RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
सुबह सावन की रिमझिम ने अपनी बाहे फैला कर मेरा इस्तकबाल किया खाकी पेंट और नीली शर्ट पहन कर मैंने बालो में कंघी मारी और साइकिल पे कपडा मार के साफ किया और पैडल मारते हुए निकल गया घर से हवा में जो हलकी हलकी बुँदे थी अच्छी लग रही थी चेहरे से टकराते हुए
मोहल्ले को पार करते हुए ठीक उसी जगह पहुच गए जहा कल गिर गए थे तो जान के साइकिल रोक ली एक नजर छज्जे पर डाली पर वहा कोई नहीं था तो बढ़ गए आगे पर दिल ने पता नहीं क्यों कहा की आस थी किसी के दीदार की थोडा समय तो ठीक गया पर फिर पता नहीं क्यों बेचैनी सी हो गयी दिल में कुछ घरवालो की कडवी बाते याद आ गयी कुछ अपनी तन्हाई
तो फिर निकल गए अपने खेतो पर जो करीब डेढ़- दो किलोमीटर दूर पड़ते थे बारिश पिछली रात जोर की हुई थी तो जगह जगह पानी जमा था, वहा जाकर देखा की चंदा चाची पहले से ही मौजूद थी तो दिल में थोड़ी सी कायली आ गयी पर अब जाये भी तो कहा जाए , पंप को चालू किया और बैठ गए वही पर कुछ देर में चंदा चाची आई
और बिना मेरी तरफ देखे अपने पैर धोने लगी जो कीचड़ में सने हुए थे उन्होंने अपने घाघरे को घुटनों तक ऊँचा कर लिया जबकि उसकी कोई जरुरत नहीं थी ,मैंने देखा उनके पैरो को गोरे छरहरे पैरो में चांदी की पायल पड़ी थी वो भी शायद कुछ ज्यादा समय ले रही थी उसके बाद उन्होंने अपने चेहरे पर पानी उडेलना शुरू किया मुह धो रही थी इसी कोशिश में आँचल सरक गया और ब्लाउज से बाहर को झांकते
उनके उभार मेरी नजर में आ गए, जो की उस गहरे गले वाले ब्लाउज की कैद में छटपटा रहे थे ऊपर से पानी गिरने से ब्लाउज कुछ गेला सा हो गया था तो और नजरे तड़पने सी लगी थी पता नहीं क्यों मेरे लंड मी मुझे हलचल सी महसूस हुई तो मैं उठ के पास बने कमरे में चला गया पर उत्सुकता , दहलीज से फिर जो देखा चाची मेरी तरफ ही आ रही थी
“लगता है बारिश पड़ेगी ”
“सावन है तो बारिश ही आएगी चाची ”
“तुझे बड़ा पता है सावन का ”थोडा हस्ते हुए सी बोली वो
मैं झेंप गया चाची पास पड़ी चारपाई पर बैठ गयी मैं खड़ा ही रहा , कल जिस तरह से उसने मुझे देख लिया था तो अब नजरे मिलाने में कतरा रहा था मैं ,तभी बूंदा- बांदी शुरू हो गयी जो जल्दी ही तेज हो गयी चाची बाहर को भागी और थोड़ी दुरी पर रखी घास की पोटली को लेकर अन्दर आई तब तक वो आधे से ज्यादा भीग गयी थी
चाची ने अपनी चुनरिया चारपाई पर रख दी और बदन को पौंचने लगी उसकी पीठ मेरी तरफ थी और जैसे ही वो थोड़ी सी झुकी उसके गोल मटौल चुतड पीछे को उभर आये उफफ्फ्फ्फ़ हालांकि मैंने उसे भी कभी ऐसे नहीं देखा था पर अब आँख थोड़ी न मूँद सकता था कुछ देर वो ऐसे ही रही फिर उसने अपना मुह मेरी और किया और लगभग अंगड़ाई सी ली
जिस से दो पल के लिए उसकी चुचिया हवा में तन सी गयी पर फिर उसने चुनरिया ओढ़ ली और बद्बदाने लगी “कम्बक्त, बरसात को भी अभी आना था अब घर कैसे पहुचुंगी , थोड़ी देर में अँधेरा सा हो जायेगा और लगता नहीं बरसात जल्दी रुकेगी ”
“अब बरसात पे आपका जोर थोड़ी न है चाची ” चाची ने घुर के देखा मुझे और फिर चारपाई पर बैठ गयी मैं दरवाजे पे खड़े खड़े बरसात देखता रहा करीब घंटा भर हो गया था पर बारिश घनी ही होती जा रही थी और चंदा चाची की बेचैनी बढती जा रही थी थोड़ी ठण्ड सी लगने लगी थी अँधेरा भी हो गया था तो मैंने चिमनी जलाई थोड़ी रौशनी हो गयी
“कब तक खड़ा रहेगा बैठ जा ”
तो मैं चाची के पास बैठ गया पर साय साय हवा अन्दर आ रही थी तो चाची उठी और दरवाजे को बंद कर दिया बस कुण्डी न लगाई पर हमारे बीच कोई बात चित नहीं हो रही थी थोड़ी देर और ऐसे ही बीत गयी
“ऐसे गर्दन निचे करके क्यों बैठा है ”
“बस ऐसे ही चाची ”
“ऐसे ही क्या ”
“वो, दरअसल .......... कल ” मैं चुप हो गया
“ओह, शर्मिंदा हो रहा है हिलाने से पहले नहीं सोचा अब देखो छोरे को ” वो लगभग हस्ते हुए बोली “कोई ना बेटा हर पत्ते को हवा लगती है ”
तभी पता नहीं कही से एक चूहा चाची के पैर पर से भाग गया तो वो जोर से चिल्लाते हुए मेरी तरफ हो गयी मतलब मुझे कस के पकड़ लिया और उनकी चुचिया मेरे सीने से टकरा गयी और गालो से गाल चाची के बदन की खुशबु मुझमे समा गयी पलभर में ही लंड तन गया
पर तभी चाची अलग हो गयी और चूहे को गालिया देने लगी , मैंने चाची पर अब गौर किया 1 बच्चे की माँ उम्र कोई ३३-३४ से ज्यादा नहीं होगी छरहरा बदन पर सुंदर लगती थी करीब दो घंटे तक घनघोर बरसने के बाद मेह रुका तो हम बाहर आये
“मेरी पोटली उठवा जरा वैसे ही देर हो गयी है क्या पता कितनी देर रुका है अभी निकल लेती हु ”
“साइकिल पे बैठ जाओ, मैं भी तो घर ही जा रहा हु जल्दी पहुच जायेंगे ”
“घास भी तो है लाल मेरे ”
“चाची घास पीछे रखो और आप आगे बैठ जाना ”
“आगे डंडे पे, ना मैं डंडे पे नहीं बैठूंगी ”
“आपकी मर्ज़ी है ”
तभी बादलो ने तेजी से गर्जना चालू किया तो चाची बोल पड़ी “ठीक है ”
मैंने घास की पोटली को पीछे लादा और फिर चाची को आगे डंडे पे आने को कहा अपने घाघरे को घुटनों तक करते हुए वो बैठ गयी और हम चल पड़े गाँव की और, पर पैडल मारते हुए मेरे घुटने चाची के चूतडो पर टकरा रहे थे और कुछ मेरा बोझ भी उसकी पीठ पर पड़ रहा था
उसके बदन से रगड़ खाते हुए लंड तन ने लगा था जो शायद वो भी महसूस करने लगी थी अब मैंने हैंडल सँभालने की वजह से अपने हाथो को चंदा चाची के दोनों हाथो से रगड़ना शुरू किया बड़ा मजा आ रहा था ऐसे ही हम जा रहे थे गाँव की और की तभी एक मोड़ आया और ..............
तभी साइकिल का बैलेंस बिगड़ा और हम धडाम से रस्ते में जमा पानी में गिर गए मिटटी की वजह से चोट तो नहीं लगी पर कपड़ो का सत्यानाश अवश्य हो गया था ऊपर से चाची और मैं इस अवस्था में थे की फंस से गए थे
“कमबख्त मैंने पहले ही कहा था की साइकिल ध्यान से चलाना पर कर दिया बेडा गर्क तूने ”चाची कसमसाते हुए बोली
“जानबूझ के थोड़ी न गिराया है रुको उठने दो जरा ”
परन्तु, हालात बड़े अजीब से थे साइकिल गिरी पड़ी थी पीछे घास की पोटली थी और आगे हम दोनों फसे हुए ऊपर से मेरा क पाँव भी दबा हुआ था जिसमे दर्द हो रहा था और ऊपर चाची पड़ी थी मैंने अपनी हाथ ओ थोडा हिलाया उसी कोशीश में मेरा हाथ चाची की चिकनी जांघो पर लग गया जो की घाघरा ऊपर होने की वजह से काफ्फी हद तक दिख रही थी
जैसे ही उनकी मक्खन जैसी टांगो से मेरा हाथ टकराया मेरे बदन के तार हिल गए पर और अपने आप ही मेरे हाथ चाची की जांघो को सहलाने लगे
“क्या कर रहा है तू ” वो थोड़े गुस्से से बोली तो मैंने हाथ हटा लिया और उठने की कोशिश करने लगा जैसे तैसे मैं निकला और फिर चाची को भी निकाला
“नास कर दिया मेरे कपड़ो का ” पर किस्मत से बूंदा बांदी तेज होने लगी तो वो ज्यादा नहीं बोली मैंने साइकिल को साफ्फ़ किया और फिर से उसको बिठा कर गाँव की तरफ चल पड़ा पुरे रस्ते वो बडबडाती रही पर मेरा दिमाग तो उसके जिस्म ने पागल कर दिया था जो बार बार मुझसे टकरा रहा था घर पहुचने तक हम लगभग भीग ही गए थे
मैंने चाची को उतारा उसके बाद मैं सीधा बाथरूम में घुस गया नहाने के लिये दिमाग विसे भी घुमा हुआ था चंदा चाची का वो स्पर्श पागल सा कर रहा था मुझे मेरे लंड में सख्ती बढ़ने लगी थी और तभी मेरी नजर खूंटी पर टंगी भाभी की कच्छी और ब्रा पर पड़ी पता नहीं क्यों मैंने कच्छी को उठा लिया और सूंघने लगा
एक मदमस्त सी खुशबु मेरे जिस्म में उतरने लगी मेरे लंड की नसे फूलने लगी मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे की मैं भाभी की चूत को सूंघ रहा हु मेरी कल्पनाये फिर से मुझ पर हावी होने लगी थी मैंने कच्छी को अपने लंड पर लपेट लिया और हथेली को उपर निचे करने लगा
पर मुठी नहीं मार पाया बाहर से मम्मी की आवाज आई , अब चैन से नहाने भी नहीं देंगे ये
“आयजी, चिलाया मैं ” और जल्दी से तौलिया लपेट कर बाहर आया तो देखा की चंदा चाची मम्मी के साथ बरामदे में खड़ी थी
“तेरी चाची कह रही है बिजली नहीं आ रही इनके जरा देख आ एक बार ”
“जी अभी कपडे पहन कर जाता हु ”
“अभी फिर भीगेगा , ऐसे ही चला जा और तारो को आराम से देखना ”
चाची का घर कोई दूर तो था नहीं बस हमारे से अगला ही था चाची ने मुझे छतरी में लिया और हु उनके घर आ गये
“पता नहीं क्या हो गया , सारे मोहल्ले में तो बिजली आ रही है ”
“बेत्तेरी , है तो लाओ जरा ”
चाची से बेट्री ली और मैं तारो को देखने लगा ये सोचते हुए की हमारी जान की किसी को कोई फिक्र है ही नहीं बिजली का काम भी भरी बरसात में ही करवाएंगे , एक हाथ से छतरी और दुसरे से बेट्री को संभाले मैंने तार को देखा एक दम ओके था तो बिजली क्यों नहीं आ रही
“क्या हुआ ”
“तार तो सही है चाची निचे देखता हु ”
मैंने निचे आके देखा तो फ्यूज उडा हुआ था उसको बंधा तो बिजली आ गयी मैंने देखा की चाची ने कपडे बदल लिए थे और अब उसने एक नीली साडी पहनी हुई थी मेरी नजर उसकी नाभि पर पड़ी चाची ने नाभि से थोडा निचे साड़ी बाँधी हुई थी चाची अपने गीले बाल सुखा रही थी
मेरा लंड तन ने लगा और तभी चाची ने मेरी देखते हुए पूछा चाय पिएगा क्या और मैं कुछ बोलता उस से पहले ही मेरा तौलिया खुल गया और मैं बिलकुल नंगा चाची के सामने खड़ा था और मेरा लुंड हवा में झूल रहा था चाची की आँखे उसी तरह हो गयी जैसा उस दिन उन्होंने मुझे मुठी मारते हुए देखा था
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