RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
चाची मेरे सिर को अपनी बुर पर कस कर दबा चूत चुसवाती हुई बोलीं. "बस नरसों करा दूंगी. अब दो दिन मेरी गुलामी करो, मुझे चोदो रात दिन, चाहो तो मेरी गांड भी मार लो, पर बुर चूसना भी पड़ेगी. इतने दिन मेरी बुर का पानी व्यर्थ बहा है, अब तुम्हे पिलाऊंगी. और लल्ला तुझे भी, तू फ़िकर न कर."
मैं उठ कर बैठ गया. चाची आगे बोलीं. "लल्ला को अब तीन दिन छुट्टी देते हैं ताकि यह पूरा ताजा तवाना हो जाये. तुम दो दिन मुझे खूब भोगो, मुझे खुश कर दो. परसों रात से तुम्हें भी एक दिन का आराम दूंगी ताकि तुम अपने पूरी शक्ति से तुम इस लड़के का कौमार्य भंग करने का आनंद उठा सको."
मैंने तीन दिन सेक्स से वंचित रखे जाने एक प्लान पर विरोध किया पर दोनों ने मेरी एक न सुनी. हां, मुझे एक चुदाई का आखरी उपहार देने के स्वरूप मेरी चुदैल चाची ने यह इच्छा जाहिर की कि आज की रात भर मैं और चाचाजी एक साथ उन्हें आगे पीछे से भोगें. जाहिर था कि चाची की कामोत्तेजना अब चरम सीमा पर थी. अपने दोनों छेदों में एक एक लंड एक साथ लेना चाहती थी.
दोपहर भर आराम करके हम फ़िर चुस्त हुए. रात को बिस्तर में एक दूसरे से चूमा चाटते करते हुए हमने यह फैसला किया कि पहले चाचाजी उसकी चूत चोदेंगे और मैं गांड मारूंगा. चाचाजी ने पहले तो चाची की चूत चूसी और उसे गरम किया. एक दो बार झड़ाकर रस पिया. फ़ि अपनी पत्नी की बुर में अपना लौड़ा घुसाकर वे उसे बांहों में भरकर पीठ के बल लेट गये जिससे चाची उनके ऊपर हो गयीं. चाची की गांड उन्होंने अपने हाथों से मेरे लिये फैलायी और मैंने अपना लंड चाची के कोमल गुदा में आसानी से उतार दिया.
चाची को अब हम दोनों एक साथ चोदने लगे. मैं ऊपर से उनकी गांड मारने लगा और नीचे से चाचाजी अपनी कमर उछाल उछाल कर चोदने लगे. कुछ ही समय में एक लय बंध गयी और चाची के दोनों छेदों में सटा सट लंड चलने लगे. वे तृप्त होकर सिसकारियां भरने लगीं. हर दस मिनिट में हम पलट लेते जिससे कभी चाचाजी ऊपर होते तो कभी मैं. कभी करवट पर लेट कर आगे पीछे से चोदते. चाची तो निहाल होकर किसी रंडी जैसी गंदी गालियां देती हुईं इस डबल चुदाई का आनंद ले रही थीं.
चाचाजी बेतहाशा चाची को चूमते हुए उसे चोद रहे थे. बीच में चाची सांस लेने को अपना मुंह हटा लेतीं तो मैं और चाचाजी एक दूसरे के चुंबन लेने लगते. चाची की चूत और गुदा के बीच की दीवार तन कर इतनी पतली हो गयी थी कि मेरे और चाचाजी के लंड आपस में रगड़ रहे थे मानों हम लंड लड़ा रहे हों. हमने ऐसी लय बांध ली कि जब मेरा लंड अंदर होता तो चाचाजी का बाहर और जब वे चूत में लंड पेलते तो मैं गांड में से बाहर खींच लेता. इससे हमारे लंड आपस में ऐसे मस्त सटक रहे थे कि जैसे बीच में कुछ न हो.
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