Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:49 PM,
#63
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
हर रात मेरी पूजा के साथ गुजरती तो अक्सर शाम छज्जे वाली के साथ मैं सच कहूं तो तंग होने लगा था इस दोहरी ज़िन्दगी से कभी कभी चाची मिलने आ जाया करती थी तो गांव बस्ती की खबर मिल जाती थी मैं हद से ज्यादा मेहनत करता ताकी इस जमीन पर फसल ऊगा सकु
पर सिंचाई वाली समस्या ज्यो की त्यों थी पूजा ने कहा था की बिजली लगवा लू तो मोटर ले लेंगे पर राणाजी की वजह से बिजली दफ्तर से ना ही मिली सबसे बड़ी समस्या ये थी की इस तरफ खम्बा नहीं था वार्ना तार डाल लेते
बदन थक कर चूर हो जाता था पर ज़मीन की प्यास नहीं बुझती थी पर चाहे जान निकल जाये घबराना नही है एक रात मैं अकेले ही बैठे बैठे सोच रहा था की मुझे कामिनी का ख्याल आया तो मैंने सोचा की मिल लिया जाये एक बार 
क्या पता वो ही कुछ मदद कर दे तो अगले दिन मैंने पूजा को बताया की मैं कुछ समय के लिए बाहर जा रहा हु वो साथ आना चाहती थी पर मैंने मना किया और दोपहर से कुछ पहले मैं चल दिया 
अब गाड़ी तो थी नही बस पकड़ी और हिचकोले खाते हुए सफर शुरू हो गया वैसे तो लंबा सफर नहीं था पर बस कभी रूकती कभी चलती तो डेढ़ घंटे के आस पास लग गया और मैं पंहुचा अनपरा गाँव
वहां उतर कर कामिनी का पता पूछा तो पता चला की गाँव से करीब आठ दस कोस दूर पहाड़ो की तरफ हवेली है उसकी और पैदल ही जाना पड़ेगा इस समय तो , अब जाना तो था ही मैं चल दिया इसमें भी काफी समय लग गया बीच में एक दो और लोगो से पूछा और जैसे तैसे मैं हवेली के दरवाजे पर पहुच ही गया
हवेली की रंगत देखने से लग रहा था की जैसे सालो से कोई रहता नहीं होगा उस बड़े से दरवाजे को ढुलकाया तो खुल गया और मैं अंदर गया वाह क्या नजारा था दूर तक घास का मैदान था और फिर हवेली मैं आगे बढ़ने लगा तभी एक औरत मेरी तरफ दौड़ते हुए आयी
औरत- अरे कहा घुसे आ रहे हो 
मैं- कामिनी जी से मिलना है 
वो- वो किसी से नहीं मिलती जाओ तुम यहाँ से 
मैं- उनसे जाकर कहो की कुंदन आया है देवगढ़ से 
ये सुनते ही उस औरत ने कहा - आइये हुकुम और मुझे अपने साथ अंदर ले गयी
बाहर से हवेली चाहे जैसी लग रही हो पर अंदर से बहुत आलीशान थी मैं सोफे पर बैठ गया और कुछ देर बाद मैंने ऊपर से कामिनी को आते देखा उसने भी मुझे देखा और बोली- बड़ी देर कर दी मेहरबाँ आते आते

मैं-मुझे तो आना ही था
वो- वो ही तो मैंने कहा बड़ी देर लगा दी 
मैं- हां देर तो हुई पर आ ही गये
वो- बाते तो होती रहेंगे पहले तुम चाय नाश्ता करो 
उसने नौकरानी को बुलाया और कुछ ही देर में नाश्ता हाज़िर हो गया करीब एक घंटे बाद हम दोनों ऊपर आ गए 
मैं- हवेली शानदार है आपकी 
वो- हुआ करती थी किसी ज़माने में अब तो बस दिन गुजार रही है मेरी तरह 
मैं- ऐसा क्यों 
वो- इतनी बड़ी जायदाद है पर सँभालने वाला कोई नहीं दो दो बेटे है पर विदेश जाकर बैठे है जब भी कहा आने को बस एक ही जवाब अगले साल पता नहीं कब आएगा उनका ये अगला साल
मैं- मतलब आप अकेली रहती है 
वो- अब नहीं तुम जो आ गए हो
मैं- अकेला नहीं आया हु अपने साथ कुछ सवाल भी लाया हूँ 
वो- जवाब तो हर पल तुम्हारे आस पास ही है कुंदन
मैं- पर मुझे आपकी आस है 
वो- मेरे लबो से लेकर मेरे नीचे तक हर जगह जवाब ही है तलाश कर लो 
मैं- उस रात कैसा लगा आपको 
वो- तुम्हे कैसा लगा 
मैं- अच्छा लगा पर सब अचानक हुआ तो 
वो- तो क्या 
मैं- मेरा ऐसा सोचना है जब ये सब करो तो जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए 
वो- उम्दा ख्याल है शायद तुम्हे अजीब लगा हो उस समय पर ये सब चलता रहता है एक अरसे पहले मैं विधवा हो गयी कुछ समय बच्चो की परवरिश में लग गया अब काफी समय से अकेली हु तो थोड़ा दिल बहला लेती हूं 
मैं- आपका जीवन जैसे चाहे जिए 
वो- सही है तो किन सवालो के जवाब चाहिए तुमको 
मैं- अर्जुनगढ़ की हवेली का हकदार कौन है 
वो- जवाब तुम भी जानते हो है ना
मैं- आप बताओ 
वो- देखा जाये तो कोई नहीं 
मैं- क्यों, 
वो- खँडहर में किसकी दिलचस्पी होगी अर्जुन के भाइयो ने अपना अपना बंटवारा कर लिया और अलग बस गए 
मैं- और कोई उस खंडहर को फिर से आबाद करना चाहे तो 
वो- इशारा समझ रही हु मैं तुम्हारा पर ये मुमकिन नहीं उसके लिए पर तुम्हारे लिए आसान है 
मैं- समझा नहीं कुछ
वो- अभी नहीं समझोगे पर जल्दी ही समझ जाओगे 
मैं- उलझाओ मत 
वो- बिना लहरो में उलझे सागर पार करना चाहते हो 
मैं- क्या पता 
वो-चलो एक सवाल हम पूछते है तुम जवाब देना वो क्या वजह थी जिसके लिए तुमने जान की बाजी लगा दी 
मैं- सम्मान, नारी का सम्मान 
वो- सच में, जिस कुल के दीपक तुम हो उसके मुंह से अच्छी नही लगती ये बात
मैं- और कोई वजह हो तो आप बता दे
वो- शुरू से ही हमे लगा था की तुम अलग हो निराले हो
मैं- क्या मैं आप पर भरोसा कर सकता हु
वो- भरोसा नहीं तो तुम यहाँ नहीं आते
मैं- आप किसी जोगन को जानते है 
वो- हाँ 
मैं- कौन है वो
वो- पद्मिनी खुद को जोगन कहती थी हमेशा से उसकी तीव्र लालसा थी जादू में, सुबह शाम बस कुछ न कुछ करती रहती और जल्दी ही वो इन सब में माहिर हो गयी थी की बड़े बड़े तांत्रिक हाथ जोड़ देते उसके आगे 
मैं- एक ठकुराइन का जादू टोने से क्या वास्ता 
वो- निराली थी वो तुम्हारी तरह जैसे तुम पीछा छुड़ाना चाहते हो ऐसे ही वो थी 
मैं- सब बताइये 
वो- बताती हु पर पहले खाना खा लो तैयार हो गया होगा फिर कुछ देर आराम कर लो 
उसने नौकरानी से खाना लगाने को कहा कुछ समय खाने में गया और करीब घंटे भर बाद हम उसके बैडरूम में थे उसने बस एक झीना सा गाउन पहना हुआ था जिसके अंदर से उसके अंदरूनी अंग साफ़ झलक रहे थे 
वो- क्या देख रहे हो ऐसे 
मैं- जो उस अँधेरे में नहीं देख पाया था 
वो हंसी और अपने गाउन की डोरी को खोल दिया और मेरे सामने नंगी खड़ी हो गयी 
वो- लो देखो अच्छे से
मैं अपने कपडे उतारते हुए- देखूंगा ही नही करूँगा भी 
मैंने उसे अपनी गोद में लिया और कुरसी पर बैठ गया मेरा लण्ड उसके नितंबो की दरार में सेट हो गया और मेरे हाथ उसकी चूचियो पर पहुच गए 
मैं- उस रात की तरह कोई जल्दबाज़ी तो नहीं 
वो- मेहमान हो जमके मेजबानी करुँगी
मैंने अपने दांत कामिनी के कंधे पर लगाये और उसके मुलायम मांस को चूमने लगा मेरी उंगलिया उसके भूरे रंग के निप्पल्स को मसलने में लगी थी 
मैं- गर्म हो 
वो- ठंडा कर दो 
उसके नितम्बो की थिरकन ने मेरे लण्ड का जीना हराम किया हुआ था पर मैं कामिनी नाम की इस शराब को धीरे धीरे पीना चाहता था कुछ देर उसके स्तनों से खेलने के बाद मैंने उसे घुमा दिया और उसका चेहरा अपनी तरफ कर दिया
मैंने धीरे धीरे उसके सेब से गालो को चूमना शुरू किया 
मैं- होंठ खोलो 
जैसे ही उसने अपने होंठ खोले मेरी जीभ उसके मुंह में सरक गयी और हमारा चुम्बन शुरू हो गया सांसे सांसो में उलझने लगी मैंने आहिस्ता से उसके चेहरे को थोड़ा सा ऊपर किया ताकि अच्छे से किस कर सकू
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