RE: Desi Sex Kahani गदरायी मदमस्त जवानियाँ
थिएटर में जाते ही उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे सीट पर बिठाया. पूरी फिल्म के दौरान हम एक दुसरे को चूमते सहलाते रहे. सेक्स के बगैर किया हुआ रोमांस बड़ा ही अच्छा लग रहा था. हम दोनों भी काफी उत्तेजित हो चुके थे. सिर्फ हम दोनों ही साथ में रहने का यह पहला ही मौक़ा था , जिसका हम दोनों भी दिल खोलके आनंद ले रहे थे.
फिल्म देखने के बाद बढ़िया पंजाबी रेस्ट्रॉन्ट में खाना खाकर हम बाहर निकले.
रूपेश मुझसे कहने लगा, "सुनीता दीदी.."
वो आगे कुछ कहे इसके पहले मैंने उसके होठोंपर अपनी ऊँगली रखी और कहाँ, "आज से सिर्फ सुनीता!"
रूपेश: "क्या राज भैया के सामने भी?"
मैंने कहा, "हां मेरी जान, मैं सचमुच तुम्हे बहुत चाहती हूँ. हम दोनों के बीच आज तक जो कुछ हो गया हैं, उसके बाद अब तुम हमेशा मुझे सुनीता ही पुकारोगे."
फिर उसकी आँखों में आँखे डालकर और भी प्यार से मुस्कुराते हुए मैंने कहा, "और जब सिर्फ हम दोनों ही हो, तब सुनीता रानी कहो. मुझे बड़ा अच्छा लगेगा।"
रूपेश: "ओ मेरी डार्लिंग सुनीता रानी, मैं भी तुम्हे जी जान से चाहता हूँ. तुम्हे खुश करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ. अब घर जाने के लिए लोकल में जाने का मेरा मन नहीं कर रहा है। क्या हम यहीं पर एक कमरा लेकर आज की रात रुक सकते है?"
जैसे की रूपेश ने मेरे दिल की बात जान ली, इसलिए मैं खुश हुई और उसे गले लगाकर गालोंपे चुम्मी जड़कर अपनी हां जाहिर की. दस मिनट में हम एक नजदीकी लॉज के कमरे में दाखिल हुए.
अगले आधे घंटे तक एकदम रोमैंटिक सीन चल रहा था. पहले हमने खड़े खड़े ही एक दुसरे को आलिंगन चुम्बन किया. मुझे मेरी गर्दन , काँधे और कानों पर किये हुए किसेस बहुत उत्तेजित करते है. रूपेश ने भी उन्ही जगहोंपर गीले चुम्बनोंकी बौछार लगा दी. तीन चार मिनट तक तो हम एक दुसरे के होंठ और जीभ चूसते रहे. उसके हाथ मेरे नितम्बोँको और चूचियोंको प्रेमसे स्पर्श करके मुझे दीवाना कर रहे थे. मैं भी उसकी पीठ और कमरको सहलाकर अपने प्रेम का प्रदर्शन कर रही थी.
फिर हम दोनोंके वस्त्र धीरे धीरे हट गए और हम सम्भोग सुख का आनंद लेने और देने लगे. ऐसा लग रहा था की इसमें हमेशा की सेक्स के साथ कुछ और भी था. रूपेश ने मुझे सिक्सटी नाइन में, नीचे लिटाकर और आखिर घोड़ी बनाकर सम्भोग सुख दिया. आज वो मुझे जोर जोर से नहीं बल्कि बड़े प्यार से चोद रहा था. चरम सीमा पर आने के बाद रूपेश ने उसका सारा वीर्य मेरी चुत में ही छोड़ दिया और मुझे वैसे ही लिपटे रहा.
मैंने उसे अपनी बाहोंमें जकड लिया और कहा, "रूपेश डार्लिंग, तुम और सारिका हमेशा हमारे साथ रहो और तुम मुझे ऐसे ही सुख देते रहो. तुम मुझे बहुत प्यारे हो."
उसने भी मेरे होंठ चूमकर कहा, "मेरी सुनीता रानी, मैं हमेशा तुम्हारा गुलाम बनकर तुम्हे सर्वोच्च सुख देता रहूंगा."
इसपर मैंने उसे प्यार से चाटा मारा और कहा, "गुलाम बनके नहीं, मेरे दिल के राजा बनके!"
सारी रात एक दूसरेको असीम सुख देने के बाद अगले दिन हम अँधेरी चले गए. दो दिन बाद सारिका को लेकर राज आ गए. रूपेश दुकान पर व्यस्त होनेके कारण वो नहीं आ सका इसलिए मैंने भी अकेले मुंबई सेंट्रल तक जाना उचित न समझा. राज और सारिका सीधे घर पर दाखिल हुए.
आते ही सारिका मेरे गले लगी और कहा, "दीदी, मैंने आपको और हमारी ग्रुप चुदाई को बहुत मिस किया."
मैंने भी उसे गले लगाकर गालोंपे चूमकर बोली, "पगली, मैंने भी तुम्हे कितना ज्यादा मिस किया. अब तुम आ गयी हो, मैं कितनी खुश हूँ, देखो?"
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