Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:36 PM,
#33
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरा रुदन जब ख़तम हुआ तब तक उसके शरीर के पांच टुकड़े हो चुके थे मैंने अपनी चुनौती पूरी की मैंने देखा मेरे गाँव के लोग जय जय कार कर रहे थे मैंने राणाजी को अपनी और आते देखा अब मुझे अंगार का सर माता के दरबार में चढ़ाना था पर मैं अगर कुछ चाहता था तो सिर्फ पूजा से मिलना जैसे तैसे मैंने वो रस्म निभाई और फिर एक मटकी में अंगार का जितना खून इकठ्ठा कर सकता था कर लिया 

मैं अपने भाई के पास गया और उस से गाड़ी की चाबी मांगी उसके चेहरे पर हज़ार सवाल थे पर उसने चाभी मेरे हाथ में रख दी मैंने गाड़ी चालू की और अपने दर्द से जूझते हुए अपपनी बेहोश होती आँखों और खोते होश को सँभालते हुए गाड़ी तेजी से भागा दी मेरी छाती का ज़क्म खुला था जिसमे से अभी भी खून रिस रहा था सर घूम रहा था पुरे बदन में दर्द था पता नहीं ये कैसा जीवट था बस पहुच गया मैं उसके दरवाजे पर 

“पूजा पूजा ” मैंने चिल्लाते हुए उसका दरवाजा पीटना शुरू किया

जैसे ही दरवाजा खुला मैं उसकी बाहों में झूल गया 

“कुंदन ” वो चीखी और मुझे अपनी बाहों में लिए लिए ही बैठ गयी उसकी आँखों से आंसू झर झर के गिरने लगे 

मैं- पूजा मैंने अपनी कसम निभा दी देख मैं लौट आया हु और साथ उस नीच का खून भी लाया हु तेरे पैर धोने को 

वो- कुंदन तू बहुत घायल है तुझे इलाज की जरुरत है तू रुक मैं करती हु कुछ , करती हु कुछ 

मैं- कुछ नहीं होगा पगली जब तू साथ है तो भला मुझे क्या हो सकता है मैं कहा गिर सकता हु जब तू है मुझे थामने के लिए पगली 

पूजा की आँखों से आंसू बाहे जा रहे थे वो जोर जोर से रोये जा रही थी 

मैं- रोती क्यों है देख मै आ गया हु न तेरे पास इर क्यों रोती है 

वो- खून, बहुत खून बह रहा है कुंदन 

मैं- पानी पिला दे थोडा पूजा प्यास लगी है
वो- लाती हु 

वो तेजी से भागी अन्दर मैंने एक नजर खुद को देखा और फिर उसने प्याला मेरे होंठो से अलग दिया उसके हाथो से कुछ घूंट पानी पीकर लगा की जैसी बरसो की प्यास बुझ गयी हो जैसे किसी प्यासी जमीन पर घनघोर बारिश बरस पड़ी हो 

वो- एक मिनट मैं अभी आई 

वो दौड़ कर अन्दर गयी और फिर आई तो उसके हाथो में कुछ लेप सा था जो वो मेरे सीने पर मलने लगी और जैसे मेरा सब कुछ जलने लगा धुआ सा उठने लगा पर वो उसे मेरे बदन पर लगाती रही बेशक जलन हुई पर उसके लेप का असर भी हुआ कुछ पलो के लिए मैंने आँखे मूंद ली वो मुझे सहलाती रही मैं उसकी गोद में लेटा रहा 

फिर मुझे अपने गालो पर कुछ गीला सा लगा मैंने देखा उसके आंसू थे 

मैं- रोती क्यों है पगली 

वो- कहा रो रही हु 

मैं- फिर आंसू क्यों 

वो- आँख में कुछ चला सा गया होगा 

मैं सहारा लेते हुए उठा और उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और बोला- पूजा अभी मुझे जाना होगा मैं बाद में मिलूँगा 

वो- तेरी हालत ठीक नहीं है मैं चलती हु साथ 

मैं- नहीं रे, तेरा कुंदन इतना भी कमजोर नहीं लाल मंदिर से सीधा तेरे पास आया हु पर अभी घर भी जाना होगा एक और जरुरी काम है जो करना है पर उस से पहले तू यहाँ आ 

मैंने वो मटकी ली और उसे दिखत हुए बोला देख इसमें उ नीच क खून है जिस से मैं तेरे पैर धोऊंगा अपने पैर आगे कर 

अपने आपको सँभालते हुए मैंने पूजा के पैरो को धोया और फिर उसे हैरान परेशान छोड़ कर मैं गाव की तरफ मुड गया पर मेरी हालत भी ठीक नहीं थी पल पल आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था और तभी जैसे उक्काब आई और खून की उलटी गाड़ी में ही गिरने लगी लगा की जैसे अब प्राण निकले ही गाँव पता नहीं दूर था या पास था होश जैसे गुम सा ही था अँधेरा जैसे निगलने ही वाला था और तभी पता नहीं भाभी का चेहरा नजर आने लगा 

जो अपने देवर का इंतज़ार कर रही थी की वो आकर उसका निर्जला उपवास तोड़ेगा बड़ी मुश्किल से अपन आप पर काबू पाया ये मैं जानता हु या बस मेरा खुदा की कैसे मैं पहुच पाया पता नहीं साला रास्ता लम्बा हो गया था या फिर हमारी ही हिम्मत टूट गयी थी बस फिर इतना ही याद रहा की गाडी जब रुकी तो घर के बाहर भीड़ लगी थी और भाभी आरती का थाल लिए मेरी राह देख रही थी 

बस उसके बाद कुछ याद ना रहा इसके सिवा की भाभी की बाहों में झूल गया था जब आँखे खुली तो खुद को हॉस्पिटल में पाया बदन पर जगह जगह पट्टिया बंधी थी कुछ छोटी कुछ बड़ी थोडा बहुत हिलने की कोशिश की तेज दर्द हुआ फिर मेरी नजर भाभी पर पड़ी जो अभी अभी आ रही थी 

भाभी- कुंदन ओह , होश आ गया तुम्हे 

मैं- भाभी 

वो- कुछ मत बोलो बस लेटे रहे मैं अभी डॉक्टर को बुलाती हु 

फिर कुछ देर बाद डॉक्टर के साथ पूरा परिवार ही आ गया ऐसा लगा मुझे डॉक्टर ने पता नहीं क्या चेक किया और क्या बताया पर अपने को करीब हफ्ता भर उधर ही रुकना पड़ गया सब लोग पल पल मेरे पास ही रहते पर मैं बस पूजा को ही देखना चाहता था अपने पास मुझे अपने से ज्यादा उसकी फ़िक्र थी पता नहीं क्यों उससे इतना लगाव हो गया था की जैसे मेरी हर साँस बस पूजा का नाम ही सुमरती थी 

डॉक्टर ने बताया था की कुछ चोट ज्यादा समय लेंगी ठीक होने में और सर पर जो घाव लगा उसकी वजह से कमजोरी भी लगेगी पर खाने- पीने और दवाइयों से रिकवरी हो जाएगी पर कब हफ्ते भर से यहाँ पड़े है जिंदा लाश की तरह वैसे तो सब था यहाँ पर पर अब कोफ़्त होने लगी थी उस दिन मैंने आखिर कह ही दिया

मैं- हटाओ यार ये ताम-झाम तुम्हारे जाने दो हमे बाकि अब घर पर ठीक हो लेंगे 

डॉक्टर- पर अभी आपको और रुकना पड़ेगा 

मैं- समझो आप अब मैं बेहतर हु वैसे भी बस पट्टिया ही तो बदलनी है वो तो घर पर भी बदली जा सकती है मुझे बस जाना है 

तो आखिर मैंने कुछ हिदायतों के साथ अपनी बात मनवा ही ली और घर आ गया , यहाँ आकर बहुत सुकून मिला लगा की मैं ठीक ही हो गया हु पर कुछ पाबंदिया थी जबकि दिल अपना उड़ना चाहता था असमान में मिलना चाहता था पूजा से और छज्जे वाली की भी बहुत याद आने लगी थी पर भाभी एक पल भी अकेला नहीं छोडती थी , कोई ना कोई हर पल साथ ही रहता पर अब मन बेकाबू होने लगा था

तो उस दोपहर पहन कर नीली शर्ट आधी बाजु वाली और बालो को ठीक से बा कर हमने भी सोच लिया की आज पूजा से मिलना ही है और बस अपने आप में मुस्कुराते हुए कमरे से निकल रहे थे की दरवाजे पर भाभी सा से टकरा गए 

भाभी- कहा जा रहे हो 

मैं- जी बस सोचा थोडा बाहर घूम लू 

वो- तबियत इतनी भी ठीक नहीं हुई अभी 

मैं- अभी मन नहीं लगता भाभी मैं जल्दी ही आ जाऊंगा 

वो- उफ्फ्फ ये बेताबी तुम्हारी काश कोई इतना हमारे लिए भी तड़प जाये 

मैं- भाभी आपको तो टांग खीचने का बहाना चाहिए बस चलो आप नहीं चाहती तो नहीं जाता 

वो- वैसे भी नहीं जा पाते, राणाजी और तुम्हारे भाई निचे ही है 

मैं- कोई बात नहीं 

मैं वापिस अपने पलंग पर बैठ गया भाभी सामने कुर्सी पर बैठ गयी और बोली- वैसे इतनी बेताबी किस से मिलने की है तुम्हे जो बार बार ये बेकरारी तुम्हारे चेहरे पर आ जाती है 

मैं- कितनी बार बताऊ भाभी 

वो- जब तक तुम सच नहीं बता देते की कौन है वो जो हमारे देवर के लिए इतनी महत्वपूर्ण हो गयी है 

मैं- इतना भी शक ना करो भाभी 

वो- शक क्या देवर जी आप कहो तो सही हम तो सबूत पेश करदे याद है हमने कहा था की जिस दिन ठकुराईन जसप्रीत सवाल करने पे आएगी जवाब नहीं सुझेंगे 

मैंने भाभी के चेहरे पर वो ही रहस्यमयी शरारती मुस्कान देखि और आज भी उन्होंने वो ही बात बोली थी 

मैं- आज आप कर ही लो सवाल जवाब भाभी 

वो- देख लो फिर ना कहना 

मैं- नहीं कहूँगा 

वो- तो फिर बताओ क्या चल रहा है दरअसल मेरे मन में दो बाते है एक पर मुझे पूरा विश्वास है और दूसरी को मेरा मन नहीं मानता पर सच छुपता भी तो नहीं 

मैं- पहेलियाँ ना बुझाओ भाभी आप ऐसे ही जान ले लो मेरी 

वो- ना जी ना जान लेके हम क्या करेंगे 

मैं- तो फिर क्या बात 

वो-ठीक है मुद्दे पर आते है अब प्रेम-प्रसंग तो तुम कबुलोगे नहीं तो मैं दूसरी बात करती हु और मैं उम्मीद करुँगी की तुम झूठ नहीं बोलो और ना ही कोई बहाना मारो 

मैंने हाँ में सर हिलाया 

वो- तू तुम्हारे और चाची के बीच क्या सम्बन्ध है 
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:36 PM

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