RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
चाचाजी और मैं फ़िर मूतने के लिये छत पर चले गये. 'तू भी मूत ले रानी, फ़िर आगे का काम शुरू करते हैं." चाचाजी प्यार से बोले. "मैं बाद में कर लूंगी. तुम लोग हो आओ." वे मुस्कराकर बोलीं.
चाचाजी ने मटके का ठंडा पानी पिया और चाची को भी दिया. जब मुझे दिया तो मैंने मना कर दिया. "तुझे प्यास नहीं लगी बेटे?" उन्होंने पूछा तो मैं चुप रहा. चाची ने बिस्तर से पुकार कर कहा. "अरे वह पानी नहीं सिर्फ शरबत पीता है. आ जा अनिल, तेरा शरबत तैयार है." चाचाजी ने उनसे पूचा. "कौन सा शरबत है जो प्यार से बिस्तर में पिलाती हो? जरा मैं भी तो देखू!" चाची खिलखिलाकर बोलीं. "जल्दी आ अनिल, नहीं तो छलक जायेगा. अब नहीं रहा जाता मुझसे."
चाची बिस्तर पर घुटने टेक कर तैयार थीं. मैं झट से उनकी टांगों के बीच घुस कर लेट गया. अपनी झांटें बाजू में करके चाची ने अपनी बुर मेरे मुंह पर जमायी और मूतने लगी. मैं चटखारे लेकर उनका मूत पीने लगा. चाचाजी के चेहरे पर आश्चर्य और कामवासना के भाव उमड़ आये. "अरे तू तो मूत रही है अनिल के मुंह में?"
चाची हंस कर बोलीं. "यही तो शरबत है मेरे लाड़ले का. दिन भर और रात को भी पिलाती हूं. इसने तो पानी पीना ही छोड़ दिया है. और तुम्हारी कसम, दो हफ्ते से मैंने बाथरूम में मूतना ही छोड़ दिया है. यही है अब मेरा प्यारा मस्त चलता फ़िरता जिंदा बाथरूम.'
चाची का मूतना खतम होते होते मेरा तन कर खड़ा हो गया. इस मतवाली क्रिया को देखकर दो मिनिट में चाचाजी का भी लौड़ा तन्ना गया. चाची ने मौका देखकर तुरंत उनका लंड मुंह में ले लिया और चूसने लगीं. पति की मलाई खाने का इससे अच्छा मौका नहीं था. उधर चाचाजी गरमा कर मेरे ऊपर झुक गये और मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगे. मैं सुख से सिहर उठा. देखा तो चाची अपनी टांगें खोल कर अपनी बुर मे उंगली करते हुए मुझे इशारे कर रही थीं. मैं समझ गया और किसी तरह सरक कर उनकी टांगों में सिर डालकर उनकी बुर चूसने लगा.
यह मादक त्रिकोण सबकी प्यास बुझा कर ही टूटा. चाची तीन बार मेरे मुंह में झड़ीं. मैंने चाचाजी का सिर पकड़कर खूब धक्के लगाये और उनके मुंह में झड़ कर उन्हें अपनी मलाई खिलाई. चाचाजी आखिर में झड़े और उनके लंड ने ढेर सारा वीर्य अपनी पत्नी के गले में उगल दिया.
उस रात का संभोग यहीं खतम हुआ और हम सो गये. दूसरे दिन दोपहर में आगे कहानी शुरू हुई. मेरे मुंह में चाची के मूतने से कार्यक्रम शुरू हुआ. इससे हम तीनों मस्त गरम हो गये थे. पति पत्नी बातें करने लगे कि आज क्या किया जाए. जवाब सहज था, चाची की चूत चोदना बाकी था .
उसम्मे चाचाजी अब भी थोड़ा हिचक रहे थे. आखिर पक्के गांड मारू जो थे! हमने एक बार कोशिश की पर चाची की चूत में घुसते घुसते उनका बैठ गया. आखिर एक पक्के गे के लिये यह सबसे बड़ी चुनौती थी. चाचाजी भी परेशान थे क्योंकि वे सच में अपनी पत्नी को चोदना चाहते थे.
आखिर मैंने राह निकाली. मैंने कहा, "ऐसा कीजिये चाचाजी, आप ओंधा लेटिये, मैं आपकी गांड में लंड डालता हूं. फ़िर आप चाची पर चढ़ कर उसे चोदिये. मैं ऊपर से आपकी गांड मारूंगा. आप को दोहरा मजा आ जायेगा. उस मजे में आप चाची को मस्त चोद लेंगे."
वे खुश हो गये. मेरे लंड को देखते हुए बोले. "सच बेटे, तू मेरी मारेगा? मुझे तो मजा आ जायेगा मेरे राजा." मैं थोड़ा शरमा कर बोला. "हां चाचाजी, आपकी कसी मोटी ताजी गांड मुझे बहुत अच्छी लगती है. प्यार करने का मन होता है. सोचा मौका अच्छा है, चाची का काम भी हो जायेगा.
चाचाजी ने मुझे चूम लिया. "वाह मेरे शेर, आ जा" कहकर वे झट से ओंधे मुंह के वल बिस्तर पर लेट गये और अपने चूतड़ हिला कर मुझे रिझाते हुए बोले. "देख अब मेरी गांड तेरी है बेटे, जो करना है कर, तेरी गांड तो बहुत प्यारी है मेरे लाल, बिलकुल लौंडियों जैसी, मेरी जरा बड़ी है. देख अच्छी लगती है तुझे या नहीं."
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