Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:50 PM,
#70
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- भाभी आपके दुःख का भान है पर ये तो होना ही था एक न एक दिन
वो- सही कहते हो 
मैं- भाभी मैं हर पल आपके साथ हु पर अब भैया की जगह आप हो आपको संभालना होगा सब कुछ 
वो- तुम किसलिए हो फिर
मैं- भाभी आपको सब पता है ना 
वो- मेरे लिए भी
मैं- आपके एक इशारे पर जान दे दू पर जबतक राणाजी ये वचन न दे की ये सब बंद होगा मैं अलग हु उनसे पर मैं इस काबिल भी हु की घर के बाहर से भी अपनी जिम्मेवारियां निभा सकू
वो- तो फिर हमारा सब कहना सुनना बेकार
मैं- समझो ना
कुछ और बाते हुई फिर मैंने भाभी को चाची के साथ रवाना कर दिया और खुद पूजा के घर आ गया 
पूजा- कैसे है घर पे सब 
मैं-ठीक है थका हु थोड़ी देर सोना चाहता हु 
वो- ठीक है पर मैं कुछ बात करना चाहती थी 
मैं- क्या 
वो- यही की उस दिन निशाना तुम्हारे भाई नहीं तुम थे 
मैं- क्या बोल रही है 
वो- देखो बम तुम्हारी गाड़ी में लगाया गया था मतलब साफ है न 
मैं- पुरे गांव को पता है मैं गाड़ी बहुत यूज़ करता हु मेरा काम तो साइकिल से हो जाता है पर उसे भी कोई ले गया
वो- सोचो जरा फिर कातिल को कैसे पता लगा मतलब वो इतना सटीक कैसे हो सकता था की उसे ये पता हो की इन्दर कब कौन सी गाड़ी ले जायेगा 
पूजा की बात में दम था मैंने खुद देखा था की कैसे वो पहले अपनी गाड़ी के पास रुके थे और बाद में मेरी गाड़ी का दरवाजा खोला था
वो- किस सोच में डूब गए 
मैं- दम तो है तेरी बात में
वो- अब तू सोच ऐसा कौन दुश्मन है तेरा जो जान से ही मारना चाहेगा और एक बात ये भी की उसकी पहुँच इतनी है की तेरे घर तक आ गया
मैं- मेरा कोई दुश्मन नहीं 
वो- पर निशाना तो तू ही था न 
मैं- नहीं मैं ज्यादातर अकेला रहता हूं भटकता रहता हूं मुझ पर कोई कभी भी हमला कर सकता है 
वो- पर मुझे लगता है कि ये एक बहुत गहरी साजिश है कुंदन 
मैं- अभी दिमाग काम नहीं कर रहा है आ कुछ देर सोते है फिर विचार करेंगे
वो- तू सो मुझे कपडे धोने है कुछ देर बाद आती हु
मैं आके लेट गया और कब नींद आयी कुछ पता नहीं चला शाम को उठा और अपनी झोपड़ी पर आया ही था कि मैंने देखा
मैंने देखा एक सूटकेस देखा जिसमे बहुत सारे पैसे भरे थे अब इसको कौन रख गया मैंने सोचा साला लोगो को चोरी करते तो सुना था पर ऐसे रकम रखते हुए आज पहली बार था आजकल पता नहीं क्या क्या हो रहा था की अब किसी बात पे अचरज नहीं होता था
की आखिर हो क्या रहा है दिल तो करता था की सर पटक लू पत्थर पर , मेरे दिमाग में पूजा की कही बात गूंज रही थी की उस हमले का निशाना मैं था पर मेरी किस से दुश्मनी थी किसी से भी नहीं तो किसने किया होगा ये काम 

जबकि भाई के हज़ार दुश्मन हो सकते थे उसने ना जाने कितने लोगो के जीवन को दुःख से भर दिया था पर एक बात जरूर थी की जिसने भी गाड़ी में बम लगाया ये पक्का था की वो था करीबी पर कौन क्या राणाजी ने तो नहीं 

जिस तरह से उनका चरित्र उभर कर आया था शक की सम्भावना बनती थी क्या पता इंद्र कोई ऐसा राज़ जान गया हो जिससे राणाजी को परेशानी हो सकती थी पर जैसा पूजा ने कहा की हमले का असली निशाना मैं था तो कातिल ने गाड़ी में बम क्यों लगाया जबकि उसके पास और भी बहाने थे

एक बात हो सकती थी की कातिल ऐसा बताना चाह रहा हो की इंद्र की जगह तुम भी हो सकते थे धमाका बिलकुल मेरी आँखों के सामने हुआ था पर कोई कैसे इतना सटीक पूर्वानुमान लगा सकता था ह्म्म्म शायद कोई साज़िश पर ये नया दुश्मन कौन पैदा हो गया था

पूरी रात मैं और पूजा सवालो के अँधेरे में जवाबो की रौशनी तलाश करते रहे पर उम्मीद का चिराग जल नहीं पाया उस दोपहर जब मैं खेत की तारबंदी कर रहा था तो एक गाड़ी आकर रुकी मैंने देखा की मुनीम जी के साथ एक आदमी और था

मुनीम- सरकार, ये वकील साहब है आपसे मिलने आये है 

मैं- भला मुझसे इनको क्या काम आन पड़ा

वकील- काम है तभी तो आये है

मैं- तो बताइए

वो- ठाकुर इंद्र की वसीयत के सिलसिले के में 

मैं- भैया को क्या जरुरत आन पड़ी वसीयत की

वकील- ये तो मुझे नहीं पता पर इस वसीयत में उनके जो भी खेत है बैंक अकाउंट में जमा रकम कुछ रिहाइशी प्रॉपर्टी करीब बीस किलो सोना और चांदी सब आपके नाम कर गए है 

मैं- पर मेरे नाम क्यों मेरा क्या लेना देना जब भाभी है और वैसे भी कायदे से पति के बाद सबकुछ पत्नी का हो जाता है 

वकील- हो जाता है पर यहाँ मामला अलग है ठाकुर इंद्र ने अपने होशो हवास में ये डीड बनायीं है

मैं- तो आप एक वसीयत और बनाये जिसमे ये सब कुछ भाभी के नाम हो जाये 

वो- ऐसा नही हो सकता 

मैं-क्यों 

वकील- ठाकुर इंद्र ने सख्त निर्देश दिए है कि अगर किसी कारण से कुंदन ठाकुर इस वसीयत की शर्तों को नहीं मानता तो ये सब प्रॉपर्टी और तमाम चीज़े गरीब बच्चो की शिक्षा हेतु चली जाएँगी 

मैं- क्या बकवास है जिसका हक़ है उसी को नहीं दिया जा रहा वकील साहब तो ऐसा हो सकता है की हर चीज़ के पेपर्स मेरे नाम होते ही मैं उनको भाभी के नाम कर सकू

वकील- नहीं जी, वसीयत में साफ़ लिखा है या तो आप या ट्रस्ट और अगर आप जान बूझ कर भी ऐसा कुछ करते है तो आप नहीं कर पायेंगे

मैं- चलो मान लिया पर अगर भाभी कोर्ट में गयी तो उस समय क्या होगा 

वो- नहीं जाएँगी क्योंकि इस वसीयत में जो डिक्लेरेशन है वो इंद्र के साथ जसप्रीत की भी है ये एक संयुक्त वसीयत है 
मेरे जीवन में एक के बाद एक धमाके होते जा रहे थे उन दोनों को आखिर ऐसी क्या जरूरत हो गयी थी की सब मेरे नाम करना पड़ा भाभी भी आजकल एक पहेली बन गयी थी खैर मैंने वकील से वसीयत की एक कॉपी ले ली 

जब पूजा आयी तो मैंने उसे दिखाई

पूजा- तुम्हारे घरवाले भी अजीब है 

मैं- तुझे अब पता चला 

वो- भाभी से पूछ लो ,वैसे आजकल पांचों उंगलिया घी में है जिधर निगाह करते हो सब तुम्हारा हो जाता है 

मैं- बात तो सही है पर इस चीज़ की चाहत है ही नहीं मुझे क्या करूँगा इन सब का जब मेरा सुख तेरे पास है तेरी एक मुस्कान पे ये सब कुर्बान है पूजा 

वो-ज्यादा रोमांटिक मत हो 

मैं- एक बात बता तुम्हारे बापू वाली वसीयत में भी एक झोल है 

वो-क्या 

मैं- ये की उसके अनुसार तेरी शादी राणाजी के बेटे से होनी थी पर किस बेटे से वो साफ नहीं है

वो- मुर्ख इंद्र की पहले ही शादी हो चुकी तो तुम बचे न 

मैं- मान ने अगर इंद्र कुंवारा होता तब 

वो- मैं नहीं मानती इन कागज़ के टुकड़ों को अब क्या ये कागज़ के टुकड़े मेरी ज़िंदगी का फैसला करेंगे 

मैं- तो अब भी क्यों मानती है 

वो- क्योंकि अगर तू राणाजी का छोरा न होता तब भी तेरा मेरा रिश्ता होता कुछ रिश्ते बस बन जाते है कुंदन 

मैं- कल जाके भाभी को उनकी अमानत लौटा दूंगा क्या कहती है 

वो- तो क्या तुम रखने का सोच रहे थे 

मैं- चल पगली वैसे मैं चलू क्या कल तुम्हारे साथ तुम्हारे घर तुम सबसे मेरा परिचय करवाना 

मैं- चल मजा आएगा और वैसे भी कभी न कभी तो तुझे वही रहना ही होगा 

वो- मैं क्यों रहूंगी वहां भला

मैं- क्या पता रहना पड़ गया तो

वो- तब की तब देखेंगे 

मैं- और बता 

वो- क्या बताऊँ सब तो पता है तुझे 

मैं- जो छुपाया है वो बता 

वो- अब क्या रहा कुछ छुपाने को कुंदन

मैं- तेरा अतीत

वो- जब वक़्त आएगा अतीत के पन्ने भी खोल दूंगी

मैं- इंतज़ार रहेगा 

वो- मुझे भी

मैं- फ़िलहाल मुझे भाई के कातिल की तलाश है 

वो- मिल जायेगा 

मैं- हम्म्म्म
बहुत देर तक हम दोनों अपने अपने तरीको से सम्भवनाओ की तलाश करते रहे कुछ लोग थे शक के घेरे में पर शक करने से क्या होता है अगले दिन मैंने भाभी से मिलने का सोचा और घर गया
मैं जब घर पंहुचा तो भाभी थी नहीं घर पर मैंने माँ सा से पूछा तो उन्होंने कहा की बता कर नहीं गयी है तो मुझे अजीब सा लगा क्योंकि भाभी पहले ऐसा कभी नहीं करती थी पर फिर भी मैंने इंतज़ार करने का सोचा सुबह से दोपहर हो गयी पर वो नहीं आयी
न वो थी घर पे न राणाजी तो मेरे दिमाग में तरह तरह के विचार आने लगे को कही दोनों साथ तो नहीं होंगे और कहाँ होंगे जब इन्तहा हो गयी इंतज़ार की तो मैं घर से निकला और वापसी का रास्ता ले लिया पर जब मैं अपने कुवे की तरफ पंहुचा तो मैंने देखा की वहाँ पर भाभी और राणाजी दोनों की गाड़ी खड़ी है
तो मेरे मन में सबसे पहला विचार ये ही आया की दोनों यहाँ पर कही राणाजी भाभी के साथ कुछ कर तो नहीं रहे होंगे मैं दौड़ते हुए कुवे पर बने कमरे की तरफ गया पर मैं देखना चाहता था कि अंदर क्या हो रहा होगा तो मैं पीछे वाली खिड़की की दराज से झाँकने लगा 
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