RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
चाची ने बस एक जुल्म मुझ पर किया. उन शुरुवात के दिनों में एक भी बार गुदा मैथुन नहीं करने दिया जिसके लिये मैं मरा जा रहा था. उनके गोरे मुलायम मोटे मोटे चूतड़ों ने मुझ पर जादू कर दिया था. अक्सर कामक्रीड़ा के बाद वे जब पट पड़ी आराम करतीं, मैं उनके नितंबों को खूब प्यार करता, उन्हें चूमता, चाटता, मसलता यहां तक कि उनके गुदा पर मुंह लगाकर भी चूसता और कभी कभी जीभ अंदर डाल देता. वह अनोखा स्वाद और सुगंध मुझे मदहोश कर देते.
चाची मेरी गांड पूजा का मजा लेती रहतीं पर जब भी मैं उंगली डालने की भी कोशिश करता, लंड की बात तो दूर रही, वे बिचक जातीं और सीधी होकर हंसने लगतीं. मेरी सारी मिन्नतें बेकार गयीं. बस एक बात पर मेरी आशा बंधी थी, उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि कभी गांड मारने नहीं देंगी. बस यही कहतीं. "अभी नहीं लल्ला, तपस्या करो, इतना बड़ा खजाना ऐसे ही थोड़े दे दूंगी."
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दूसरे दिन हम तीनों नहा धो कर बस दोपहर की राह देख रहे थे कि कब नौकरानी घर जाये और कब हम हमारे खेल शुरू करें. प्रीति बार बार चाची से चिपटने का बहाना देख रही थी. मेरी ओर भी कनखियों से देख रही थी और मुस्करा रही थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी. जान बूझकर एक छोटा स्कर्ट और एकदम तंग ब्लाउज़ पहन कर घूम रही थी जिसमें से उसकी टांगें और मम्मे साफ़ दिख रहे थे. चाची ने कई बार आंखें दिखा कर हमें डांटा पर वे भी मंद मंद मुस्करा रही थीं. अब तो उनके भी वारे न्यारे थे. दो एकदम किशोर चाहने वाले, एक लड़का याने मैं और एक लड़की याने प्रीति उनके आगे पीछे घूम रहे थे. खट्टे और मीठे दोनों स्वादों का इंतजाम था उनके लिये.
आखिर नौकरानी घर गयी और हमने दौड़ कर चाची के कमरे में घुस कर दरवाजा लगा लिया. प्रीति तो जाकर चाची की बांहों में समा गयी और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगीं. चाची उसे कस कर पकड़े हुए सोफे पर बैठ गयी और मुझे भी अपने पास बैठा लिया. अब वे कभी प्रीति के चुंबन लेतीं कभी मेरे. आखिर पूरा गरम होने के बाद वे उठीं और कपड़े उतारने लगीं. हमें भी उन्होंने नंगे होने का आदेश दिया.
मैं तो तुरंत नंगा हो गया. तन कर खड़े और उछलते मेरे लंड को देखकर प्रीति होंठों पर जीभ फेरने लगी. वह थोड़ी शरमा रही थी इसलिये धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी. चाची अब तक साड़ी चोली उतार कर अर्धनग्न हो गयी थीं. उनके ब्रा और पैंटी में लिपटे मांसल बदन को देखकर प्रीति पथरा सी गयी. उनकी ओर घूरती हुई अनजाने में अपने हाथ से अपनी चूत स्कर्ट पर से ही रगड़ने लगी.
चाची उसके पास गयीं और प्यार से धीरे धीरे उसका स्कर्ट और टॉप निकाला. अंदर प्रीति एक बड़ी प्यारी सी कॉटन की सिंपल सफ़ेद ब्रा और चड्डी पहने थी. अधखिले उरोज ब्रा में से झांक रहे थे. उस कच्ची कली के छरहरे गोरे बदन को देखकर हम दोनों ऐसे गरम हुए कि समझ में नहीं आ रहा था कि कौन किसे पहले भोगे. हम दोनों उस लड़की से लिपट गये और उसके बदन को हाथों से सहलाते हुए और दबाते हुए उसे चूमने लगे. कभी मैं उसके लाल होंठ चूसता तो कभी चाची. झुक कर कभी उसका पेट चूम लेते तो कभी गोरी पतली जांघे.
चाची ने आखिर पहल की और अपनी ब्रा और पैंटी उतार फेंकी. बोलीं. "प्रीति बिटिया, तू नयी है इसलिये यहां बैठकर हमारा खेल देख़ अपने आप समझ जायेगी कि कैसे क्या करना है." प्रीति को एक कुर्सी में बिठा कर वे मेरे पास आयीं और हमारी रति लीला आरंभ हो गयी.
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