RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
दर्द से जूझते हुए मैं उठा और खिड़की की और देखा शाम हलके हलके ढल रही थी मैंने पास रखे रेडियो को चलाया
“ये आकाशवाणी का जोधपुर केंद्र है और आप सुन रहे है पाठको की फरमाईश और एक बार फिर से हमारे पास है हमारे खास श्रोता की फरमाईश जी हां, वो और कोई नहीं आयत है एक बार फिर से तो श्रोताओ उनकी विशेष फरमाईश पर मैं बजाने जा रहा हु फिल्म गुलामी का जिहाले मुस्किन मुकम्ब रंजिश बहाले हिज्र बेचारा दिल है ”
और गाना बजने लगा और मेरे होंठो आर बस एक ही नाम था आयत जिसकी हर फरमाईश इस कदर खूब सूरत थी की मुझे भी यकीन था की वो भी उतनी ही खुबसूरत होगी मैंने अपनी आँखों को बंद कर लिया और उस गीत को सुनने लगा दर्द मुझ में फ़ना होने लगा कुछ डर के लिए मन ही मन मैंने सोचा की पता करना होगा की गाँव की कौन लड़की है ये
“लो, हल्दी वाला दूध लायी हु ” भाभी की इस आवाज के साथ ही मैं वापिस धरातल पर आया
मैं थोडा सा बैठा हुआ और भाभी के हाथ से गिलास लिया “क्या जरुरत थी तुम्हे राणाजी के सामने भरी पंचायत में जुबान खोलने की मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी की तुम ऐसी गुस्ताखी करोगे ”
“भाबी, और जो वहा हो रहा था वो क्या सही था ”
“सही गलत समझने वाले हम नहीं है कुंदन , सोचो जरा राणाजी के रुतबे पर क्या असर पड़ेगा जब उनका बेटा ही उनकी बात काट रहा है पंचायत में ”
“भाबी, बात हक़ की है कबतक किसान पे जुल्म होता रहेगा किसी ना किसी को तो आवाज उठानी पड़ेगी ना ”
“तो वो किसान आवाज उठाये जिसको दिक्कत है ”
“उसको तो खामोश कर दिया गया भाभी इस गाँव में चाहे अब कुछ भी हो पर अब कोई भी नजायज कर्ज का बोझ नहीं उठाएगा समाज सबका है तो किसी का हक़ नहीं मारा जायेगा पंचायत गलत है तो उसे अपनी गलती स्वीकार करनी होगी भाभी ”
“कुंदन, मैं बस इतना चाहती हु की तुम आगे से बस अपनी पढाई और घर के कामो में ही ध्यान दोगे ”
“पर भाभी , ”
“पर वर नहीं कुंदन, ठाकुरों को अगर कुछ प्यारा होता है तो बस अपना अहंकार , उसके आगे कुछ नहीं होता चलो अब दूध पियो और गिलास खाली करो , जिंदगी हर पल एक जंग होती है और हमारा पथ अग्निपथ होता है पर साथ ही हर कदम पर पथिक हारता है और समजौते करने पड़ते है राणाजी दुनिया को तुमसे ज्यादा समझते है उनको उनका काम करने दो ”
भाभी चली गयी थी अपर मेरे दिल में कुछ था तो वो बोल “सुनाई देती है जो धड़कन तुम्हारा दिल है या हमारा दिल है ” मैं उठा तो दर्द हुआ पर मैं छत से बाहर देखने को लगा पहली बार शाम कुछ हसीं सी लगी पर हम भी थोड़े से जरा कम थे हमारी रगों में भी जवान खून जोर मार रहा था और गुस्ताखियों के लिए खुला आसमान पड़ा था
अपने दर्द को मरहम पट्टी के तले दबाये उस छज्जे वाली की झलक पाने को हम फिर से खड़े थे पानी की टंकी के पास पता नहीं प्यास ज्यादा लगने लगी थी या उसको बस एक नजर देखने की हसरत थी पर जो भी था इतना जरुर था की कुछ था जो अब हमारा नहीं था और फिर नजर आयी वो अपनी सहेलियों से घिरी हुई होंठो पर ये कैसी मुस्कान थी जो अब अक्सर ही आने लगी थी
नजरो ने फिर से नजरो का दीदार किया पर आज उसके होंठो पर वो हंसी नहीं थी एक बार फिर से पानी की टंकी पर वो थी मैं था और थी वो दीवार जिसे अब देखो कौन पहले तोड़ेगा पर चाह कर कुछ कह भी तो ना पाए एका एक पता नहीं क्या हुआ, आँखों के आगे जैसे अँधेरा सा छा गया और फिर कुछ याद नहीं रहा
जब होश आया तो खुद को गाँव के दवाखाने में पाया , उठने की कोशिश की तो भाभी ने मना किया मैंने देखा माँ पास में ही थी चेहरे पर थोड़ी चिंता थी उनके
“जब हालत ठीक नहीं तो किसने कहा था घर से बाहर निकालने को पर इस लड़के ने ना जाने कौन सी कसम खा रखी है की घरवालो की बात तो जैसे सुननी ही नहीं है ” माँ थोड़े गुस्से से बोली
“कमजोरी से चक्कर आ गया था तुम्हे ” भाभी बोली
“मैं, ठीक हु अब ”
“वो तो दिख रहा है ” भाभी ने कहा “आराम करो अभी चुपचाप ”
तभी मेरी नजर बाहर दरवाजे पर पड़ी वो छुप कर देख रही थी जैसे ही नजरे मिली वो दरवाजे से हट गयी और मैं मुस्कुरा पड़ा
“देखो इस नालायक को , हमे परेशां करके कैसे हस रहा है ” माँ बोली
मैंने अपनी आँखे बंद करली माँ बद्बदाती रही , डॉक्टर ने कुछ ग्लूकोज़ की बोतले चढ़ाई कुछ दवाई दी और रात होते होते मैं वापिस घर पर आ गया भाभी ने मेरे चौबारे में ही अपनी चारपाई बिछा ली थी धीमी आवाज में हम बाते करते रहे अच्छा लग रहा था तभी भाभी ने बातो का रुख इस तरह मोड़ दिया जो मैंने सोचा नहीं था
“वो लड़की कौन थी ”
“कौन भाभी ”
“अच्छा जी कौन भाभी, अरे वही जिसे तुम्हारी बड़ी फिकर थी जो दवाखाने तक आई थी तुम्हे देखने और तुम्हारे होश में आने क बाद ही गयी थी ”
“पता नहीं भाभी आप किसके बारे में बात कर रही है ” मेरा दिल तो खुश हो गया था पर भाभी क सामने अभी थोडा पर्दा रखना था क्योंकि अभी तो बस सिवाय दुआ-सलाम के कुछ भी नहीं था
“मत बताओ पर छुप्पा भी नहीं पाओगे मेरे भोले भंडारी ” वो हस्ते हुए बोली
“क्या भाभी आप भी कुछ भी बोलती हो, ”
“चल अब सो जा रात बहुत हुई ”
अगले कुछ दिन बस ऐसे ही गुजरे पड़े पड़े जख्मो को भरने में समय तो लग्न ही था पर दस-बारह दिनों बाद मैं ठीक महसूस कर रहा था अपने कमरे में मन नहीं लग रहा था तो मैं भाभी के कमरे में चला गया पर कदम दरवाजे पर ही ठिटक गए मैंने देखा भाभी कपडे बदल रही थी
भाभी बस कच्छी में थी , उफ्फ्फ कसम से दिल चीख कर बोला की अभी पकड़ ले और चोद दे, भाभी का ध्यान मेरी तरफ था उनकी मस्त टांगो को देख कर मेरा बुरा हाल होने लगा और गजब हो गया जब उन्होंने सलवार पहनने के लिए अपनी टांग को थोडा सा ऊपर किया उफ्फ्फ
सलवार पहनने के बाद भाभी ने पास पड़ी ब्रा को लिया और उसे पहनने लगी मैं उनकी माध्यम आकार की चुचियो को साफ देख रहा था पर फिर मैं वहा से हट गया और घर से बाहर चला गया देखा तो चंदा चाची खुद के घर के बाहर ही खड़ी थी तो मैं उनके पास चला गया
सफ़ेद ब्लाउज और गहरे नीले घाघरे में एक दम पटाखा लग रही थी चंदा चाची मुझे देख कर वो खुस हो गयी मेरी नजर चाची के मदमस्त उभारो पर पड़ी तो दिल का हाल और बुरा होने लगा हम घर के अंदर आ गए
“अब कैसा है ”
“ठीक हु चाची आप बताओ ”
“मैं भी ठीक हु बस जी रहे हु अकेले अकेले ”
“अकेले कहा हो मैं हु न आपके पास ”
“तू तो है पर तू क्या समझेगा बावले एक अकेली औरत की कई परेशानिया होती है ” बात करते करते चाची ने अपनी चुनरिया को थोडा सा सरका लिया जिस से उसके गहरे गले वाले ब्लाउज से दिखती चुचियो की घाटी मुझ पर अपना जादू चलाने लगी चाची ने अपनी टांग पर टांग रखी जिस से घाघरा थोडा सा ऊपर को हो गया और उनकी जांघ का निचला हिस्सा मुझे दिखने लगा
एक तो घर से भाभी को कपडे बदलते हुए देखके आया था ऊपर से अब चाची भी बिजलिया गिरा रही थी
“क्या परेशानी है चाची मुझे बताओ जरा क्या पता मैं दूर कर दू ”
“कुछ नहीं तू बता क्या पिएगा चाय बना दू “
मैं थोडा और चाची के पास सरका और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर बोला “बताओगी नहीं तो कैसे होगा, मैं तो आपके लिए ही हु आप बताओ क्या बात है आपकी सेवा के लिए मैं हमेशा तैयार हु ” मैंने चाची की चुचियो की गहरी घाटी को देखते हुए कहा और धीरे से अपना हाथ चाची की जांघ पर रख दिया
मेरी निगाह अभी भी चाची की चुचियो पर ही थी और चाची भी ये बात समझ रही थी गहरी लाल लिपस्टिक लगे उसके होंठो को चूमने का दिल कर रहा था मेरा
“बताउंगी तुझे ही बताउंगी पर पहे तेरे लिए चाय बनाती हु ”
“मैं दूध पियूँगा चाची ”
“दूध भी पिला दूंगी” उसने हस्ते हुए कहा और अपनी गांड को मटकाते हुए रसोई में चली गयी उसके जाते ही मैंने जल्दी से अपने लंड को सही किया जो तड़प रहा था इतनी देर से “ओह चाची तू ही दे दे ” मैं अपने लंड को सहलाते हुए बोला
और तभी रसोई से एक तेज बर्तन गिरने की आवाज आई और साथ ही चाची की आह तो मैं दौड़ते हुए रसोई की तरफ भागा तो देखा की चाची निचे गिरी हुई है और पूरा दूध उसके कपड़ो पर गिरा पड़ा था
“आह, कुंदन मैं तो मरी रे ”
“”मैं, उठाता हु चाची पर आप गिरे कैसे “
“पैर फिसल गया चिकने फर्श पर आह ” मैंने चाची को पकड़ा और उठाया चाची ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा सहारे के लिए और उसकी छातिया मेरे जिस्म से रगड़ खाने लगी
“आह , लगता है चल नहीं पाऊँगी ”
“एक मिनट रुको ” मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और उसको अपनी गोद में उठा लिया और उसको कमरे में ले आया
“ज्यादा लगी तो डॉक्टर को बुलवा लाऊ ”
“नहीं रे उस अलमारी में बाम की डिब्बी है थोड़ी मालिश कर दे ”
मैंने डिब्बी निकाली और चाची की तारफ देखा , चाची ने अपने घाघरे को घुटनों तक सरकाया और बोली यहाँ लगी है मैं बैठ गया और उसके पांव को अपनी गोद में रखा तो पाँव थोडा सा उठ गया और मुझे घाघरे के अन्दर का नजारा दिखने लगा चाची ने कच्छी पहनी थी तो चूत तो नहीं दिखी पर जो भी दिख रहा था मस्त था
मैंने अपनी ऊँगलीयो पर दवाई लगायी और चाची के घुटनों पर अपना हाथ रखा तो उसने घाघरी को थोडा सा और ऊपर सरका लिया और बोली “थोडा सा ऊपर बेटे ”
जैसे ही मैं चाची की जांघो के निचले हिस्से को सहलाया फ़ो सिसक पड़ी “आह ”
मैंने अपनी ऊँगलीयो पर दवाई लगायी और चाची के घुटनों पर अपना हाथ रखा तो उसने घाघरी को थोडा सा और ऊपर सरका लिया और बोली “थोडा सा ऊपर बेटे ”
जैसे ही मैं चाची की जांघो के निचले हिस्से को सहलाया फ़ो सिसक पड़ी “आह ”
“थोडा और ऊपर बेटे थोडा और ऊपर ” चाची ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और धीरे धीरे अपने होंठो को दांतों से काटनी लगी मेरी हाथ उसकी चिकनी जांघ पर घुमने लगी चाची का घाघरा अब बहुत ऊपर हो गया था पर किसे परवाह थी उत्तेजना में मैंने जांघ को थोडा कस कर दबाया तो चाची सिसक पड़ी
मैंने देखा ऊपर दूध गिरने से चाची के पेट पर नाभि के पास अभी भी कुछ बुँदे लगी थी
“चाची, आप पर तो दूध लगा है ”
“तुझे पीना था ना पि ले , aaahhhhh ”
मैंने अपने चेहरे को चाची के पेट पर घुमाया और उसकी नाभि के पास पड़ी कुछ बूंदों को अपने होंठो परसे चाट लिया
“ओह कुंदन,,,,,, aaahhhhhhh ”
चाची की जांघ को सहलाते हुए मेरे हाथ निरंतर और ऊपर को बढ़ रहे थे और मेरी जीभ उसकी नाभि में घुस चुकी थी मैं उसके पेट को चूमने लगा “अब भी हो रहा है दर्द चाची ”
“अब आराम है बेटे, ” तभी चाची थोड़ी सी टेढ़ी हो गयी जिस से उसके चुतड मेरे सामने हो गए घाघरा तो अब पूरी तरह से ऊपर हो चूका था तो चाची की कच्छी में कैद उसके गोल चुतड देख कर मेरा दिल मचल गया मैंने आहिस्ता से अपना हाथ वहा पर रखा और दबाने लगा
“आह, कुंदन क्या कर रहा है बेटे ”
“देख रहा हु चाह्ची कहा कहा चोट लगी है ”
चाची के बदन की भीनी खुशबु मुझे पागल कर रही थी
“चाची दूध पीना है मुझे ”
“दूध को गिर गया बेटे ”
“पर मुझे पीना है चाची ”कहकर मैंने चाची की चूची पर हाथ रख दिया और दबाने लगा चाची मस्ती में भर गयी और सिस्कारिया लेने लगी
“चंदा, ओ चंदा ”तभी बाहर से किसी के आवाज आई और हम दोनों होश में आ गए चाची और मैंने अपने आप को ठीक किया
“आई अभी ”बोलकर चाची बाहर जाने लगी
“चाची, मेरा दूध, ”
“पिला दूंगी ”उसने जाते जाते कहा
मैंने देखा मोहल्ले की एक औरत आ गयी थी तो मैं वहा से निकल कर घर आ गया चाय पि और फिर गाँव में घुमने चला गया चलते चलते मैं सरकारी स्कूल के पास जो दुकाने बनी हुई थी उनमे एक दुकान गानों की थी मतलब वो कैसेट भरता था तो मैं उसके पास चला गया
“और भाई नए गाने आये क्या ”
“गाने तो आते रहते भाई पर आप नहीं आते कितने दिन हुए आप आये नहीं कैसेट भरवाने ”
“आज तो आया ना भाई भर दो फिर ”
उसने मुझे पेन कॉपी दी और बोला “भाई अपनी पसंद के लिख दो वैसे भी आपकी पसंद सबसे अलग है ”
मैंने कुछ गाने लिखे और कुछ उसको बोला की अपने आप भर दे उसके बाद वो भरने लगा मैं दूकान में लगी कैसेट देखने लगा
“भाई वो मत देख, वो लोगो की भरवाई वाली रखी है ””
मैं फिर से वो कॉपी लेकर बैठ गया ऐसे ही पन्ने पलटने लगा तो एक पन्ने पर कुछ गाने लिखे थे और नाम था आयत ... आयत.... मुझ जिज्ञासा हुई
“भाई ये किसने भरवाया ”
“तुम्हे क्या भाई की भरवाए ”
“वो तो ठीक है भाई पर गानों की पसंद अच्छी है ”
“तुम्हारी ही तरह है ना ” वो मुस्कुराया
“भाई एक काम कर ये के ये गाने भर दे ”
“क्या हुआ ”
“कुछ नहीं गाने अच्छे है तो भर दे वैसे ये ले गयी क्या अपनी कैसेट ”
“हां, थोड़ी देर पहले ही आई थी एक बात कहू वैसे ”
“बोल भाई मेरे ना करने से कौन सा रुक जायेगा ”
“ये भी कई बार वो ही गाने ले जाती है जो तुम कापी में लिखके जाते हो क्या बात है ”
“बात क्या होगी यार बस अच्छे लगे तो पूछ लिया तुमसे तुम गाने भरो यार वैसे बताओ ना कौन है ”
“यार मैं नाम से ही जानता हु इसी स्कूल में तो पढ़ती है
“बहुत स्टूडेंट यही आते है कैसेट भरवाने अब मैं कैसे पहचानूँगा ””
“उसमे की है करवा देंगे जान पहचान अबकी बार आएगी तो ”
“”कब आयेगी
“अब मुझे क्या पता पर महीने में दो बार तो आती ही है ”
“चल कोई ना भाई तक़दीर में होगा तो मिल लेंगे ”
करीब डेढ़ घंटा वहा बिताने के बाद मैं वापिस हुआ घर के लिए राणाजी बैठक में थे और साथ ही गाँव के कुछ और लोग
“इधर आ छोरे ”
“”जी राणाजी “
“हम सब ने मिलके एक फैसला लिया है की जो उस दिन पंचायत में तू बोली से बड़ी बड़ी बाते बोल रहा था ना तो हमने सोचा है की देखे कितनी किसानी कर सके है तू तुझे एक जमीन का टुकड़ा दिया जायेगा तू उगा फसल और अगर तेरी फसल अच्छी हुई तो हम जुम्मन का सारा कर्जा माफ़ करेंगे और साथ ही उसकी जमीन भी उसकी ही रहेगी और अगर तू नाकाम रहा तो जुम्मन की तो जमीन जाएगी पर 6 महीने के लिए तेरा हुक्का-पानी बंद ”
“राणाजी भी ना अब क्या जरुरत थी इसकी पर खैर ”
“जैसा आदेश हुकुम ” मैंने हाथ जोड़ कर कहा
“कल लालाजी के साथ जाके जमीन देख लेना और तयारी करो गेहू की बुवाई में टाइम है काफी अब पंचायत गेहू की कटाई पे देखेगी तुम्हे ”
मैंने हिसाब लगाया तीन साढ़े तीन महीने पहले जमीन दी गयी पक्का कुछ तो गड़बड़ होगी पर अब जो भी कल ही देखना था घर में गया तो भाभी मिली
“चिट्ठी पोस्ट करदी अपने भैया को ”
“ओह तेरी!भूल गया भाभी अभी ढोल में डालके आता हु ”
“रहने दो अब कल कर देना ” भाभी मेरा कान मरोड़ते हुए बोली
“तुम्हारे मनपसंद खाना बनाया है खा लो ”
“भाभी जल्दी परोसो मुझे फिर खेत में जाना है ”
“पर क्यों अभी तुम ठीक नहीं हो इन सब कामो के लिए ”
“भाभी चंदा, चाची को परेशानी होती है उनका वैसे ही कितना नुकसान हो गया है ऊपर से राणाजी ने भी बोला है तो ”
“ठीक है पर ध्यान रखना खुद का और कल याद से चिट्ठी पोस्ट कर देना ”
“जी भाभी ”
मैंने जल्दी से खाना खाया और फिर चंदा चाची के घर की तरफ दौड़ पड़ा ताकि...
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