RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
सुपाडे की संवेदन शील चमड़ी से जैसे ही मेरी सख्त हथेली रगड़ खायी, बदन में कंपकंपी सी मच गयी “आह ” धीमे से एक आह मेरे होंठो से फुट पड़ी पता नहीं ये भाभी के ख्यालो का असर था या बरसात के बाद की चलती ठंडी हवा का जोर था हाथो में उत्तेजित लिंग लिए मैं पंप हाउस के पास खड़ा मैं मुठी मारने का सुख प्राप्त कर रहा था
धीमी धीमी आहे भरते हुए मैं भाभी के बारे में सोचते हुए अपने लंड को मुठिया रहा था आज से पहले मैंने भाभी के बारे में ना कभी ऐसा महसूस किया था और ना ही कभी ऐसे हालात हुए थे जब कच्छा पकड़ाते हुए उनकी वो नरम उंगलिया मेरे हाथ से उलझ गयी थी या जब मेरे कठोर हाथो ने भाभी के नितम्बो को सहलाया था उफ्फ्फ मेरा लंड कितने झटके मार रहा था
रगों में खौलता गरम खून वीर्य बन कर बह जाना चाहता था पल पल मेरी मुठी लंड पर कसती जा रही थी बस दो चार लम्हों की बात और खेल ख़तम हो जाना था दिल में बस भाभी समा गयी थी उस पल में ऐसी कल्पना करते हुए की मैं भाभी ही चोद रहा हु मैं अपनी वासना के चरम पर बस किसी भी पल पहुच ही जाने वाला था मेरा बदन अकड़ने लगा था पर तभी
पर तभी एक स्वर मेरे कानो में गूंजा “ये क्या कर रहे हो तुम ”
और झट से मेरी आँखे खुल गयी और मैंने देखा की हमारी पड़ोसन चंदा चाची मेरे बिलकुल सामने खड़ी है मेरी आँखे जो कुछ पल पहले मस्ती में डूबी हुई थी अब वो हैरत और डर से फटी हुई थी
“चाची......... aaappppppppppp यहाह्ह्हह्ह ” मैं बस इतना ही बोल पाया और अगले ही पल मेरे लंड से वीर्य की पिचकारिया निकल कर सीधा चाची के पेट पर गिरने लगी हालत बिलकुल अजीब थी चाची उस छोटे से पल में अपनी आँखे फाडे मेरी तरफ देख रही थी और मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं पा रहा था बल्कि वीर्य छुटने से जो मजा मिल रहा था उसके साथ ही सामने खड़ी चाची को देख कर दिल में दो तरह की भावनाए उमड़ आई थी
हम दोनों बस एक दुसरे को देख रहे मेरा झटके खाता हुआ लंड चाची के पेट और साडी को पर अपनी धार मार रहा था चाची कुछ कदम पीछे को हुई और तभी मेरी अंतिम धार ठीक उसकी नाभि पर पड़ी स्खलित होते ही डर चढ़ गया मैंने तुरंत अपने पायजामे को ऊपर किया चाची की आँखे तब तक गुस्से से दहक उठी थी
“मरजाने ये क्या कर दिया ” चिल्लाते हुए वो मेरा वीर्य साफ़ करते हुए बोली
“माफ़ कर दो चाची वो , वो बस ........ ”
“शर्म नहीं आती तुझे, कैसे गंदे काम कर रहा है नालायक और मुझे भी गन्दी कर दिया तू आज घर चल तेरी मम्मी को बताती हु तेरी करतुते मैं तो कितना भोला समझती थी पर देखो खुले में ही कैसे......... तू आज आ घर ”
“चाची, चाची जैसा आप समझ रही है वैसा कुछ नहीं है ” मैंने नजर झुकाए हुए कहा
“पूरी को चिचिपी कर दिया और कहता है ऐसा कुछ नहीं है ”
“चाची, गलती हो गयी माफ़ी दे दो आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा वो बस ........ ”
“बस क्या ......................... ”
“चंदा कितनी देर लगाएगी अँधेरा हो रहा है देर हो रही जल्दी आ ” मैंने देखा थोड़ी दूर से ही एक औरत चाची को पुकार रही थी तो चाची ने एक बार मुझे देखा और फिर बोली “आ रही हु ”
थोड़ी दूर जाने पर वो पलटी और बोली “तेरी मम्मी को बताउंगी ” और फिर चल दी
मैं घबरा गया बुरी तरह से क्योंकि घर में वैसे ही डांट पड़ती रहती थी और अब ये चंदा चाची ने भी मुठी मारते हुए पकड़ लिया था अब वो घर पे कह देगी तो मुसीबत हो ही जानी थी कुछ देरवही बैठा बैठा मैं सोचता रहा पप्र घर तो जना ही था वहा नहीं जाऊ तो कहा जाऊ
जब कुछ नहीं सुझा तो धीमे कदमो से चलते हुए मैं घर पंहुचा तो देखा की राणाजी आँगन में बैठे हुक्का पी रहे थे मुझे देख कर बोले “आ गया, मैं तेरी ही राह देख रहा था ”
और उसी पल मेरी गांड फट गयी मैं जान गया की चंदा चाची शिकायत कर गयी है और अब सुताई होगी तगड़े वाली
“यो कोई टेम है तेरा घर लौट के आने का कितनी बार कहा है की फालतू में चक्कर ना काटा कर ”
“बापू, सा वो खेतो पर गया था आने में देर हो गई ”
“देर तो चोखी पर के बात है आजकल नवाब साहब की कुछ ज्यादा ही शिकायते मेरे कानो में आ रही है आज थारा मास्टर जी मिले थे बता रहे थे की पढाई में ध्यान कम ही है तुम्हारा ”
“बापू सा वो थोडा अंग्रेजी में हाथ तंग है बाकि सब ठीक है ”
“देख छोरे, मन्ने तेरे बहाने न सुन ने, पढाई करनी है तो ठीक से कर नहीं तो अपना काम संभाल इतने लोगो में उस मास्टर ने बेइज्जती सी कर दी यो बोलके की राणाजी थारा छोरा ठीक न है पढाई में, और तन्ने तो पता है राणा हुकम सिंह जिंदगी में की चीज़ से प्यार करे है तो वो है उसकी शान से तो कान खोल के सुन ले पढाई बस की ना है तो बोल दे ”
“बापू सा मैं कोशिश कर रहा हु सुधार की ”
“कैसे , पढाई थारे से हो ना रही , घर का काम करना नहीं थारी मम्मी बता रही थी की बनिए की दूकान से राशन जैसे छोटे मोटे काम भी ना करते बस गाने सुनते हो ”
“जी, वो कभी कभी बस ऐसे ही ”
“मेरे घर में ऐसे ही ना चलेगी, या तो कायदे से रहो काम करो ”
“ जी वो मैं कचड़ में गिर गया था और इसलिए ना जा पाया ”
“बहाने नहीं छोरे , काम न होता तो कोई बात ना पर बहाने ना बना ”
“जी मैं क्या नहीं करता पढाई से आते ही सीधा खेतो में जाता हु और मजदूरो जितना ही काम करता हु फलो के बाग़ देखता हु और आपके हर हुकम को पूरा करता हु अब राशन के दिन लेट आ जायेगा तो कौन सी आफत आ गयी , आपके पास इतने नौकर है पर घर में एक भी नहीं बस मुझे ही ......... “
“आवाज नीची रख छोरे ” मम्मी ने बोला
“ न, ना रखु आवाज निचे , आखिर क्यों सुनु मैं जब इस घर के लिए मैं इतना काम करता हु इर भी जली कटी बाते सुन ने को मिलती है ये मत करो वो मत करो इस घर में कैदी जैसा महसूस करता हु मैं सच तो ये है रोटी भी गिन के खाऊ सु , ”
तड़क तड़क बात ख़तम होने से पहले ही मम्मी का हाथ मेरे गाल पर था , “कहा, न आवाज नीची रख और के गलत कह रहे है राणाजी, थारे भला ही चाहते है वो इतना कुछ किया है तुम्हारे लिए वो त्र भाई तो फौज में जाके बैठ गया और तू नालायक कभी सोचा कैसे सब हो रहा है ”
“तो मैं भी तो अपनी तारफ से पूरी कोशिश करता हु ” रोते हुए बोला मैं
“छोरे, सुधर जा, इसे मेरी अंतिम बात समझियो जा अब अन्दर जा ”
“जस्सी, आज इसे खाना ना दिए, मरने दे भूखा, तब जाके होश ठिकाने आयेंगे नवाबजादे के ” मम्मी चिल्लाई
अपने दर्द को दिल में छुपाये मैं अपने कमरे में आ गया गाल अभी भी दर्द कर रहा था , काफी देर खिड़की के पास खड़ा मैं सोचता रहा अपने बारे में घर वालो के बारे में राणाजी का नालायक बेटा बस इस से ज्यादा मेरी कोई हसियत नहीं थी और नालायक इसलिए था क्यंकि पिता जैसा नहीं बन न चाहता था
राणा हुकम सिंह, गाँव के सरपंच पर विधायक की हसियत रखते थे बाहुबली जो थे, कट्टर इन्सान पर वचन के पक्के इनके हुकम को टाल दे किसी की हिम्मत नहीं और मैं जैसे कैद में कोई परिंदा, नफरत करता था मैं उनके इस अनुशाशन से जीना चाहता था अपनी शर्तो पे दुनिया देखना चाहता था
काली रात में टिमटिमाते तारो को देखते हुए मैं सोच रहा था की तभी कमरे में किसी की आहाट हुई खट्ट की आवाज हुई और बल्ब जल गया सामने भाभी खड़ी थी हाथो में खाने की थाली लिए
“आपको नहीं आना चाहिए था भाभी, मम्मी को पता चलेगा तो आपको भी डांट पड़ेगी ”
“सब सो रहे है और वैसे भी जब तुम भूखे हो तो मुझे नींद नहीं आएगी ”
“भूख ना है भाभी ”
“ऐसे कैसे भूख नहीं है देख मैंने भी अभी तक खाना नहीं खाया है तू नहीं खायेगा तो मैं भी भूखी ही सो जाउंगी सोच ले ”
अब भाभी के सामने क्या बोलता , बैठ गया उनके पास भाभी ने निवाला तोडा और मुझे खिलाने लगी मेरी आँख से दर्द की एक बूंद गालो को चुमते हुए निचे गर गयी
इस घर में अगर कोई था जो मुझे समझती थी तो वो जस्सी भाभी थी कितनी फ़िक्र करती थी मेरी भाभी के जाने के बाद मैं अपराध बोध से भर गया की भाभी मेरे लिए इतना करती है और मैं उसके बारे सोच के
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