर रहे थे।
मैं प्लेट में खाना लेकर एक साईड में हो गई लेकिन सारे वेटर मेरी उठी हुई गांड को ही घूरे जा रहे थे।
तभी अचानक मेरा ब्वॉयफ्रेंड संतोष आ गया.. वह थोड़ा गुस्से में था। भला हो भी क्यों ना.. मैं उसका लंड खड़ा करवा कर अपनी चूत की गर्मी कहीं और शांत कर आई थी।
संतोष गुस्से में बोला- कहाँ थीं यार.. मैं तुम्हें कब से ढूंढ रहा हूँ।
अब मैं उससे क्या बोलूँ.. मेरी समझ में नहीं आ रहा था.. सच उसे बता नहीं सकती थी।
मैं थोड़ी आलस से बोली- यार सुहागसेज सजाते-सजाते बहुत थक गई हूँ।
उसे क्या पता था कि मैं सुहागसेज सजा कर नहीं.. बल्कि सुहागसेज पर सुहागरात मना कर आई हूँ।
फिर संतोष बोला- यार मैं कब से हाथ में लंड लिए तुम्हारी राह देख रहा था और तुम किसी और की सुहागसेज सजा रही थी।
अब तक मैं खाना खा चुकी थी।
फिर संतोष बोला- चलो अब हम अपनी सुहागरात मनाते हैं।
यह कहते हुए संतोष मुझे एक कोने में लाकर मुझे स्मूच करने लगा, वो मुझे चूमते हुए मेरी चूचियां भी मसलने लगा।
वहाँ से सब मेहमान जा चुके थे.. सिर्फ वेटर ही बचे थे। मेरे मना करने पर भी संतोष नहीं रूक रहा था लेकिन उसे रोकना जरूरी था। क्योंकि मैं अब चुदने के लायक नहीं बची थी.. अभी भी मेरी चूत दर्द दे रही थी।
संतोष अब मेरे टॉप में हाथ डालकर मेरे मम्मों को पागलों की तरह मसल रहा था।
तभी एक वेटर आया और संतोष से बोला- देखो भाई.. यहाँ ये सब मत करो हम लोगों से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है.. कहीं और चले जाओ.. नहीं तो हम लोग मिलकर इस साली का जोरदार चोदन कर देंगे।
मैं यह बात सुनकर डर गई और संतोष से बोली- चलो.. यहाँ से चलते हैं।
हम वहाँ से चल दिए।
तब संतोष बोला- चलो कमरे में चलते हैं.. अब हम सुहागरात मनाएंगे।
मैंने मना कर दी.. मैंने सोचा अगर मैं इसके साथ कमरे में गई.. तो यह मेरी लाल पड़ीं चूचियों और चुदी हुई चूत देखकर सब कुछ समझ जाएगा। लेकिन संतोष मानने को तैयार ही नहीं था.. वह पागलों की तरह जिद करने लगा।
फिर मैं उससे आग्रह करते हुए बोली- प्लीज आज छोड़ दो.. हम दोनों फिर कभी सुहागरात मनाएंगे।
लेकिन वह मानने को तैयार ही नहीं था। वो बोला- यार आज क्यों नहीं.. आज मूड भी है और मौका भी है।
मैं बोली- यार तुम समझ क्यों नहीं रहे हो।
वह थोड़े गुस्से में बोला- ठीक है.. नहीं करूँगा.. पर ये बताओ आज तुम चुदना क्यों नहीं चाहती.. आखिर बात क्या है.
अब मैं क्या बोलूँ.. मेरी कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था।
तभी मेरे दिमाग की बत्ती जली।
मैं बोली- यार मेरे पीरियड शुरू हो गए हैं।
संतोष ये सुनकर चौंक गया और बोला- अचानक पीरियड कैसे शुरू हो गए?
मैं बोली- यकीन नहीं है तो हाथ लगाकर देख लो.. मैं अभी ही खून साफ करके आई हूँ।
फिर वह थोड़ा शांत हुआ और बोला- यार अब मेरा क्या होगा?
मैं चुप रही।
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