RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
कभी कभी हम घंटे दो घंटे इसी तरह मजा करते. सवाल सिर्फ मेरा था कि मैं कितनी देर इस मीठे दर्द को सह सकता हूं. चाची तो खूब झड़ती इसलिये उन्हें बहुत मजा आता था. प्रीति भी खुश रहती थी क्योंकि उसे मनमानी अपनी मौसी की बुर से घंटों खेलने का मौका मिलता. जब वह ज्यादा गरम हो जाती तो हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती और हम दोनों में से एक झुककर उसकी बुर चूस देते.
मुट्ठ मारने की सब कलायें मौसी ने उसे सिखा दी थीं इसलिये इस आसन में प्रीति कई बार चाची की चूत चूसने के साथ साथ केले या ककड़ी से उन्हें हस्तमैथुन भी करा देती.
बीच मे एक दिन मैं पास के शहर में जाकर कुछ सचित्र चुदाई की किताबें ले आया. कुछ मेगेज़ीन चाची ने अपनी अलमारी में से निकालीं. उन्हें देख देख कर सबको और तैश चढ़ता था. मैं हर तरह के चित्रों की किताबें लाया था, स्त्री-स्त्री, स्त्री-पुरुष पुरुष-पुरुष इत्यादि. चाची की किताबों में सब पुरुषों के आपसी संभोग के ही चित्र थे. उनमें से कई मॉडल तो बड़े हैंडसम थे. चुन चुन कर मोटे लंबे लंडों वाले जवानों के फ़ोटो उनमें थे.
चाची को और प्रीति को यह पुरुष संभोग के चित्र देखने में बड़ा मजा आता था, शायद उन मस्त लंडों की वजह से. धीरे धीरे मुझे भी वे भाने लगे. उनमें से एक दो लंड तो इतने बड़े थे कि उन्हें किसी पुरुष की गांड में घुसे चित्रों को देखकर मैं सोच पड़ता था कि आखिर कैसे ये लोग इतने बड़े लंड ले लेते हैं. अपने आप को उस परिस्थिति में होने की कल्पना करने से मुझे एक अजीब भय भरी चाहत गुदगुदा जाती थी. मुझे क्या मालूम था कि एक दिन मैं सच में इस परिस्थिति में आ जाऊंगा और वह भी किसी बिलकुल करीबी पुरुष के साथ!
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हुआ यह कि एक दिन प्रीति के सो जाने के बाद मैंने चाची की गांड मारते हुए पूछा कि आखिर चाचाजी का क्या प्राब्लम है जो खुद इतने हैंडसम हैं और फ़िर भी अपनी खूबसूरत चुदैल बीबी को हाथ तक नहीं लगाते! चाची ने उस दिन मुझे पूरी बात बतायी.
"तेरे राजीव चाचा असल में बेटे गे हैं. औरतों में कतई दिलचस्पी नहीं है उन्हें. शादी के दूसरे दिन ही उन्होंने मुझे बता दिया था. उनके शायद यार दोस्त हैं बाहर इसीलिये महने में बीस पचीस दिन गायब रहते हैं, नौकरी का तो बहाना है. यह सब जो मर्द मर्द वाले चित्रों की किताबें हैं ना, सब उनकी अल्मारी में मिली थीं मुझे"
मैं सुनकर चकरा गया. जब मैंने चाचाजी की कल्पना दूसरे किसी मर्द के साथ संभोग करते हुए की तो न जाने क्यों मेरा तन्ना कर खड़ा हो गया और मैं आपे के बाहर होकर कस के चाची की गांड मारने लगा. झड़ कर ही दम लिया. वे कहती ही रह गयीं कि अरे मजा ले लेकर धीरे धीरे मार.
फ़िर उन्होंने मुझे चूमते हुए पूछा कि क्या मैं चाचाजी की बात सुनकर उत्तेजित हो गया था. मैंने शरमाते हुए बात मान ली. चाची ने फ़िर हौले से मुझे पूछा कि वे चित्र मुझे कैसे लगते हैं. उनकी बात के पीछ कुछ छुपा अर्थ था. मैंने फ़िर उनसे कहा कि मुझे भी ऐसे चित्र अच्छे लगते हैं अगर पुरुष सुंदर और हैंडसम हों.
फ़िर चाची ने मेरी आंखों में आंखें डालीं और पूछा. "सच बता लल्ला, तेरे चाचाजी तुझे कैसे लगते हैं? मेरा मतलब है ऐसे समलिंग यौन कर्म करने के लिये" मैं चुप रहा. यह बात उन्होंने महना भर पहले पूछी होती तो मेरा जवाब और कुछ होता. पर दो हफ़्ते की निरंतर काम क्रीड़ा ने मानों मेरे मन की सब दीवालों को तोड़ डाला था.
थोड़ा शरमाते हुए मैंने स्वीकार किया कि मेरे सजीले चाचाजी के साथ ऐसा कुछ करने का मौका मिले तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा. चाची ने खुश होकर मुझे चूम लिया. "बस मेरा काम बन गया लल्ला. तू ही उन्हें फ़िर मेरी ओर मोड़ सकता है." मैं समझा नहीं और चाची से साफ़ साफ़ कहने को कहा.
वे बोलीं. "अरे, वे चिकने जवानों पर और खास कर किशोरों पर फ़िदा रहते हैं. मुझे मालूम है, उनके देखने के अंदाज से. जब भी कोई कमसिन चिकना लड़का नजर में आता है, उनकी नजर ही बदल जाती है. तू भी बड़ा सुंदर चिकना है पर सगा भतीजा होने के कारण वे अपने आप को काबू में रखते हैं और तेरे बारे में सोचते भी नहीं. तू एक बार उन्हें इशारा कर दे तो तेरे तो दीवाने हो जायेंगे. और एक बार तेरे इस प्यारे चिकने जवान शरीर के गुलाम हुए कि फ़िर उनका बाहर जाना कम हो जायेगा और हो सकता है कि धीरे धीरे वे मुझे चोदना भी शुरू कर दें. मेरा यह काम करेगा लल्ला? ऐसा इनाम दूंगी कि तू खुश हो जायेगा."
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