RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैंने भाभी के होंठो पर एक फीकी हंसी देखि, एक पल को लगा की वो गले लगाएंगी पर मैं गलत था वो उठी और खिड़की से डूबते सूरज को देखने लगी
भाभी- क्या तुम्हे सच में कविता की फ़िक्र है
मैं- क्या लगता है
भाभी- कभी तुमने जिक्र नहीं किया उसका यहाँ तक की इतने रक्षाबंधन आये गए अचानक ही क्यों
मैं- क्योंकि पहले मैं समझता था जीजी विदेश में है
भाभी- हम्म, पर कभी कोई चिट्ठी न कोई खबर कभी कोई टेलीफोन अरे पंछी भी घरौंदे को नहीं भूलते कविता तो फिर भी इंसान ही है, और आज जब तुम्हे पता चला की वो कभी विदेश गयी ही नहीं
मैं- इसीलिए तो मेरा मन घबराता है
भाभी- क्यों
मैं- क्योंकि वो बहन है मेरी
मैं- और मैं, मैं भी किसी की बहन बेटी हु ना
मैं- ये सवाल ही गलत है भाभी, आप की मर्ज़ी भी शामिल है कही न कही
भाभी- मेरी अर्ज़ी, हाहाहा, मेरी मर्ज़ी, मतलब अगर मैं अभी कपडे उतार दू तो चोद दोगे तुम भी
मैं- इज्जत करता हु आपकी
भाभी- पर मौका लगा तो चोद दोगे ना
मैं चुप रहा
भाभी- एक बात पुछु, अगर मेरी तरह तुम्हारी बहन को ये सब सहना पड़ता तो
मैं- जुबान को लगाम दो भाभी ,
भाभी- क्यों कविता के चूत नहीं है क्या , या उसकी सुंदरता के कायल नहीं होंगे तुम्हारी बहन है तो क्या चुदेगी नहीं
तड़ाक ना जाने क्यों मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया मेरा थप्पड़ भाभी के गाल को लाल कर गया बेशक मुझे गुस्सा आ गया था पर अगले ही पल समझ भी आ गया की मैंने गलत किया
भाभी- निकल जाओ कमरे से
मैं- चला जाऊंगा बस इतना बता दो मेरी बहन कहा है
भाभी- हमने कहा न चले जाओ कुंदन, अगर हमारा सब्र टूट गया तो हमे ताउम्र अफ़सोस रहेगा
मैं- आप चाहे तो मार लीजिये या जो चाहे कर लीजिए आज मैं हर सवाल का जवाब लेकर ही जाऊंगा
भाभी ने गुस्से से मुझे देखा और कमरे से बाहर निकल गयी कुछ देर बाद मैंने गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुनी और जब तक मैं नीचे आया गाड़ी जा चुकी थी
अब ये कहा चली गयी, घर पर मैं अकेला था तभी मैंने सोचा की यही मौका है घर में तलाशी ली जाये और सबसे पहले भाभी के कमरे की मैंने बड़े दरवाजे को अच्छे से बंद किया और सीधे भाभी के कमरे में पहुच गया ।
मैंने सबसे पहले उनकी अलमारी खोली हर सामान सलीके से रखा था मैंने हर एक दराज देखि पर वहां कपड़ो और गहनों के अलावा कुछ नहीं था ,दूसरी अलमारी में श्रृंगार का सामान था बिस्तर के गद्दे उल्ट पलट दिए पर सब क्लीन था ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे संदेह हो ,
पर तभी मेरी नजर बेड के नीचे रखे एक पुराने संदूक पर पड़ी मैंने उसे वहां से निकाल कर खोला तो उसमें कुछ पुराणी कतरने और एक तस्वीर थी जो शायद वक़्त के साथ धुंधला सी गयी थी , मैंने बहुत गौर किया तो पाया कि ये तो शायद कविता जीजी की तस्वीर थी,
पर ये यहाँ कैसे फिर सोचा की किसी ने फालतू समझ कर रख दिया होगा संदूक, बाकि कुछ मिला नहीं तो मैंने कमरे को सलीके से किया और एक बार फिर से स्टोर में आ गया हल्का अँधेरा होने लगा था इसलिए लालटेन भी ले आया था,
चूँकि भाभी ने कहा था की स्टोर में बैग उन्होंने ही रखा था इसलिए मुझे उम्मीद थी की शायद कुछ और भी जरूर मिलेगा करीब घंटे भर की मेहनत के बाद मुझे एक पुराना बैग मिला जिसमे कुछ खस्ता कपडे थे जो अब चीथड़े से ही बचे थे
पर मैं पहचान गया कि हो न हो ये जीजी के ही कपडे होंगे पर ये यहाँ क्यों, मेरे दिल की धड़कनों की रफ्तार इस आशंका ने बढा दी की हो न हो जीजी के साथ कुछ तो गलत हुआ है, पर अब वो किस हाल में होंगी शायद जिन्दा भी होंगी या नहीं,
मेरे हाथ पाँव डर के मारे कांपने से लगे थे ,बाकी मुझे और कुछ नहीं मिला स्टोर में धूल मिट्टी से सना हुआ मैं बाहर आया ,आंगन में हल्के पर हाथ पांव धो ही रहा था कि मेरी नजर उस कमरे पर पड़ी जिसके दरवाजे पर मैंने हमेशा ताला ही पड़ा देखा था
मैं दरवाजे के पास गया और गौर से ताले को देखा इस तरह जंग खाया हुआ था कि अब शायद चाबी से भी न खुले, मैं हथौड़ा लाया और दो तीन चोट में ही ताला जवाब दे गया जैसे ही दरवाजा खुला एक बार फिर से धूल के गुबार और जालो ने मेरा स्वागत किया ,
लालटेन की रौशनी में मैंने देखा की सामने की दिवार पर बहुत सी तस्वीरे लगी है जिनपर अब धूल और गर्दे ने कब्ज़ा जमा लिया है मैंने एक कपडे से साफ़ की, दीदी का मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरे सामने था जैसे अभी बोल पड़ेंगी
कुछ देर मैं बस उन तस्वीरो को निहारता रहा , पता नहीं कब आँखों से कुछ बूंदे गिर पड़ी पास में ही एक पलंग पड़ा था और बस एक अल्मारी जिसके ज्यादातर हिस्से को दीमक चाट गयी थी पहली नजर में ऐसा कुछ खास था नहीं कमरे में
पर आज मैंने ठान लिया था की चाहे जो भी हो बस अब इनसब का अंत करके एक नयी शुरआत करनी थी मुझे , पर जल्दी ही अहसास हो गया की शायद यहाँ से सब हटा दिया गया होगा कुछ सोच कर मैं राणाजी के कमरे की तरफ बढ़ा , हमेशा की तरह दरवाजा खुला ही था
राणाजी अपने ज्यादातर काम इसी कमरे से निपटाते थे तो उम्मीद थी की यहाँ कुछ न कुछ मिलेगा ही पर भोर का उजाला हो गया मुझे ऐसा वैसा कुछ नहीं मिला , ऐसा लगता था कि मैं हार ही गया था
हार कर मैं राणाजी के बिस्तर पर बैठ गया और सोचने लगा की हो न हो इस घर में मुझे कुछ न कुछ जरूर मिलेगा क्योंकि घर किसी भी इंसान का गढ़ होता है और राणाजी का ठिकाना भी ये घर ही था
अगर यहाँ भी मैं खाली हाथ रहा तो इसके दो मतलब होंगे की यहाँ कुछ नहीं तो राणाजी के राज़ कही और है ,पर दिल से एक आवाज आ रही थी की मैं इस गुत्थी को सुलझाने के बहुत करीब हु , बस जरा सी दूर,
बिस्तर पर बैठे बैठे सोच विचार करते हुए मैं अपने पैर जमीन पर पटकने लगा और तभी मेरा पैर फर्श पर ऐसी जगह लगा की अजीब सी आवाज आई, जैसे की फर्श में कोई थोथ हो, कुछ खोखला सा हो,
मुझे कोतुहल हुआ और मैं अब अपने हाथों से हलके हलके थपथपा के फर्श की उस आवाज को समझने की कोशिश करने लगा और जल्दी ही फर्श की टाइल एक तरफ सरक गयी नीचे जाने को कुछ सीढिया दिखी
तो पता नहीं क्यों, मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी मैंने पास पड़ी लालटेन ली और नीचे उतर गया टाइल अपने आप वापिस सरक गयी जैसे जैसे मैं नीचे उतर रहा था अँधेरा घना होने लगा था ,इतना घाना की लालटेन की रौशनी भी मंदी पड़ने लगी
पर मैं नीचे उतरता गया पर सीढिया जैसे खत्म ही न होने को थी पर इस इंतज़ार का फल भी मिला मुझे जल्दी ही मैं एक ऐसे कमरे में था जिसे कमरा कहना शायद गुनाह होगा , कुछ लोगो के लिए जिंदगी था ये,
पहली बार लगा की हमारी तो कोई ज़िन्दगी नहीं होगी इन लोगो के आगे हम तो कुछ जिये ही नहीं , जी तो ये लोग गए दीवारों पर चारो तरफ तस्वीरे लगी थी हस्ते मुस्कराते हुए जैसे लम्हो लम्हो की ज़िंदगी को मैंने उन तस्वीरो में देख लिया
राणाजी, अर्जुन सिंह पद्मिनी की तस्वीरें जगह जगह लगी थी कुछ स्वेत श्याम कुछ रंगीन पर क्या मजाल जो धूल जरा भी छू जाये कोई लगातार आता जाता था कुछ तो मोह था उन तस्वीरों में , नजर जो पड़ी हट ना सकी
वहां कुछ तस्वीरें भी थी एक औरत की जिसको मैं नहीं पहचान पाया पर उसके पहनावे से अंदाजा लगाया की ये मेनका होगी , शायद ये तस्वीरें अपने आप में बहुत कुछ बयां करती थी जिसे समझने की औकात नहीं थी मेरी
पास में ही एक छोटी सी टेबल रखी थी जिसमे चार लोगो की तस्वीरें थे और एक खाली फ्रेम था जिसमे अभी तक किसी की फोटो लगायी नहीं गयी थी पर यहाँ भी एक पहेली थी क्योंकि चार लोगो में एक तस्वीर यहाँ बिलकुल नहीं होनी चाहिए थी , इन्दर, भाभी, मेरी और चौथी तस्वीर पूजा की थी , हां पूजा की और इसके क्या मायने थे मै नहीं जानता था
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