Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:35 PM,
#30
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
अब मुझे तो मदद की जरुरत थी ही चाहे वो कैसे भी आये कोई भी करे जितनी मदद हो उतनी अच्छी और फिर आगे आगे यहाँ कई कामो से रुकना पड़ता पानी देना , फ़ासल की देखभाल करना तो सर छुपाने के लिए छाया तो चाहिए ही होती मैंने कुवे को देखा फिरनी तो लग गयी थी पर समस्या थी की पानी को हाथो से खीचना पड़ता क्योंकि यहाँ और कोई व्यवस्था थी नहीं 

इसका भी कुछ ना कुछ जुगाड़ करना ही था अभी तो मानो बरसात थी तो धरती पी लेगी पर जब गेहू बोऊंगा तब तो दिक्कत होगी खैर कोई ना कोई रास्ता तो निकलेगा ही दोपहर बाद जुम्मन आया अपने साथ कुछ आदमी भी लाया और सामान भी 

मैं- काका आ गये 

वो- हां कुछ आदमी भी ले आया दुसरे गाँव से अब अपने यहाँ से तो कोई आता नहीं 

मैं- सही किया 

काका- मैंने सोचा है की निचे पत्थरों की चिनाई करेंगे और फिर ऊपर छप्पर बाँध देंगे 

मैं- बढ़िया 

वो- इससे मजबूत भी रहेगी और कच्चा काम भी नहीं रहेगा 

मैं- जैसा आपको ठीक लगे अभी मैं तो थोडा व्यस्त हु कुछ तैयारियों में तो आप ही थोडा देख लेना इधर 

वो- चिंता ना करे आप 

कुछ समय और बिताया उनके साथ फिर थोड़ी भूख सी भी लग आई थी तो सोचा पूजा के पास चलू पर उसके घर पर ताला लगा था आज वो जमीन की तरफ भी न आई कहा गयी सोचते सोचते मैं वापिस घर आया तो देखा की राणाजी और भाई कुछ बात कर रहे थे मुझे आता देखा तो चुप हो गए तो मैं समझ गया की मेरे बारे में ही बात हो रही होगी 

खैर वो और उसके बाद दो तीन दिन और ऐसे ही गुजर गए इस बीच न मैं पूजा से मिल सका न कुछ और कर सका बस घर पर ही रहा घर में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी मरघट सा सन्नाटा फैला हुआ था हर सदस्य के चेहरे पर एक पीलापन सा था माँ सा बस दिन रात बिस्तर पर ही पड़ी रहती थी उनकी सेहत तेजी से गिर रही थी मेरी हिम्मत नहीं होती थी की उनके पास जाऊ 

क्योंकि मैं ही ज़िम्मेदार था इन सब चीजों का मेरे भाई भाभी बहुत हिम्मत देते थे मुझे राणाजी ने जैसे खुद को कैद कर लिया था अपने कमरे में उस रात भी मेरा हाल पता नहीं कैसा था दिल पता नहीं क्यों घबरा सा रहा था कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था आँखों में नींद ना आये ना दिल को करार आये उस पूरी रात एक पल को भी नींद नहीं आई बस सबके चेहरे आँखों के आगे घूमते रहे 

सुबह जब मैंने आईने में देखा तो आँखे कुछ लाल सी थी सूजी सी थी भाभी ने नाश्ता करने को कहा पर भूख नहीं थी तो मना किया और फिर साइकिल उठा कर चल दिया उस तरफ जहा कुछ सकूँ मिलने की उम्मीद थी मुझे

जब मैं उसके घर पंहुचा तो वो आंगन में ही कुछ कर रही थी उसने मुझे देखा और बोली- आ गयी मेरी याद 

मैं- ताने मत मार 

वो- चौथा दिन है आज आया क्यों नहीं पता है मेरा मन कितना घबरा रहा था 

मैं- पूजा बहुत थका हुआ हु पता नहीं मुझे क्या हो गया है सोचा की तुझे देख के कुछ चैन मिलेगा जली कटी फिर कभी बोल लेना 

वो मेरे पास आई और बोली- क्या हुआ 

मैं- पता नहीं बस तेरी बाँहों में सर रख कर सोने का जी कर रहा है पता नहीं क्यों सबसे भाग रहा हु तू ही पनाह दे दे 

पूजा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अन्दर कमरे में ले आई मैंने उसकी गोद में सर रखा और लेट गया वो मेरे सर को थपथपाने लगी बहुत आराम मिला मुझे कुछ देर हमारे बीच ख़ामोशी सी रही फिर मैंने पूछा- पूजा तू मेरे साथ है ना 

वो- मरते दम तक 

मैं- और अगर मैं मर गया तो 

वो- कुंदन ख़बरदार जो ऐसी मनहूस बात बोली 

मैं- बता ना 

वो- तुझ जिंदा रहना पड़ेगा बस मैंने कह दिया जब तू मेरी हर बात मानता है तो ये भी तुझे माननी ही होगी वर्ना मैं नाराज हो जाउंगी 

मैं- तू मुझसे कभी नाराज हो नहीं सकती 

वो- अगर तू ऐसी बाते करेगा तो मैं पक्का नाराज हो जाउंगी 

मैं- अच्छा बाबा नहीं करता आ मेरे पास लेट थोड़ी देर 

जैसे ही वो लेटी मैंने उसे अपनी बाहों में ले लिया उसके जिस्म की खुसबू मुझमे फैलने लगी मैं धीरे धीरे उसके पेट पर हाथ फेरने लगा

मैं- एक बात कहू 

वो- हू 

मैं- कैसे तू मेरी जिंदगी में चली आई इतने दिनों से कहा थी तू 

वो- यही बात मैं तुझसे भी पूछ सकती हु 

मैं- क्यों बार बार मेरे पैर तेरे दर पर आने को मचल जाते है 

वो- मैं क्या जानू 

मैं- तो कौन जाने 

वो- रब्ब जाने या तू जाने 

मैं- और मेरा रब्ब कौन है 

वो- तू जाने 

मैं- बातो में ना उलझा तुझे सब पता तो है 

वो- छोड़ इन बातो को बातो का क्या 

मैं- बातो को तो छोड़ दूंगा पर जो इस दिल दिमाग पर छा गया उसका क्या उसे कैसे छोडू 

वो- तेरा जो जी आये वो कर 

मैं- मेरा जी तो चाहता है की तेरी एक पप्पी ले लू 

वो- ले ले फिर 

मैं- सच में 

वो- अब तेरा जी कर रहा है तो जी को तसल्ली दे 

मैं- और तुझे 

वो- तू खुश तो मैं खुश 

पूजा ने मेरी तरफ करवट ली और मेरी आँखों में आँखे डालते हुए बोली- तुझे मेरे जिस्म की चाहत है क्या 

मैं- तुझे क्या लगता है 

वो- मैंने तुझसे पूछा है 

मैं- तुझे पहले भी बताया ना की तेरी रूह से वास्ता है मेरा इस जिस्म का क्या मोल अगर इसे पा भी लिया तो क्या पाया मैंने मजा तो जब आये जब तेरी रूह को अपना बना सकू इतना अपना की चोट मुझको लगे और आंसू तेरी आँख से गिरे 

वो- आशिकाना अंदाज में लग रहे हो ठाकुर साहब 

मैं- जो भी है तुमसे ही है और ठाकुर साहब कब से हो गया तेरे लिए, तेरे लिए तो वो ही अल्हड कुंदन हु और वो ही रहूँगा पर तुझे एक दिन जयसिंह गढ़ की हवेली की ठकुराईन जरुर बनाऊंगा जो तेरा हक़ है वो तेरे कदमो में जबतक ना डालूँगा चैन नहीं आएगा तब तक 

वो- कहा की बात कहा ले जा रहा है 

मैं-तू भी मेरी बाते भी मेरी 

वो- कुंदन मेरा जी घबराता है अमावस का दिन नजदीक आ रहा है 

मैं- भरोसा नहीं तुझे 

वो- अपने रब्ब से ज्यादा 

मैं- तो बस चाहे कुछ भी हो सबसे पहले तेरे पास ही लौट के आऊंगा आखिर मुझे अपनी कसम जो पूरी करनी है 

वो- कुंदन मैं नहीं आ पाऊँगी अखंड जोत जलानी है तेरे नाम की 

मैं- तू ही तो मेरी शक्ति है पूजा तू नहीं आयेगी तो मेरी हिम्मत टूट जाएगी 

वो- कुंदन मैं हमेशा तेरे साथ ही रहूंगी बल्कि तेरे साथ ही हु 

मैं- वो तो है 

मैंने उसे अपनी और खींचा वो मेरे पास और सरक आई इतना पास की दो जिस्म एक दुसरे से रगड़ खाने लगे हम दोनों एक दुसरे की आँखों में देख रहे थे कुछ खुमारी सी थी कुछ सुकून सा था उसने अपना चेहरा थोडा सा ऊपर किया और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए जैसे ढेर सारा शहद घोल दिया हो ऐसा लगा मुझे कुछ देर हम एक दुसरे को चुमते रहे फिर वो अलग हो गयी 

पूजा- आराम कर ले कुछ देर मैं खाना बना के आती हु 

वो बाहर चली गयी मैंने चादर ओढ़ ली और आँखों को मूंद लिया ऐसा लग रहा था की जैसे उसकी खुसबू मुझमे भर गयी थी करीब घंटे भर बाद हम दोनों ने साथ खाना खाया और फिर बाते करते रहे जब मैं चलने लगा तो उसने मुझे रोका 

वो- एक मिनट रुक जरा 

मैं- क्या हुआ अब 

वो- रुक तो सही 

पूजा ने मेरा हाथ पकड़ा और उस पर एक धागा सा बांधते हुए बोली- ये जाहरवीर जी का धागा है जब तक तू जीत ना जाये इसे अपने से अलग मत करियो ये तेरी रक्षा करेगा , कुंदन वापिस आना तू आएगा ना 

मैं- मेरा रक्षा कवच तो तू है तुझे छोडके कहा जाना मुझे चल अब जाने दे 
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