Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:49 PM,
#69
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
तभी जैसे सब कुछ जल उठा चारो तरफ तेज धुंआ फ़ैल गया ऐसा कानफोड़ू शोर हुआ जैसे कान के परदे ही फट गए हो धमाका इतना तेज था की मैं पास की दिवार से जा टकराया अपने होशो को सँभालने में कुछ ही सेकंड लगे थे 
पर जब धुंआ कुछ छंटा तो कलेजा हलक को आ गया जहाँ बस कुछ देर पहले गाड़ी थी वहां अब बस एक लोहे का जलता हुआ टप्पर थे और आस पास मेरे भाई के मांस के लोथड़े पड़े थे सब कुछ धु धु करके जल रहा था 
कुछ देर पहले एक जीता जागता इंसान अब लोथड़ो में बंटा था तभी घर से निकल कर लोग आते हुए दिखे मैंने राणाजी को देखा उनके पीछे माँ और भाभी को देखा और मैं उनकी तरफ दौड़ पकड़ा मैंने भाभी को अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरी रुलाई छूट पड़ी
मैं- मत देखो भाभी मत देखो 
भाभी- कुंदन इंद्र। ?????
मैं- नहीं भाभी भाई 
ये वो पल था जब लफ़्ज़ों ने जबान का साथ छोड़ दिया था और मैं बताता भी तो क्या उसको भाभी ने मुझे धक्का दिया और उस तरफ दौड़ पड़ी जहा मेरे माँ बाप अपने घुटने टिकाये बिलख रहे थे मैंने अपनी भाभी को देखा जो पगलाई सी हो गयी थी सर से चुनरिया कब की गिर चुकी थी पर किसे परवाह थी 
और इन सब के बीच मैं अकेला तन्हा जिसे समझ नहीं आ रहा था की आखिर ये क्या हो गया मेरी आँखों के सामने बस कुछ ही दूरी पर मेरे भाई के परखच्चे उड़ गए थे और मैं कुछ नहीं कर पाया था कुछ नहीं कुछ देर पहले मैं खुद उससे झगड़ा करने के लिए आया था और अब भावनाओ का ज्वार भाटा फुट पड़ा था 
सब तबाह हो गया था घर का बड़ा स्तम्भ ढह गया था मेरी आँखों से कब पानी झरने लगा पता नहीं मैं बस एक कोने में बैठ गया आस पास लोगो का मजमा लग गया था चारो तरफ चीख पुकार मच गयी थी कुछ औरते माँ और भाभी को अंदर ले गई
कुछ देर बाद टुकड़ो को जैसे तैसे समेटा गया और एक चादर से ढक दिया गया धमाका इतना भीषण था की मेरे कान अब तक सुन्न थे मैं थोड़ा सा सरका तो पाया कि लोहे का एक छोटा सा टुकड़ा पसली में घुस गया है उसे खींच के निकाला तो जान ही निकल गयी मिटटी लगा के जख्म को रोका 
कुछ लम्हो में दुनिया पूरी तरह से बदल गयी थी सब खत्म हो गया था वो काला दिन था हमारे परिवार के लिए मैं खुद अंतर्मन के द्वन्द से घिर गया था मेरे सामने भाई के दो चेहरे आ रहे थे एक जिसमे वो ठाकुर इंद्र था जिससे नफरत थी मुझे और दूसरा वो भाई था जिसकी छाया तले मैं बड़ा हुआ था 
मुझे भाभी की परवाह थी बस मेरा दिल उस वक़्त कांप गया जब मुझे भान हुआ वो विधवा हो गयी है जिस भाभी को हमेशा दूल्हन से रूप से देखा उसे विधवा के रूप में कैसे देखूंगा मैं मेरी आँखों से दर्द बह रहा था आंसुओ के रूप पे 
वो समय बहुत दुःख भरा था जब भाभी की चूड़ियों को टूटते हुए देखा मैंने जब भाभी की मांग का सिंदूर मिटाते हुए देखा मैंने तब मैं समझ पाया की आखिर उस दिन क्यों वो मुझे चुन नहीं पायी थी अंतिम संस्कार के लिए शारीर तो था नहीं पर रस्म थी करनी पड़ी 


दो दिन गुजर गए थे घर में जैसे मुर्दानगी सी पसर गयी थी लोग शोक व्यक्त करने आते चले जाते पर हम पर जो बीत रही थी बस हम ही जानते थे उस शाम मैं बैठा था कि मैंने पूजा को आते हुए देखा मैं उसे देख कर खड़ा हो गया पर उसने मुझे इशारे से समझाया और चुपचाप जाके महिलाओं में बैठ गई
करीब आधे घंटे बाद वो जाने लगी तो मैं उसके पीछे आया जी तो करता था कि उसके आगोश में फूट फ़ूट कर रोउ 
वो- मैं जानती हूं तुम पर क्या बीत रही है पर इस कठिन समय में परिवार का साथ मत छोड़ना मैं हर दम तुम्हारे साथ हु बाकि कामो की कोई फ़िक्र मत करना बस परिवार का साथ छोड़ना मत 
ये लड़की मुझे बहुत गहरायी से समझती थी इसको मेरी हर चाह का पता था मैंने सर हिलाकर हां कहा और वो वापिस मुड़ गयी हमारे अपने रिश्ते अलग जगह थे मैं इस बात से दुखी नहीं था कि भाई की मौत हो गयी थी उसके कर्मो का फल कभी तक मिलना ही था उसे 
पर मेरा कलेजा भाभी की वजह से फट रहा था मैंने देखा वो कैसे गुमसुम हो गयी थी किसी लाश की तरह मेरी इतनी हिम्मत नहीं होती थी की मैं उनके पास जा सकु कुछ दिन और गुजरे और मैंने राणाजी का वो रूप देखा जिसके बस मैंने किस्से सुने थे 
आसपास के सभी गाँवो में लाशो के ढेर लगा दिए उन्होंने जिसपे भी हल्का सा शक हुआ उसकी जान गयी मैं हैरान था इतना कत्ले आम किस लिए की उनका बेटा मारा गया और जो वो या उनके बेटे ने किया उसका क्या मैं जानता था की इसको अभी रोकना होगा हर हाल में रोकना होगा और ये हिम्मत मुझे करनी होगी
जैसे ही ये ख्याल मेरे दिल में आया मेरी आँखों के सामने वो मंजर आ गया जो मैंने पद्मिनी की जलती आँखों में देखा था मैंने सोचा ये ही होना है तो ये ही सही ये मैं भी चाहता था कि भाई को मारने वाला पकड़ा जाये पर मासूमो के खून की कीमत पर नहीं हरगिज़ नहीं
मैंने राणाजी से बात करने की सोची पूरी रात मैं इंतज़ार करता रहा पर वो नहीं आये कुछ पलो के लिए झपकी सी लग गयी सुबह चार बजे के करीब कुछ आवाज हुई तो मैंने देखा की वो आ गए है 
मैं- आपसे बात करनी है
वो- अभी नहीं 
मैं- आपने शायद सुना नहीं मैंने कहा अभी
राणाजी चलते चलते रुक गए और मेरी तरफ ऐसे देखने लगे जैसे की मैंने कोई आश्चर्यजनक बात बोल दी हो
वो- होश में हो या आज चढ़ा ली है 
मैं- ये मासूमो का खून कब तक बहेगा
वो- जब तक इंद्र का कातिल नहीं मिल जाता 
मैं- तो कातिल को पकड़िये मासूमो पर अत्याचार क्यों 
वो- इंद्र हमारा बेटा था खून था हमारा और किसकी मजाल जो हमारे बेटे की तरफ,,,,,
मैं- ये मत भुलिये की हर निर्दोष भी किसी का बेटा किसी का भाई है जिसे आप बस शक के आधार पर काट रहे है
वो- क्या हमें सच में इस बात की परवाह है
मैं- पर मुझे है जिस बेटे के लिए आप इतना तड़प रहे है ये क्यों भूल जाते है की उस बेटे ने भी न जाने कितनी जिंदगियां बर्बाद कर दी थी ये सब तो होना ही था कभी न कभी तो अफ़सोस क्यों
राणाजी- जुबान को लगाम दो कुंदन वार्ना जुबान खींच ली जायेगी
मैं- वो दिन गए राणाजी जब किसी भी मजलूम की आवाज दबा दी जाती थी आपको बंद करना होगा ये सब अभी के अभी 
राणाजी- एक शब्द अगर और तुम्हारे मुह से निकला तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा
मैं- बंद कीजिये ये अपनी झूठे रौब का प्रदर्शन ठाकुर हुकुम सिंह जी आपके बेटे का इतना दर्द होता है तो उन घरों के दर्द का सोचिये जिनके चिराग आप और आपके बेटे ने बुझा दिए 
वो- इससे पहले की हम अपना आपा खो दे निकल जाओ यहाँ से
मैं- यहाँ से तो निकल जाऊंगा पर अब से हर उस शक्श के आगे ढाल बनकर खड़ा रहूँगा जिसके खिलाफ आपकी तलवार उठेगी पर साथ ही ये भी कहता हूं कि भाई के कातिल को भी तलाश कर आपके सामने जरूर लाऊँगा
गुस्से से अपने पैर पटकते हुए मैं घर से बाहर निकल गया भोर होने में समय था तो मैं चाची के घर जाके सो गया थोड़े समय के लिए और फिर दोपहर को ही उठा दिन ऐसे ही गुजर रहे थे भाभी बस अपने कमरे में गुमसुम बैठी रहती थी न कुछ बोलती थी और उन्हें देख कर मेरा कलेजा जैसे फट ही जाता था 
पर ये समय ही ऐसा था मैं घंटो भाभी के कमरे में बैठे रहता पर वो कुछ ना बोलती जैसे दर्द के समुन्दर में डूब गयी थी वो उस दिन मैं घर के बाहर बैठा था की तभी एक पुलिस की जीप आकर रुकी और एक पुलिस वाला उतरा
पुलिस वाला- सुनो ठाकुर हुकुम सिंह से कहो की इंस्पेक्टर चन्दन आया है इंदरजीत की मौत के सिलसिले में कुछ बात करनी है 
मैं- क्या तुम्हे ये नहीं मालूम की आजतक इस गांव के कभी पुलिस नहीं आयी
चन्दन- हर काम की कभी न कभी तो शुरुआत होती है न बरखुरदार, जाओ हुकुम सिंह जी को कहो
मै- राणाजी इस वक़्त नहीं है मुझसे बात करो
वो- और तुम कौन हो
मैं- इलाके में नए आये हो क्या दारोगा 
वो- हाँ, और आते ही पता चला अब ऐसे हाई प्रोफाइल केस में रिस्क लेना तो बनता ही है 
मैं- रिस्क न तुम्हारे पिछवाड़े में डाल कर मुह से निकाल दूंगा 
वो- इतने मत उड़ो बरखुरदार, दारोगा है हम इस इलाके के एक बार उठवा लिया न तो न कोई रपट होगी न कोई कार्यवाही
मैं- जानता है किस से बात कर रहा है मेरा मूड वैसे भी ठीक नहीं है निकल लो
वो- हाँ निकल लेंगे पर हुकुम सिंह को कह देना की थाने आये बात करनी है 
मैं- शब्दो पे लगाम रख दारोगा अगर हम चाहे तो पूरा थाना यहाँ आकर सलामी ठोकेगा
वो-छोरे पुलिस को जागीर मत समझ जलवे हमारे भी कम नहीं है चल मत भेजना किसी को थाने एक काम कर इंद्र की घरवाली को बुलवा कुछ सवाल पूछने है 
मेरा दिमाग खराब हो गया मैंने उसकी गुद्दी पकड़ ली और धर दिए दो चार गरमा गर्मी हो गयी
मैं- साले दो कौड़ी के पुलिसिये तेरी इतनी औकात तू हमारी भाभी से सवाल जवाब करेगा तू 
चन्दन- देख लूंगा तुझे 
मैं- चल निकल ले अभी वरना अपने घर वालो को कभी देख नहीं पायेगा
तभी राणाजी आ गए तो बीच बचाव हुआ बाद में पता चला की चूँकि भाई फौज में था तो केंद्र सरकार की तरफ से एक जाँच करने का आदेश था जिसकी वजह से दारोगा यहाँ आया था 
राणाजी- दारोगा, जो भी फॉर्मेलिटी है हम थाने भिजवा देंगे बात खत्म
दारोगा- पर इसने मुझ पर हाथ उठाया उसका हिसाब मैं ले कर रहूँगा
राणाजी- जरूर अगर तुम ले सको तो
उस टाइम तो वो दारोगा चला गया पर मुझे लगा की ये कुछ न कुछ तो खुराफात जरूर करेगा पर अभी के लिए बात आई गयी हो गयी कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए भाभी का मन कुछ हल्का हो जाये तो मैं उन्हें कुवे पर ले आया 
मैं- भाभी कब तक आप ऐसे गुमसुम रहेंगी आपको ऐसे देख कर मैं परेशान हो जाता हूं
वो- तुम नहीं समझोगे
मैं- सही कहा भाभी पर जो जिंदगी वो जी रहे थे आज नहीं तो कल ये होना ही था 
वो- कुंदन, मुझे अभी इस बारे में बात नहीं करनी है
मैं- मत कीजिये पर आप ऐसे उदास न रहिये
वो- कहाँ उदास हु देवर जी 
मैं- मुझसे झूठ नहीं बोल सकते आप 
वो-अजीब लगता है तुम्हारी भाभी विधवा जो हो गयी है 
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