RE: Desi Sex Kahani गदरायी मदमस्त जवानियाँ
दुसरे डब्बे में मैं और रूपेश भी अजब हालात में थे. हम दोनों को तो बैठने की जगह मिली ही नहीं इसलिए एक कोने में मैं खड़ी रही और रूपेश अपने मजबूत शरीर से मुझे दुसरे मर्दोंके स्पर्श से रोकने के लिए बाहोंसे जकड लिया था. इस पूरे सफर में अनजाने में मुझे भी बड़ा मजा आया और मैंने भी रूपेश के खड़े लंड का मजा लिया। मैंने भी अपने कठोर वक्ष उसकी चौड़ी छाती पर दबा दिए थे. कुल मिलाकर राजकी और मेरी अंदर की वासना की आग उस लोकल में ही चालू हो गयी थी.
जैसे ही हम लोग घर पहुंचे सब लोग बारी बारी नहाये और फिर भोजन किया. थोड़ा आराम करने के बाद रूपेश की नौकरी के बारे में आगे क्या करना इसकी रूपरेखा बनायीं गयी. उन दोनोका सामान ठीक ठाक जगह लगाया और उनके सोने के लिए हॉल में बेड का इंतज़ाम किया.
मैं राजसे बहुत खुश थी की उसने मेरी बहन और बहनोई की मुश्किल घडी में उनकी सहायता का कदम उठाया था. उस रात को हमने एक दुसरे को प्यार करते समय लोकल वाली बात शेयर की. हम कभी भी कोई बात एक दुसरे से छुपाते नहीं थे.
"रानी, तुम्हे छूने के बाद तो किसी भी मर्द का लंड खड़ा होगा. बड़ी ख़ुशी की बात हैं की मुझे और रूपेश को एक दुसरे की पत्नियोंको स्पर्श करने का मौका मिल गया," राज बोल रहा था.
"हां मेरी जान, उसके सीने पर दबने के बाद मेरे निप्पल तक एकदम कठोर हो गए थे. सचमुच बड़ा मजा आया," मैं बोली.
कुछ दिनोंके बाद रूपेश को एक दवाई की दूकान में काम मिल गया. सुबह वह अपना लंच लेकर जाता और शाम को देरी से आता. जब कभी लंच तैयार न हो तो मैं ही अपनी लूना चलाकर उसे भोजन का डब्बा देकर आती थी. सारिका अब तक लूना चलाना सीखी नहीं थी. दोपहर के समय दूकान पर ज़्यादा भीड़ नहीं होती थी, इसलिए मैं वही रूककर उससे बाते करके फिर खाली डब्बा लेकर आ जाती थी. अब परिवार में दो सदस्य और होने के कारण हमारा नीरज और निकिता के साथ मिलना जुलना कम हो गया, मगर मित्रता में कोई अंतर नहीं आया था. बस मेरी और राज की प्राथमिकताएं कुछ दिनों के लिए बदल गयी थी.
रूपेशकी दूकान काफी दूरीपर थी, देर रात तक रुकना पड़ता था और वेतन भी कुछ ख़ास नहीं था, इसलिए दोनों पति पत्नी काफी परेशान थे. वह सब देखकर मैंने फिर राज से उनकी कुछ और सहाय्यता करने के लिए कहना शुरू किया. अब शायद राज को भी मन ही मन लगा की रूपेश और सारिका परेशान रहेंगे तो उसका सारिका को चोदने का सपना शायद ही पूरा होगा।
कुछ दिन बाद राज ने उसके बैंक मैनेजर से बात की और उसे ५००० रुपये की घूस देकर अपने नामपर ४ लाख रुपयोंका लोन बहुत काम ब्याजदर पर मंजूर करा लिया. दो हफ्ते पहले से ही रूपेश घर के आसपास कोई मेडिकल दूकान बेचनेमें हैं क्या इसकी तलाश कर रहा था. लोन मिलने के तीसरे दिन ही साडेतीन लाख में एक दुकान मिल गयी और पचास हज़ार की दवाईयोंका स्टॉक ख़रीदा गया. दुकान का नाम राज ने सुनीता मेडिकल स्टोर्स रखकर मुझे और भी ज्यादा खुश कर दिया. ओपनिंग सेरेमनी सादगीसे किया और अब दूकान भी अच्छे से चलने लगी.
दोपहर के समय ज्यादा ग्राहक न होने कारण कुछ घंटोंके लिए रूपेश घर पर आता तब हम दोनों बहनोंमे से कोई भी दूकान संभाल लेती. सारिका की सुंदरता और सेक्सी ब्लाउज से मम्मोंकी झलक देखने से आया हुआ ग्राहक दो - चार चीज़े और लेके जाता था. इसके कारण सारिका ज्यादा दूकान पर रहती थी और मुझे रूपेश के साथ अच्छा समय बिताने को मिलता था. रूपेश भी मेरी की सुंदरता और सेक्स अपील से घायल हो रहा था. मौका पाकर मैं भी अपने जवानी के जलवे दिखाकर उसे एक्साइट करती रहती थी. नीरज जैसा बांका जवान हाथ न लगा तो अब मैं रूपेश पर डोरे डालने लगी।
रूपेश और सारिका अब मुझे और राज को इतनी ज्यादा इज़्ज़त और प्यार करने लगे की उनके लिए हम दोनों जैसे भगवान् का रूप हो गये. दोनों भी हमारी हर बात मान जाते थे.
राज कभी भी किसी काम से घरके बाहर निकलने की बात करता की तुरंत सारिका उसकी मोटरसाइकिल पर उसके पीछे बैठ जाती थी खरीदारी में सहायता के लिए. अब राज को भी उसके मम्मे अपनी पीठपर दबते हुए अच्छा लगता था. जानबूझकर वो खचाखच ब्रेक मारकर उसे पीछे से लिपटने पर मजबूर कर देता था. सारिका को भी अब इसमें मज़ा आने लगा था. रूपेश के सामने भी सारिका अक्सर राज को गालों पर किस कर देती थी और मैं भी रूपेश को बाहोंमे भरने का एक भी मौका गंवाती नहीं थी. सारिका को भी इसका बुरा नहीं लगता था.
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