Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:49 PM,
#62
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पर अपने पास और भी ठिकाने थे मैं गाँव से पैदल ही निकल पड़ा सोचा था कहा जाये पर पहुँच गया कहि और ही रोने का जी कर रहा था मैं खारी बावड़ी की सीढ़ियों पर बैठ गया आज मुझे कोई डर नहीं लग रहा था क्योंकि शायद मेरे अंदर से जीने की चाह ही खत्म हो गयी थी
वो राणाजी जिनके इंसाफ की लोग मिसाले देते है वो बड़ा भाई जिसने जान से ज्यादा मुझे प्यार किया मेरी तरफ आने वाली हर मुश्किल को अपने सर लिया उनकी हकिकत मेरी नजरो के सामने थी जैसे दुनिया की हर चीज़ से नफरत सी हो गयी थी मुझे
ना जाने कब नींद ने मुझे अपनी पनाह में लिया पर जब मैं जागा तो मेरे ऊपर एक कम्बल पड़ा था और कुछ दूरी पर पूजा बैठी थी
मैं- तू कब आयी
वो- मेरी छोड़ तू बता यही जगह मिली तुझे सोने की 
मैं- पता नहीं कब नींद आ गयी 
वो- मैंने कहा था न कुंदन तू ऐसे अकेला मत घूमा कर खासकर ऐसी जगहों पर 
मैं- तो तू क्यों आयी 
वो- कल दोपहर को तेरा भाई यहाँ आया था एक औरत के साथ तो मैंने सोचा की रात को जाकर देखती हूं कुछ सुराग मिलेगा या नहीं 
मैं- छोड़ उसे और मेरी सुन 
मैंने उसे बताया की मैंने घर छोड़ दिया है और क्या वो मुझे अपने साथ रखेगी
पूजा- ये पूछ कर तूने छोटा कर दिया मुझे मेरा सबकुछ तेरा है तू जब तक चाहे रह मेरे पास 
मैं- तो चल फिर भूख भी लगी है
वो- चल फिर 
पर मैं जानता था कि घर से कोई ना कोई मुझे ढूंढते हुए यहाँ तक जरूर आएगा और मैं पूजा को उनके सामने नहीं लाना चाहता था इसलिए मैं खाना खाकर झोपडी में आ गया इस हिदायत के साथ की वो मुझसे मिलने यहाँ न आये मैं खुद आऊंगा
झोपडी में लेटे हुए मैं सोच रहा था की भाभी ने मुझे क्यों नहीं चुना क्या मैं उनके लिए कोई नहीं या फिर झूठी मान मार्यादा मुझसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी थी लगा की क्या घर छोड़के कोई गलती की पर अब जो कदम उठा लिया उठा लिया 
अब क्या सोचना तभी बाहर गाड़ी की आवाज सुनी तो मैं बाहर आया तो देखा भाई आया था 
भाई- कुंदन घर चल 
मैं- वो मेरा घर नहीं है
वो- सोचके बोल भाई 
मैं- मत बोल मुझे भाई आप ऐसे निकलोगे मैंने कभी सोचा नहीं था 
वो- बात क्या है बता तो सही 
मैं- सब पता चल गया है आपके और बापू सा के बारे में बाहर का तो क्या कहूँ पर अपने घर की बहू अपनी इज्जत के साथ भी घिन्न आती है मुझे

वो- ओह तो ये बात है तो साफ़ बोल न तेरा दिल आ गया है जस्सी पे और तू भी 
मैं- जुबान संभाल कर बोलना भाई 
वो- अब तू सिखाएगा मुझे, देख तुझे अगर जस्सी पसंद है तो तू रख ले उसको मुझे कोई दिक्कत नहीं है उसका भी टाइम पास हो जायेगा पर तू घर चल
मैं- आप अभी चले जाओ यहाँ से और वापिस कभी मत आना 
वो- तो एक दो कौड़ी की औरत के लिए तू मुझे जाने को कह रहा है 
मैं-हां और साथ ही राणाजी को ये सुचना दे देना की मुझे उस घर से कुछ नहीं चाहिए एक सुई भी नहीं और आपसे एक गुजारिश है उस घर में मेरी भाभी को सम्मान देना 
भाई- एक बार फिर सोच ले
मैं- सोच लिया परख लिया समझ लिया 
कुछ मिनट बाद मैं भाई की गाडी को जाते हुए देख रहा था सच कहूं तो हर कोई मतलबी लगने लगा था मुझे उन लोगो से ज्यादा गुस्सा अपने आप से था 
रात को पूजा अपने साथ बिस्तर और खाना लायी खाने के बाद हम बाते करने लगे
वो- कुंदन तूने जब फैसला ले लिया है तो अगर तू कहे तो मैं मकान का काम चलवा दू 
मैं- रहने दे बस कुछ समय की बात है फिर तुझे तेरी हवेली में ही रहना है 
वो- ये झोपडी महलो से ज्यादा भाये मुझे
वो-ये झोपडी महलो से ज्यादा भाये मुझे
मैं बस मुस्कुरा दिया वो मेरे और पास आ गयी थी मैं नहीं जानता था की उसका और मेरा रिश्ता क्या था कौन लगती थी वो मेरी पर इतना जरूर था की मेरे लिए अगर कही सुकून था तो बस उसके कदमो में
मैं- पूजा मुझे लगता है हमे पद्मिनी की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहिए
वो- तुम कैसे जानते हो उन्हें
मैं- जैसे तुम पर तुम तो कुछ बताओगी नहीं है ना
वो- मेरे पास कुछ भी बताने को नहीं सिवाय इसके की जो हु जैसी हु तुम्हारे सामने हु
मैं- बस इसी तरह मेरे सवाल पर रोक लग जाती है 
वो- तुम्हे किस जवाब की आस है 
मैं- मैं बस इतना जानना चाहता हु की आखिर वो क्या वजह थी जिससे दो भाई से भी बढ़कर दोस्त दुश्मन बन गए
वो- इसका जवाब तुम्हारे पिता के पास है कुंदन 
मैं- ऐसा लगता है क़ी मैं पागल हो रहा हु 
वो- तुम खुद पर इतना दवाब मत डालो सच कहूं तो तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं हु अगर मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में न आती तो तुम इन झमेलो में नहीं पड़ते
मैं- पर तुम्हे तो आना ही था तुम न आती तो मुझे कैसे पता लगता की ज़िंदगी होती कैसी है
वो- कुंदन तुम कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हो मेरी 
मैं- सरिता देवी तुम्हारी माँ नहीं थी ना 
वो- नहीं 
मैं- तो फिर झूठ क्यों बोला 
वो- जन्म देने वाला बड़ा होता है या फिर पालने वाला 
मैं- समझ गया 
वो- नहीं समझे 
मैं- समझाओ फिर 
वो- गौर से देखो मेरी आँखों में क्या दीखता है 
मैंने कुछ पल उसकी आँखों में देखा 
मैं- सच में 
वो- हाँ 
मैं- तो तुम खारी बावड़ी के बारे में पहले से जानती थी ना
वो- नहीं 
मैं- तो कल रात तुम इस आस में खारी बावड़ी गयी थी की तुम उन्हें देख सको क्योंकि तुमने सोचा की अगर वो मुझे दिखी तो तुम्हे भी दिखेंगी
वो- नहीं, मेरे जाने का कारन मैंने बताया न तुम्हे
मैं- मैं तुम्हारे मामाँ के घर गया था शादी थी उनके यहाँ पर तुम क्यों नहीं गयी
वो- बरसो से आना जाना नहीं है इसलिए
मैं- जिधर भी जाओ हर रिश्ता उलझा पड़ा है हर डोर टूटी पड़ी है
वो- सो जाओ अब 
मैं- चल दूसरी बाते करते है 
वो- दूसरी कौन सी 
मैं- एक बात बता जब तुझे छूता हु तो तुझे कैसा लगता है 
वो- अच्छा लगता है
मैं- और यहाँ पे
मैंने सलवार के ऊपर से चूत को सहलाना शुरू किया 
वो- अभी नहीं कुंदन मुझे सच में बहुत नींद आ रही है 

मैं- चल फिर सो जा
तो दो चार दिन गुजर गए ऐसे ही पर घर से कोई नहीं आया पर उस दोपहर जब मैं जमीन से पत्थर चुन रहा था तो एक गाड़ी मेरी और आते हुए दिखी मैं अपना काम करता रहा गाडी रुकने पे देखा भाभी आयी थी 
मैं- ठकुराइन जसप्रीत को प्रणाम 
वो- एक थप्पड़ मारूंगी न तो होश में आ जाओगे
मैं- होश तो अब जाके आया है 
वो- कभी ये नहीं सोचा की तुम्हारे बिना मेरा क्या होगा उस घर में तुम ही तो मेरा हौंसला हो
मैं- आपसे कहा था न की चुन लो किसी एक को
वो-तुम मेरी मज़बूरी क्यों नहीं समझ्ते हो
मैं- आप भी कहा समझते हो
वो- तो क्या करूँ तुम्हारी तरह घर छोड़ आउ ताकि गांव बस्ती में तमाम बातें चले लोग क्या क्या कहेंगे कि देवर के साथ भाग गयी 
मैं- हर उस जुबान को काट दूंगा जो मेरी भाभी के बारे में ऐसा बोलेगी
वो- अगर इस काबिल होते तो घर में रहकर ही कुछ ऐसा करते की भाभी का मान बढ़ता
मैं- अब उस घर नहीं आऊंगा कभी
भाभी- तो अड़ गए हो जिद पर 
मैं- कैसी जिद भाभी
वो- तुम्हारी यही बात सबसे बुरी लगती है हमे तुम एक बार अड़ जाओ तो फिर सब बेकार है 
मैं- आप चाहे जान मांग लो पर उस घर चलने को अब ना कहना 
वो- अब तुमने सोच ही लिया है की हम यहाँ से खाली हाथ जाए तो ये ही सही पर ये हमेशा याद रखना उस घर में कोई अपना हमेशा तुम्हारा इंतज़ार करेगा तुम्हारे लिये कुछ पैसे लाये है उम्मीद है मना नहीं करोगे बैंक में संदेसा भिजवा देंगे जब भी जितने भी पैसो की जरुरत हो ले आना और ये मत समझना की बात उस घर की बहू कह रही है तुम्हारी भाभी कह रही है
भाभी के जाने के बाद मैं बस सोचता रहा की आगे क्या किया जाये पढाई लगभग छूट सी गयी थीं ज्यादातर समय उस जमीन पर ही गुजरता सावन जा चूका था मौसम बदल रहा था पर इतने दिन बाद भी राणाजी एक बार भी इधर नहीं आये थे और आते भी किस मुह से
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:49 PM

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