Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:48 PM,
#59
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी ने करवट ली जिस से उनकी पीठ सट गयी मेरे सीने से और उनके नितम्ब मेरे तने हुए लण्ड पर आ गए मैंने हाथ उनकी जांघ से हटा कर उनकी चूची पर रख दिया और उसको सहलाते हुए बोला
मैं- आपको कैसे पता 
वो- अंदाजा लगाया मैंने 
मैं- जब आप सब जानती है तो फिर बता क्यों नहीं देती 
वो- कहा न मैं ज्यादा नहीं जानती वैसे भी ये बाते 12-13 साल पुरानी है और फिर क्या फायदा इस जिज्ञासा का जिसमे नफरत ही मिलने है तुम्हारे सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है उसे जियो उसे खूबसूरत बनाओ
मैंने भाभी की ब्रा को खोल दिया अब वो ऊपर से नंगी थी मेरी बाँहों में मुझ पर उत्तेजना छाने लगी थी मैंने हौले से भाभी के कंधे को चूमा 
वो- कुंदन तुम्हे एक सलाह दे रहे है रिश्तो का मान करना पर इतना भी ना की रिश्ते ही ना रहे 
भाभी की ये बात सुनकर मैंने उनके उभारो से अपना हाथ हटा लिया और उस कमरे से बाहर निकल गया कुछ लोग सो रहे थे कुछ जाग रहे थे शादी जो थी मैंने एक चाय मंगवाई और हवेली के बाहर उस बड़े से बगीचे में एक बेंच पर बैठ गया 
हवा में हलकी सी ठण्ड थी मैं अपने विचारों में खोया था चाय की चुस्कियों के साथ मन में दोहरा द्वन्द था भाभी की वजह से मैं हद से ज्यादा गर्म हो चूका था और दिमाग में अर्जुन सिंह घूम रहे थे
आखिर ऐसे कौन सा राज़ था जिसे सब अपने अपने तरीके से छुपा रहे थे पूजा ने तो कसम दे रखी थी पर सवाल ये था की वो चाहती तो वो पद्मिनी के बारे में मुझे बता सकती थी
मेरे दिमाग में भाभी की कही वो बात गूंज रही थी ठाकुरो की रगो में खून के साथ हवस भी दौड़ती है अब भाभी ने जरा लिफ्ट क्या दी मैं कहा तक पहुच गया था कभी कभी तो नफरत सी होती थी खुद से 
मैं अपने विचारों में डूबा हुआ था की तभी मैंने एक औरत को बगीचे की दूसरी तरफ जहां घने पेड़ थे वहां जाते हुए देखा तो सबसे पहले मेरे दिमाग में बस ये ही बात आई की इतनी रात ये उस अँधेरी जगह में क्यों जा रही है
कुछ सोच कर मैं उसके पीछे हो लिया दबे पांव उस तरफ अँधेरा इतना था की पहली नजर में कुछ दिखे ही नहीं और तभी वो फुसफुसाते हुए बोली- कितनी देर लगादी आओ अब जल्दी से कर लो 
मैं कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसने अपनी साडी को कमर तक उठाया और अपने हाथ घुटनो पर रखते हुए झुक गयी वैसे तो मुझे भी चूत की जरुरत महसूस हो रही थी इस समय पर ये थी कौन
वो- क्या सोचने लगे
मैंने अपने हाथ उसके कूल्हों पर रखे और फिर धीरे से उनको सहलाने लगा मसलने लगा मैंने अपना हथियार बाहर निकाला और उस पर थोड़ा सा थूक लगाया उस औरत ने जैसे ही मेरे हथियार को चूत के मुहाने पर महसूस किया वो थोड़ा सा और झुक गयी
मैंने उसकी कमर को थामा और लंड को अंदर की ओर ठेल दिया वो हल्का सा कसमसाई और मैंने बाकी बचा काम पूरा कर दिया पर जैसे ही लण्ड अंदर गया वो जान गयी की मैं वो नहीं जिससे चुदने वो आयी थी 
तो उसने आगे होने की कोशिश की पर मैंने उसकी कमर पर दवाब डाला हुआ था मैंने लण्ड को हल्का सा बाहर खींचा और फिर से अंदर सरका दिया 
वो- कौन हो तुम 
मैं- फर्क पड़ता है 
वो- छोड़ो मुझे,
मैं- जो काम करवाने आयी हो वो तो करवालो पहले
वो- पर तुम कौन 
मैं- चुदने आयी हो चुदाई का मजा लो क्या हम क्या तुम 
मेरी बात सुनकर उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया और मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ानी शुरू की धीरे धीरे वो भी मेरा साथ देने लगी अपनी आहो पर काबू करते हुए 
वैसे भी जब एक बार औरत की चूत में लंड सेट हो जाये तो उसका मजा दुगना हो जाता है कुछ देर मैंने उसे झुकाये रखा और फिर उसे खड़ी कर दिया और उसको चूमने लगा उसने अपने होंठ मेरे लिए खोल दिए 
मैंने अपना हाथ उसके ब्लाउज़ को खोलने के लिए रखा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया शायद वो कपडे नहीं उतारना चाहती थी तो मैं ऊपर से ही उसकी छाती दबाने लगा वो और मस्ताने लगी तो मैंने उसे साड़ी ऊपर करने को कहा 
और खड़े खड़े ही उसकी चुदाई करने लगा मैं लगातार तेज तेज धक्के लगाते हुए उसके पूरे चेहरे को चूमे जा रहा था अब वो भी खुल कर मेरा साथ दे रही थी पर ये एक जल्दबाज़ी वाली चुदाई थी जिसे जल्दी ही ख़त्म हो जाना था 
चुदाई के बाद उसने अपनी साडी को सही किया और जाने लगी मैंने रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की न उसने मुड़ कर देखा मैं वापिस आकर उसी बेंच पर बैठ गया और एक बार फिर से सोचने लगा 

इस बार मैं राणाजी के बारे में सोच रहा था मैं खुद को उनकी जगह रख के देखने लगा की कैसे जवान होते ही चारो तरफ औरते आ गयी तो जब राणाजी अपनी जवानी में होंगे क्या बात होगी परंतु साथ ही वो मेरे पिता भी थे तो उस रिश्ते की इज्जत भी रखनी थी मुझे
मैं अपने भाई को कैसा समझता था और चाची के अनुसार वो कैसा था मेरे दिमाग में एक बात आई की शायद इन्दर ने कुछ ऐसा किया हो की दोस्ती दुश्मनी में बदल गया हो अब समस्या ये थी शक के घेरे में सब थे पर कोई कड़ी नहीं जुड़ रही थी जिससे किसी सिरे पर पंहुचा जा सके
हर बात राणाजी पर आकर ख़तम हो जाती थी अब ये पद्मिनी और बीच में आ गयी थी खैर पद्मिनी से याद आया ये ठाकुर अर्जुन सिंह की ससुराल थी मतलब पूजा का ननिहाल ओह तेरी! ये बात पहले क्यों नहीं सोची मैंने
पूजा क्यों नहीं आयी शादी में चलो माना की गाँव में उसका पंगा चल रहा परिवार से पर ननिहाल से क्या बात हुई पर एक पेंच और फंसा हुआ था यहाँ पर और वो ये था की पूजा के अनुसार उसकी माँ सरिता देवी थी पर लोगो के अनुसार अर्जुन सिंह की पत्नी पद्मिनी थी
तो क्या अर्जुन सिंह ने दो शादिया की थी पर लोगो ने बताया की एक विवाह किया था तो बस ये पेंच फंस गया था अगर ये बात पकड़ में आ जाये तो बात उलझे इतना तो मैं समझ गया था की ये ये ताश के पत्तो का महल था जो हवा के तेज झोंके से भरभरा कर गिर जायेगा 
फिर मैंने सोचा की राणाजी ऐसे थे तो उनका मित्र भी वैसा ही होगा मतलब इस बात की सम्भावना हो सकती थी की ऐसी की औरत हो जो दोनों की सेटिंग या रखैल टाइप हो अगर उसका पता मिले तो एक राह दिख सकती है
रात बहुत बीत चुकी थी तो मैंने सोना ही मुनासिब समझा और आकर भाभी की बगल में पड़ गया सुबह जरा देर से आँख खुली अलसाते हुए मैं तैयार हुआ आज शादी का दिन था पर मैं सोच रहा था कि अर्जुन गढ़ से कौन आता है पर वहाँ से कोई नहीं आया 
पता चला की अब दोनों घरानों के बीच कोई संबंध नहीं रहा ओह तो इस वजह से पूजा नहीं आयी होगी इस बीच दो चार लड़कियों से नैना दो चार से हुए पर भाभी आस पास ही थी इसलिए मैंने ज्यादा उड़ान नहीं भरी 
पूरी हवेली में धूम धाम मची हुई थी मेहमानों से भरा थी जगह बारात आने में थोड़ी ही देर थी चारो तरफ जैसे खुशिया बिखर गयी थी मैं एक कोने में कुर्सी पे बैठा हुआ था की एक करीब42-43 साल की औरत मेरे पास आकर बैठ गयी 

औरत- तुम ठाकुर हुकुम सिंह के बेटे हो न 
मैं- जी हां पर माफ़ कीजिये मैंने आपको पहचाना नहीं वो क्या है ना की मैं अपनी भाभी के साथ आया हु उनकी सहेली की बहन की शादी है
औरत- कोई बात नहीं वैसे मेरा नाम कामिनी है, कामिनी ठकुराइन मैं अनपरा गाँव से हु
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