Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:57 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
जल्दी ही मैं इंतज़ार कर रहा था पर दोपहर से रात होने को आई वो न आया, आयी तो जस्सी भाभी 

भाभी- गज़ब हो गया कुंदन गजब हो गया

मैं- क्या 

भाभी- उन दोनों ने आत्हत्या कर ली लाशें मिली है खारी बावड़ी में

मैं- नहीं राणा हुकुम सिंह इतना कायर नहीं हो सकता ,नहीं हो सकता इतना बेगैरत की चूहे की तरह मौत को गले लगाले वो उसे मरणा तो होगा पर मेरे हाथ से कह दो की आप झूठ बोल रही हो

भाभी- तुम्हे चलना होगा मेरे साथ अभी

मैं- ऐसा नहीं हो सकता वो इंसान ऐसे कायरो की तरह नहीं मर सकता ,नहीं मर सकता उसकी मौत मेरे हाथों से लिखी है मेरी चुनोती को यु नहीं ठुकरा सकता है वो

भाभी- शांत कुंदन शांत शायद ये सब ऐसे ही समाप्त होना था 

मैं- नहीं , और उन सवालो का क्या जी राणाजी का कलेजा चीर कर जवाब लेने थे क्या कसूर था तुम्हारा, क्या कसूर था कविता का जो सबकी जिंदगी नर्क बना गया वो 

भाभी- शायद इसे ही तकदीर कहते है कुंदन 

भाभी ने बहुत जोर दिया पर मैं न उन लोगो के अंतिम दर्शन के लिए गया न अंतिम संस्कार में अंदर ही अंदर जैसे टूट सा गया था मैं , उनके मरने का रत्ती भर भी दुःख नही था मुझे मलाल तो बस ये था कि क्यों आखिर क्यों ये सब षड्यंत्र हुआ 
अब मेरा ज्यादातर समय अपने खेत पर ही गुजरता था ,

मैं और पूजा घंटो बैठ कर बस अपनी फसल को देखते थे जो धीरे धीरे बड़ी हो रही थी सर्दियों की शाम में हलके कोहरे में पूजा बहुत सुंदर लगती थी ,चाय की चुस्कियां लेते हुए जब वो हल्का हल्का सा काँपती तो उसके होंठ लरजते तो दिल में एक हुक सी जाग उठती थी

बस अब यही ज़िन्दगी थी, मैं था पूजा थी और दिल में छज्जे वाली के लिए एक तड़प मैं चाहता तो दो लुगाई कर सकता था पर ये उन दोनों के साथ ही अन्याय होता और मैं अपने वचन के साथ पूजा से बंधा था उसकी मांग में मेरे नाम का सिंदूर था भाभी ने बहुत जोर दिया था कि मैं वापिस घर आ जाऊ और राणाजी के कारोबार को आगे संभालू

पर अब दिल साला कही लगता नहीं था मैंने सब कुछ भाभी को ही रखने को कहा राणाजी की मौत की खबर पाकर चंदा चाची के पति भी विदेश से लौट आये थे तो कारोबार में वो मदद करने लगे थे कभी कभी भाभी के पास रहने को दिल करता पर अब उनकी तरफ देखु तो किस नजर से भाभी या बहन सब कुछ उलझ सा गया था


दिन बस गुजर रहे थे और दिमाग अभी भी सोचता था उन अनकहे सवालो के बारे में ,मैं अक्सर उन सभी जगहों की तलाश में निकल जाता था जहाँ ये उम्मीद लगती की कुछ हासिल हो सकता था क्योंकि राज़ बहुत गहरा था जिसे राणाजी ने छुपाया था दुनिया से

शायद किस्मत ने सोच लिया था कुंदन पे मेहरबान होने का उस दोपहर जब वकील आया तो अपने साथ कुछ लेता आया

वकील- कैसे है ठाकुर साहब

मैं-ठीक हु आप कैसे यहाँ , सारे मामले तो भाभी सा ही संभालती है न

वकील- दुरुस्त कहा आपने, वैसे तो प्रोपेर्टी की सभी डिटेल्स मैं ठकुराईन जी को दे चुका हूं पर कुछ दिन पहले ही ठाकुर साहब ने एक पुराणी प्रॉपर्टी को आपके नाम करवाया था ईस हिदायत के साथ की सिर्फ आपको ही ये बात पता हो 

मैं- ऐसा क्या दे गए वकील साहब 

वकील- आप खुद ही देखिये 

उसने दस्तावेज मेरे हाथ में रख दिया, पता नहीं क्यों मेरी उत्सुकता बढ़ सी गयी मैंने वो पढ़ना शुरू किया और मुझे बहुत हैरत हुई दरअसल यहाँ से करीब 40 कोस दूर सरहदी इलाके में नदी के पास एक मकान था जिसे वो मेरे नाम कर गए थे 

वकील- कुछ खास लगा आपको 

मैं- नहीं राणाजी ने ख़रीदा होगा कभी

वकील- मैंने सूत्रों से पता किया है ठाकुर साहब जिस जगह ये मकान है वहां पर और कोई आबादी नहीं है एक तरफ नदी है और दूसरी तरफ रेत के टीले

मैं- कोई न मैं देख लूंगा और कोई काम हो तो बताइए

वकील- नहीं जी बस ये आपको देना था 

मैं- ठीक है 

वकील के जाने के बाद मैंने उस दस्तावेजो को फिर से पढ़ा ये जो जगह थी न एक रात उसके आस पास मैं और पूजा घूमते घूमते वहाँ गये थे, बल्कि पूजा ही मुझे ले गयी थी उस रात को ,मेरे मनइ ख्याल आया की ये बस एक इत्तेफाक है या फिर पूजा ने भी मुझसे कुछ छुपाया है

नही पूजा को मुझसे कुछ छुपाने की जरुरत नहीं है पर राणाजी ने ये मकान मेरे लिए क्यों छोड़ा ये यक्ष प्रश्न था जिसका जवाब सिर्फ इसी जगह पर जाकर मिल सकता था मेरा मन था की पूजा को साथ ले जाऊ पर फिर सोचा की जस्सी को साथ ले जाता हूं
दोपहर बाद मैं जब घर पंहुचा तो चंदा चाची से पता चला की जस्सी ने राणाजी की शराब की फैक्ट्री को बेच दिया है उसकी कार्यवाही के लिए कचहरी गयी है कब तक आएगी मालूम नहीं मतलब आज तो जस्सी के साथ मैं वहां नहीं जा पाउँगा

जब मैं वापिस आ रहा था तो गांव से बाहर निकलते ही मुझे छज्जे वाली मिल गयी मैंने गाड़ी रोकी वो भी रुक गयी 

मैं- कैसी हो 

वो- जी,ठीक हु 

मैं- अच्छा लगा सुनके, कहा जा रही हो 

वो- सोचा खेत की तरफ घूम आऊ

मैं- आओ मैं छोड़ देता हूं 

उसने अपनी सायकिल वही एक पेड़ के पास छोड़ दी और गाड़ी में बैठ गयी कुछ देर कोई बात न हुई फिर वो बोली- बुरा लगा सरपंच जी की मौत का सुनके

मैं चुप रहा 

वो-मुश्किल हालात होंगे न परिवार के लिए

मैं- पता नहीं, मैं घर पे नहीं रहता अलग रहता हूं 

वो- आपकी बीवी के साथ 
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