Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:53 PM,
#93
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरी नजरे लगातार बाबा के चेहरे पर टिकी हुई थी और बाबा की आँखे मुझ पर बस उस छोटे से लम्हे में उनकी आँखों में जो भाव आया था वो बताने के लिए काफी था की मेनका से बाबा का कोई ना कोई रिश्ता था पक्का , हमारे आस पास एक उदासी ही भर गयी थी बाबा की सांसे भारी सी हो चली थी 

मैं- बताइए बाबा कौन थी मेनका 

बाबा- एक अभागन.

मैं- तो कहानी यही से शुरू होती है ना बाबा 

बाबा- पता नहीं , जिंदगी में बस इतना सीखा है की चाहते कभी पूरी नहीं होती चाहे वो हमारी हो या तुम्हारी हो, जो दौर बीत गया अब कुछ नहीं रखा उसके जिक्र में तुम लोग दूर से आये हो अब लौट जाओ .

मैं- ऐसे नहीं बाबा बात यहाँ बस हमारी ही नहीं बात हर उसकी है जिसको उसका हक़ नहीं मिला. 

बाबा- अब क्या फायदा जब हक़दार ही नहीं रहा . 

मैं- मैं मनका के बारे म सब कुछ जानना चाहता हु बाबा और उम्मीद करता हु आप कुछ भी नहीं छुपायेंगे. 

बाबा- तो मानोगे नहीं 

मैं- नहीं

बाबा- तो सुनो, ये कहानी है दोस्ती की, विश्वास की, प्रेम की और छल की , एक ज़माने में ठाकुर अर्जुन और हुकुम सिंह की दोस्ती थी , दोनों की जान एक दुसरे से जुडी थी ऐसी प्रगाढ़ दोस्ती जिसकी मिसाले दी जाती थी और ऐसी ही एक और दोस्ती थी पद्मिनी और मेनका की, पद्मिनी की ललक तंत्र के गूढ़ रहस्यों में थी और मेनका बंजारों की टोली की बंजारन एक जोगन सी शांत ,

मैं- अक्सर सोचता की भला एक ठकुराईन और बंजारन का क्या मेल पर दोस्ती कहा उंच नीच समझती है दोनों में सगी बहनों से भी बढ़ कर प्रेम और चढ़ती जवानी ह्रदय में कुछ कर गुजरने को इच्छा , ना जाने वो कौन सी घडी थी जब मेनका और हुकुम सिंह की नजरे मिल गयी अब वो तनहा होने लगे कब वो एक दुसरे के करीब आने लगे पर फिर कुछ ऐसा हुआ की जिसने सब कुछ टहह्स नहस करवा दिया 

मैं- क्या हुआ था बाबा 

बाबा- मेनका गर्भवती हो गयी उसके पेट में हुकुम सिंह का अंशआ गया और फिर ना जाने क्या हुआ की हुकुम सिंह ने मेनका को उसका सम्मान देने से मना कर दिया ये तो स्वाभाविक ही था एक ऊँचे कुल का ठाकुर एक बंजारन को अर्धांगी कैसे बनाता , मेनका इस झटके को सह नहीं पायी और फिर आखिर कब तक अपने पेट को छुपा पाती, बात खुली तो उस अभागन से सबने मुह मोड़ लिया एक कुंवारी लड़की जिसके पाँव भारी क्या गुजरी होगी उसके माँ-बाप पर , 

और सबसे ज्यादा क्या गुजरी होगी खुद उस पर जब उसे सपने दिखाने वाला ही उम्मीदों का दामन छोड़ गया . पर उसने हिम्मत नहीं हारी वो बड़ी हवेली गयी बड़े ठाकुर के आगे अपना दुखड़ा रोया पर उस मजलूम की आवाज कौन सुनता, डेरे से बहिष्कार के बाद मेनका की जिन्दगी बहुत बदतर हो गयी थी पर उसे सहारा दिया उसकी बहन समान मित्र पद्मिनी ने 

पर कुछ समय बाद मेनका गायब हो गयी किसी को कुछ पता नहीं चला बस हवाओ में एक नाम रह गया जो धीरे हीरे वक़्त की रेत तले दब गया, पर जिंदगी बढती रही पद्मिनी का विवाह अर्जुन से हो गया और बड़ी हवली में भी हुकुम सिंह की ग्रहस्ती बस गयी,

मैं- पर डेरे को क्यों ख़तम किया गया 

बाबा- एक रात नशे में चूर हुकुम सिंह आया था यहाँ मेनका में बारे में पूछने ठाकुर नशे में था और डेरा गुस्से में बाद तो बिगडनी थी ही फिर पर बीच बचाव हुआ जैसे तैसे, जब अर्जुन को पता चला तो उसने किसी की नहीं सुनी उसकी तलवार बिजली बनकर डेरे पर चली और सब खतम हो गया .

पूजा- बाबा आपने कहा था की हुकुम सिंह की कोई अमानत थी डेरे पर 

बाबा- प्रेम समझती हो बेटी , अगर समझती हो तो इस सवाल के जवाब की जरुरत नहीं पड़ती. 

मैं- तो राणाजी भी प्रेम करते थे मेनका से हैं ना बाबा.

बाबा-बस यही एक बात मेरी समझ से परे है बेटे.

मैं- तो अगर प्रेम था तो फिर को मेनका को नहीं अपनाया 

बाबा-इसका जवाब बस हुकुम सिंह ही दे सकता है 

पूजा- कही ऐसा तो नहीं की बाद में दोनों दोस्तों ने मिलकर मार दिया हो मेनका को और माँ को जब इसका पता चला तो फिर सबके सम्बन्ध बिगड़े 

मैं- नहीं दोनों ठाकुरों का मेनका की मौत में की हाथ नहीं है 

पूजा- तुम्हे यकीन है 

मैं- हां, क्योंकि मेनका की मौत प्रसव अवस्था में हो गयी थी 

बाबा की आँखों से आंसू गिरते देखे मैंने, बेशक होंठो से एक भी शब्द नहीं निकला पर उनके दिल से निकली सदा को अपने कलेजे पर महसूस किया मैंने .

मैं- बाबा आपकी बेटी थी ना वो .

बाबा की आँखों से आंसू झरते रहे बस उसके बाद कहने और सुनने की की गुन्जायिश थी ही नहीं जिंदगी कभी कभी इतनी भारी लगने लगती है की उसके बोझ को उठा कर चलना आसान नहीं होता ये भी कुछ ऐसा ही पल था ,अब जब गड़े मुर्दे उखाड़ ही रहे थे तो उनकी बदबू भी झेलनी थी ही .

पूजा- बाबा हमारे पुरखो ने जो भी ज़ख्म दिए है हम इस लायक नहीं की उन पर मरहम लगा सके क्योंकि कुछ ज़ख्म कभी नहीं भरते वो सदा हरे ही रहते है पर फिर भी मैं हाथ जोड़ कर आपसे माफ़ी मांगती हु 

बाबा ने बस दूर से अपने हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा दिए जिस काम के लिए मैं यहाँ आया था वो पूरा हो गया था , हम गाडी में बैठे और वापिस मुड गए 

मैं- क्या सोच रही हो पूजा 

पूजा- अगर तुम्हारे पिता भी मेनका को चाहते थे तो क्या वजह रही होगी की उसका साथ छोड़ना पड़ा 

मैं- पता करूँगा, 

वो- कैसे 

मैं- इसका जवाब खुद राणाजी देंगे.
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