RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- क्या भाभी
भाभी- मेरा मेनका से कोई सम्बन्ध नहीं है
मैं- झूठ नहीं भाभी
भाभी- मैं सच कह रही हु
मैं- तो सारे समीकरण बदल जाते है ना भाभी
भाभी- नहीं, मैंने कहा न मेरा मेनका से कोई रिश्ता नहीं है
मैं- बहुत हुआ भाभी, मुझे लगता है कि बेहतर होगा अगर हम अब आमने सामने की बात करे , अब कुछ छुपाने को रहा नहीं आपके पास , अब मैं आपसे शुरू करके राणाजी पे खत्म करूँगा
भाभी- जल्दबाज़ी तुम्हारी
मैं- अब इन उलझी बातो से मुझे नहीं टरका सकोगी, कोई नहीं है यहाँ सिवाय आपके और मेरे , आपने बहुत कुछ कहा मेरे बारे में, मेरे चरित्र के बारे में , पर आज बल्कि इसी वक़्त मैं फिर से इतिहास को ज़िंदा करने की कोशिश करूँगा अब मैं कोई रिश्ता, कोई नाता नहीं देखूंगा अगर अब कुछ है तो सिर्फ मेरी बहन की तलाश और अर्जुनगढ़ की हवेली को फिर से आबाद करना और जैसा मैंने कहा शुरुआत आपसे करूँगा
भाभी- न जाने क्यों मुझे लग रहा है की आज समय रुकने वाला है तो चलो शुरू करते है पर इजाजत हो तो थोड़ा पानी पी लू
मैंने पास रखे जग से गिलास भरा और भाभी को पकड़ाया, एक ही घूंट में पूरा गिलास गटक गयी
भाभी- तो तुमने तलाश की मेरे अतीत की मेरे पीहर तक गए तुम यहाँ तक कामिनी की भी मदद ली तुमने
मैं- तो क्या करता मैं जरुरी लगा वो किया मैंने
भाभी- मैं भी करती पर क्या मिला तुम्हे
मैं- एक बंद हवेली के दरवाजे और सूनापन
भाभी- आसपास नहीं पूछा किसी से
मैं- पता किया मैंने ठाकुर त्रिलोक जी के बारे में
भाभी- तो जान गए होंगे की वो अब इस दुनिया में नहीं रहे
मैं चुप रहा
भाभी- वो हवेली मिरर ब्याह के साल भर बाद से ही बंद पड़ी है ठाकुर साहब
जब भाभी ने ठाकुर साहब कहा तो बुरा बहुत लगा पर स्तिथि ही कुछ ऐसी थी विश्वास को त्याग कर शायद हम आज अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे थे
भाभी- तो तुम्हे वहां से कुछ जानकारी नहीं मिली मेरे अतीत की, है ना
मैं- मुझे एक बात पता चली थी
भाभी- ओह! अब समझी शायद इसीलिए तुमने समझा की मैं मेनका की बेटी हु, कसम से मैं मैं तुम्हे बहुत ही समझदार समझती थी पर मैं गलत थी, माना की त्रिलोक जी ने मुझे गोद लिया था पर मेनका की बेटी नहीं हूं मैं
मैं- तो कौन है आप और इस चक्रव्यू में आपका किरदार क्या है
भाभी- वही जो तुम्हारा है ,वही जो हर एक उस इंसान का है जो इन सब से जुड़ा है
मैं- पहेलिया नहीं भाभी, आज जो भी बात होगी सीधे होगी
भाभी- चलो समझाती हु, आखिर राणाजी की ऐसी क्या वजह रही होगी की जिस शुद्ध खून की वो इतनी दुहाई देते है, जिस रुतबे से वो जीते है आखिर क्या वजह रही होगी की उन्होंने मुझे अपने घर की बहू के लिए चुना
मैं- शायद आपकी सुंदरता आपको पाने की चाह
भाभी- मूर्ख, तुम कभी जिस्म से आगे बढ़ ही नहीं सके
मैं- आप ही बताओ
भाभी- ताकि राणाजी पल पल खुद को मरते हुए महसूस कर सके , ताकि हर लम्हा वो खुद को कोसे वो गिड़गिड़ाए मेरे सामने भीख मांगे अपनी मौत की पर जानते हो उनकी सजा उनकी मौत नहीं बल्कि उनकी ये ज़िन्दगानी होगी, जो वो आज जी रहे है और आगे जियेंगे
भाभी को आवाज एकाएक तेज हो गयी थी जैसे की उनके मन में पिघल रहा लावा आज फूट गया था , उनकी आँखों में सुलगती नफरत की आँख से मैंने अपने आप को झुलसता महसूस किया
मैं- आपकी नफरत को हमेशा जायज ठहराया मैने भाभी कितनी बार आपको कहा की मेरे साथ चलो पर आपने नहीं माना , जब जब मेरा हाथ थामना चाहिए था आपको आपने मेरी जगह राणाजी को चुना क्यों मैं पूछता हूं क्यों
भाभी- क्योंकि अगर मैं कही महफूज़ हु तो बस इस घर में
मैं- और इस हिफाज़त की कीमत आपका जिस्म चुकाता है , है ना।
भाभी- क्या हमने तुम्हे कहा नहीं था कि हमारे नाड़े की गांठ इतनी भी ढीली नहीं है
मैं- इस बात को ना ही कहो भाभी, जब चाहे वो आपको बिस्तर पर घिसट लेते है और आप चू तक नहीं करती मेरे आगे बाते बड़ी बड़ी
भाभी- सीता नहीं हूं मैं, न कभी तुमसे छुपाया क्या हुआ जो मेरा जिस्म हार जाता है राणाजी के आगे पर मैं हर बार जीत जाती हूं,
मैं- मैं समझ नहीं पा रहा
भाभी- क्योंकि तुम कही हो ही नहीं तुम अपने हठ से इनसब में पड़े हो, क्योंकि तुम एक बात पकड़ के बैठे हो की अर्जुन सिंह की वसीयत तुम्हारे लिए लिखी गयी है जबकि तुम्हे आदत है भृम में जीने की
मैं- मोह माया का लालच नहीं किया कभी मैंने
भाभी- जानती हूं तुम्हे ,कद्र करती हूं तुम्हारी सादगी की इसी लिए चाहती हूं कि आवेश में आके ऐसा कुछ नहीं करना जिसके कारण सारी जिंदगी अपने दिल पर बोझ लेकर जीना हो
मैं- वो जिंदगी ही क्या जिसमे आप मेरे साथ ना हो
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