RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
इस आसन में वे नीचे लेट जातीं और मैं उनके खुले मुंह में जड़ तक लंड उतार देता. फ़िर उनपर लेट कर हाथों से उनके सिर को पकड़कर उसे घचाघच चोदता. चाची के गले तक मेरा लंड उतर जाता और उस कोमल गीले गले में सुपाड़ा चलता तो बिलकुल ऐसा लगता जैसे किसी सकरी चूत को चोद रहा हूं.
झड़ने पर वीर्य भी सीधा उनके हलक में जाता. इसीलिये यह आसन वे कम करने देती थीं. एक तो उनका गला भी थोड़ा दुखता, दूसरे वीर्य सीधा पेट में जाने से वे उसका स्वाद नहीं ले पाती थीं जबकि जीभ पर वीर्य लेकर उसे स्वाद ले लेकर धीरे धीरे खाना उन्हें बहुत अच्छा लगता था.
चूत चूसने के तो कई मस्त आसन थे. पहला यह कि चाची को पलंग पर लिटा कर उनकी निचली जांघ का तकिया बनाकर मैं चूत चूसता. वे ऊपरी जांघ मेरे सिर पर रखकर मेरे सिर को दोनों जांघों में दबोच लेतीं और हाथों से मेरा सिर पकड़कर अपनी चूत पर दबा कर मुझसे चुसवातीं. इस आसन में वे अक्सर अपनी टांगें ऐसे फ़टकारतीं जैसे साइकिल चला रही हों. उनकी सशक्त जांघे कभी कभी इतनी जोर से मेरे सिर को जकड़ लेतीं कि जैसे कुचल डालेंगी. दर्द भी होता पर उन मदमस्त चिकनी जांघों में गिरफ्त होने का सुख इतना प्यारा था कि मैं दर्द को सहन कर लेता.
कभी कभी वे कुर्सी में बैठ कर टांगें पसार देतीं और मैं जमीन पर उनके सामने बैठ कर चूत चूसता. मेरे बालों में वे प्यार से उंगलियां फेरती रहतीं. यह बड़ा आराम का आसन था. खड़े खड़े चुसवाने में भी उन्हें मजा आता था. वे टांगें फैलाकर दीवार से टिककर खड़ी हो जातीं और मैं उनके बीच बैठकर मुंह उठाकर उनकी बुर चूसता रहता.
हर आसन में मैं उनकी बुर में अक्सर जीभ डालता. पर जब उन्हें जीभ से चुदने का शौक चर्राता, वे एक खास आसन का इस्तेमाल करती थीं. मैं पलंग पर लेटकर जीभ जितनी हो सकती थी उतनी बाहर निकाल देता और कड़ी कर लेता. मेरे सिर पर बैठकर वे जीभ बुर में ले लेतीं और फ़िर ऊपर नीचे होकर उसे लंड सा चोदतीं. पांच मिनिट से ज्यादा मैं नहीं यह कर पाता था क्योंकि जीभ दुखने लगती थी. पर चाची को इतना मजा आता था कि एक दो मिनिट को जीभ को आराम देकर मैं फ़िर उसमें जुट जाता. इस आसन में रस खून निकलता था जो सीधा मेरी जीभ पर टपकता था.
और जब चाची मुझे हस्तमैथुन करके दिखातीं तो मैं तो वासना से पागल हो जाता. यहां तक कि एक दो बार न रहकर मैंने मुट्ठ मार ली और चाची नाराज होकर लाल पीली हो गयीं. उसके बाद वे पहले मेरे हाथ पैर बांध देतीं और फ़िर बाद में अपनी हस्तमैथुन कला मुझे दिखातीं. इसकी शुरुवात एक दिन दोपहर को तब हुई जब चाची ने दो उंगलियां अपनी बुर में घुसेड़ कर मुठ्ठ मार कर मुझे दिखायी. मेरी खुशी देखकर उन्हें और तैश आया. "रुक लल्ला, अभी आती हूँ" कहकर वे रसोई में चली गईं.
|