Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:52 PM,
#86
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पूजा के शब्द तीर की तरह मेरे कलेजे को बेध गए बहुत कोशिश की पर आँखों से आंसू निकल आये 
पूजा- हां मैं ब्याहता हु 
मैं- कौन,,,, कौन है वो पूजा 
पूजा- तुम 
पूजा पता नही क्या कह रही थी भला वो मेरी ब्याहता कैसे हो सकती थी उसकी बात ने हैरान कर दिया था मुझे 
मैं- पर कैसे 
वो- ऐसे आँखे मत फाड़ो बताती हु,याद करो अपनी पहली मुलाकात जब मेरी शरारत की वजह से तुम गिर गए थे और चोट लग गयी थी 
मैं- याद है 
वो- जब तुम्हे उठा रही थी तभी तुम्हारे खून से मेरी मांग भरी गयी ,किसी भी स्त्री के लिए मांग भरना प्रथम निशानी है उसके विवाहित होने की और मेरी मांग तो रक्त से भरी गयी अनजाने ही सही पर हम एक ड़ोर में बंध गए 
मैं- तो ये बात मुझसे छुपाई क्यों 
वो- प्रेम में कुछ नही छुपता है 
मैं- तो अबसे तुम मेरी अर्धांगी हो
वो- अबसे नहीं अपनी पहली मुलाकात से ही 
तभी मुझे समझ आया खारी बावड़ी में मिले दुल्हन के जोड़े और सिंदूर की डिबिया का क्या मतलब था ,शायद अब वक़्त आ गया था कि मैं पूजा का हाथ थाम लू 
मैं- फेरे लेगी 
वो- अवश्य 
मैं- तो आ आज अभी इसी वक़्त 
वो- ऐसे नहीं मैं फेरे तब लुंगी जब तुम खुद मुझे लेने आओगे 
मैं- कहाँ 
वो- तुम्हे मालूम है 
पूजा के होंठो पर मुस्कान थी पर उसकी आँखों में एक फीकापन था जिसे मैं समझ नहीं पाया पर हम वापिस हो लिए जब उसके घर तक पहुचे तो थक गए थे मैं तो पड़ते ही सो गया ,अगली दोपहर में अपनी जमीन पर काम कर रहा था कुछ ही दिन बाद मुझे गेहू बोने थे 
तभी ठाकुर जगन सिंह की गाडी आकर रुकी और वो उतरा
जगन- कैसे हो कुंदन 
मैं- ठीक हु आपका आना कैसे हुआ
जगन- तुम्हारे ही काम से आया हु, तुम चाहते थे न की दोनों गाँवो में भाई चारा फिर से हो तो इसका एक रास्ता खोज लिया है मैंने
मैं- क्या 
जगन- मैं अपनी बेटी का रिश्ता तुम्हारे लिए लाया हूँ अगर दोनों घरानों में रिश्तेदारी हो जाये तो भाई चारा अपने आप हो जायेगा 
जगन की बात दुरुस्त थी पर मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकता था 
मैं- आपने इस काबिल समझा मेरे लिए सम्मान की बात है परंतु मैं इस प्रस्ताव को स्वीकारने में असमर्थ हु 
जगन- सोच लो कुंदन कम से कम एक बार मेरी बेटी से मिल लो क्या पता तुम्हारा मन बदल जाये और फिर तुम्हारा ही तो सपना है कि दोनों गांव एक हो जाये 
मैं- मैंने कहा ना ठाकुर साहब मैं असमर्थ हु 
मैंने अपने हाथ जोड़ दिए
जगन- क्या मैं इस ना की वजह जान सकता हु 
मैं- मेरी अपनी मजबूरियां है 
जगन ने बहुत जोर दिया पर मैं उसे क्या बताता की पूजा है मेरे जीवन में जगन के जाने के बाद पूजा आ गयी
पूजा- चाचा क्यों आया था 
मैंने उसे सारी बात बताई
पूजा- वो गांव वालों की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने आया था वो सोचता है कि बेटी ब्याहने से प्रॉपर्टी वाला पंगा ठीक हो जायेगा 
मैं- भाड़ में जाये तेरा चाचा, तू ये बता सुहागरात का क्या इरादा है 
वो- यही नाड़ा खोल दू क्या मेरे भोले बालम 
मैं- बेशर्म ज्यादा हो गयी है तू आजकल 
वो- अब क्या करूँ सरकार तुम तो दूर दूर भागते हो 
मैं- बस कुछ वक़्त और फिर तेरे मेरे मिलन की रात भी आएगी उस दिन जब तू सुर्ख जोड़े में लिपटी मेरे आगोश में होगी 
जोड़े से मुझे कुछ याद आया 
मैं- आ जरा साथ मेरे 
मैं पूजा को अपने साथ उस जगह ले आया जहाँ मैंने वो जोड़ा रखा था 
पूजा- ये यहाँ कैसे
मैं- ये तेरे लिए है मेरी जान और ये सिंदूर की डिबिया जब तुझे फेरो के लिए लेने आऊंगा तब इसी डिबिया के सिंदूर से तेरी मांग भरूँगा
पूजा- पर कुंदन 
मैं- पर वर कुछ नहीं मेरी जान मुझे भी अब लगता है कि समय आ गया है पर अपनी गृहस्थी शुरू होने से पहले एक काम और निपटाना है अपनी तमाम उलझनों को सुलझाना होगा 
पूजा- पर कैसे करेंगे कुंदन कैसे 
मैं- मैं करूँगा पूजा और इसकी शुरुआत होगी तेरी हवेली से जल्दी ही हम दोनों जायेंगे और फिर एक के बाद एक कड़ी जोड़ लेंगे 

पूजा- वहां जाने की कोई जरुरत नहीं है कुंदन 
मैं- जरुरत है पूजा 
पूजा- तुझे क्या चाहिए मैं या वो हवेली 
मैं- पर तेरे लिए ही तो 
वो- तेरे साथ ये झोपडी भी महल लगे है कुंदन मैं तेरे और तेरे प्यार के साथ जीना चाहती हु कुंदन ये दौलत ये शोहरत ये तमाम चीज़े कुछ मायने नहीं रखता सिवाय तेरे , तेरे आने से पहले मैं जिन्दा थी जीना तेरे आने के बाद सीखा मैंने,मुझे बस तेरी बाहो में पनाह चाहिए और कुछ नहीं
मैंने चुपचाप पूजा को अपनी बाहों में भर लिया और उसकी धड़कनो को अपने अंदर समेट लिया तक़दीर ने शायद हमारी नियति चुन ली थी बस देखना ये था की मोहब्बत का अंजाम क्या होना था 
मुझे दो दिन बाद कुछ काम से गाँव जाना हुआ तो देखा की घर के बाहर
मैंने देखा की गाड़ियों की कतार लगी थी तो मुझे उत्सुकता सी हुई और मैं बस बढ़ गया घर की ओर अंदर बैठक में कुछ लोग थे और मैंने ठाकुर जगन सिंह को देखा और सबसे पहला सवाल मेरे मन में ये ही आया की ये हमारे घर में क्या कर रहा है
पर तभी मुझे सीढियो पर भाभी दिखी उन्होंने ऊपर आने का इशारा किया तो मैं लपक लिया 

मै- जगन सिंह हमारे घर क्या कर रहा है 

भाभी- कमरे में आओ 

मैं भाभी के साथ कमरे में आया 

भाभी- अर्जुनगढ़ से तुम्हारे लिए रिश्ता आया है 

मैं- पर मैं इसको मना कर चुका हूं भाभी और ये घर तक आ गया अभी सीधा करता हु इसे, हड्डिया तुड़वायेगा ये मेरे हाथों से 

भाभी- शांत, अभी वो मेहमान है इस घर का और हमारे घर में मेहमानों की इज्जत की जाती है 

मैं- पर भाभी 

भाभी- राणाजी कर रहे है ना बात 

मैं- तो , मेरी ज़िंदगी का ये फैसला मैं लूँगा राणाजी नहीं 

भाभी- अभी शांत रहो मुझे लगता है राणाजी मना ही करेंगे 

मैं- और हां करदी तो 

भाभी- तुम शांत रहो पहले 

मैं- कैसे, भाभी मैं बता रहा हु इस जगन सिंह को अभी के अभी घर से बाहर नहीं किया तो क्लेश हो जायेगा फिर कहना मत

भाभी- तो जाओ और जो करना है करो, कमसे कम दुनिया के आगे जो झूठी इज्जत बची है उसे भी तार तार कर दो 

मैं- ये आप कह रही है 

भाभी- अभी बस बात ही हुई है प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ है 

मैं गुस्से से भरा हुआ नीचे आया और घर से बाहर जा ही रहा था कि राणाजी ने मुझे एकांत में बुलाया और बोले- हमने तुम्हारा रिश्ता ठाकुर जगन सिंह की बेटी से तय किया है दस दिन बाद सगाई का मुहूर्त है 

मैं- किस से पूछ कर 

राणाजी- पूछना नहीं हम बता रहे है तुमसे 

मैं- मुझे नहीं मंजूर 

राणाजी- दस दिन बाद तैयार रहना सगाई के लिए 

मैं- पिताजी मैं कह चुका हूं मुझे ये रिश्ता ना मंजूर है 

राणाजी- हमारे हुकुम की अवमानना करोगे

मैं- बात मेरी ज़िंदगी की है ये मेरा फैसला है 

राणाजी- क्या बुराई है इस रिश्ते में आखिर तुमको भी तो रूचि है अर्जुनगढ़ में तो अब क्या दिक्कत 

मैं- है पर किसी और कारन से ,अगर आपकी यही इच्छा है कि मैं अर्जुनगढ़ में ही ब्याह करू तो ठीक है पर जगन सिंह की बेटी से नहीं 

राणाजी- तो किससे

मैं- अर्जुन सिंह की बेटी से 


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