Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:33 PM,
#19
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
कुछ देर मैं वही खड़ा रहा पर पूजा दिखी नहीं ऊपर से आसमान काला होने लगा था जो साफ़ बता रहा था मेह पड़ेगा तगड़े वाला मैंने आसपास का जायजा लिया ये अलग सी जगह थी इस तरफ घर वगैरह नहीं थे आसपास ये डाकखाना था और एक दो तिबारे से थे बाकि रास्ता सामने की और जा रहा था शायद ये गाँव का छोर था कुछ सोच कर मैं आगे को बढ़ गया 



मैंने कलाई में बंधी घडी पर एक नजर देखा शाम के साढ़े चार हो रहे थे पर मोसम की वजह से लग रहा था की सांझ जल्दी ढल गयी है तो वो रास्ता गाँव से बाहर की तरफ जाता था मैं साइकिल लियी थोड़ी दूर गया तो देखा की पूजा सड़क के एक किनारे खड़ी सामने की तरफ देख रही थी मैंने उसकी नजरो का पीछा किया तो समझ गया वो क्या देख रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या कहू
जहा वो खड़ी थी वहा से करीब ढाई-तीन सो मीटर दूर एक हवेली थी जो रही होगी किसी ज़माने में बहुत शानदार पर आज भी अपने दम पर खड़ी इठला रही थी आसपास के बाकि इलाके में बस खेत खलिहान से ही थे पर कुछ तो बात थी उसको देखने पर ऐसे लगता था की जैसे नजर हटाये ही ना 
जैसे किसी चकोर की निगाह बस चंद्रमा पर रहती है वैसे ही पूजा बस उस हवेली को देख रही थी मेरे मन में था कुछ कहने को पर उसने पहले ही कहा था की मैं कुछ न पुछु तो मैं वापिस उलटे कदम आकर डाकघर के पास ही खड़ा हो गया ऊपर मेघो ने तैयारी कर ली थी की बस अब न्रत्य शुरू करेंगे और दो- चार मिनट में हलकी हलकी बुँदे पड़ने लगी



मैंने अपने बालो में हाथ फेरा और उस रस्ते की और देखा कर भी क्या सकता था सिवाय इंतजार के खैर, कुछ देर बाद पूजा तेज तेज कदमो से चलती हुई आई और मुझे चलने का इशारा किया ख़ामोशी से हम दोनों वापिस चलने लगे 



मैं- बैठ जा 



वो- गाँव से बाहर निकलते ही 



हम अभी उस बाज़ार की तरफ आये थे की तभी एक जीप हमारे पास से आई और उसमे से किसी ने कहा- हाय क्या चाल है 



दूसरा –सही कहा भाई, माल तो चोखा है और गाड़ी से उतरने लगे 



मेरा दिमाग पल भर में ही घूम गया मैंने साइकिल स्टैंड पर लगायी पर पूजा ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया 



मैं- हाथ छोड़ 



पर वो पकडे रही , तभी एक छोरा मेरे बिलकुल पास आया और बोला- इतना क्यों तमक गया अब माल की तारीफ तो करनी ही पड़ती है उसने पान थूकते हुए कहा 



मैं-दुबारा अगर एक शब्द भी तेरे मुह से निकला तो ठीक नहीं होगा 



दुसरे ने मेरा कालर पकड़ लिया और बोला- जाने है किसके सामने जुबान खोल रहा है ये अंगार ठाकुर है 



मैंने उसका हाथ अपने कालर सी हटाते हुए कहाः- बुझा दूंगा अंगार को दो मिनट में अगर अपनी सीमा लांघी तो 



बरसात कुछ तेज सी पड़ने लगी थी और साथ मेरा गुस्सा भी पता नहीं वो दोनों हसने लगे फिर वो अंगार बोला- छोरे खून घना गरम हो रहा हो तो ठंडा कर दू मेरे ही गाँव में मुझसे ऊँची आवाज में बात करेगा तू 



मैं- और तू किसीको भी ऐसे गंदे शब्द बोलेगा 



वो- तू कहे तो उठा लू वैसे भी आज मोसम मस्ताना हो रहा है 



उसकी बात मेरे सीने को ही चीर सी गयी जैसे और मैंने अपना हाथ उठाया ही था उसको मारने को पर पूजा की आवाज ने मुझे रोक लिया “नहीं रुक जाओ ” पूजा आगे बढ़ी और अंगार के सामने खड़ी हो गयी बरसात के बावजूद बाज़ार में भीड़ सी इकठ्ठा होने लगी थी 



पूजा ने अपने हाथ जोड़े और बोली- इस से गलती हो गयी हुकुम, माफ़ कर दीजिये आप बड़े लोग है 
अंगार पान की पीक थूकते हुए- माफ़ तो कर दूंगा जानेमन पर इसको बोल की मेरे जूते पर सर रखे 
उसकी ये बात सुनते ही मेरे खून में जो अहंकार दौड़ रहा था वो जोर मारने लगा खून उबलने लगा मैं गुस्से से चिल्लाया-कुंदन तेरे जूते पे सर रखेगा उस से पहले मैं तेरा सर................ 



पर मेरी बात अधूरी ही रह गयी थी पूजा ने अपना हाथ मेरे मेरे मुह पर रखा और बोली – कुंदन तुझे मेरी कसम चुप रह बस 



पता नहीं क्यों उसकी बात मान ली मैंने पर दिल कर रहा था की अभी इसकी गांड तोड़ दू बारिश बहुत तेज पड़ने लगी थी 



पूजा- मैं आपसे फिर माफ़ी मांगती हु हुकुम माफ़ कर दीजिये 



पर उस अंगारे को पता नहीं क्या गुमान था वो बेशर्मी से फिर बोला- माफ़ कर दूंगा जानेमन पर अगर तू एक बार अपना हसीं चेहरा दिखा दे तो जितनी तू पीछे से मस्त है चेहरा भी उतना ही मस्त है या नहीं 



मुझे हद से ज्यादा शर्मिंदगी महसूस हो रही थी जी कर रहा था की अभी मर जाऊ या मार दू पर पूजा ने मेरे पैरो में अपनी कसम की बेडिया डाल दी थी अंगार की वो हसी मेरे कलेजे को चीर रही थी पूजा बस शांत खड़ी थी उसने अपना हाथ पूजा के चेहरे पर लिपटे दुपट्टे की और किआ मैं बीच में आ गया 



मैं- अंगार मैं तुझे चुनोती देता हु लाल मंदिर में बलि चढाने की और तू चुनोती पार कर गया तो ये तुझे अपना चेहरा जरुर दिखाएगी 



अंगार के हाथ अपने आप रुक गए उसने घुर के मुझे देखा और बोला- कौन है तू 



मैं- अगर तुझे चुनोती दी है तो तू समझ जा 



अंगार- लाल मंदिर की चुनोती नहीं देनी थी छोरे पर तूने मेरी दिलचस्पी जगा दी क्योंकि बरसो से बलि नहीं दी गयी और जयसिंह गढ़ में आके ठाकुर अंगार चंद को चुनोती देने वाला कोई आम इन्सान ना हो सके वैसे भी मन्ने तुझे गाँव में नहीं देखा कभी पहले कहा का है तू अब तो पता करना पड़ेगा 



उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की तभी वहा पर एक के बाद एक कई गाड़िया आकार रुकी और उस सफ़ेद गाड़ी से जो रोबीला इन्सान उतरा तो आसपास सभी ने हाथ जोड़ लिए अंगार ने भी एक आदमी ने फ़ौरन छतरी तान दी उसके चेहरे पर वैसा ही रौब था जैसा की मैंने राणाजी के चेहरे पर देखा था 
“क्या हो रहा है यहाँ ” उसकी आवाज में जैसे एक गर्जना सी थी 



मैंने भी अपने हाथ जोड़े और उसको पूरी बात बता दी की कैसे हम जा रहे थे और कैसे अंगार ने पूजा के बारे में क्या कहा तो उस रोबीले इन्सान ने वही पर अंगार को फटकारा और उसे पूजा से माफ़ी मांगने को कहा पर तभी अंगार बोल पड़ा- ठाकुर साब इसने मुझे लाल मंदिर में बलि चढाने की चुनोती दी है 



और उस ठाकुर की आँखे आश्चर्य में फैलती चली गयी

बारिश अब बहुत तेज पड़ने लगी थी उस ठाकुर ने मुझे बुरी तरह से घुरा और बोला – लाल मंदिर में बलि की चुनोती 



मैं खड़ा रहा 



ठाकुर- छोरे मेरा नाम ठाकुर जगन सिंह है ये जो तूने लाल मंदिर की चुनोती दी है के सोच के दी बता जरा 



मैं- इसने जो बात बोली बोली ठाकुर साहब आग लगा गयी ये इसे उठा लेगा दबंग है तो किसी को भी उठा लेगा के सच कहू तो चैन ना मिल रहा सोचु हु की धरती फट जाये और मैं समा जाऊ शर्मिंदी इस बात की है की मेरे रहते ये इतना बोल गया कैसे 



ठाकुर- क्या लगती है छोरी तेरी 



मैं- सबकुछ लगती है पता नहीं कैसे मेरे मुह से निकल गया और ना भी कुछ लगती ना तो भी मेरे सामने कोई किसी औरत लड़की को ऐसे भद्दे शब्द बोलता तो मैं ये ही करता 



ठाकुर- तेरी बात सही है छोरे पर जवान खून है जोर मार जाता है कभी कभी , पर तू खुद को देख और अंगार को देख क्या सोच के चुनोती दी तूने जान गयी समझ तेरी 



मैं- जान तो कभी ना कभी जानी है ठाकुर साब, आज मेरे हाथ बंधे है पर उस दिन नहीं होंगे छटी का दूध याद न दिला दू तो नाम बदल देना 



मैंने ठाकुर की आँखों में गुस्सा देखा शायद उसे मेरी बात चुभ गयी थी 
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