RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
मैं शरमा गया और बहुत उत्तेजना भी हुई. पहले मैने यह समझा कि उन्हें पता नहीं है कि उनका सब खजाना मुझे दिख रहा है इसलिए झेंप कर नज़र फिरा कर दूसरी ओर देखकर मैं उनसे बातें करने लगा. पर वे कहाँ मुझे छोड़ने वाली थीं. दो ही मिनिट में शरारत भरे अंदाज में वी बोलीं. "चाची क्या इतनी बुरी है लल्ला की बात करते समय उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते?"
मैंने मुड. कर उनकी ओर देखा और कहा. "नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी, मुझे तो लगता है आप को लगातार देखता रहूं पर आप बुरा ना मान जाएँ इसलिए घूरना नहीं चाहता था."
"तो देखो ना लाला. ठीक से देखो. मुझे भी अच्छा लगता है कि तेरे जैसा कोई प्यारा जवान लडका प्यार से मुझे देखे. और फिर तो तू मेरा भतीजा है, घर का ही लड़का है, तेरे तकने को मैं बुरा नहीं मानती" कहकर उस मतवाली नारी ने अपनी टाँगें बड़ी सहजता से और फैला दीं और बैंगन काटती रही.
अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. चाची मुझे रिझा रही थीं. मैं भी शरम छोड़. कर नज़र गढ़ा कर उनके उस मादक रूप का आनंद लेने लगा. गोरी फूली बुर पर खूब रेशमी काले बाल थे और मोटी बुर के बीच की गहरी लकीर थोड़ी खुल कर उसमें से लाल लाल योनिमुख की भी हल्की झलक दिख रही थी.
पाँच मिनिट के उस काम में चाची ने पंद्रह मिनिट लगाए और मुझसे जान बुझ कर उकसाने वाली बातें कीं. मेरी गर्ल फ्रेन्ड्स हैं या नहीं, क्यों नहीं हैं, आज के लडके लड़कियाँ तो बड़े चालू होते हैं, मेरे जैसा सुंदर जवान लडक अब तक इतना दबा हुआ क्यों है इत्यादि इत्यादि. मैं समझ गया कि चाची ज़रूर मुझ पर मेहरबान होंगी, शायद उसी रात. मैं खुश भी हुआ और चाचाजी का सोच कर थोड़ी अपराधीपन की भावना भी मन में हुई.
आख़िर चाची उठीं और खाना बनाने लगीं. मैं बाहर के कमरे में जाकर किताब पढने लगा. अपनी उबलती वासना शांत करने का मुठ्ठ मारने के सिवाय कोई चारा नहीं था इसलिए मन लगाकर जो सामने दिखा, पढता रहा. कुछ समय बाद चाची ने खाने पर बुलाया और हम दोनों ने मिल कर बिलकुल यारों जैसी गप्पें मारते हुए खाना खाया.
खाना समाप्त करके मैं अपने कमरे में जाकर सामान अनपैक करने लगा. सोच रहा था कि चाची कहाँ सोती हैं और आज रात कैसे कटेगी. तभी वे उपर आईं और मुझे छत पर बुलाया. "अनिल, यहाँ आ और बिस्तर लगाने में मेरी मदद कर."
मैं छत पर गया. मेरा दिल डूबा जा रहा था. गरमी के दिन थे. सॉफ था कि सब लोग बाहर खुले में सोते थे. ऐसी हालत में क्या बात बननी थी चाची के साथ. छत पर दो खाटे थीं. हमने उनपर गद्दियाँ बिछाईं. "गरमी में बाहर सोने का मज़ा ही और है लाला" कहा कर मुझे चिढ़ाती हुई वे मच्छरदानियाँ लेने चली गयीं.
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