RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
प्रीति के इस बिलखने से मेरी वासना और दुगनी हो गई और उस कोमल लड़के की चूचियां बुरी तरह से कुचलते हुए मैंने उसे ऐसा भोगा कि वह हमेशा याद करेगी. चाची ने उसकी एक न सुनी बल्कि वे भी प्रीति की सकरी कुंवारी गांड में निकलते घुसते मेरे लंड को देखकर ऐसी गरमाईं कि और जोर से प्रीति का मुंह चोदने लगीं.
मैंने आधे घंटे प्रीति की गांड मारी और फ़िर अखिर एक जोर की हुमक के साथ झड़ गया. प्रीति अब तक दर्द से बेहोश हो चुकी थी, नहीं तो मेरे उबलते वीर्य से उसकी गांड की जो सिकाई हुई उससे उसे कुछ आराम जरूर मिलता. चाची ने प्रीति का सिर छोड़ा और थोड़ी बाजू में हटकर मुझे अपनी बुर चुसाने लगीं.
उस रात मैने प्रीति की गांड सुबह तक और दो बार मारी. गांड में से लंड सारी रात नहीं निकाला. मन भर कर उसे भोग लिया.
दूसरी बार मारने के लिये अपना लंड खड़ा करने को मैने चाची की चूत के रस का पान किया और प्रीति के होश में आने का इंतजार करने लगा. प्रीति जब होश में आकर रोने लगी तो चाची ने फ़िर से उसका मुंह हाथ से दबोच लिया. "चुप कर नहीं तो मुंह मे पट्टी बांध दूंगी." उन्होंने धमकाया तब वह चुप हुई.
मैं प्रीति को गोद में लेकर कुरसी में बैठ गया. अब भी उसका शरीर उसकी सिसकियों से हिल रहा था जिससे मुझे बड़ा मजा आ रहा था. मेरा लंड उसकी गांड में था ही. इस बार मैने उसकी गांड उसे गोद में बिठाकर नीचे से धक्के देते हुए ही मारी जैसे चाचाजी ने एक बार मेरी मारी थी. इस आसन में चाची हमारे सामने खड़ी होकर उसे चूत चुसवा रही थीं इसलिये प्रीति को कुछ आनंद मिला और गांड के दर्द से उसका ध्यान हटा. बाद में चाची उसके सामने बैठकर उसकी बुर चूसती रहीं. मैं नीचे से ही उचक उचक कर उसकी चूचियां मसलते हुए उसकी गांड मारता रहा.
बीच में वह रो कर बोली. "भैया, इतनी बेरहमी से मत कुचलो मेरे मम्मे, बहुत दुख रहे हैं. चाची, प्लीज़ अनिल भैया को बोलो ना!"
"अरे मसलेगा कुचलेगा तभी तो बड़ी होंगी तेरी चूचियां! जिंदगी भर क्या जरा जरासे नीबू लेकर घूमना है? अनिल मसल मसल कर एक साल में मेरे जैसे पपीते कर देगा इनके. तू दबा अनिल, मेरी तरफ़ से और जोर से मसल. जरा निपल भी खींच." और मैंने वैसा ही किया.
तीसरी बार मैने उस कमसिन कन्या को फ़र्श पर पटककर उसकी गांड मारी. नीचे कड़ा फ़र्श और ऊपर मेरे शरीर का भार होने पर कैसा दर्द होता है यह मैं चाचाजी के साथ की चुदाई में अनुभव कर चुका थ. इसलिये प्रीति के दर्द का मुझे अंदाजा था इसलिये पीड़ा से छटपटाते उसके बदन को बांहों में भरे मैंने खूब आनंद लिया. इस बार हमने उसे रोने दिया. उसके रोने से हम दोनों को बड़ा मजा आ रहा था. गांड में लंड की आदत हो जाने से जब उसका रोना कम हुआ तो मैंने उसकी चूचियां ऐसे बेरहमी से मसलीं कि वह फ़िर छटपटा उठी.
कुछ देर में वह लस्त हो कर ढीली हो गयी. चाची बोलीं. "लगता है फ़िर बेहोश हो गयी. वड़ी नाजुक कन्या है. तू परवाह न कर, मार जोर से मसल मसल कर, उसे कुछ नहीं होगा." और मैंने उसके छोटे स्तन कुचलते हुए उसकी ऐसी बेरहमी से गांड मारी कि जैसे लड़की नहीं, रबर की गुड़िया हो.
झड़ने पर मैं भी बिलकुल लस्त हो गया. सारी वासना ठंडी हो गयी थी और बहुत तृप्ति महसूस हो रही थी. प्रीति के निश्चल शरीर को बिस्तर पर लिटा कर हम भी बिस्तर पर लुढ़क गये. उसका सारा शरीर मसले कुचले गुलाब के फूल जैसा लग रहा था. स्तन तो लाल हो गये थे. थोड़े बड़े भी लग रहे थे. चाची बोलीं. "शाबास लल्ला, कुछ दिन और ऐसे ही मसल मसल कर मारेगा तो इसके मम्मे भी बड़े बड़े हो जायेंगे. फ़िर यह तुझे दुआ देगी."
दूसरे दिन प्रीति की बुरी हालत थी. उसे चलते भी नहीं बन रहा था. गांड बुरी तरह दुख रही थी. वह लगातर रो रही थी. उसके रोने बिलखने से मेरा फ़िर खड़ा हो गया. एक बार मुझे लगा कि फ़िर उसकी मार दूं पर फ़िर चाची के कहने से उसे मैंने छोड़ दिया. एक दो दिन हमने उसे आराम करने दिया.
तीसरी रात उसे हमने फ़िर जबरदस्ती अपने कामकर्म में शामिल किया. वह घबरा कर बिलखने लगी पर मैंने वायदा किया कि अब गांड नहीं मारूगा तब वह तैयार हुई. उस रात हमने उसे बहुत सुख दिया, प्यार से उस्की बुर चूसी और हौले हौले चोदा. मजा आने पर वह थोड़ी संभली. चाची ने उसे समझा दिया कि ऐसा तो होता ही है चुदाई में.
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