Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:47 PM,
#53
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
चाची- क्या हुआ कुंदन
मैं- चाची मुझे तुमसे कुछ बात करनी है और मैं चाहूंगा की तुम सच बोलना 
वो- तुझसे झूठ बोला है कभी 
मैं- तुझे मेरी सौगंध अगर तू झूठ बोली तो कुंदन का मरा मुह देखेगी
चाची- क्या हुआ तुझे बात क्या है साफ़ बोल
मैं- मेरे अलावा तुम्हारे किस किस से सम्बन्ध है 
वो- जब तुम्हे पता है तो पूछते क्यों हो
मैं- तू पहली औरत थी जिसने मुझे मर्द होने का अहसास करवाया तेरा अहसान है मुझ पर और मैं तेरी इज्जत भी बहुत करता हु क्योंकि तू चाची के साथ साथ और भी कुछ है मेरे लिए और अगर तूने मुझे कभी एक पल भी अपना माना हो तो सब बता मुझे
वो- अपना मानती हूं इसीलिये तेरे साथ सोती हु मैं तुझे सब सच बता दूंगी पर क्या तू सच सुन और बर्दाश्त कर पायेगा तेरे आस पास जो ये नकली दुनिया है ये एक मिनट में गिर जायेगी फिर न कहना की सच बताया ही क्यों
मैं- मैं सुनना चाहूंगा
वो- तो फिर सुन तू ही फैसला लेना तेरी चाची सही है या गलत
चाची-तो बता कहा से शुरू करू

मैं- आपके और भाई सा के बीच ये सब कैसे शुरू हुआ
वो- मेरे और इन्दर के बीच ये सब कैसे शुरू हुआ उससे पहले तू ये जान ले की वो क्या वजह थी की मुझे इन्दर को देनी पड़ी
मैं- क्या भाई ने जबर्दस्ती की आपके साथ 
वो- बताती हु, बात तब की है जब तुम्हारे दादा ने एक ब्याह में मुझे देखा उन्होंने ही मेरा रिश्ता तुम्हारे चाचा से करवाया था सब सही था मैं ब्याह कर इधर आ गयी कुछ महीने ठीक गुजरे पर तुम्हारे चाचा की माली हालत ठीक नहीं थी 
वो बहुत कोशिश करते थे पर बचत होती नहीं थी राणाजी उनके खास दोस्त थे और अक्सर वो हमारी मदद करते थे धीरे धीरे वो घर आने लगे वैसे दोनों घरो में दुरी कितनी ही है पर तब हमारे पक्के मकान नहीं थी एक दिन मैं आंगन में नाहा रही थी की मेरी नजर तुम्हारी छत पर पड़ी तो मैंने देखा की राणाजी मुझे नहाती हुई देख रहे है
राणाजी के बारे में ये सुनकर बहुत अजीब लगा मुझे पर अभी पूरी कहानी मालूम करनी थी तो सुनता रहा
चाची- मुझे गुस्सा आया पर फिर सोचा की गलती मेरी ही थी जो ऐसे बिना चारो तरफ देखे नहाने लगी बात आई गयी हो गयी पर मैंने गौर किया जब भी मौका लगता राणाजी की नजरें बस मुझ पर ही टिकी रहती कभी कभी मुझे अच्छा भी लगता पर वो मेरे जेठ लगते थे तो लाज भी आती
दिन गुजर रहे थे तुम्हारे चाचा का कोई भी काम चलता ही नहीं था वो तो राणाजी की वजह से किसी चीज़ की दिक्कत नहीं थी तो मैं भी उनकी तरफ झुकने लगी या यु कहु की उनके अहसानो तले दबने लागी
और फिर आया होली का दिन उस सुबह से ही राणाजी और तुम्हारे चाचा ने खूब शराब पी हुई थी और पूरा दिन रंग खेला शाम हो गयी थी यहाँ मीट मुर्गे की दावत हो रही थी और दौर चला शराब का तुम्हारे चाचा ने हद से ज्यादा पी ली थी और फिर बेहोश हो कर लुढ़क गया

पर राणाजी पीते रहे और फिर वो उठे मैं सोची जा रहे है पर उन्होंने कुण्डी लगा दी और मेरे पास आकर बोले- बहु हमारे साथ नहीं खेलोगी होली और मेरा हाथ पकड़ लिया मैंने छुडाने की कोशिश की पर उन्होंने कहा की अगर मैं उनकी बात मान लेती हूं तो वो इस घर को महल बना देंगे और भी कई वादे किए उन्होंने हम तो पहले ही उनके बोझ तले दबे थे 
पर इससे पहले मैं कुछ जवाब दे पाती वो मुझे बिस्तर पर ले आये जब सुबह वो यहाँ से गए तो मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी और फिर तुम तो जानते हो की एक बार जब लहू मुह लग जाये तो फिर क्या होता है और फिर राणाजी के आगे मेरी बिसात भी क्या थी उन्होंने हमारी ज़िंदगी ही बदल दी थी तो मैंने भी समझौता कर लिया 
बच्चे हो गए ज़िन्दगी आगे चल पडी थी पर राणाजी का जब दिल करता नीचे लिटा लेते थे फिर उन्होंने कुछ जुगाड़ करवा कर तुम्हारे चाचा को विदेश भेज दिया ताकी हमारे बीच कोई न आ सक़े इधर इन्दर भी जवान हो रहा था तुमसे कुछ कम होगा उस समय उम्र में पर समझदार था
पर तभी एक हादसा हो गया जिस से राणाजी की ज़िंदगी बहुत बदल गयी उनका वो ठाकुरो वाला अहंकार टूट कर बिखर गया उन्होंने अपने हर बुरे काम से तौबा कर ली ठाकुर हुकुम सिंह बस राणाजी बन कर रह गए उन्होंने यहाँ तक की मुझसे भी दुरी बना ली
मैं जानती हूं की तुम्हे बुरा भी लगेगा अपने पिता के बारे में ये सब जानकर अपने घर के बारे में ये छुपी बाते जानकर पर अब जब बात खुल ही रही है तो पूरी तरह से खुले वैसे भी हमाम में हम सब नंगे ही है 
मेरा और राणाजी का अवैध संबंध ख़तम ही हो गए थे मैं भी खुश थी की चलो आज नहीं तो कल ये सब ख़त्म होना ही था पर फिर एक दिन राणाजी ने मुझे खारी बावड़ी के पास बुलाया अब उनका कहा मैं कैसे टालती तो मैं गयी उस दिन वो बहुत संजीदा से थे
उन्होंने कहा की वो बहुत अकेला महसूस कर रहे है और बस एक आखिरी बार मेरे साथ करना चाहते है तो वो मुझे वहाँ बने एक पुराने कमरे में ले गए और फूटी किस्मत की न जाने कैसे इन्दर ने मुझे राणाजी की बाँहों में देख लिया
उस शाम जब मैं वहाँ से अपने खेत पर आयी तो इंदर भी वहाँ आ गया और उसने सीधे सीधे ही मुझसे बात की और कहा की मैं उसे भी दू तो मुझे उसके साथ हमबिस्तर होना पड़ा और फिर सिलसिला बाप के बाद बेटे के साथ चल पड़ा पर फिर उसकी नौकरी लग गयी जब वो छुट्टी आता तब करता
तुम्हारे चाचा तीन चार साल में कुछ दिनो के लिए आते पर मैं खुश थी क्योंकि मेरे जिस्म की प्यास बुझती रहती थी और फिर उस दिन मैंने खेत में तुमको पकड़ा तो मेरी सोयी इच्छा भड़क उठी और फिर तुमसे भी सम्बन्ध बन गए पर कुंदन चाहे हमारे बीच जिस्मानी रिश्ता क्यों न हो मैंने तुझे अपने बेटे जैसा ही माना है 
ये सब जानने के बाद तू चाहे तो मुझसे नफ़रत करे पर मेरा प्यार तेरे लिए सच्चा है 
मैं- नफरत नहीं चाची बस सोच रहा हु घरवालो ने और क्या क्या राज़ छुपा रखे है तुमसे नाराज नहीं हूं क्योंकि मैं जानता हूं ठाकुरो की हवस उनकी रगो में खून के साथ दौड़ती है पर मैं ये जानना चाहता हु की भाई उस समय वहाँ बावड़ी पर क्या कर रहा था

चाची-इस बारे में मैं पक्का तो कुछ नहीं कह सकती पर वो जगह बरसो से सुनसान है बियाबान है तो जिस तरह से राणाजी ने मुझे बुलाया था ऐसे कोई भी उपयोग कर सकता है तो क्या पता इन्दर भी किसी लड़की को लाया हो 
मैं-ह्म्म्म, पर आपने कहा क़ी राणाजी आपको कमरे में ले गए थे तो ताला उन्होंने ही खोला था 
वो- हाँ,
मैं-चाची वो बावड़ी तो अर्जुनगढ़ वालो क़ी है तो राणाजी के पास कमरे की चाबी कहा से आयी
चाची- तेरे इस सवाल का जवाब देना मेरे लिए जरुरी नहीं है पर फिर भी बता दू की एक समय था जब वहां के ठाकुर अर्जुन सिंह जी और राणाजी गहरे दोस्त थे दोनो में भाइयो सा प्यार था लोग उनकी दोस्ती की मिसाले देते थे तो कोई ताज्जुब नहीं अगर राणाजी के पास चाबी हो
मैं- बस एक सवाल और पूछुंगा अगर उन दोनों में दोस्ती थी तो फिर लाल मंदिर में दोनों एक दूसरे के सामने क्यों खड़े हो गयी
चाची ने एक गहरी सांस ली और बोली- इस सवाल का जवाब बस राणाजी के पास है
चाची- मैं ये भी जानती हूं कि तुझे जस्सी ने ये सब बताया होगा और साथ ही तुझे मुझसे दूर रहने को कहा होगा क्योंकि उसे सब पता चल गया था पर मैं जैसी भी हु कुंदन तुझसे कभी दगा नहीं करुँगी तू आज़मा लेना चाहें

मैं- मुझे अपनी जान से ज्यादा आप पर भरोसा है चाची पर मुझे अभी जाना होगा पर मैं जल्दी ही आऊंगा तुम्हारे पास

मैंने अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिये और कुछ देर तक चूमता रहा फिर मैं अपने कमरे में आ गया मुझे इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं थी की मेरे पिता और भाई का चरित्र कैसा था मुझे परवाह थी पूजा की जो ये बात पहले से ही जानती थी की मैं उसके पिता के कातिल का बेटा हु पर फिर भी उसने मुझसे नफरत नहीं की

मेरा दिमाग हद से ज्यादा ख़राब होने लगा मैंने चुपके से राणाजी की अलमारी से पिस्टल निकाली और अपनी गाड़ी लेकर सीधा पूजा के घर की तरफ हो लिया भला समय कितना ही लग्न था जब उसके घर में पंहुचा तो देखा की वहां पर ताला लगा है मैंने सोचा क्या पता झोपडी में हो पर वो वहाँ पर भी नहीं थी

एक तो मेरा दिमाग हद से ज्यादा खराब हुआ पड़ा था एक पूजा न जाने कहा थी

तभी मुझे कुछ ख्याल आया और मैंने गाड़ी उस तरफ घुमाई जहा वो मुझे पहली बार मिली थी पर वो उस पीपल के पेड़ के पास भी नहीं थी पूजा गयी तो कहा गयी मेरा गुस्सा बुरी तरह से भड़क रहा था मुझे बस पूजा की चाहत थी इस समय और तभी मैं जान गया अगर वो यहाँ नहीं है तो कहा होगी

मैंने गाड़ी घुमा दी और जल्दी ही गाड़ी अर्जुन गढ़ की और धूल उड़ाते हुए चली जा रही थी रात के अँधेरे में उन कच्चे रास्तो पर तेज रफ़्तार गाड़ी जिसकी मंजिल अभी थोड़ी दूर थी मैंने उसी बंद पड़े डाकखाने को पार करते हुए गांव से बाहर जाने वाले मोड़ को पार किया और मेरा अंदाजा बिलकुल सही था 
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:47 PM

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