RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- तो कातिल तुम्हारे सामने है कर दो कतल
जैसे ही भाभी ने ऐसा कहा मेरी पकड़ ढीली हो गयी मैंने पहली बार भाभी के होंठो पर एक फीकी हंसी दिखी और मेरी आँखों में खून उतर आया जो भाभी बस कुछ पल पहले मेरी बाँहों में थी मेरे हाथ उसके गले पर पहुच गए, मेरी आँखों में खून उतर आया ,
मैं- क्यों किया ऐसा .
भाभी- तुम्हे कातिल की तलाश जो थी . बाप ने कितनो को मार दिया अब बेटा भी वो सब करेगा तुम्हे कातिल चाहिए और मेरे पास वजह भी है ठाकुर इंद्र को मारने की तो दोनों का ही मसला ख़तम हुआ ना.
मैंने भाभी को धक्का दिया और बोला- इतना भी मत खेलो भाभी, की फिर खेल खेल ना रहे इंद्र लाख बुरा था पर भाई भी था मेरा और भाई का नाता क्या होता है कुंदन इतना भी बेगैरत नहीं है .
भाभी- कुंदन, नहीं ठाकुर कुंदन कहो देवर जी . क्या कहते हो भाई खोया है तुमने तो मैं कौन हु अगर तुम्हारी बात पे जाऊ तो मैंने तो अपना सुहाग, मांग का सिंदूर खोया है मुझे तो दुनिया ही जला देनी चाहिए रही बात तुम्हारी तो बड़े टीस मार खान बनते फिरते हो , भाई क लिए कलेजा फट गया तुम्हारा ठाकुर साहब, जरा उन भाइयो के कलेजे के बारे में सोचो जिनकी बहनों को उनकी आँखों के सामने तुम्हारे पूजनीय भाई ने नंगा कर दिया ,
उन बूढ़े माँ- बाप का सोचो जिनके जवान बेटो का सर काट दिया तुम्हारे भाई ने , तुम्हे तलाश है कातिल की ताकि उसे मार कर तुम्हारे भाई का बदला ले सकोगे पर जिनको तुम्हारे भाई ने बर्बाद कर दिया उनको इंसाफ कैसी दोगे ,तुम्हारे दोगले खून की इतनी कीमत क्योंकि तुम ठाकुर हो दबंग हो, और किसी दुसरे के खून की पानी बराबर औकात वाह रे कुंदन ठाकुर, वाह,तुम और तुम्हारे दोगले उसूल.
बात करते हो अपने खून की अपने भाई की कभी अपनी बहन की याद नहीं आई आजतक , कभी खोज-खबर ना ली उसके ना तुमने, न तुम्हारे उसी पूजनीय बाप और भाई ने ,आये है बड़े बदला लेने वाले ठाकुर कुंदन जी, जाओ पता करो अपनी बहन के बारे में .
मैं- पर कविता तो विदेश में है ना
भाभी- मेरी जूती, तुम और तुम्हारे उसूल , एक औरत को कहना आसान होता है क्या तुमने भाभी के करीब आने का मौका नहीं लपक लिया भाई की मौत के बाद दुःख है मुझे की मेरी मांग का सिंदूर मिट गया क्योंकि औरत किसी भी हाल में रहे उसकी मांग में सिंदूर है तो एक सहारा महसूस करती है वो पर मुझे ख़ुशी है की इतनो को बर्बाद करने वाला एक दरिंदा मारा गया ,
तुम सब मांसखोर कुत्ते हो जिनके लिए हम औरते बस महज निचे लेटने के लिए बनी है तुम्हे कोई फरक नहीं पड़ता चाहे माँ, हो या बेटी या बहन तुम साले तो हिजड़े हो जो हम पर मर्दानगी का ठप्पा लगाते हो , तुम रिश्ते नाटो की बात करते हो ठाकुर कुंदन सिंह , तुम, अरे कभी अपनी पल पल मरती माँ के पास दो पल बैठने लायक ना हुए तुम, तुम रिश्तो की बात करते हो.
कभी उससे पूछा तुमने माँ कैसी है तु, बीमार पड़ी है कभी उसका हाथ पकड़ कर दिलासा देने लायक हुए तुम , कभी पानी का गिलास तक न पकडाया गया तुमसे, बस मौका मिला और बाहर भाग गए, कायर हो तुम हर चीज़ का सामना करने के बजाये भागते हो , घर में जुगाड़ ना हुआ तो बाहर मुह मारने लगे शराफत का चोला ओढ़ कर , रिश्तो की बात करते है , पूछते है की आखिर क्यों तुम और राणाजी में से मैं उनको चुनती हु , तो आज जवाब देती हु तुम्हे,
मैं राणाजी को नहीं तुम्हारी मां को चुनती हु, क्योंकि जानती हु अगर मैंने ये घर छोड़ा तो उसका क्या हाल होगा, कौन करेगा उसकी देख रेख चले है कातिलो का शिकार करने ताकि भाई का बदला ले सके, तो करो शुरुआत मुझसे , आओ जब हाथ गले तक पहुच ही गए है तो रुकते क्यों हो दबा ही दो और फिर भी जी ना निकले तो काट डालो मुझे किसी तलवार से और फिर भी कुछ बच जाये तो तुम भी मेरा मांस नोच लेना आओ ठाकुर साहब कर लो अपने मन की .
भाभी की हर बात जैसे एक थप्पड़ की तरह पड़ रही थी उनकी आँखों से गिरते आंसू और दिल की सदा ने मुझे और निचे गिरा दिया था क्या गलत कहा था उन्होंने कुछ भी तो नहीं मैं कुंदन, ना जाने कब कुंदन ठाकुर बन गया था जान ही नहीं पाया था मैं , जिस छवि को बदलन के लिए मैंने इतना कुछ किया था उस छवि ने ही मुझे बदल दिया था ,
भाभी- हमने सोचा था की कोई औलाद नहीं हुई, कोई बात नहीं कोई दोस्त नहीं कोई बात नहीं कोई अपना नहीं कोई बात नहीं क्योंकि हमे अगर कोई दीखता था तो तुम बस तुम, जब पहली बार तुम्हे देखा था तबसे आजतक एक बेटे, एक दोस्त , एक देवर सबको तुम्हारे रूप में देखा हमने यहाँ तक की जिस हद तक तुम गए जाने दिया तुमको तुम्हारी ख़ुशी के लिए पर तुम भी उन्ही में से एक हो. उन्ही में से एक हो .
और पता नहीं भाभी गुस्से में क्या क्या बोलती रही और मैं सुनता रहा , उनके जाने के बाद भी मैं बस उसी जगह खड़ा रहा , पर पता नहीं कितनी दूर जाकर उनकी गाडी फिर से वापिस आई और वो बोली- राजगढ़ में सूरज बंजारे का पता करना काम आएगा तुम्हारे ,
सूरज बंजारा भाभी जाते जाते मुझे उसका नाम क्यों बता गयी आखिर क्या सूत्र देकर गयी थी वो अब किस नए झमेले में उलझने वाला था मैं क्या मेरी मुसीबते बढ़ने वाली थी या ये कोई उम्मीद की नयी किरन थी .
रात भर मैं बस सबके बारे में सोचता रहा पूजा,भाभी, छःज्जे वाली, राणाजी और मेरी माँ, सही कहा था भाभी ने पर माँ ने क्या कभी बेटे का दर्जा दिया जब देखा बस टोका टाकी, हमेशा सौतेला व्यवहार किया एक बेटे के लिए इतनी ममता और मेरे लिए बस फटकार तो क्या करता मैं उस माँ के पास जाकर,
एक दबंग बाप जिसकी ईमानदारी की आज मिसाल दी जाती थी उसका चेहरा इतना घिनोना था एक भाई जिसे मैं अपनी लाठी समझता था जिसके होते मुझे ये एहसास था कि पीछे खड़ा है वो मुझे सँभालने के लिए ,
पर हकीकत का जब वास्ता हुआ तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा बस मैं बिखर गया, मेरी भाभी मेरी सबसे अच्छी दोस्त ,इस घर में एक वो ही तो वजह थी मेरे मुस्कुराने की जिसने हर कदम मुझे संभाला था और मैं उसके अहसानो के बदले उसके लिए भी अपने मन में पाप लिए था,
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