Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:32 PM,
#13
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
लगभग एक ही समय हम दोनों ने उस आवाज की तरफ देखा तो वहा पर एक लड़की थी जो शायद उसे बुला रही थी तो बिना देखे वो उसकी तरफ बढ़ गयी और एक बार फिर स बात शुरू होने से पहले ही ख़तम हो गयी अपनी किस्मत को जमकर कोसा मैंने पर दिल में कही न कही इतनी तसल्ली भी थी की उसके दिल में भी कुछ तो है तो बात बनेगी जरुर 

उसके बाद मैंने भी माथा नवाजा और बाहर आया मौसम बदलने लगा था आसमान में बादल घिरने लगे थे मेरी नजरे बस उसको ही तलाश कर रही थी और वो दिखी भी फेरी वाले से खरीद रही थी कुछ वो पर सिवाय देखने के और क्या कर सकता था मैं इतनी भीड़ में थोड़ी ना कुछ कह सकता था 

“तो जनाब यहाँ है मैं अंदर तलाश कर रही थी ” भाभी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा 

मैं- आ गयी भाभी कुछ लेना है तो ले लो नहीं तो फिर चलते है 

भाभी- नहीं कुछ नहीं लेना आओ चलते है 

मैंने जीप स्टार्ट की और हम वापिस हुए पर दिल में एक बेचैनी सी थी जिसे भाभी ने भी मह्सुस कर लिया था 

भाभी- वैसे कुंदन इतनी शिद्दत से किसको देख रहे थे तुम 

मैं – किसी को तो नहीं भाभी 

भाभी- भाभी हु तुम्हारे, तुमसे ज्यादा मैं जानती हु तुमको और मैं ही क्या कोई और होता तो वो भी समझ जाता 

मैं- क्या समझ जाता भाभी 

भाभी- वोही जो तुम मुझसे छुपा रहे हो 

मैं- भाभी ऐसा कुछ भी नहीं है 

वो- चलो कब तक .. कभी ना कभी तो पता लग ही जाना है वैसे वो जमीन देखने गए थे क्या हुआ उसका 

मैंने भाभी को पूरी बात बता दी तो वो गंभीर हो गयी मैंने भाभी के चेहरे पर चिंता देखि पूरी बात सुनने के बाद वो बोली “कुंदन, ठाकुरों का अहंकार उनकी रगों में खून के साथ दौड़ता है राणाजी का मकसद बस अपने उसी अहंकार को जिताना है और मैं भी चाह कर भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊँगी क्योंकि मैं भी इसी घर में रहती हु और तुम्हे तो सब पता ही है ना वैसे मैं चाहती नहीं थी की ये सब हो पर अब जो है वो है ”

मैं- भाभी मैं क्या गलत हु 

भाभी- मैंने कहा न, सही गलत की बात ही नहीं है अगर सही गलत की बात होती तो ये होता नहीं तुम्हारा इरादा नेक है पर राह उतनी ही मुश्किल मैं बस इतना चाहती हु की इसकी वजह से बाप-बेटे के रिश्ते में कोई दरार नहीं आये ये घर जैसा है वैसे ही रहे 

मैं बस मुस्कुरा दिया भाभी की चिंता सही थी आखिर मेरी रगों में भी राणाजी का खून ही जोर मार रहा था मुझे हर हाल में वहा पर फसल उगा कर दिखानी थी वर्ना क्या बात रहती ये अब मूंछो की लड़ाई हो गयी थी खैर हम घर आये उसके बाद कुछ समय मैंने अपने चौबारे में ही बिताया कुछ देर किताबो पर नजर मारी जरुरी काम निपटाए आसमान मी घटाए छा चुकी थी बारिश पड़ेगी ऐसी पूरी सम्भावना थी रोटी पानी करके मैं चाची के घर गया तो वहा पर ताला लगा था मतलब वो खेत पर निकल गयी थी शायद होने वाली बारिश का अंदेशा करके पर मुझे वो काम आज पूरा करके ही दम लेना था जो बार बार अधुरा रह जाता था मैंने अपनी साइकिल उठाई और पैडल मारते हुए चल दिए कुवे की और 

आधे रस्ते में ही टिप टिप शुरू हो गयी तो मैंने रफ़्तार तेज कर दी पर फिर भी पहुचते पहुचते तकरीबन भीग ही गया था मैंने अपनी साइकिल खड़ी की और खुद को पोंछा बिजिली आ रही थी तो राहत की बात थी मैंने किवाड़ खडकाया तो चाची ने अंदर से पूछा कौन है मैंने बताया तो दरवाजा खोला 

“तू ”

“मुझे तो आना ही था ”मैंने मुस्कुराते हुए कहा 

मैंने दरवाजा बंद किया और अपने गीले कपडे उतार कर तार पर डाल दिए बस एक कच्छे में ही था चाची मेरी तरफ ही देख रही थी 

मैं- आज अकेली आ गयी 

वो- मैंने सोचा तू नहीं आएगा 

मैं- क्यों नहीं आऊंगा 

वो- दोपहर को भी भाग गया था 

मैं- उसी काम को पूरा करने आया हु और आज पूरा करके ही रहूँगा 

चाची- तू रहने दे हर बार ऐसा ही बोलता है और फिर भाग जाता है मुझे परेशां करके 

मैं- आज परेशान नहीं करूँगा 

मैंने चाची को अपनी बाहों में जकड लिया और चुपचाप अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए सुर्ख लिपस्टिक में रंगे उसके होंठ इतनी चिकने थी की लगा की घी की धेली मेरे मुह में घुल रही हो चाची ने अपनी पकड़ मुझ पर मजबूत सी कर दी और मैं धीरे धीरे उसके होंठो का मीठा सा रस चूसने लगा 

मेरे हाथ अपने आप उसकी पीठ को सहलाने लगे थे मैंने बादलो के गरजने की आवाज सुनी जो बता रही थी बाहर बरसात और तेज हो गयी है मैंने चाची को और कस लिया अपनी बाहों में और चूमने लगा उसके होंठो को जो मय के प्याले से कम नहीं थे जबतक सांसे टूटने को ना हो गयी मैं चाची के लबो को पीता रहा फिर हम अलग हुए मैंने चाची की आँखों में एक अलग सी चमक देखि उसकी छातिया मेरे सीने में समा जाने को पूरी तरह से आतुर थी 

मैंने उसकी चोली को उतार दिया चाची ने एक पल को भी विरोध नहीं किया बल्कि वो तो खुद ये चाहती थी मैं उसकी चुचियो को दबाने लगा जो पहले ही फुल चुकी थी चाची आहे भरने लगी उसने कच्छे के ऊपर से मेरे लंड को पकड़ लिया 

“अन्दर हाथ डाल चाची ” मैं बोला 

और चाची ने मेरे कच्छे में अपना हाथ डाल दिया उसके गर्म हाथ को महसूस करते ही मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा जब चाची ने उसे अपनी मुट्ठी में लिया तो मुझे इतना मजा आया की मैं बता नहीं सकता मैंने चाची को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी घाघरी को भी उतार दिया और खुद भी पूरा नंगा हो गया लट्टू की रौशनी में हम दोंनो नंगे थे चाची बेहद ही खुबसुरत थी उसकी मांसल टाँगे थोड़े मोटे से चुतड माध्यम आकर की छातिया और टांगो के बीच हलके बालो में कैद वो चीज़ जिसका हर कोई दीवाना है 

मैं उसके पास ही लेट गया और एक बार फिर से उसके होंठ चूसते हुए उसके नितम्बो को सहलाने लगा चाची मेरे लंड को मुठिया ने लगी मेरा रोम रोम मजे में डूबने लगा था और फिर धीरे धीरे मैं चाची के ऊपर लेट गया और चूची को पिने लगा चाची बहुत गरम हो गयी थी और बहुत तेजी से उसका हाथ मेरे लंड पर चल रहा था 

“मुझे ऊपर से निचे तक चूम कुंदन aaahhhhh आःह्ह ” चाची सिसकारी लेते हुए बोली 

मैं- हां चाची 

मैं उत्तेजना से बुरी तरह कांप रहा था 

“दोपहर की तरह ही झुक जा चाची ”

मैंने कांपते हुए कहा 

तो चाची बिस्तर पर घोड़ी बन गयी और एक बार फिर से उसकी उभरी हुई गांड मेरी आँखों के सामने थी मैंने अपने होंठो पर जीभ फेरी और उसके चूतडो को सहलाया चाची ने आह भरते हुए अपनी गांड को सहलाया रुई से भी ज्यादा कोमल चुतड थे उसके मैं आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेरने लगा चाची ने अपने आगे वाले हिस्से को थोडा सा और निचे झुकाया जिस से चुतड और ऊपर की और उभर गए 

मैंने अपने दोनों हाथो को चाची की गांड की दरार पर लगाया और बड़े ही प्यार से उसको फैलाया उफफ्फ्फ्फ़ क्या नजारा था चाची की गांड का वो भूरा सा छेद जो हिलने की वजह से बार बार खुलता और बंद होता नजर आ रहा था और इंच पर निचे ही माध्यम आकार के काले बालो से ढकी हुई चाची की मस्तानी लाल रंग की चूत जो मुझे बस निमंत्रण दे रही थी की आ और समा जा मुझमे 

चाची का गदराया हुस्न बहुत ही कमाल का था मैंने अपने होंठ उसके चूतडो पर रख दिए और जैसे किसी फल को काट रहा हु इस प्रकार मैं वहा पर बटके भरने लगा तो चाची जोर जोर से आहे भरने लगी मैं अपनी जीभ से चाची के नरम मांस को चाटने लगा चाची जोर जोर से अपनी गाँनड हिलाने लगी हम दोनों का ही हाल बुरा हो रहा था चाची की गीली होती चूत को महसूस कर रहा था मैं उसमे से एक ऐसी खुशबु आ रही थी की क्या बताऊ बस मेह्सुस ही कर पा रहा था मेरा लंड इतना ऐंठ गया था उत्तेजना से की उसके नसे उभर आई थी मैंने अपनी उंगलियों से चाची की चूत के नरम मांस को छुआ तो वो सिसक पड़ी “आह aaahhhhhhhhhhhh ” वो जगह किसी गर्म भट्टी की तरह ताप रही थी और अचानक से मेरी पूरी ऊँगली चाची की चूत में घुस गयी 

“आह आई ”कसमसाते हुए चाची ने पानी दोनों जांघो को कस के भीच लिया और आहे भरने लगी “कुंदन क्या कर रहा है आःह ”

“कुछ भी तो नहीं चाची ” मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया 

मैंने अपनी वापिस पीछे ली और फिर से आगे को सरका दी और तभी चाची औंधी हो गयी लेट गयी और मैं भी उसके ऊपर आ गिरा चाची के गरम बदन पर लेट कर उस बरसाती मौसम में बहुत सुकून सा मिला था चाची का बदन झटके पे झटके खा रहा था मैं चाची के सेब से गालो को खाने लगा उसके ऊपर से लेटे लेटे ही गजब का मजा आ रहा था इतना मजा की शब्द कम पड़ जाये अगर लिखा जाये तो मैंने चाची की चूत के रस से लिपटी हुई ऊँगली उसके होंठो पर फेरनी चालू की तो उसने अपना मुह खोल दिया और उस ऊँगली को चूसने लगी उसके लिजलिजी जीभ मेरी ऊँगली पर रेंगने लगी 
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