RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
मेरी नज़र शायद उन्होंने पहचान ली थी क्योंकि मेरी ओर देखकर चाची बड़ी शरारती नज़र से देख कर बोलीं. "कितने जवान हो गये हो लल्ला, इतना सा देखा था तुझे. शादी कर डालो अब, गाँव के हिसाब से तो अब तक तुम्हारी बहू आ जाना चाहिए."
उनके बोलने के और मेरी ओर देखने के अंदाज से मैं एक बात तुरंत समझ गया. गीता चाची बड़ी "चालू" चीज़ थीं. कम से कम मेरे साथ तो बहुत इतरा रही थीं. मैं थोड़ा शरमा कर इधर उधर देखने लगा.
हम अब अकेले थे इसलिए वी घूँघट छोड़. कर अपने कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पें लगाने लगी. उनके बाल भी बड़े लंबे खूबसूरत थे जिसका उन्होंने जुड़ा बाँध रखा था. "चाय बना कर लाती हूँ लल्ला." कहकर वे चली गयीं. अब साड़ी उनकी कमर से हट गयी थी और उस गोरी चिकनी कमर को देखकर और उनके नितंब डुलाकर चलने के अंदाज से ही मेरा लंड और कस कर खड़ा हो गया.
वे शायद इस बात को जानती थीं क्योंकि जान बुझ कर अंदर से पुकार कर बोलीं. "यहीं रसोई में आ जाओ लाला. हाथ मुँह भी धो लो" मेरा ऐसा कस कर खड़ा था कि मैं उठ कर खड़ा होने का भी साहस नहीं कर सकता था, चल कर उनके सामने जाने की तो दूर रही. "बाद में धो लूँगा चाची, नहा ही लूँगा, चाय आप यहीं ले आइए ना प्लीज़."
वे चाय ले कर आईं. मेरी ओर देखने का अंदाज उनका ऐसा था कि जैसे सब जानती थीं कि मेरी क्या हालत है. बातें करते हुए बड़ी सहज रीति से उन्होंने अपना ढला हुआ आँचल ठीक किया. यह दस सेकंड का काम करने में उन्हें पूरे दो मिनिट लगे और उन दो मिनिटों में पाँच छह बार नीचे झुककर उन्होंने अपनी साड़ी की चुन्नटे ठीक कीं.
इस सारे कार्य का उद्देश्य सिर्फ़ एक था, अपने स्तनों का उभार दिखा कर मेरा काम तमाम करना जिसमें गीता चाची शत प्रतिशत सफल रहीं. उस लाल लो-काट की चोली में उनके उरोज समा नहीं पा रहे थे. जब वे झुकीं तो उन गोरे मांसल गोलों के बीच की खाई मुझे ऐसी उत्तेजित कर गई कि अपने हाथों को मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड पर जाने से रोका नहीं तो हस्तमैथुन के लिए मैं मरा जा रहा था.
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