Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:50 PM,
#75
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- छलावा समझते हो तुम्हे देख कर मुझे लगता है की अब तक तुम सच के करीब तो क्या उसके रास्ते पर भी चलने लायक नहीं हुए हो 

मैं- कहना क्या चाहती है आप 

भाभी- की खजाना इस बावड़ी में दफन है अगर तुम चाहो तो उसकी तलाश कर सकते हो

मैं- पर मुझे क्या मोह है खजाने का अगर यहाँ है तो रहने दीजिए मुझे इस चक्कर में नहीं पड़ना है मेरी और भी उलझने है 

भाभी- मैं तुम्हे ये नहीं कह रही की तुम ले जाओ खजाने को मैं बस देखना चाहती हु की तुम उसके वारिस हो या नहीं 

मैं- इतनी सी बात के लिए आप मुझे यहाँ ले आयी हो 

भाभी- इतनी सी बात कहा है 

मैं- क्यों इतनी पहेलिया बुझाती हो 

भाभी- मोहब्बत जो होती है ना वो ही सबसे बड़ी बात होती है तुम्हे लाने का मकसद है तुम्हे अनदेखे सच से रूबरू करवाने का ,देखो और बताओ इस जगह में तुम्हे क्या दिखाई देता है 

मैं- कुछ नहीं 

भाभी- सही कहा कुछ भी तो नहीं पर फिर भी अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है जिसका एक हिस्सा अब तुम भी हो

मैं- कुछ समझा नहीं 

भाभी- समझ जाओगे, देखो बरसो पहले लाल मन्दिर की बहुत मान्यता थी हर साल यहाँ मेला लगता था खूब रौनक होती थी ना जाने कितने लोग अपनी अरदास लेकर आते पर यहाँ एक बात और थी की लोग इसे न्यायालय भी समझते थे यहाँ परख होती थी चुनोती क
खैर,ये सब तो तुम्हे पता होगा ही की ना जाने कितनी कहानिया इस जगह से जुडी है तो एक कहानी ऐसी ही है जिसके दो पात्र है मेनका और ।।।।

मैं- और 

भाभी- ठाकुर हुकुम सिंह 

मैंने भाभी की ओर देखा 

भाभी- हां ठीक सुना तुमने मेनका और राणा हुकुम सिंह तो कुंदन ये उन दिनों की बात है जब राणाजी एक नोजवान थे और मेनका भी अल्हड मस्तानी थी ठाकुर साब अक्सर इस तरफ आते थे और मेनका का डेरा भी कुछ दूरी पर ही था

इतेफाक देखो जब राणाजी इस तरफ से गुजरते तभी मेनका भी पानी भरने आती तो पता नहीं कब दोनों की आँखे चार हो गयी अब इश्क़ कहो या जवानी कहा ज़माने की ऊंच नीच को देखते है दोनों कब एक दूसरे के कितने करीब आ गए की बात कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गए 

साथ जीने मरने की कसमें खायी जाने लगी सब ठीक चल रहा था पर राणाजी ने मेनका को ये नहीं बताया था की उनका विवाह हो चूका है और उनका एक लड़का भी है इधर मेनका की आँखों में वो सपने सजने लगे थे जो शायद उसकी औकात से बाहर के थे 
मेनका टूट कर चाहने लगी थी राणाजी को और राणाजी के मन की बात का उसे पता उस दिन चला जब मेनका गर्भवती हो गयी वो खुश थी की पेट में आयी सौगात उसके जीवन में ख़ुशी भर देगी पर उसे अंदाजा नहीं था की आगे क्या होगा उसके साथ 

जब उसने राणाजी को ये खुशखबरी सुनाई तो राणाजी ने उस से पल्ला झाड़ लिया और बदले में उसे पैसे और तमाम चीज़े देने की कोशिश की मेनका तो सकते में आ गयी जिस इंसान को वो अपना सब कुछ मान चुकी थी उसने उसे बीच राह धोखा दे दिया था 
राणाजी के लिए मेनका बस एक खिलौना थी जिस से उन्होंने खेला और फिर फेक दिया पर मेनका ने दिल से चाहा था राणाजी को ,पर समय का फेर अब वो अपना दुःख बताये तो किसे और कौन विश्वास करता उस पर तो जल्दी ही उसके गर्भवती होने की खबर डेरे में भी पता चल गयी 

एक कुंवारी लड़की का इस हाल में होना हमेशा से ही मुसीबत भरा रहा है पर मेनका के लिए वो वक़्त बहुत मुश्किल था उसे डेरे से निकाल दिया गया जब उसे जबसे ज्यादा अपनों की जरुरत थी तब उसे उसके परिवार ने उसे दुत्कार दिया और राणाजी तो पहले ही उसके साथ दगा कर चुके थे 

दुखो के पहाड़ को सर पर उठाये मेनका ने हार नहीं मानी और ज़िन्दगी के टूटे सिरो को फिर से जोड़ने की कोशिश की पर पेट में पल रही उसके प्यार की निशानी की चिंता उसे पल पल सताती थी और एक बेसहारा मजलूम औरत कर भी तो क्या सकती थी 

पर उसने हार नहीं मानी पर ज़िन्दगी ने सोच लिया था उसे हराने का नियत समय पर उसने एक संतान को जन्म दिया और प्रसूति अवस्था में ही वो चल बसी ,तो कुंदन ये इसी जगह से जुडी एक कहानी है जो वक़्त की रेत में कही खो गयी

मैं- पर भाभी आपने ये कहानी मुझे क्यों बतायी 

भाभी-मैंने सोचा तुम्हे पता होनी चाहिए क्योंकि बुराई को अगर कुछ हरा सकता है तो सिर्फ अच्छाई, ज़िन्दगी में कितने ही पल हम गुस्सा करते है हमे कुछ कमजोर लम्हो में लगता है की कुछ कर जाये पर अगर हम तसल्ली से सोचे तो कुछ हल निकल ही आता है

मैं-कभी कभी मैं सोचता हु आप किस मिटटी की बनी है भाभी 

भाभी- उस मिटटी की जिसके तुम बने हो, खैर आओ तुम्हे कुछ ऐसा दिखाती हु जो शायद तुम्हारी कल्पना से परे है 

मैं- क्या भाभी 

भाभी में बिना मेरे

भाभी ने अपना हाथ बावड़ी के पानी की ओर किया और जैसे ही रक्त ने पानी को महसूस किया पानी सूखने लगा और धीरे धीरे गायब हो गया और नीचे की गीली मिट्टी फटने लगी और उसके बाद जो मैंने देखा आँखों ने होने से मना कर दिया
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