RE: Desi Sex Kahani गदरायी मदमस्त जवानियाँ
"हां, राज भैया, ये लो मैंने अपने बूब्स नजदीक कर लिए, आओ और अपने सख्त लौड़े से चोदो इन्हे," सारिका बोली.
फिर राज ने अपना लंड उसकी चूचियोंके बीच रगड़ना शुरू किया. इस असीम सुख से राज भी सांतवे आसमान में उड़ रहा था.
कुछ देर बाद राज बोला, "डार्लिंग, अब घोड़ी बन जाओ, मैं तुमको डॉगी पोज में चोद कर तुम्हारी मस्त गांड को चांटे मारूंगा."
तुरंत सारिका डॉगी पोज में आ गयी और काफी देर तक उस पोज में चुदाई करने के बाद राज ने कहा, "सारिका, अब मेरा फव्वारा छूटने वाला हैं. खोल तेरा मुँह और चूस ले."
सारिका अपने घुटनोंपर बैठ गयी और राज के लौडेको प्यार से चूसने लगी. चूसते हुए उसके आंखोंमे बड़े प्यार से देखती और जैसे ही वीर्य की धरा निकली वो निगलने लगी.
इस तरह, उस रात में हमने चार बार सेक्स करके हमारी जिंदगी का नया अध्याय शुरू किया.
अब इसके बाद की हर रात हम पार्टनर बदल बदल कर चोदते रहे. सारिका भी अब सिक्सटी नाइन, वीर्य पीना और अपनी चुत चटवाने में पूरी एक्सपर्ट हो गयी थी.
अगले महीने रूपेशकी माँ की तबियत खराब हो जाने की खबर आयी. अब रूपेश और सारिका को कुछ दिन के लिए उन्हें मिलने अपने गांव जाना जरूरी था. बैंक के कर्जे की हर माह की किश्त बड़ी होने के कारण दुकान ज्यादा दिन बंद भी नहीं रख सकते थे. इसलिए यह तय हुआ की रूपेश और सारिका साथमें दो दिन के लिए जाए और रूपेश वापिस आ जाये. सारिका वही पर रूककर अपनी सांस का कुछ दिन तक ख़याल रखेगी.
दो दिन बाद जब रूपेश लौटके आया तब उसने बताया, "माँ की सेहत अब बेहतर हैं, बस थोड़े दिन सारिका घर संभाल लेगी तो सब ठीक हो जाएगा और फिर सारिका को लाने के लिए मैं चला जाऊंगा."
राज ने कहा, "चलो, अच्छी बात हैं. अब ज़रा दुकान पर अच्छा ध्यान दो और पिछले दो दिन की जो कमाई नहीं मिली उसकी कसर पूरी निकल लो. आगे चलके देखेंगे, अगर जरूरत पड़ी तो सारिका के लेने छुट्टी के दिन मैं चला जाऊँगा. अब और फिरसे दो तीन दिन दुकान बंद नहीं रख सकते."
रूपेश भी बड़ा समझदार था. उसने भी पूरा दिन और शाम को देर तक दूकान चलाई. दोपहर का खाना भी सुनीता देकर आयी. आखिर रात के ११ बजे रूपेश घर पहुंचा. खाना टेबल पर लगाकर मैं और राज बैडरूम में चले गए थे. खाना खाकर थोड़ी वाइन पीकर रूपेश भी सो गया.
अगले तीन-चार दिन तक ऐसा ही चला, फिर जब हमने बैठकर हिसाब लगाया तो लगा की हां अब महीने के किश्त के पैसे भी आ गए और थोड़ा मुनाफा भी हो गया है. उस दिन रूपेश नौ बजे घर पर आया और हम तीनों ने साथ में हसीं मजाक के साथ भोजन किया. तीनो थोड़ा सा टहलकर घर पर लौटे. अब रूपेश को अकेलापन खल रहा था, खास कर सारिका न होने के कारण उसका लौड़ा और भी ज्यादा अकेलापन महसूस कर रहा था.
मैं राज को खींचकर बैडरूम में लेकर गयी और उसे प्यार से चूमते हुए कहा, "मेरे प्यारे राजा, क्या तुम अपनी रानी की हर इच्छा पूरी करना चाहते हो?"
राज मुझसे इतना ज्यादा प्यार करता है की उसके मुँह से सिर्फ, "हां मेरी जान, जो तुम चाहो" इतना ही निकल पाया.
मै: "फिर आज मेरा तुम दोनों लंडोंसे चुदने को मन हो रहा हैं."
अब मेरा पति कितना भी बिनधास्त और खुले विचारोंका था मगर सारिका की नामौजूदगी में मेरे और रूपेश के साथ थ्रीसम उसके लिए भी थोड़ा अजीब ख़याल था.
राज की चुप्पी देखकर मैं थोड़ी उदास हो गयी.
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