Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:55 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- राणा हुकुम सिंघ आज आपके चेहरे पर जो ये नकाब है इसको उतार दूँगी मैं और ऐसे तार तार करुँगी की आप तो क्या कोई और भी किसी मजलूम पर अपनी मर्दानगी साबित नहीं करेगा आज के बाद कोई ठाकुर किसी औरत के मांस को नहीं नोचेगा

ठाकुर हुकुम सिंह जिसकी वीरता के चर्चे दूर दूर तक है, जिसकी जुबान की मिसाले दी जाती है जो समाज का ठेकेदार बना हुआ है जो न्यायकर्ता है वो ख़ुद किस कीचड में डूबा हुआ है आज सारी दुनिया जानेगी आज सारी दुनिया जानेगी

राणाजी- चुप कर कुतिया औकात से ज्यादा भौंक रही है

भाभी- किस औकात की बाय करते हो कपडे उतरने के बाद हम सब नंगे ही तो हो जाते है ,है ना, तो मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया की आखिर मेनका के दीवाने ने अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश क्यों ना की

राणाजी- हम आज तक उसको तलाश कर रहे है जस्सी, पर तुम्हे इतनी दिलचस्पी क्यों है 

भाभी- क्या फर्क पड़ता है राणाजी , आपको तो बस जिस्म चाहिए अपने नीचे चाहे फिर मेरा हो या कविता का है ना, राणाजी

ये क्या कहा भाभी ने कविता के साथ राणाजी नहीं ऐसा नहीं हो सकता नहीं हो सकता मेरी बहन के साथ राणाजी पर वो उनकी बेटी भी तो थी उनका अपना खून, नहीं भाभी नहीं , पर भाभी ने ऐसा कहा तो क्यों कहा

"तड़ाक" अगले ही पल भाभी के गाल पर राणाजी का पंजा छप गया था मैंने भाभी को पीछे किया और खुद उनके और राणाजी के बीच आ गया जीजी के साथ क्या हुआ क्या नहीं अब शायद जानने का वक़्त आ गया था 

मैं- क्या हुआ था जीजी के साथ क्या किया आपने मैं पूछता हूं पूछता हूं मैं 

मेरी आँखों के अचानक ही खून उतर आया था भाभी के शब्द मेरे कानों में पिघले शीशे की तरह घूम रहे थे मुझे आभास भी न हुआ की कब मैंने राणाजी का गिरेबां पकड़ लिया, और शायद उन्होंने भी ये एहसास था


ठाकुर हुकुम सिंह जिनका अहंकार, जिनका गुरुर उनके कद से भी ऊँचा था जब उन्होंने महसूस किया कि किसी के हाथ उनके गिरेबां तक है उसी पल जैसे टूट गए वो , चुपचाप चलकर वो सीढ़ियों पर बैठ गए अपनी आँखों में छलक आये आंसुओ को पोंछा और बोले-
जस्सी वो मेरी गलती नहीं थी वो बस एक हादसा था 

भाभी- तो क्या हादसा कुंदन के साथ नहीं हो सकता किस आधार पर इसे कामिनी का कातिल समझ लिया और कैसी नफरत अपने खून से जो उसे पानी की तरह बहाते आ रहे हो

राणाजी-क्या लगता है तुम्हे जस्सी और क्या लगता है कुंदन की तुम लोग कोई सूरमा हो कोई बहुत बड़े जासूस हो और खासकर तुम जस्सी क्या लगता है की जिन सुरागों की वजह से तुम सब कुछ जान पायी वहाँ तक तुम अपने आप पहुच गयी नहीं जस्सी नहीं 

ऐसा इसलिए हुआ की हम चाहते थे ,हम ठाकुर हुकुम सिंह खुद ऐसा चाहते थे जानती हो क्यों क्योंकि हम उकता गए थे इस वीराने से तंग आ चुके थे हम इस अकेलेपन से कहने को तो क्या नहीं हमारे पास सब कुछ है ऐसी कोई चाहत नहीं जिसे हम पूरी न कर सके पर फिर भी ये जो अकेलापन है ना ये जो अधूरापन है इसे तुम लोग नहीं समझोगे कभी नहीं समझोगे

मैं-मुझे इस वक़्त कोई बकवास नहीं सुननी मुझे अगर कोई चाहत है तो अपने बहन को देखने की उसे अपने सीने से लगाने की एक पिता और पुत्र का रिश्ता आज खत्म हो गया है और एक भाई आज अपनी बहन का पता लेकर रहेगा

राणाजी- जानते हो कुंदन जब भी हम तुम्हे देखते है दिल के किसी कोने में एक अहसास होता है कभी कभी हम तुम्हारे अंदर उस हुकुम सिंह को भी देखते है जो हम नहीं बन सके,साथ ही मुझे ये भी लगता है की जब आज इस भयानक रात में तुम पर हम पर जूनून सवार है तो तुम्हे आज एक कहानी सुननी चाहिए

हाँ तो जस्सी, क्या कहा था तुमने की हमे समझना चाहिए था की आखिर क्यों तुम मेनका से इतनी नफरत करती हो तो मैं तुम्हे बताता हूं की तुम्हारे पास हमसे नफरत करने का वाजिब कारण है पर मेनका से नहीं 

जस्सी, तुम सोचती हो की तुम्हे उस घर की चार दिवारी में ही सब मालूम हो गया कभी सोचा नहीं की बिना किसी विशेष परिश्रम के एक के बाद एक राज़ तुम जानती गयी जबकि हमे एक उम्र लग गयी संभलने में

नहीं जस्सी ये सब तुम्हारी मेहनत का नतीजा नहीं बल्कि सिर्फ इसलिए हुआ की क्योंकि हम चाहते थे हम 

भाभी हैरान होकर उनकी तरफ देखती रही

राणाजी- और तुम कुंदन , तुम्हे क्या लगता है की तुम मसीहां हो लोगो के लिए तुम तारणहार हो

मैं- नहीं मैं बस अपने माथे से आपके नाम को मिटाने की कोशिश कर रहा हु 

राणाजी- तो कहा तक कामयाब हुए तुम 

राणाजी की बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास

राणाजी- जस्सी, तो पद्मिनी ने तुम्हारे पालन पोषण की व्यवस्था की अपनी बेटी बनाकर पाला तुम्हे यहाँ तक की उस खजाने का प्रथम प्रहरी भी बनाया और तमाम चीज़े जिन पर तुम आज इतराती फिर रही हो वो सब हमारी ही इच्छा थी 

राणाजी आज हमें हैरान ही हैरान किये जा रहे थे भाभी कुछ बोलना चाहती थी पर राणाजी ने हाथ उठाकर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और मुझसे बोले- और तुम कुंदन तुम हमेशा सोचते रहे की तुम्हे आखिर इंद्र जैसी सुविधाएं क्यों नहीं मिली

मैं- नहीं मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा 

राणाजी- तब तो हमे माफ़ करो हमारी गलतफहमी के लिए , तो जस्सी हम तुम्हारे गुनहगार आज से नहीं बल्कि उसी समय से है जब तुम्हारा जन्म हुआ था 

भाभी- तो फिर क्यों, क्यों किया ऐसा मेरे साथ क्यों रौंद दिया उस फूल को जिसे खुद अपने बगीचे में लगाया था क्यों 

राणाजी- हर इंसान में कुछ कमियां होती है हमारी भी एक कमी है और हम चाह कर भी अपने कुछ कर्मो का प्रायश्चित नहीं कर सकते तुमने कहा कि तुम हमे ऐसी सजा दोगी , जस्सी हम तो पल पल ही तिल तिल करके मर रहे है तुम क्या हमें सजा दोगी हमने तो खुद अपनी नियति चुनी है


 
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:55 PM

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